घोटालेबाजी और कुकर्म को छुपाने का षडय़ंत्र
विनय जी. डेविड (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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पत्रकार बचाओ आंदोलन के संयोजक विनय डेविड कहते हैं कि जनसंपर्क विभाग अपने आय व्यय को पारदर्शी इसलिए नहीं बनाना चाहता है क्योंकि इससे विभाग के अफसरों और कर्मचारियों के जो फर्जी अखबार और पत्रिकाएं इस बजट पर पल रहे हैं उनकी पोल खुल जाएगी। सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए जनसंपर्क विभाग के बजट का इस्तेमाल जिस तरह किया है सरकार उस पर भी चुप्पी साधे रखना चाहती है। इसीलिए मुख्यमंत्री ने पत्रकार पंचायत करने की घोषणा तो की लेकिन बाद में वे खुद इस पर गोलमोल जवाब देने लगे।
जनसंपर्क के बजट के करोड़ों रूपयों की धांधली और राशि में अपने बाप की बपौती समझकर सरकारी बजट को अपने मंशानुसार बन्दरबाट कर की जाने वाले घोटालेबाजियों का खुलासा होने से बौखलाये जनसंपर्क के कुछ अधिकारी बौखला गये है। भाजपा शासन काल में अपनी कूटनीति के चलते प्रदेश के हजारों पत्रकारों को मानसिक और आर्थिक स्थिति का सामना करने को विवश कर दिया है। जनसंपर्क विभाग का बन्टाधार करने और अपने घर परिवार रिश्तेदार को भरने के अलावा चापलूसखोरों को पूरा का पूरा शासकीय बजट षडय़ंत्रपूर्वक निपटा गयेे है। पत्रकारों की अनेकों योजनाओं में अपनी भागीदारी बना कर नियमों की धज्जियां तो उड़ा ही रहे है वहीं भाजपा के तेजस्वी मुख्यमंत्री को भी मामू बना रहे है जबकि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के पत्रकारों ने कभी अपनी मंशा जाहिर नहीं की जिसका फायदा उठा कर ये अधिकारी वर्ग पत्रकारिता को उखाडऩे के मकसद से कार्य कर रहे है। जनसंपर्क विभाग की आखिर डूयुटी क्या है, ये नहीं समझ पा रहे है। वहीं घोटाले करते समय इनको ये पता नहीं होता की वे शासकीय बजट का दुरूपयोग कर रहे है और अपनी जेबों को भर रहे है। ये ऐसा विभाग है जिसकी जिम्मेदारी है कि वो जनता के सामने शासन की योजनाओं को पे्रषित करते है उन मीडिया कर्मियों के लिये भी व्यस्थित योजनाओं को बनाये और उनके जीवन यापन के लिये दिशा सुनिश्चित करें, परन्तु महालुटेरों ने कभी भी पत्रकारों के हितों में कोई शासकीय योजनाओं पर अमल नहीं किया, बल्कि अपने निजी स्वार्थों के लिये ही कार्य किया। आज मध्यप्रदेश के पत्रकारों की स्थिति एक मजदूरों से भी बदतर है। पत्रकारों की इस स्थिति के लिये जनसंपर्क में बैठे उच्चाधिकारी ही जिम्मेदार है, जो सत्ता के दलालों से सेटिंग कर पत्रकारों का शोषण कर रहे हैं। परन्तु अब समय आ गया है, कि इनकी पोले खुल गई हैं कि आज पत्रकार अपनी पहचान पाने को मध्यप्रदेश में परेशान हैं जबकि अन्य विधाओं में सभी को पंजीकरण होने की व्यवस्था हैं। पत्रकारों को भी अधिमान्यता दी जाने की व्यवस्था हैं परन्तु अधिकारियों की मूर्खनीति के चलते यह लाभ प्रदेश के पत्रकारों को नहीं मिल पा रहा है।
पत्रकारों ने शुरू की हक की लड़ाई
मध्यप्रदेश के समस्त पत्रकारों ने अपने हकों की मांगों को लेकर सडक़ों पर उतर गये हैं, पिछले दिनों 10 दिसम्बर को विधानसभा सत्र के दौरान पत्रकार भवन से बानगंगा चौराहे तक जंगी प्रदर्शन किया और अपनी हक की लड़ाई की शुरूआत कर जंग का बिगुल फुंका।प्रदेश भर से जुटने लगा समर्थन
