(फोटो साभार: विकिपीडिया)
खोजी पत्रकारिता करने वाली न्यूज़ वेबसाइट कोबरापोस्ट ने दावा किया है कि हाउसिंग लोन देने वाली कंपनी डीएचएफएल ने कई शेल कंपनियों को करोड़ों रुपये का लोन दिया और फिर वही रुपया वापस उन्हीं कंपनियों के पास आ गया जिनके मालिक डीएचएफएल के प्रमोटर हैं. आरोप है कि इस तरीके से कंपनी ने करीब 31 हजार करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी की.
नई दिल्ली: निजी क्षेत्र की एक नामी कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंस कोऑपरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) पर 31 हजार करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी का आरोप लगा है.
खोजी पत्रकारिता करने वाली न्यूज़ वेबसाइट कोबरापोस्ट का दावा है कि उनकी पड़ताल में पता चला है कि डीएचएफएल ने कई शेल कंपनियों को करोड़ों रुपये का लोन दिया और फिर वही रुपया वापस उन्हीं कंपनियों के पास आ गया जिनके मालिक डीएचएफएल के प्रमोटर हैं.
आरोप है कि इस तरीके से डीएचएलएफएल द्वारा करीब 31 हजार करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी की. दावा है कि ये संभवत: देश का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला हो सकता है.
कोबरापोस्ट ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना और सरकारी वेबसाइट से मिली जानकारी के आधार पर इस कथित घोटाले का खुलासा हुआ है.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि डीएचएफएल से जुड़ी कंपनियां- जैसे आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स, स्किल रियल्टर्स और दर्शन डेवलपर्स- शेल कंपनियां हैं और इन्होंने पैसों की धोखाधड़ी की है.
कोबरापोस्ट की जांच में यह भी दावा किया गया है कि 2014 से 2017 के बीच, इन तीन कंपनियों ने अवैध रूप से भाजपा को लगभग 20 करोड़ रुपये का चंदा दिया.
29 जनवरी को कोबरापोस्ट ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर ‘द एनाटॉमी ऑफ इंडियाज बिगेस्ट फाइनेंशियल स्कैम’ नाम से अपनी ये रिपोर्ट जारी की. इस दौरान कोबरापोस्ट के संपादक अनिरुद्ध बहल, पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा, पत्रकार जोसी जोसेफ, परंजॉय गुहा ठाकुरता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण मौजूद थे.
डीएचएफसीएल वधावन ग्लोबल कैपिटल के स्वामित्व वाली एक सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी है. कपिल वाधवन, अरुणा वाधवन और धीरज वाधवन डीएचएफएल के मुख्य साझेदार हैं.
कोबरापोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, डीएचएफएल के प्रमोटरों ने वधावन समूह के स्वामित्व वाली शेल कंपनियों को वित्तीय नियमों का उल्लंघन करते हुए हजारों करोड़ रुपये का उधार देने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों से कथित रूप से असुरक्षित ऋण लिया.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि डीएचएफसीएल ने वधावन समूह द्वारा नियंत्रित कंपनियों को 10,000 करोड़ रुपये से अधिक जारी किए. आरोप है कि बदले में इन कंपनियों ने तब भारत और अन्य देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका और मॉरीशस में शेयरों, इक्विटी और अन्य निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करने के लिए इस धन का इस्तेमाल किया.
कोबरापोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएचएफएल की कुल जमा पूंजी या माली हैसियत साल 2017-18 के वित्तीय ब्योरे के मुताबिक 8795 करोड़ रुपया है. इस कंपनी ने अलग अलग बैंको और वित्तीय संस्थानो से 98718 करोड़ रुपए का कर्ज हासिल कर लिया.
आरोप है कि यह कर्ज अलग-अलग तरीके से हासिल किया गया है. इस कर्ज राशि से डीएचएफएल ने 84982 करोड़ रुपए की धनराशि कर्ज के रूप में दे दी है. डीएचएफएल की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने कुल मिलाकर 36 बैंको से उपरोक्त धनराशि कर्ज में जुटाई थी. इन बैंको में 32 सरकारी और निजी के अलावा छह विदेशी बैंक शामिल हैं.
इसमें भारतीय स्टेट बैंक से 11,500 करोड़ रुपये का ऋण और बैंक ऑफ बड़ौदा से 5,000 करोड़ रुपये का ऋण शामिल है.
रिपोर्ट के दावे के मुताबिक, डीएचएफसीएल के दो प्रमोटरों प्लेसिड नोरोन्हा और भागवत शर्मा आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स के प्रमोटरों की सूची में भी शामिल हैं. इसके अलावा डीएचएफसीएल के प्राथमिक प्रमोटर धीरज वाधवन औप नोरोन्हा आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स और दर्शन डेवलपर्स दोनों के निदेशक हैं.
कोबरापोस्ट ने यह भी दावा किया है कि भारतीय चुनाव आयोग को दिए गए भाजपा के दस्तावेजों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2014-17 के दौरान आरकेडब्ल्यू, दर्शन और स्किल रियल्टर्स ने भाजपा को लगभग 20 करोड़ रुपये का दान दिया था, जो कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 का उल्लंघन है.
