यशवन्त कोठारी का आलेख - देह व्यापार-विवेचन
इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के अनुसार देह व्यापार का अर्थ है मुद्रा या धन या महंगी वस्तु और शारीरिक सम्बन्धों का विनिमय। इस परिभाषा में एक शर्त ये भी है कि वह विनिमय मित्रों या पति पत्नी के अतिरिक्त हो। गणिका के बारे में वात्स्यायन ने लिखा है-गणिकाएं, चतुर, पुरुषों के समाज में, विद्वानों की मंडली में राजाओं के दरबार में तथा सर्व-साधारण में मान पाती है।
प्राचीन भारत में वेश्याएं थी, उसी प्रकार हीटीरा यूनान में तथा जापान में गौशाएं थी। वेश्या के पर्यायों में वारस्त्री, गणिका, रुपाजीवा, शालभंजिका, शूला, वारविलासिनी, वारवनिता, भण्डहासिनी, सज्जिका, बन्धुरा, कुम्भा, कामरेखा, पण्यांगना, वारवधू, भोग्या, स्मरवीथिका, वारवाणि आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।
रोमन युल्पियन के अनुसार वेश्या उसे कहते हैं जो धन के लिए अपना शरीर कई पुरुषों को बिना चुनाव किए अर्पण करें।
फ्रान्सीसी विद्वान गेटे के अनुसार वेश्या वह है जो स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को आर्थिक लाभ के रुप में देखे।
वार्टन, वांगर तथा रिचर्ड आदि विद्वानों ने भी इसी प्रकार से वेश्याओं को परिभाषित किया है।
दामोदर गुप्ता के ग्रन्थ कुट्टनीमतम् के अनुसार सज्जनों का आचरण, दुष्टों का व्यवहार, मनुष्यों की रुचि, चतुर पुरुषों का परिहास, कुलटाओं के व्यंग्य, गुरु गंभीर विषय, कामशास्त्र की ज्ञाता, धूर्तों को ठगने की कला में माहिर होना वेश्याओं के लिए आवश्यक है।
अमरकोश के अनुसार अप्सराएं स्वर्ग की वेश्याएं हैं। ऋग्वेद में उर्वशी का वर्णन है। यजुर्वेद में स्वर्ग की वेश्याओं का वर्णन है तथा रामायण व महाभारत में भी वेश्याओं का वर्णन है। तन्त्रों के ग्रन्थों में भी देह व्यापार का वर्णन है। बौद्ध काल में भी वेश्याएं थी, जैन ग्रन्थों में भी वेश्याओं का वर्णन है। संस्कृत के ग्रन्थों में भी वेश्याओं का विशद वर्णन आया है। मृच्छ कटिकम् नाटक, दरिद्र चारुदत्त, मुद्राराक्षस, आदि नाटकों में वेश्या-चरित्रों का वर्णन है। कालिदास ने मेघदूत में देवदासियों का जिक्र किया है। शिशुपाल वध में भी वेश्या वर्णन है।
समर्थ दिपिका नामक ग्रन्थ में वेश्याओं को शुभ शकुन के रुप में स्वीकार किया है।
स्कन्द पुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सराओं तथा पृथ्वी के मनुष्यों के समागम से वेश्याओं की उत्पत्ति हुई। पंचचूर्णा नामक अप्सरा की कोख से पहली वेश्या पैदा हुई। बौद्ध काल में आम्रपाली तथा शलावती जैसी प्रसिद्ध वैश्याएं थी। गुप्त काल में भी वेश्यावृत्ति थी। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में वेश्यावृत्ति का विशद वर्णन किया है।
परसियों की धार्मिक पुस्तक जिंदा अवेस्ता में भी इनका वर्णन है। ईसा मसीह वेश्याओं को भी उपदेश देते थे।
वात्स्यायन के काम सूत्र के अनुसार वेश्याएं तीन प्रकार की हैं 1․गणिका 2․रुपाजीवा और 3․ कुम्भदासी। इनमें से प्रत्येक उत्तम, मध्यम तथा अधम हो सकती है।