पत्रकारों के संयुक्त आंदोलन के लिए प्रदेश भर में समर्थन जुटने लगा है और जनसंपर्क संचालनालय का विरोध व्यापक होता जा रहा है। राजधानी से निकली बगावत की आवाज तमाम महानगरों, जिलों-कस्बों से होते हुए तहसील और गांवों तक जा पहुंची है और राज्य के कोने-कोने से जनसंपर्क संचालनालय की उन भेदभावपूर्ण तथा पक्षपातपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज उठने लगी है। जिनके चलते प्रदेश का आम पत्रकार स्वाभिमान की जिदंगी जीने तक से मोहताज हैं। जनसंपर्क संचालनालय में विज्ञापनों के लिए किए जाने वाले भ्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद और पहुंचवालों के दबदबे के विरोध में तमाम पत्रकार लामबंद होने लगे है। विभिन्न पत्रकार संघों के बैनर तले संचालित जिलों-नगरों में सक्रिय इकाइयों ने संगठित होकर भोपाल चलों का नारा दे दिया है और हजारों पत्रकारों पत्रकार भोपाल पहुंचे।हक के लिये जेल जाने को तैयार पत्रकार
प्रदेश भर के पत्रकारों ने ठान लिया है कि राजधानी जाकर उन्हें अपनी आवाज जोरदार ढंग से बुलंद करनी है और अपना हक लेकर ही वापस लौटना है। फिर चाहे सरकार जेलों में डाले दें। एकजुटता का परिचय देते हुए सभी ने ऐलान कर दिया है कि हम अपने लिए अधिमान्यता किसी भी कीमत पर हासिल करेंगे। विज्ञापनों में अपना हिस्सा लेंगे और आवास, चिकित्सा, बीमा, बच्चों की शिक्षा और पेंशन जैसे मूलभूत अधिकार पाकर रहेंगे।पत्रकार है फर्जी : जनसंपर्क संघ
पत्रकारों के विरोध प्रदर्शन से जनसंपर्क विभाग सेटिंगबाज अधिकारी वर्ग घबराया हुआ है, भ्रष्टाचार से गले-गले तक डूबे इन अधिकारियों के संघ ने अपनी बौखलाहट का परिचय खुद ही दे दिया। इनके मध्यप्रदेश जनसंपर्क अधिकारी संघ जिसका पंजीकरण 01/01/01/19629/08 है और पता भी जनसंपर्क संचालनालय बाणगंगा रोड भोपाल है, अध्यक्ष देवेन्द्र जोशी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पत्रकारों को फर्जी घोषित कर दिया है वहीं अपनी भड़ास निकाली और पवित्र पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के मूंह पर जूता मारा है, वही लघु एवं मध्यम समाचार पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकारों पर फर्जी पत्रकार होने का आरोप ठोका है कि कोई पत्रकारिता से वास्ता नहीं। साईडजाब के रूप में इस पेशे को कलंकित कर रहे हैं।सिर्फ शासकीय विज्ञापन चाहिए।
जनसंपर्क अधिकारियों के विज्ञप्त भाषा से आम पत्रकारों का कुठाराघात हुआ है वहीं मानसिक क्षति हुई है, क्योंकि ऐसी भाषा का उपयोग उस समय किया गया जब इन घोटालेबाज अधिकारियों की काली करतूतें सामने आने लगी हैं। जब अपना हक मांगने के लिए पत्रकारों ने प्रदर्शन किया तो इनकी चूले हिल गई। अपनी करतूतों को छिपाने के लिए कई पत्रकारों को फर्जी कह डाला और आरोप लगा दिया की संघ के अनुसार इनमें अधिकांश ऐसे फर्जी पत्रकार है जिन्हें पत्रकारिता का न तो कोई अनुभव है और न ही वे सामाजिक मूल्यों और जन सामान्य के हितों की पत्रकारिता से कोई जुड़ाव रखते है। ये सिर्फ शासकीय विज्ञापनों की राशि को अपनी अतिरिक्त आमदनी का साधन मानते है और सिर्फ स्वार्थ साधने के लिये इस पेशे में आये है। प्रश्र उठता है कि हम भी आन्दोलित होकर इनसे यह पूछना चाहते है कि आखिर वो फर्जी पत्रकार कौन है...? जिनको जनसंपर्क के अधिकारी लाभ देकर लाभ कमा रहे है यहीं तो प्रश्र खड़ा है संघ की पहले उन फर्जी पत्रकारों की सूची प्रदर्शन करनी चाहिए जिनको वे ऐसा मानते है, आखिर इतने पत्रकारों को शासकीय विज्ञापन जनसंपर्क ने दिये, उनकी भाजपा शासन काल में जारी विज्ञापन सूची, जारी कर दें। जिससे दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा।बिन बुलाये प्रेस-वात्र्ताओं में पत्रकार
