पुलिस शब्द कान में पड़ते ही एक अजीब सी बेचैनी होने लगती है और तब तो हवा ही खराब हो जाती है, जब पता चले कि पुलिस हमें ही खोज रही है! मन में डर और आशंका के बीज उग आते हैं बिना किसी गुनाह में भागीदार रहे हुए भी अपने आप को पुलिस के चंगुल से बचाने की जुगत किसी राजनेता या वकील तक खींच ले जाती है. बड़ी अजब बात है तस्बीर का एक पहलू यह भी है कि अगर आज पुलिस थाने हटा लिए जाये तो समाज में अराजकता फैल जाएगी, लोगों का जीना और रहना, चलना दूभर हो जाएगा तब क्यों पुलिस "हौउआ" बनी है?
यह अपने आप में एक अजीब सवाल है. बात समझ में यह आती है कि अभी भी हमारे देश में ब्रिटिश पुलिस कानून चल रहा है. पुलिस कहने को तो सेवक है पर मानसिकता शासक के लठैत की है और दूसरी बात यह है कि पुलिस धन से सम्पन्न लोगों की स्वतः गुलाम की भूमिका में खड़ी हो जाती है. ये बातें लखनऊ की एक घटना ने मेरे ज़हन में बैठा दिया है.
बात लखनऊ के रिहायशी इलाके गोमतीनगर की है. यह इलाका बहुत तेजी से विकसित हो रहा है इसी क्षेत्र में निर्माण कार्य भी बहुत तेजी से हो रहे हैं. एक दिन अचानक मेरे मित्र ने बताया कि आज बहुत गलत हो गया तीन मजदूरों पर गोमतीनगर पुलिस ने अवैध धन वसूली का मुकदमा दर्ज कर राम सुन्दर नाम के मजदूर को जेल भेज दिया. मुझे यह मामूली बात लगी कि मजदूर ने झगड़ा किया होगा या जादा पैसा मांग रहे होंगे तो ऐसा हुआ होगा. वैसे भी समाज में मेरी ही तरह बहुसंख्यक लोग सोचते हैं कि इस तरह के झगड़े में गलती हमेशा कमजोरों, मजदूरों की ही होती है, लेकिन मैं यह जान कर अवाक रह गई कि जिन मजदूरों पर अवैध धन वसूली का मुकदमा लिखा गया, उन्होंने आरोप लगाया था कि एक आर्किटेक्ट जितन्द्र भाटिया ने अपने तमाम साइडों पर इन लोगों से काम कराया और बिजली, टाइल्स, पेंटिंग आदि काम की मजदूरी जब लाखों रुपये हो गयी तो पैसा देने से इनकार कर दिया और पुलिस में अपनी अच्छी पहुंच की धमकी देते हुए जेल भिजवाने की बात कही.
इस बात की सूचना मजदूर छोटेलाल मिश्रा, रामसुन्दर व जवाद ने जिला अधिकारी लखनऊ को 3 दिसम्बर-2010 को दिया और साथ ही निर्माण मजदूर यूनियन में भी शिकयत किया. इसी बीच जितेन्द्र भाटिया ने मजदूरों को फ़ंसाने की नियत से थाने पर एक आवेदन दिया कि उक्त मजदूर हमारे यहा काम पर नहीं आ रहे हैं और मारने की धमकी देते हैं. गोमतीनगर पुलिस ने भाटिया के कहने पर मजदूरों से पूछताछ शुरू की. जब राम सुन्दर के घर पुलिस गई तो राम सुन्दर ने पूरी बात गोमतीनगर पुलिस को बताई और कहा कि हमारा पैसा न देने की नियत से भटिया ऐसा कर रहे हैं, जिसपर पुलिस ने कहा की नरम-गरम समझौता कर लो नहीं तो परेशान हो जाओगे, उसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है. वो बहुत बड़ा आदमी है.
इसी बीच दो-तीन दिन बाद छोटे लाल मिश्रा को जितेन्द भाटिया ने अपने घर बुलाया और 10000 रुपया टेबल पर रखा और कहा इस कागज पर दस्तखत कर दो और लिख दो मुझे 10000 रुपया मिल गया. जब छोटे लाल ने दस्तखत कर दिया तो जितेन्द्र भाटिया ने पैसा उठा कर रख लिया और कहा कि तुमने मेरे भाई के खिलाफ निर्माण मजदूर यूनियन में शिकायत किया है, उसे वापस लो तब पैसा ले जाना (जितेंद्र भाटिया का भाई कपिल भाटिया व उसकी पत्नी भी आर्किटेक्ट है और सभी एक साथ काम करते हैं). छोटे लाल मिश्र के साथ जो धोखाधडी हुई कि पैसा दिखा कर दस्तख़त करा लिया और पैसा भी नहीं दिया.