वेश्याओं के अन्य प्रकारों में पहाड़ी पातर, डोमिनी, पेरवी, गोयगिरनी देवदासी, गंधारी, नटनी, विषकन्या, आदि होती है। देवदासी दक्षिण के मन्दिरों में यल्लमा देवी की सेवा करने वाली वेश्याएँ हैं।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 1970 तक 25 लाख वेश्याएं थी, जबकि एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार इनकी संख्या 2से तीन करोड़ है। यूरोपीय देशों के अलावा बेरुत और हांगकांग में औरतों की खरीद और बिक्री का काम चलता है। महिलाओं की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद के अनुसार 1950-1975 तक 75 लाख औरतें बेची गई थीं। स्पेन में 29,000 चकला घर पंजीकृत है। राजस्थान में धोलपुर में वेश्याओं की हाट लगती है।
भारत में वेश्याएं प्रमुख शहरों में देह व्यापार करती है। दिल्ली का श्रद्धानन्द बाजार बम्बई का फारसी रोड़, कोलाबा, कलकत्ता, कानपुर, आगरा आदि देह व्यापार के बडे बाजार है।
अनेकों कारणों के बावजूद वेश्या-वृत्ति निरन्तर बढ़ रही है और आदिकाल से अनादिकाल तक चलती रहेगी। भारत में पतिता उद्धार सभा तथा अन्य संगठनों ने लाइसेंस प्रणाली द्वारा इस व्यापार को जायज करार देने की मांग की है। उनकी मान्यता है कि वेश्याएं दलालों, ग्राहकों, पुलिस द्वारा सताई जाती है। पश्चिम जर्मनी में वेश्याओं को लाइसेंस जारी कर दिए गये हैं। वेश्यावृत्ति को लाइसेंस के बजाए पुनर्वास कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो हमारी सामाजिक जरुरत है। वास्तव में वेश्यावृत्ति एक जटिल मानसिक घटना है। कोई नहीं कह सकता कि कोई लड़की वेश्या क्यों बन जाती है और क्यों बनी रहती है। हमारे देश में ऐसे सैंकड़ों अंचल हैं जहां पर सामाजिक रुढि़यों, परम्पराओं और आर्थिक कारणों से यौन-शोषण से तंग आकर लड़कियां वेश्याएं बन जाती है।
अधिकांश वेश्याएं यह स्वीकार करती है कि इस व्यापार में आने का कारण आर्थिक था, बूढ़े मां-बाप, या भाई बहनों की जिम्मेदारी, नौकरी नहीं मिलना, भूख, बीमारी और बेरोजगारी से तंग आकर लड़कियां इस व्यापार में आती है।
पैसे के आकर्षण के साथ ही प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं। एक कालगर्ल के अनुसार वह तो समाज की सेवा कर रही है वे नहीं होती तो बहू-बेटियों का रहना मुश्किल हो जाता।
समाज विज्ञानियों के अनुसार कुछ सामाजिक कारण भी होते हैं, जो लड़कियों को इस व्यापार की ओर धकेलते है। वास्तव में वेश्यावृत्ति एक अनोखी या अजूबी घटना नहीं होकर सामाजिक आर्थिक कारणों का परिणाम है।
सच पूछा जाय तो विज्ञान के अनुसार मानव याने होमोसेपाइन्स क्लास मेमेलिया का सदस्य है और इस क्लास के प्रमुख लक्षणों में एक लक्षण पोलीगेमी है। अर्थात् मनुष्य। नर या मादा प्रकृति के अनुसार बहु सहवासी है, अब सामाजिक मर्यादाएं, नियम कानून उसे कहां तक बांध पाते हैं- यह एक अलग प्रश्न है। पोलीगेमी वेश्यावृत्ति का आधार माना गया है।