जनसंपर्क संघ की जारी विज्ञप्ति ने यह बता दिया है कि प्रदेश और राजधानी के पत्रकारों का स्तर क्या है और वे पत्रकारों के लिए क्या सोचते हैं। पत्रकारों को खुले कटघरे में खड़ा कर दिया है और उनकी औकात दिखा दी है, संघ ने हस्ताक्षर सहित जारी प्रेस विज्ञप्ति में आरोप ठोका है कि प्रेस वात्र्ताओं, विभिन्न सरकारी आयोजनों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में बिन बुलाये ही फर्जी पत्रकार अग्रिम पंत्ती में पहुंच जाते हंै, जिससे महत्वपूर्ण समाचार पत्र पत्रिकाओं के संपादक और संवाददाताओं तथा ब्यूरों-प्रतिनिधियों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों के नाम पर फर्जी पत्रकारों द्वारा किये गये कारनामों के लिये अन्य वरिष्ठ पत्रकारगण को उनके कार्य में असुविधा होती है। यहां ‘‘पत्रकार बचाओ आंदोलन’’ यही बताना चाहता है कि हमारी पहली मांग ही यहीं है कि पत्रकारों को सूचीबद्ध करंे जिससे सही और गलत का मापदण्ड तय किया जा सके। अब जब वर्षों से अधिकारी ए.सी. कमरों में बैठ कर गप्पे मारने और शासकीय बजट को घर परिवार रिश्तेदारों और चापलूसकारों में विज्ञापन बाट दिया तो वे अब कैसे अपने काले धब्बे छुटाने पर उतारू हो गये। यहां ‘‘पत्रकार बचाओ आन्दोलन’’ कारियों ने उन पत्रकारों की सूची भी जारी करने को कहा है जो फर्जी पत्रकार बन कर प्रेस वात्र्ताओं सरकारी आयोजनों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में बिना बुलाये पहुंच कर असुविधा फैलाते हैं।प्रदर्शन कर हक मांगना कृत्य: संघ
जनसम्पर्क की पोल खुलने के बाद हुई छि-छि लीदड होने के बाद शुतुरमुर्ग चाले चली जा रही है जनसंपर्क अधिकारी संघ की विज्ञप्ति भाषा ही पूरी की पूरी समस्त पत्रकारिता जगत को अपमानित करने वाली है। इनके अनुसार पत्रकारों और उनके द्वारा स्थापित संगठनों द्वारा पिछले अरसे में धरना, प्रदर्शन और पुतला जलाने जैसे कृत्यों के जरिये विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों पर दबाब बनाने की कृत्सित कोशिशें की जा रही है। इनको कृत्य मानकर इन कोशिशें की कड़ी निन्दा की (इस खबर को कई समाचार पत्रों ने इनकी भाषा की प्रमुखता से प्रकाशित किया है) प्रश्र यहां खड़ा होता है कि अगर जनसंपर्क विभाग नीतियों का परीपालन सटीक दिशा में करता तो ये दिन नहीं देखना पड़ते और इनको ‘‘पत्रकार बचाओ आंदोलन’’ यह बताना चाहता है कि ये प्रदर्शन लोकतांत्रिक है और अपनी बातें मांगों से अवगत कराने और काली करतूतों को उजागर करने का तरीका है। इसे कृत्य कहने वाले फिर अपने गिरेवा मैं झांके और पत्रकारों को भुखा नंगा कहने के पहले अपनी थाली देखले, सरकारी माल पर हुकूमत जमा कर लूटने का कृत्य ज्यादा दिनों का नहीं होता। छापा पड़ते ही सभी हकीकत सामने आ जाती है।आज क्यों दिखे आंकड़े
भाजपा के शासन की दूसरी पारी अवधि समाप्त होने की कगार पर पहुंचती जा रही है वहीं वर्षों सोते रहने वाले अधिकारी को आज भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक की याद आ रही है जबकि वो देश और राज्यों की जानकारी बेबपॉेर्टल पर दे देते है कम से कम राज्य के अधिकारियों की तरह हवा में नहीं रहते, उनके पास आंकड़े है और हर विधा पारदर्शी है यही कार्य मध्यप्रदेश जनसंपर्क कर लेता तो आज ये पंजीयक के आंकड़ों का सहारा नहीं लेना पड़ता। मध्यप्रदेश के पत्र पत्रिकाओं और सही-गलत पत्रकारों की जानकारी दे पाते। यहां बता दे प्रदेश सरकार ने कभी प्रयास नहीं किया की जनसंपर्क को आड़े हाथों लेकर इनसे कत्र्तव्य निर्वाहन कराया जाये। यहां तक तो कुछ अधिकारी अपने बाप की बपौती समझकर सब मनमर्जी लाभ उठा रहे है। ‘‘पत्रकार बचाओ आन्दोलन’’ शीघ्र ही जनसंपर्क में हो रही कार्यप्रणाली और बन्दरबाट की शिकायत सी.बी.आई से कर पूरे 10 वर्षों में किये गये बजटों की जांच की मांग करेगा। वहीं जिनको फर्जी मानने के बाद भी लगातार लाभ दिया गया जांच करवाने की गुजारिश करेगा। जारी...नोट- इस आलेख का इस्तेमाल कहीं भी किया जा सकता है। च
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