इस घटना की लिखित शिकायत गोमतीनगर थाने में उन्होंने दिनाक 17/12/2010 को की, लेकिन गोमतीनगर पुलिस ने तहरीर लेने से मना कर दिया. तब 18/12/2010 को उन्होंने अपर पुलिस अधीक्षक गोमतीनगर को उचित कार्रवाई करने के लिए आवेदन दिया एवं पुलिस महानिदेशक लखनऊ एवं गृहसचिव को उचित कार्रवाई के लिए रजिस्ट्री की, लेकिन पुलिस ने जितेन्द्र भाटिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और हद तो तब हो गई, जब दिनांक 31/12/2010 को जितन्द्र भाटिया के आवेदन पर गोमतीनगर पुलिस ने निर्दोष रामसुन्दर, छोटेलाल मिश्रा व मोहम्मद जावेद पर मुकदमा संख्या 1061/10 धारा 384 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और और रामसुन्दर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाकी दोनों नामजद लोग खुद को पुलिस से बचाते भागने लगे.
कितनी अजीब बात है कि मजदूर अपना बकया पैसा भुगतान के लिए 3, 17, 18 दिसंबर 2010 को जिले के आला अधिकारियों से शिकायत करता है पर उसकी बात कानून के ठंडे बक्से में दफन कर दी जाती है और जब मजदूरों का पैसा चोरी करने वाला जितेन्द्र भाटिया 31/12/2010 को मजदूरों के खिलाफ आवेदन देता है तो गोमतीनगर पुलिस हरकत में आकर मजदूरों के खिलाफ अवैध धन वसूली का मुकदमा जड़ देती है. जब कि निर्माण मजदूर यूनियन 15 जनवरी के दिन जब पूरा उत्तर प्रदेश मायावती जी का जन्म दिन मना रहा था, तब मजदूरों पर से फर्जी मुकदमा वापस लेने और बकाया मजदूरी दिलाने के लिए शहीद स्मारक पर धरना देती है और गोमती नगर पुलिस के मजदूर विरोधी कार्रवाई के खिलाफ पूरे शहर में अभियान चला. पुलिस के खिलाफ पर्चे बांट कर नुक्कड़ सभा की और दोबारा पुलिस की गलत करवाई के खिलाफ 5 फरवरी को धरना स्थल पर बड़ा प्रदर्शन किया. उसके बाद भी लखनऊ की पुलिस और जिला प्रशासन ने घटना की सच्चाई जानने की जहमत नहीं उठाई. और मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूरों को मुजरिम बना दिया क्यों कि वो गरीब हैं और पुलिस केवल पैसे वालों की ही सुनती है.
निर्माण मजदूर यूनियन के अध्यक्ष समयदास मानिकपूरी ने बताया की पुलिस पैसे वालों की रखैल बन गई है, जिसके पास पैसा है जो उच्च अधिकारियों से राफ्ता रखते हैं, पूरा प्रशासन और तंत्र उनकी गुलामी करता है. जब लखनऊ में पुलिस का यह हाल है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूर दराज के जिलों मिर्जापुर, गाजीपुर और पीलीभीत में क्या हो रहा होगा. क्या गरीबों और मजदूरों के लिए न्याय नहीं है? लाख टके का प्रश्न यह है कि जब इस घटना के सन्दर्भ में खबरे छपीं, धरने-प्रदर्शन हुए एवं उच्च अधिकारियों के यहां शिकायतें दर्ज हुई, उसके बाद भी मजदूरों को केवल आज तक इसलिए न्याय नहीं मिला क्यों कि जिसके खिलाफ वो लड़ रहे हैं वो बहुत पैसे और ऊंचे रसूख वाला है और पुलिस को उसके कहने पर ही चलना है. जय हो लखनऊ की पुलिस, धन्य है भारत कि कानून व्वस्था!
लेखिका मनु मंजू शुक्ला अवध रिगल टाइम्स की संपादक और समाज सेविका हैं.
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