इस व्यापार में दलालों की एक अलग संस्कृति है। वे एक समानान्तर सरकार के स्वामी हैं जो वेश्याओं के लिए ग्राहक लाते हैं। और अपना कमीशन लेते हैं। कालगर्ल, सोसाइटी गर्ल, सामान्य वेश्याएं सभी इन पर निर्भर करती हैं। अतः इनकी दुनिया में ये ही सब कुछ हैं।
उन्नीसवीं शताब्दी के सामाजिक परिवर्तनों, औद्योगीकरण तथा मशीनीकरण ने मानव जीवन को बदल दिया। घर से दूर नौकरी की तलाश में भटकते मानव ने महा- नगर में बड़े पैमाने पर इस धन्धे को पनपने में मदद की।
वेश्यावृत्ति के साथ ही मेल प्रोष्टीट्यूशन तथा समलैंगिक सम्बन्ध भी अनैतिक है और इस व्यापार से जुड़े हुए हैं। अब कुछ देशों में सम लैंगिक सम्बन्धों को कानूनन मान्यता हैं इसी प्रकार वेश्याओं का भी वर्णन मिलता है। कुछ वर्षों पूर्व गुजरात में फ्रेंडशिप एक्ट के अन्तर्गत समूह में महिलाओं को आमोद-प्रमोद हेतु रजिस्टर किया जाता था।
देह व्यापार के बाजार में सांकेतिक शब्दों का प्रचलन होता हैं।
वेश्याओं के डेरों की अलग-अलग सांकेतिक बोली होती थी और व्यापार के समय इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
वेश्याओं से स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे भी बहुत हैं। यौन रोगों तथा रति-जन्य रोगों तथा एड्स का खतरा वेश्याओं से बहुत ज्यादा है। इसके अलावा गर्भधारण करना या एमटीपी या डी․एन․सी․ भी इनके स्वास्थ्य के लिए एक खतरा है। कुष्ट रोग भी वेश्याओं में मिलता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले फ्रांस में रतिरोगों के कारण ही वेश्यावृत्ति पर रोक लगा दी गई। वेश्याओं का नियमित मेडिकल चेकअप ही इसका एक मात्र समाधान है।
यौन व्यापार दुनिया का प्राचीनतम व्यवसाय है। एक आवश्यक बुराई, जो समाज के शरीर पर एक भद्दा नासूर है, कैंसर है, मगर आवश्यक है।
ये बदनाम बस्तियों के वासी, ये गन्दी, आवारा गलियों के राही है। सभ्यता के प्रारम्भ से लगा कर आज तक इनका स्वरुप कब-कब बिगड़ा, बना और फिर बिगड़ा।
एक प्रसिद्ध चिन्तक के अनुसार सभ्यता का इतिहास वेश्यावृत्ति का इतिहास है। वास्तव में यह एक कटु सत्य है। इस दूसरी औरत को क्या इतिहास से अलग रखा जा सकता है। क्या यह व्यापार हमारे एहसासों, नजरियों का व्यापार नहीं है, जो हम एक सेक्स के लोग दूसरे सेक्स के प्रति रखते हैं।
यह आश्चर्य मिश्रित खेद का विषय है कि समाज का इस व्यापार के प्रति रुख हमेशा एक जैसा रहा है। निन्दनीय, अनैतिक और दुर्गन्धयुक्त। फ्रांस में वेश्याओं को आनन्द की पुत्रियां कहा गया है। शायद यही सब से ठीक विशेषण है।
