क्राइम रिपोर्टर // असलम खान (शहडोल // टाइम्स ऑफ क्राइम)
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शहडोल ।ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रदेश सरकार कृत संकल्पित है। स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग लिया जा रहा है। वही सक्षम एवं सेवा भारती संस्था द्वारा दूरस्थ अंचल के क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर के आयोजन के लिए सराहना की तथा कहा कि ऐसे शिविरों के आयेाजनों से वनवासियों को बीमारियों से छुटकारा मिलेगा।
वास्तविकता कोसों दूर
देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रो में स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा ग्रामीणों को रूपए खर्च करने के बाद भी नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में एक दिन शिविर लगाने से ग्रामीणेां को स्वास्थ्य नहीं किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा तभी मिल सकती है जब स्थाई रूप से ग्रामीणों में चिकित्सक उपलब्ध होगा क्योंकि बीमारी किसी को बता कर नहीं आती, वह अचानक ही आती है और तब एक कुशल चिकित्सक की जरूरत बीमार आदमी को ठीक करने के लिए पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों से सैकड़ो लोग ग्रामीण क्षेत्र में कोई चिकित्सक या चिकित्सा सुविधा न होने से जिला चिकित्सालय की ओर रूख करते हैं किन्तु जिला चिकित्सालय में अव्यवस्था और रूपए कमाने के फेर में चिकित्सालय के डाक्टर गांव से आने वाले लोगों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं। और गांव के गरीब लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो अच्छे चिकित्सकों की सेवा ले सकें। गर्मी बढ़ते ही जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, मेंटनर्टी वार्ड की हालत अगर देखी जाए तो कई महिलाएं फर्श पर अपना चादर बिछाकर इलाज करवा रही है। वहीं मरीजों के साथ में आये परिजनों की संख्या से पूरा रास्ता आने-जाने वालों के लिए बंद है इस वार्ड में देखा जाए तो कही पैर रखने की जगह नही है।
ऊपर जाने वाला मार्ग पर भी सोते हुए लोग
तस्वीर में देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चा वार्ड में ऊपर जाने वाले रास्ते पर कई लोग आराम फरमा रहे हैं, जिन्हे न तो अस्पताल प्रबंधन कुछ बोल रहा है और नही वार्ड में तैनात अस्पताल के कर्मचारी जिसके कारण जिसकी जहां मर्जी वही चादर, कम्बल तान कर आराम फरमा रहे हैं। देखा जाऐ तो पूरा जिला चिकित्सालय अव्यवस्थित है मरीजों की संख्या सैकड़ो है ओैर इलाज करने वाले डाक्टरों की संख्या नाममात्र ही है।
चिकित्सा सुविधा में भी कमी
कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय में स्टाफ की कमी का रोना बताकर सीएम एच ओ पल्ला झाड़ते रहते हैं। किन्तु अगर हकीकत पर ध्यान दिया जाय तो सबसे बड़ी कमी अस्पताल प्रबंधन ही दोषी है। जितना स्टाफ जिला चिकित्सालय में है, उसे अच्छी चिकित्सा सुविधा मरीजों को दिया जा सकता है, किन्तु अस्पताल में जो स्थाई डाक्टर है, पैसा कमाने में व्यस्त है। इन डाक्टरों को जिला चिकित्सालय में आने वाले मरीजों को अच्छी चिकित्सा सुविधा तभी प्राप्त हो सकेगी जब फीस के रूप में डाक्टरों को चढ़ोत्री चढ़ा दिया जायेगा। अगर कोई गरीब आदमी डाक्टरों को फीस नहीं दे सकता तो गरीब को जिला अस्पताल में कोई चिकित्सा सुविधा प्राप्त नहीं होगी, क्योंकि गरीब आदमी की गरीबी सबसे बड़ी बुराई है जिसे कोई भी समाज पसंद नही करता, चाहे वो डाक्टर हो या कोई ओैर।
तो किस के द्वारा होता है इलाज
संविदा आधार पवर नियुक्त चिकित्सक ही पूरे अस्पताल में अपनी सेवा देेते हुए नजर आते हैं संविदा चिकित्सकों पर दबाव बनाकर अस्पताल के सारे कार्य करवाये जाते हैं। बताया जाता है कि स्थाई चिकित्सकों को पीएम करने का पांच सौ रूपये दिया जाता है किन्तु संविदा चिकित्सकों को जबरन दबाव बनाकर पीएम का कार्य लिया जा रहा है और उसके बदले संविदा चिकित्सकों को कोई राशि भी नहीं दिया जाता है। इस तरह अगर देखा जाये तो अस्पताल प्रबंधन संविदा कर्मचारियों का शोषण करते नजर आ रहे हैं। और स्थाई डाक्टर कई वर्षो से यहीं रहकर अनाप-शनाप पैसा कमाने में लगे हुए हैं।
