Tuesday, December 4, 2012

पत्रकारों की आवाज पर दलालों का पलटवार


पत्रकारों की आवाज पर दलालों का पलटवार

-आलोक सिंघई-

toc news internet channal
  

‘‘पत्रकार बचाओ आंदोलन’’ विशेष  टिप्पणी


चुनावों की आहट पाते ही मध्यप्रदेश सरकार की नीतियों की समीक्षा शुरु हो गई है। इसकी शुरुआत हमेशा समाज के जागरूक तबके करते रहे हैं। अभी चुनावों की तैयारियां पूरी गरमी नहीं पकड़ी पाई हैं इसलिए सरकार की योजनाओं की समीक्षा करने वाले तमाम तबके फिलहाल मैदान में नहीं उतरे हैं लेकिन पत्रकारों ने सबसे पहले मैदान में उतरकर अपनी पहरेदार की भूमिका का सही निर्वहन किया है। एक तरह से ये सरकार के लिए खतरे का संकेत देकर सावधान करने का प्रयास है। जाहिर है कि सरकार को पत्रकारों की इस आवाज का अध्ययन समय रहते करना होगा। न केवल अपनी गलतियों में सुधार करना होगा बल्कि पत्रकारों के हित में उठाए जाने वाले कदमों को सही परिप्रेक्ष्य में आकार भी देना होगा ताकि सामाजिक संवाद का ये सेतु अपनी भूमिका ठीक तरह से निभा सके। इसके विपरीत इस आंदोलन को कुचलने के प्रयास शुरु हो गए हैं। ये काम शोषणवादी ताकतों के वही दलाल कर रहे हैं जिनके कारण मध्यप्रदेश आज सुधारों के तमाम प्रयासों के बाद भी अपनी वांछित गति नहीं पकड़ सका है।

आखिर क्या कारण है कि प्रदेश के पत्रकारों को राजधानी में आकर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार और पत्रकारों के बीच का सेतु क्यों टूटा। इसके पीछे कौन जिम्मेदार है। क्या जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा अपना दायित्व निभाने में असफल रहे हैं। या फिर पत्रकारों को भड़काने में लगे सत्ता के दलाल अपना गेम खेलने में सफल हो गए हैं। इन सभी बातों को सिलसिले से समझने की कोशिश करें तो एक बात साफ हो जाती है कि मौजूदा भाजपा सरकार मध्यप्रदेश में एक दशक पूरा करने का लक्ष्य भले ही पाने जा रही हो पर वो सुशासन के अपने वादे पर पूरी तरह खरी साबित नहीं हो पाई है। जब मध्यप्रदेश की जनता दिग्विजय सिंह के भ्रष्टतम कुशासन से कराह रही थी और कांग्रेस हाईकमान जनता की आवाज को सुनने के लिए तैयार नहीं था तब दिग्विजय सिंह को सत्ता से धकेलने का काम प्रदेश की जागरूक जनता ने अपने हाथों में लिया था। जनता ने आगे बढ़कर न केवल दिग्विजय सिंह के कुशासन की पोल खोली बल्कि लगभग जनक्रांति करके कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार का तख्ता पलट दिया। उस जन क्रांति का नेतृत्व भाजपा की नेत्री उमा भारती ने किया था। लेकिन इतिहास ने एक बार फिर करवट ली और जन क्रांति की नेत्री को उसके समर्थकों ने ही लील लिया।

इसके बाद आया बाबूलाल गौर का शासन तो कोई छवि नहीं छोड़ पाया पर उसने मध्यप्रदेश में सुधारों की आंधी को जरूर मटियामेट कर दिया। सारी सुधार योजनाओं को ठप कर दिया गया और सुनियोजित तरीके से देश को पुरातनपंथी ढर्रे पर ठेल दिया गया।

