Sunday, December 16, 2012

प्रभात से ऊबे भाजपाईयों को तोहफा बनकर मिले तोमर



-आलोक सिंघई-
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भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आज जश्न का माहौल था। काफी साल बाद उमंगों से भरे कार्यकर्ता नए प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर का स्वागत और अभिनंदन करने पहुंचे थे। जैसे ही पार्टी के राष्ट्रीय नेता रविशंकर प्रसाद ने पत्रकार वार्ता में नरेन्द्र सिंह तोमर के नाम की घोषणा की बाहर खड़े कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। वैसे तो कार्यकर्ता पत्रकार वार्ता में ही घुसे पड़ रहे थे। काफी समय बाद उन्हें महसूस हो रहा था कि वे किसी चांडाल के चंगुल से छूटे हैं। रविशंकर प्रसाद ने हालांकि कहा कि प्रभात झा ने बेहतर काम किया है लेकिन कार्यकर्ताओं के भीतर समाई बैचेनी कुछ और ही बात कह रही थी। शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे कहते थे एक बिहारी सौ बीमारी। उनका ये वाक्य शायद प्रभात झा जैसे बिहारियों पर आज भी सटीक बैठता है। बिहारियों की जागरूकता देश दुनिया में मिसाल मानी जाती है लेकिन उसी बिहार के ढेरों लोग दुनिया भर में नफरत के अंकुरण भी फैलाते हैं। प्रभात झा की कार्यशैली ने भी मध्यप्रदेश के सीधे साधे भाजपा कार्यकर्ताओं में कुछ उसी तरह की नफरत भरने का काम किया।

प्रभात झा की कार्यशैली बेशक भाजपा संगठन को सूचीबद्ध करने में कामयाब रही हो लेकिन उनकी यही शैली कार्यकर्ताओं को कुंठाग्रस्त करने में ज्यादा सफल रही है। कार्यकर्ताओं की पहचान करना। उनका इतिहास और वर्तमान तलाशना।रिश्तेदारों की सूची बनाना और फिर उस कार्यकर्ता पर जवाबदारियों का ऐसा पहाड़ थोप देना जो कभी पूरी ही नहीं हो सकती हों। पार्टी हाईकमान को काले सफेद कागज पर सतरंगी प्लान थमा देना जिसकी चकाचौध में वे अपने ही कार्यकर्ताओं को रौंदने लग जाएं ये भला किसे पुसाएगा। मध्यप्रदेश भाजपा के पितृपुरुष कुशा भाऊ ठाकरे ने काफी जतन से कार्यकर्ताओं को सहेजा था। एक एक गुरिया पिरोकर माला बनाई और वह माला आगे चलकर मध्यप्रदेश की साम्राज्यवादी और सामंती कांग्रेस का महल ढहाने में डायनामाईट बन गई। सत्ता में आने के बाद भले ही भाजपा का बधियाकरण सफल हुआ हो लेकिन कार्यकर्ताओं की जिजीविषा आज भी बरकरार है। खासतौर पर आरएसएस से जुड़े खांटी कार्यकर्ता आज भी पार्टी संगठन से खिलवाड़ झेलने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि सुरेश सोनी जैसे कद्दावर संगठनकर्ता की जिद के बावजूद कार्यकर्ताओं ने प्रभात झा को झेलने से साफ इंकार कर दिया था। संघ के पूर्व सर संघचालक कुप्प सी सुदर्शन के देहावसान के बाद हालांकि सुरेश सोनी के पर कतरने की तैयारियां शुरु हो गईं थीं लेकिन पहली बार प्रभात झा को प्रदेश मुखिया पद से हटाकर पार्टी और संगठन ने अपने इरादों का उद्घोष कर दिया है।

प्रभात झा को हटाए जाने की खबर टीवी पर सुनकर पार्टी कार्यालय दौड़े आए कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे लगभग ढाई साल बाद कार्यालय पहुंचे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रभात झा ने भाजपा को प्राईवेट लिमिटेड की तरह इस्तेमाल करना शुरु कर दिया था। अपने बिहारी और नेपाली समर्थकों के बल पर वे कार्यकर्ताओं को हेडमास्टर की तरह फटकारते थे। उनकी शिकायतें करवाते थे और उन्हें अपमानित करते थे। बेशक कई मामलों में कार्यकर्ताओं की गलतियां भी होती थीं लेकिन उन्हें सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने के सिवाय कभी उनमें ऊर्जा भरने का काम नहीं किया गया। कार्यकर्ता प्रशिक्षण भी नहीं हुआ। केवल कार्यकर्ताओं को धमकाकर उन्हें घर बिठाने की मुहिम चलाई गई।