वास्तविकता कोसों दूर
देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रो में स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा ग्रामीणों को रूपए खर्च करने के बाद भी नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में एक दिन शिविर लगाने से ग्रामीणेां को स्वास्थ्य नहीं किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा तभी मिल सकती है जब स्थाई रूप से ग्रामीणों में चिकित्सक उपलब्ध होगा क्योंकि बीमारी किसी को बता कर नहीं आती, वह अचानक ही आती है और तब एक कुशल चिकित्सक की जरूरत बीमार आदमी को ठीक करने के लिए पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों से सैकड़ो लोग ग्रामीण क्षेत्र में कोई चिकित्सक या चिकित्सा सुविधा न होने से जिला चिकित्सालय की ओर रूख करते हैं किन्तु जिला चिकित्सालय में अव्यवस्था और रूपए कमाने के फेर में चिकित्सालय के डाक्टर गांव से आने वाले लोगों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं। और गांव के गरीब लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो अच्छे चिकित्सकों की सेवा ले सकें। गर्मी बढ़ते ही जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, मेंटनर्टी वार्ड की हालत अगर देखी जाए तो कई महिलाएं फर्श पर अपना चादर बिछाकर इलाज करवा रही है। वहीं मरीजों के साथ में आये परिजनों की संख्या से पूरा रास्ता आने-जाने वालों के लिए बंद है इस वार्ड में देखा जाए तो कही पैर रखने की जगह नही है।
ऊपर जाने वाला मार्ग पर भी सोते हुए लोग
तस्वीर में देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चा वार्ड में ऊपर जाने वाले रास्ते पर कई लोग आराम फरमा रहे हैं, जिन्हे न तो अस्पताल प्रबंधन कुछ बोल रहा है और नही वार्ड में तैनात अस्पताल के कर्मचारी जिसके कारण जिसकी जहां मर्जी वही चादर, कम्बल तान कर आराम फरमा रहे हैं। देखा जाऐ तो पूरा जिला चिकित्सालय अव्यवस्थित है मरीजों की संख्या सैकड़ो है ओैर इलाज करने वाले डाक्टरों की संख्या नाममात्र ही है।
चिकित्सा सुविधा में भी कमी
कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय में स्टाफ की कमी का रोना बताकर सीएम एच ओ पल्ला झाड़ते रहते हैं। किन्तु अगर हकीकत पर ध्यान दिया जाय तो सबसे बड़ी कमी अस्पताल प्रबंधन ही दोषी है। जितना स्टाफ जिला चिकित्सालय में है, उसे अच्छी चिकित्सा सुविधा मरीजों को दिया जा सकता है, किन्तु अस्पताल में जो स्थाई डाक्टर है, पैसा कमाने में व्यस्त है। इन डाक्टरों को जिला चिकित्सालय में आने वाले मरीजों को अच्छी चिकित्सा सुविधा तभी प्राप्त हो सकेगी जब फीस के रूप में डाक्टरों को चढ़ोत्री चढ़ा दिया जायेगा। अगर कोई गरीब आदमी डाक्टरों को फीस नहीं दे सकता तो गरीब को जिला अस्पताल में कोई चिकित्सा सुविधा प्राप्त नहीं होगी, क्योंकि गरीब आदमी की गरीबी सबसे बड़ी बुराई है जिसे कोई भी समाज पसंद नही करता, चाहे वो डाक्टर हो या कोई ओैर।
तो किस के द्वारा होता है इलाज
संविदा आधार पवर नियुक्त चिकित्सक ही पूरे अस्पताल में अपनी सेवा देेते हुए नजर आते हैं संविदा चिकित्सकों पर दबाव बनाकर अस्पताल के सारे कार्य करवाये जाते हैं। बताया जाता है कि स्थाई चिकित्सकों को पीएम करने का पांच सौ रूपये दिया जाता है किन्तु संविदा चिकित्सकों को जबरन दबाव बनाकर पीएम का कार्य लिया जा रहा है और उसके बदले संविदा चिकित्सकों को कोई राशि भी नहीं दिया जाता है। इस तरह अगर देखा जाये तो अस्पताल प्रबंधन संविदा कर्मचारियों का शोषण करते नजर आ रहे हैं। और स्थाई डाक्टर कई वर्षो से यहीं रहकर अनाप-शनाप पैसा कमाने में लगे हुए हैं।
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