ये संयोग की बात है कि बाबूलाल गौर का शासन प्रदेश की जनता को ज्यादा नहीं झेलना पड़ा। संयोग से प्रदेश को मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिहं चौहान जैसा सुलझा नेता मिल गया। विकास की ललक लेकर आए शिवराज सिंह चौहान ने समरसता की राजनीति की। उनके कार्यकाल में ढेरों योजनाएं बनाई गईं। जनता को लगता रहा कि ये सरकार जरूर उसकी जिंदगी में नए बदलाव लाएगी। योजनाओं की फेरहिस्त ने सपनों का पूरा ताना बाना बुना लेकिन शिवराज जी की सदाशयता ही उनके शासनकाल को यशस्वी बनाने की राह से विमुख करने लगी। जब जब उन्होंने सख्ती दिखाने की कोशिश की तब तब उनके ही सलाहकारों ने अपने विरोधियों को निपटाकर सारी मुहिम की हवा निकाल दी।

अब जबकि शिवराज सिंह जी के शासनकाल का भी आकलन शुरु हो गया है तब उनके कार्यकाल की गलतियां भी धीरे धीरे उजागर हो रहीं हैं। ये बात सही है कि शिवराज जी के सौम्य व्यक्तित्व और बेहतर जनसंवाद शैली के कारण विरोध की ये आवाज विद्रोह का रूप धारण नहीं कर पा रही है लेकिन पत्रकारों के आंदोलन ने बता दिया है कि बात इतनी सहज और सामान्य भी नहीं है।

पत्रकारों की इस बैचेनी को समझने में जुटे सरकार के सलाहकार बार बार पूछ रहे हैं कि आखिर हुआ क्या जो पत्रकार बिफर पड़े हैं। सब कुछ जानने के बाद भी सरकार के सलाहकार खुद की गलतियों पर उंगली रखने के बजाए कोई एसे कारण तलाशने का काम कर रहे हैं जिनसे अपनी गलतियों पर परदा डाला जा सके। कड़वी बात तो ये है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सलाहकार और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा की नीतियां सरकार के लिए झमेले का सबब बन गई हैं। शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का भाव धारण करके सोचने वाले पटवा अपनी उम्र के कारण दूर तक नहीं देख पा रहे हैं। बदले वक्त और बदलती जरूरतों पर भी उन्होंने ज्यादा गंभीरता से विचार नहीं किया है। बल्कि जब सरकार के तमाम हित चिंतक बार बार उनसे कह रहे थे कि वे पत्रकारों की नीतियों और खासतौर पर पत्रकार भवन की दुर्दशा के बारे में विचार करें तो वे कह रहे थे कि हम सरकार चलाएंगे या पत्रकारों के बारे में विचार करेंगे। जिस सरकार के सलाहकार ही इतने आत्ममुग्ध हों तो उसके भविष्य को लेकर कोई नया चिंतन कैसे पनप सकता है।

इसके बाद खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकार पंचायत की बात छेड़कर वाहवाही लूटनी चाही। अपना ये वादा वे स्वयं पूरा नहीं कर सके और बाद में दलालों की ब्लैकमेलिंग का शिकार हो गए। सरकार और संघ के जातिवादी दायरे में फंसे लक्ष्मीकांत शर्मा ने पत्रकारों के नाम पर न जाने किन किन लोगों को गले लगाया कि जनसंपर्क का विज्ञापन, सत्कार बजट कहां बंट गया पता ही नहीं चल पाया। जब जब पत्रकारों ने ये जानने की कोशिश की जनसंपर्क के अधिकारियों ने उन्हें घुमा फिराकर दफा कर दिया। पत्रकारों पर विज्ञापन रोकने के दबाव बनाए गए। समझौता परस्त पत्रकारों को उपकृत किया गया। पत्रकारों के समानांतर तंत्र खड़ा करने के लिए रातों रात इतने समाचार पत्र पत्रिकाएं और वेवसाईट खड़ी कर दी गईं कि वास्तविक पत्रकारों ने चुपचाप रहना ही उचित समझा। पत्रकारों की कार्यशालाओं के नाम पर बजट की लूटपाट में शरीक पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी आज कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि वे सरकारी सहायता छीनने के तमाम रिकार्ड तोड़ चुके हैं।