1- गायन 2․ नृत्य 3․ वाद्य 4․ चित्रकला 5․ विशेषच्छेय 6․चावलादिसो चौक पूरना 7․ पुष्प रचना 8․ रंजन कला 9․ गच तैयारी 10․ सेज सजाना 11․ जल तरंग 12․ जल- क्रीडाएं 13․ मित्र योग 14․ माला गूंथना 15․ फूल गूंथना 16․ नेपथ्य प्रयोग 17․ दांत,शंख आदि से वेश रचना 18․ गंध-युक्ति 19․ भूषण योजन 20․ जादू के खेल 21․ कौचमार 22․ हाथ की सफाई 23․ पाकशस्त्र 24․ सिलाई कला 25․ डोरों कारवेज 26․ वीणा वादन 27․ पहेलियां बुझाना 28 अंताक्षरी 29․पद्य रचना 30․ पुस्तक वाचन 31․ नाटक कला 32․ काव्य कला 33․ बेंत की बुनाई 34․ तक्षकर्म 35․ बढ़ई का काम 36․ वास्तु कला 37․रत्न परीक्षा 38․ धातु कला 39․ मणिरागाकर ज्ञान 40․ वृक्षायुर्वेद योग 41․ युद्ध विधि 42․ मालिश कला 43․ सांकेतिक भाषा 44․ गूढ़ बातचीत 45․ देश-भाषा ज्ञान 46․ पुष्प शकटिका 47 साथ पढ़ाना 48․ मानसी 49․ काव्य क्रिया 50․ स्माण रखना 51․ छेद का ज्ञान 52․ रचना परीक्षा 53․ ठग विद्या 54․ द्यूत विद्या 55․ पांसे खेलना 56․ बाल क्रीड़ा 57․ वस्त्रगोपन 58․ पशु साधना 59․ विजय दिलाना 60․ व्यायाम-शिकार कला।
वेश्याओं के बारे में जो प्रसिद्ध ग्रन्थ है उनमें वात्स्यायन के कामसूत्र के बाद कवि दामोदर गुप्ता का कुट्टनीमतम् है। इस ग्रन्थ में कवि ने वेश्या-समाज का बड़ा विशद चित्रण किया है। इसे पढ़कर वेश्या के जीवन, समाज, परम्पराओं के बारे में काफी जानकारी मिलती है। इस पुस्तक में मालती नामक वेश्या के माध्यम से कुट्टनी चरित्र को विस्तार से समझाया गया है। कवि ने वेश्याओं की तुलना चुम्बक से की है जो लोहे की तरह पुरुष को अपनी ओर खींचकर उसका सब धन हरण कर लेती है। इनके ग्रन्थों के अलावा कला विलास, दशकुमार चरित भी वेश्याओं से सम्बन्धित है।
विश्व की सभी भाषाओं के साहित्यकारों ने वेश्याओं पर लिखा है और लिपिबद्ध साहित्य के साथ ही वेश्याएं एक शाश्वत विषय बन गई। ऐतिहासिक आलेखों से लगाकर वेदों, उपनिषदों आदि में वेश्या वर्णन मिलता है। कालान्तर में कथा साहित्य का शाश्वत विषय देह व्यापार बन गया। ब्रह्म वैवर्त पुराण, गरुड़ पुराण में भी वेश्यावृत्ति का उल्लेख है।
कथा सरित सागर में क्षेमेन्द्र ने वेश्यावृत्ति का वर्णन किया है। मध्य युग में गणिकाएं श्रृंगार और रीतिकालीन नायिकाएं बन गई। फ्रांसीसी लेखक ब्रोतोल, अंग्रेजी लेखक जॉन क्लोलैंड ने भी अपनी कलम इस व्यापार पर चलाई है। एमोलजोला का उपन्यास नाना, कुप्रिन का यामा, चेखवका पाशा, बालजक का डाल स्टोरीज, मोंपासा, गोर्की की रचनाएं भी प्रसिद्ध हुई। मेंगी लिखकर स्टीफेन क्रेन प्रसिद्ध हुए।
बीसवीं सदी में सआदत हसन मंटो, इस्मत आपा, हेनरी मिलन, अल्बटों मोरादिया, विलियम सरोयां, आर्थर कोस्लर, कमलेश्वर, पर्लबक, गुलाम अब्बास, जैनेन्द्र कुमार, आबिदसुरती, अमृत लाल नागर, हेनरी मिलर, यशपाल आदि ने भी इस वृत्ति को आधार बनाकर रचनाएं लिखी हैं जो काफी प्रसिद्ध हुई। नागर जी की ये कोठे वालियां एक प्रामाणिक ग्रन्थ है।
धन्धा कॉल गर्ल्स का
आधुनिक समाज में वेश्याओं को तीन समूहों में बांटा गया है। पहली वे हैं जो गली, चौराहों, बस स्टेण्डों, रेलवे स्टेशनों पर अपने ग्राहक ढूंढती हैं। दूसरी चकले वाली और तीसरी कॉलगर्ल्स या सोसाइटी गर्ल्स। जो बड़े समाज में शान से घूमती हैं। पहली प्रकार की वेश्याओं की कीमत बहुत कम, जबकि कॉलगर्ल्स एक सिटिंग के हजारों वसूल करती हैं। सुरा सुन्दरी की मदद से सत्ता और सरकार के काम निकालते हैं और वे सत्ता के भेद तक निकाल लाती हैं। कीलर और प्रोफ्यूमों कांड के बारे में कौन नहीं जानता। राजधानी दिल्ली, महानगर बम्बई और प्रान्तीय राजधानियों में कॉलगर्ल्स का धन्धा खूब पनप रहा है।
