क्राइम रिपोर्टर// असलम खान (शहडोल //टाइम्स ऑफ क्राइम)
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शहडोल । हम लाचार है, बेवस है और बेवा हैं मेरे पति स्व. राज किशोर द्विवेदी का स्वर्गवास वर्ष 1930 में हो गया तभी से अपने 5 पुत्र एवं 3 पुत्रियों को पाल पोसकर जीवन बसर कर रही हूं। मेरे पति की जायदाद भूमि जिसका खसरा नं.-1789, 1790,1791, 1820 पर पिछले चालीस वर्षो से मेरे ही कब्जे में है। जिसके दमखम पर परिवार का भरण-पोषण चल रहा है। उपरोक्त खसरा नं. भूमि को लेकर मेरे स्व. पति राजकिशोर द्विवेदी के तत्कालीन मित्र भोपाल सिंह टी. आई. की पत्नी राजा बेटी ने कहीं से उपरोक्त भूमि का अवैध तरीके से पट्टा बनवा लिया। मुझे जब इस बात की जानकारी मिली तब मैने 30.12.1992 को एस डी एम सोहागपुर के पास आपत्ति लगाई जिस पर एसडीएम ने अतिरिक्त तहसीलदार गुलाब सिंह द्वारा बनाये गये पट्टे पर स्थगन दे दिया। इस स्थगन के विरोध में राजाबेटी जिला मजिस्टे्रट के पास गई जिन्होने स्थगन को सही माना। इसके बाद 26.05.2003 को उपरोक्त पट्टा नामान्तरण एसडीएम ने निरस्त कर दिया परिणामत: श्रीमती ललिता देवी द्विवेदी को ही मालिकाना वैध रहा। राजाबेटी एसडीएम कलेक्टर के बाद रीवा कमिश्रर के पास गई वहां 26.05.2003 का फैसला ही वैध ठहराते हुए 17 दिसम्बर 2005 को राजाबेटी की अपील निरस्त कर दी गयी। इसके बाद राजा बेटी आफ रेवन्यू ग्वालियर गयी जहां प्रकरण विचाराधीन है। प्रथम न्यायाधीश वर्ग-2 शहडोल के यहां राजा बेटी ने वर्ष 1993 में एक सिविल दावा दायर किया जिसमें उक्त खसरा भूमि पर मालिक घोषित करने तथा कब्जा प्राप्त करने की मांग की। इस दावा पर न्यायालय ने यथस्थिति को बनाये रखने का आदेश दिया व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-प्रथम शहडोल ने उक्त राजा बेटी का दावा दिनांक 01.05.1998 को खारिज कर दिया। दावा खारिज पश्चात राजाबेटी ने प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के यहां अपील की वहां से भी सम्पूर्ण दावा 09 अक्टूबर 2000 को खारिज हो गया। इसके विरूद्ध राजाबेटी ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अपील की जहां प्रकरण विचाराधीन है। मीडिया साथियों, भाइयों दोनों प्रकरण सिविल व राजस्व उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। इसके बावजूद राजाबेटी ने चंद दबदबेदार लोगों को प्लाट बेच दिया जो सरासर न्यायालय की अवमानना है। इतना ही नहीं खरीददार खली-बली लागे जे. सी. बी. लेकर मेरा मकान तोडऩे आये, मारने की धमकी दिये। मैं अबला बेवा रोती-चीखती चिल्लाती थाना कोतवाली कचहरी गयी। एस पी साहब ने ढाढस दी कि अम्मा कोई गलत काम नही होगा। मैं शांत होकर बैठ गई। शहडोल कोतवाली का एक सिपाही आर पी त्रिपाठी जो कि बड़ी-बड़ी मूंछ रखा था। वह डराने धमकाने आया और उसने मेरे व मेरे पुत्रों के खिलाफ धारा 447, 294, 506 बी-34 आई पी सी के साथ मामला दर्ज कर प्राथमिकी की प्रति 21 अपै्रल 2011 को न्यायिक दण्डाधिकारी द्वितीय की कोर्ट में पेश कर दी जबकि सिपाही को बताया गया कि इस भूमि का विवाद माननीय उच्च न्यायालय में परन्तु उसकी मनमानी और धमकी से तंग आकर मैं बेवस हो गयी। यह अबला जिन बड़े अफसरों तक नहीं पहुंच सकती या अपने आसूं नही दिखला सकती वह मीडिया के सामने आई, मुझे या तो न्याय दिला दो या फिर मर जाने दो। बरसों से लड़ते-लड़ते थक गयी। अभी तक न्याय का आसरा था लेकिन अब सिपाही की धमकियों से मेरी हिम्मत टूट गई अगर सामने वाले पक्ष ने भी मुझे गुण्डों से मरवाया तो मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे मुझे न्याय दिलवाया जाये या फिर परिवार सहित आत्महत्या कर लेने दी जाए।
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