यही कारण है कि पत्रकारों के संगठनों के नाम पर दुकानदारी चलाने वाले सत्ता के दलाल आज पत्रकारों की नाराजगी को तरह तरह से कलंकित करके कुचलने का जतन कर रहे हैं। ये बात सही हो सकती है कि पत्रकारों की पीड़ा को स्वर देने वालों की कुछ कमजोरियां हों। वे अपना फायदा छोड़कर पत्रकारों की लड़ाई को स्वर देने का आत्मघाती कदम भले ही उठा रहे हों लेकिन इससे उनकी नियत पर शंका करना रेत में मुंह छिपा लेने से कमतर नहीं होगा। आज जो लोग जनसंपर्क मंत्री और अधिकारियों की पैरवी करके उनकी गलतियां छुपाने का धंधा कर रहे हैं उन्होंने कभी ये सोचने की कोशिश क्यों नहीं की ताकि पत्रकारों के हित में कोई स्थायी नीति बनाई जा सकती। सरकार के सलाहकार किस तरह से पत्रकारों के बीच फूट डालने में लगे थे ये समझने की कूबत तो कई पत्रकारों में है नहीं लेकिन वे खुद को केवल इसलिए पत्रकारों का माईबाप समझ बैठे हैं क्योंकि उन्हें उनके अखबारों के कारण सरकार ने थोड़ा बहुत महत्व दे दिया था।

मध्यप्रदेश में पत्रकारों की दुर्दशा को देश के परिप्रेक्ष्य में भी समझा जा सकता है। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू भी कुछ इसी तरह से भारतीय प्रेस की दुर्दशा की तस्वीर खींचने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन मध्यप्रदेश सरकार तो पत्रकारों की स्थितियों को समझने में बिल्कुल असफल साबित हो रही है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि पत्रकारों की हालत में सुधार करने और बेहिसाब बजट बढ़ाने के बावजूद इस सरकार को पत्रकारों की गालियां खाना पड़ रही हैं इससे सरकार के सुशासन का आकलन सहज ही किया जा सकता है।

(लेखक जन न्याय दल के प्रदेश प्रवक्ता भी हैं)



No comments:

Post a Comment

CCH ADD

CCH ADD
CCH ADD

dhamaal Posts

जिला ब्यूरो प्रमुख / तहसील ब्यूरो प्रमुख / रिपोर्टरों की आवश्यकता है

जिला ब्यूरो प्रमुख / तहसील ब्यूरो प्रमुख / रिपोर्टरों की आवश्यकता है

ANI NEWS INDIA

‘‘ANI NEWS INDIA’’ सर्वश्रेष्ठ, निर्भीक, निष्पक्ष व खोजपूर्ण ‘‘न्यूज़ एण्ड व्यूज मिडिया ऑनलाइन नेटवर्क’’ हेतु को स्थानीय स्तर पर कर्मठ, ईमानदार एवं जुझारू कर्मचारियों की सम्पूर्ण मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले एवं तहसीलों में जिला ब्यूरो प्रमुख / तहसील ब्यूरो प्रमुख / ब्लाक / पंचायत स्तर पर क्षेत्रीय रिपोर्टरों / प्रतिनिधियों / संवाददाताओं की आवश्यकता है।

कार्य क्षेत्र :- जो अपने कार्य क्षेत्र में समाचार / विज्ञापन सम्बन्धी नेटवर्क का संचालन कर सके । आवेदक के आवासीय क्षेत्र के समीपस्थ स्थानीय नियुक्ति।
आवेदन आमन्त्रित :- सम्पूर्ण विवरण बायोडाटा, योग्यता प्रमाण पत्र, पासपोर्ट आकार के स्मार्ट नवीनतम 2 फोटोग्राफ सहित अधिकतम अन्तिम तिथि 30 मई 2019 शाम 5 बजे तक स्वंय / डाक / कोरियर द्वारा आवेदन करें।
नियुक्ति :- सामान्य कार्य परीक्षण, सीधे प्रवेश ( प्रथम आये प्रथम पाये )