पिछले कुछ दशकों में यह व्यापार एक बहुत ही अहम् व्यापार बन गया है। सत्ता, राजनीति, धन और पश्चिम से आई मुक्त यौन सम्बन्धों की हवा ने इस व्यापार को हवा दी है। कॉलगर्ल्स के ग्राहक बहुत सम्पन्न व्यापारी, नेता या अफसर होते हैं। इनके पास कार, टेलीफोन, बंगला होता है और बड़े होटलों से आर्डर पर माल भेजा जाता है।
दूसरी बड़ी लड़ाई के बाद समाज में एक नवधनाढ्य वर्ग पनपा, जिसके लिए सफलता ही सब कुछ थी। इस वर्ग में निचले तबके से आए लोगों ने अपनी संस्कृति छोड़ कर पश्चिम की संस्कृति अपनायी। सत्ता, सरकार में काम निकालने के लिए इस पीढ़ी ने कॉल गर्ल्स, सुरा सुन्दरी तथा खाओ-पीओ और मौज करो की संस्कृति ने क्लब , बार, होटल, रेस्ट्रां, फ्लेटों की एक नई दुनिया का विकास किया। इनकी देखा देखी अन्य लोगों ने भी नकल की। पैसा कहां से आए। आसान तरीका महीने में एक या दो व्यापार की सिटिंग। और पांच सौ से पांच हजार रुपयों तक की प्राप्ति। मम्मीज, आन्टीज का एक ऐसा जाल चारों तरफ बिछा कि मत पूछिए और परिणाम कॉलगर्ल्स का विकास।
एक सर्वेक्षण के अनुसार अकेली दिल्ली में 20,000 कॉनगर्ल्स हैं जिनमें से आधी उच्च वर्ग और संभ्रान्त परिवारों से आती हैं। कम वेतन पर काम करने वाली अध्यापिकाएं, सेल्स गर्ल्स, नर्स, क्लर्क सभी हैं इस व्यापार में।
करोल बाग, दक्षिण दिल्ली, पहाड़गंज, कनाट प्लेस, कर्जन रोड़, मंडीहाउस आदि स्थानों पर कॉलगर्ल्स हैं।
अक्सर बड़े होटलों में कमरे बुक होते हैं, कभी कभार पकड़े भी जाते हैं तो कुछ नहीं होता।
बम्बई में भी हालात ऐसे ही है। यहां पर कॉलगर्ल्स की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। प्रति 10 कार्यशील महिलाओं में से कम से कम एक अवश्य अस व्यापार में है। गेस्ट हाउसों, वातानुकूलित शहरों में यह धन्धा खूब चल रहा है।
दूरदर्शन, मॉडल, विज्ञापन, फिल्म, कला, रंगमंच तथा अन्य व्यवसायों से जुड़ी लड़कियां उच्च स्तर की कॉल गर्ल्स हैं। संभ्रान्त परिवारों के ग्राहक होते हैं। सम्पन्न परिवारों की विवाहित महिलाएं शारीरिक सुख के लिए कॉल गर्ल्स बनती हैं। कोलाबा, कफ-परेड, बांद्रा तथा वर्किंग वूमेन होस्टलों में ये आसानी से उपलब्ध है।
फिल्मों में असफल लड़कियां या अपना कैरियर बनाने को बेताब लड़कियां आगे जाकर कॉल गर्ल्स फिर चकलावासी बन जाती हैं। दलाल उन्हें चकले पर चढ़ाकर ही दम लेते हैं।
कलकत्ता में भी यही स्थिति है। लखनउ, पटना, भोपाल, जयपुर भी इस धन्धे में पीछे नहीं है।
देवदासी प्रकरण
कर्नाटक में येल्लम्मा देवी को प्रति वर्ष सैंकड़ों कन्याओं को समर्पित करके देवदासी बना दिया जाता है। प्रारम्भ ये पूज्य थी मगर आजकल इनकी हालत धार्मिक मान्यता प्राप्त वेश्याओं की है। समाज के दौलतमंद लोग इसके यौवन को लूटकर बुढ़ापा आते ही भीख का कटोरा थमा देते हैं।