धारा 182 कंपनियों द्वारा राजनीतिक योगदान पर प्रतिबंधों से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि एक कंपनी तीन पूर्ववर्ती वित्तीय वर्षों के दौरान अर्जित औसत शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत तक ही चंदा राजनीतिक दलों को दे सकती है.
लेकिन कोबरापोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 में आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स ने भाजपा को 10 करोड़ रुपये का योगदान दिया, जबकि इस कंपनी को वित्तीय वर्ष 2012-13 में लगभग 25 लाख रुपये का नुकसान हुआ और पूर्ववर्ती तीन साल में औसतन 18 लाख रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था.
इसी तरह, कोबरापोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि स्किल रियल्टर्स ने 2014-15 में बीजेपी को 2 करोड़ रुपये का चंदा दिया, उस वित्तीय वर्ष में इस कंपनी को केवल 27,000 रुपये का लाभ हुआ था और पूर्ववर्ती तीन साल में औसतन लगभग 4,500 रुपये का लाभ हुआ था.
2016-17 में दर्शन डेवलपर्स ने कंपनी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए 7.5 करोड़ रुपये का योगदान दिया. कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2013-14 में 5.13 लाख रुपये और 2014-15 में 4,650 रुपये के लगातार घाटे की सूचना दी थी.
हालांकि इसने वित्तीय वर्ष 2016-17 में लगभग 2.83 लाख रुपये का लाभ दर्ज किया. कोबरापोस्ट की रिपोर्ट का दावा है, इन कंपनियों का योगदान कंपनी अधिनियम के तहत स्वीकृत राशि से अधिक है.
धारा 182 में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक कंपनी को अपने लाभ और हानि खाते में किसी भी राजनीतिक दल को दिए गए योगदान का खुलासा करना होगा और कंपनी को कुल राशि के विशेष विवरण और पार्टी का नाम बताना होगा. कोबरापोस्ट रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि तीनों कंपनियों में से किसी ने भी अपनी बैलेंस शीट में भाजपा को दिए चंदे का खुलासा नहीं किया.
डीएचएफसीएल राष्ट्रीय आवास बैंक के साथ पंजीकृत है. राष्ट्रीय आवास बैंक भारतीय रिजर्व बैंक की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है जो भारत की हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को नियंत्रित करती है- जो मुख्य रूप से झुग्गी पुनर्वास, आवास विकास और अन्य अचल संपत्ति में लगे व्यवसायों को पैसा देती है.
डीएचएफसीएल कंपनी को 1984 में शामिल किया गया था और वित्तीय वर्ष 2017-18 में, इसने 8,795 करोड़ रुपये का शुद्ध मूल्य दर्ज किया था. कोबरापोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कंपनी ने अपने प्रमोटरों के स्वामित्व या नियंत्रण वाली कंपनियों को इस राशि का दस गुना से अधिक का ऋण दिया है.
कोबारापोस्ट का आरोप है कि इस कथित घोटाले को अंजाम देने के लिए डीएचएफएल के मालिकों ने दर्जनों शेल कंपनियां बनाईं. इन कंपनियों को समूहों में बांटा गया. इन कंपनियों में से कुछ तो एक ही पते से काम कर रही हैं और उन्हें निदेशकों का एक ही ग्रुप चला रहा है.
आरोप है कि अधिकांश शेल कंपनियों ने अपने कर्जदाता डीएचएफएल का नाम और उससे मिले कर्ज की जानकारी को अपने वित्तीय ब्यौरे में नहीं दर्शाया जो कि कानून के विरुद्ध है.
कोबरापोस्ट ने ये भी दावा किया है कि डीएचएफएल ने गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की कई कंपनियों को 1160 करोड़ रुपए का कर्ज बांटा था.
आरोप है कि कंपनी के मालिको ने इनसाइडर ट्रेडिंग के जरिए करोड़ों रुपए की हेराफेरी भी की है. कपिल वाधवन की इंग्लैंड की कंपनी ने ज़ोपा ग्रुप में निवेश किया. इसी ज़ोपा ग्रुप की सब्सिडियरी कंपनी ने इंग्लैंड में बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन किया हुआ है.
कोबरापोस्ट का दावा है कि इस धनराशि से कंपनी के मालिकों ने विदेश में बकायदा श्रीलंका प्रीमियर लीग की क्रिकेट टीम वायाम्बा भी खरीदी है. कंपनी के मालिकों ने गैर कानूनी तरीके से विदेशी कंपनीयों के अपने शेयर भी बेचे.
कोबरापोस्ट की तहकीकत में सैकड़ों करोड़ रुपए की टैक्स चोरी का भी खुलासा हुआ है. कंपनी के मालिकों ने अपनी सहायक और शैल कंपनीयों के जरिए करोडों रुपए का चंदा भारतीय जनता पार्टी को दिया है.
द वायर ने कोबरापोस्ट के दावों को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं किया है. आरोपों पर प्रतिक्रिया के लिए कंपनी को द वायर की तरफ से सवालों की सूची भेजी गई है.