पारिश्रमिक :- पारिश्रमिक क्षेत्रिय स्तरीय योग्यतानुसार। ( पांच अंकों मे + )

कार्य :- उम्मीदवार को समाचार तैयार करना आना चाहिए प्रतिदिन न्यूज़ कवरेज अनिवार्य / विज्ञापन (व्यापार) मे रूचि होना अनिवार्य है.
आवश्यक सामग्री :- संसथान तय नियमों के अनुसार आवश्यक सामग्री देगा, परिचय पत्र, पीआरओ लेटर, व्यूज हेतु माइक एवं माइक आईडी दी जाएगी।
प्रशिक्षण :- चयनित उम्मीदवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण भोपाल स्थानीय कार्यालय मे दिया जायेगा, प्रशिक्षण के उपरांत ही तय कार्यक्षेत्र की जबाबदारी दी जावेगी।
पता :- ‘‘ANI NEWS INDIA’’
‘‘न्यूज़ एण्ड व्यूज मिडिया नेटवर्क’’
23/टी-7, गोयल निकेत अपार्टमेंट, प्रेस काम्पलेक्स,
नीयर दैनिक भास्कर प्रेस, जोन-1, एम. पी. नगर, भोपाल (म.प्र.)
मोबाइल : 098932 21036


क्र. पद का नाम योग्यता
1. जिला ब्यूरो प्रमुख स्नातक
2. तहसील ब्यूरो प्रमुख / ब्लाक / हायर सेकेंडरी (12 वीं )
3. क्षेत्रीय रिपोर्टरों / प्रतिनिधियों हायर सेकेंडरी (12 वीं )
4. क्राइम रिपोर्टरों हायर सेकेंडरी (12 वीं )
5. ग्रामीण संवाददाता हाई स्कूल (10 वीं )

SUPER HIT POSTS

TIOC

''टाइम्स ऑफ क्राइम''

''टाइम्स ऑफ क्राइम''


23/टी -7, गोयल निकेत अपार्टमेंट, जोन-1,

प्रेस कॉम्पलेक्स, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) 462011

Mobile No

98932 21036, 8989655519

किसी भी प्रकार की सूचना, जानकारी अपराधिक घटना एवं विज्ञापन, समाचार, एजेंसी और समाचार-पत्र प्राप्ति के लिए हमारे क्षेत्रिय संवाददाताओं से सम्पर्क करें।

http://tocnewsindia.blogspot.com




यदि आपको किसी विभाग में हुए भ्रष्टाचार या फिर मीडिया जगत में खबरों को लेकर हुई सौदेबाजी की खबर है तो हमें जानकारी मेल करें. हम उसे वेबसाइट पर प्रमुखता से स्थान देंगे. किसी भी तरह की जानकारी देने वाले का नाम गोपनीय रखा जायेगा.
हमारा mob no 09893221036, 8989655519 & हमारा मेल है E-mail: timesofcrime@gmail.com, toc_news@yahoo.co.in, toc_news@rediffmail.com

''टाइम्स ऑफ क्राइम''

23/टी -7, गोयल निकेत अपार्टमेंट, जोन-1, प्रेस कॉम्पलेक्स, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) 462011
फोन नं. - 98932 21036, 8989655519

किसी भी प्रकार की सूचना, जानकारी अपराधिक घटना एवं विज्ञापन, समाचार, एजेंसी और समाचार-पत्र प्राप्ति के लिए हमारे क्षेत्रिय संवाददाताओं से सम्पर्क करें।





Followers

toc news