अब नाराज कार्यकर्ता तरह तरह की शिकायतें उजागर कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रभात झा को जब जो काम दिया गया उन्होंने वह छोड़कर बाकी सब किया। हर पद पर अपने तनखैया कार्यकर्ताओं को जगह दी और योग्य कार्यकर्ताओं को धमकाकर भगा दिया। नरेन्द्र सिंह तोमर के पदारोहण से उत्साहित कार्यकर्ताओं का तो कहना था कि यदि प्रभात झा को चुनाव में टिकिट बांटने की जवाबदारी थमाई जाती तो वे टिकिट बेचने की दूकान खोल लेते। कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने इस आशंका के चलते पार्टी हाईकमान को गोपनीय पत्र लिखकर सजग किया था। पार्टी हाईकमान ने जब उन मामलों की जांच कराई तो वे सही पाए गए। यही कारण है कि प्रभात झा की विदाई संभव हुई है।

हालांकि प्रभात झा पोषित मीडिया तो सुबह तक ये मानने तैयार नहीं था कि प्रभात झा हटाए भी जा सकते हैं। बरसों तक मीडिया प्रभारी रहे प्रभात झा ने पत्रकारों की एक सूची बना ली थी। उस सूची के पत्रकारों में कुछ खास परिचय वाले पत्रकार शामिल थे। उन पत्रकारों के बच्चों के जन्मदिन मनाना,उन्हें धार्मिक स्थलों की सैर करवाना, बड़े बड़े गिफ्ट दिलवाना,उनकी वेवसाईट और अखबारों को कम से कम छह अंकों के विज्ञापन भुगतान करवाना जैसे प्रयास शामिल थे। पत्रकारों की मदद से बनाई इसी हवाई छवि के सहारे कार्यकर्ताओं पर रौब झाडना प्रभात जी का प्रिय शगल था। पार्टी के बड़े नेताओं पर ऐहसान थोपना कि मानों वे पार्टी के लिए अपना जीवन दांव पर लगाए हैं। ये सब आखिर कब तक छुप सकता था। धीरे धीरे पत्ते उजागर होते गए और प्रभात जी की पतंग तब कट गई जब वह आकाश में ऊंची उड़ान भरने को तैयार थी।
कहते हैं कि मीडिया के असर की एक सीमा होती है। प्रशंसा का जो पुल प्रभात झा ने बनाया वह केवल कागजी था जो हवा के एक झोंके में धराशायी हो गया। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करवाने आए रविशंकर प्रसाद ने बताया कि चुनाव में केवल एक नामांकन आया,जिसका फार्म बिल्कुल ठीक भरा था। नरेन्द्र सिंह तोमर ने प्रदेश की बागडोर थामने की जवाबदारी सहर्ष स्वीकार कर ली इसलिए निर्वाचन की प्रक्रिया बगैर किसी रुकावट के संपन्न हो गई।

अब चर्चाओं में तरह तरह की बातें सामने आ रहीं हैं। कुछ का कहना है कि पुलिस जवानों के बारे में दिए गए विवादास्पद बयान के कारण प्रभात झा को नेता पद की गरिमा के अनुकूल नहीं पाया गया। कुछ के तर्क दूसरे बयानों पर टिके हैं। इसके बावजूद सच तो ये है कि अपने पदारोहण के वक्त से ही प्रभात झा अपने व्यक्तित्व में वह गांभीर्य नहीं ला सके थे जो मध्यप्रदेश के भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हमेशा से सद्भाव स्थापित करता रहा है। कई कार्यकर्ता तो पार्टी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने तैयार खड़े रहते हैं। अब इन भावुक कार्यकर्ताओं को यदि कोई दूसरे प्रांत से आकर इंचीटेप से नापने लगे तो उनकी बैचेनी स्वाभाविक ही है। कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जड़ें कटती देखकर पार्टी हाईकमान को ये कदम उठाने के लिए तैयार किया है। कुछ का कहना है कि क्षत्रिय महासभा ने अपना वजूद बचाने के लिए प्रभात झा की बलि ली है। कारण जो भी हो लेकिन इतना तय है कि प्रभात झा की अगली पारी भाजपा के बिखराव की कड़ी साबित न हो इसके लिए भाजपा हाईकमान ने कड़वी सर्जरी करके चुनाव अभियान की नींव की गलती जरूर सुधारी है। कम से कम भाजपा कार्यालय में लौटी रौनक तो यही कुछ बयान कर रही है।

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