भारत में इस प्रथा का जन्म आर्यों के प्रवेश से पूर्व हुआ था। तीसरी शताब्दी में प्रारम्भ इस प्रथा का मूल उद्देश्य धार्मिक था। चोल तथा पल्लव राजाओं के समय देवदासियां संगीत, नृत्य तथा धर्म की रक्षा करती थी। 11 वीं शताब्दी में तंजोर में राजेश्वर मंदिर में 400 देवदासियां थीं। सोमनाथ मंदिर में 500 देवदासियां थी। 1930 तक तिरुपति, नाजागुड में देवदासी प्रथा थी।
देवदासियों की 2 श्रेणियां थीं-
1- रंग भोग 2․ अंग भोग। दूसरी श्रेणी की देवदासियां मंदिर से बाहर नहीं जाती थीं।
वेलमा देवी को समर्पित करने की रस्म शादी की तरह ही थी। कन्या की उम्र 5-10 वर्ष की होती है। कन्या का नग्न जुलूस मन्दिर तक लाया जाता है। उसको फिर देवदासी के रुप में दीक्षित किया जाता है।
समर्पण के बाद ये देवदासियां मंदिर और पुजारियों की सम्पत्ति हो जाती है। जब तक जवान है तब तक भोग्या और जवानी के उतरते ही उसी मंदिर के बाहर भिखारी का रुप।
धर्म और वेश्या
ऐसे कई स्थान है जहां वेश्याओं ने मंदिर बनाएं हैं, धर्म के प्रति आस्था प्रकट की है। वे अपने धर्म के प्रति पक्की होती है। मंगलवार को हनुमानजी के प्रति आस्था व्यक्त करती है। व्रत रखती है, धन्धा नहीं करती है। मुसलमान वेश्याएं नमाज, रोजा की पाबन्द होती है। पूनम का व्रत भी हिन्दू वेश्याएं रखती हैं। वेश्याओं का एक धर्म यह भी है कि वे एक की होकर दूसरे के पास नहीं जाती। वसन्त सेना का उदाहरण ऐसा ही है वह राजा के साले के पास नहीं जाकर चारुदत्त के पास गई।
वेश्याएं और समाज
समाज में वेश्याओं को उचित सम्मान हर काल में रहा है। वे राज सभा और शाही जुलूसों का एक आवश्यक अंग समझी जाती थी।
प्राचीनकाल में इनका सामाजिक महत्व तो था ही, वे राजनीतिक कार्यों में भी मदद करती थी। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ के प्रथम अधिकरण के चौवालीसवें प्रकरण में गणिकाध्यक्ष का वर्णन किया है और लिखा है कि गणिकाध्यक्षको एक प्रधान गणिका और 2 सहायिकाएं रखनी चाहिए। वेश्याएं संधि-विग्रह में प्रयुक्त होती थी। विष कन्याओं के रुप में वे शत्रु का नाश करती थी। बाद के काल में राजा, महाराजा, नवाब तथा श्रेष्ठिवर्ग के लोग अपने बच्चों को तहजीब, संस्कार तथा दुनियादारी सिखाने के लिए वेश्याओं के पास भेजते थे। अच्छी गणिकाएं इन बच्चों को अपने पुत्रों की तरह शिक्षा-दीक्षा देती थीं और समाज में समादृत होती थीं।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी कई वेश्याओं ने अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान किया था। असहयोग आंदोलन के दिनों में हुसना बाई की अध्यक्षता में एक सभा हुई। जिसमें हुस्नाबाई ने भारत को गुलामी से मुक्ति के लिए प्रयास करने का आह्वाहन किया।
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यशवन्त कोठारी, 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 2, फोन - 2670596
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