जिला न्यायालय के आर्थिक मामलों पर आयकर विभाग की नजर
toc news internet channalबैतूल। भारत सेन। न्यायालय में अगर आप बैंक चैक अनादरण का मामला दाखिल करने जा रहे हैं और प्रतिवर्ष आयकर रिर्टन दाखिल करते रहे हैं तो हमारी यह खबर आपके लिए काम की हो सकती हैं। आयकर चोरी के मामले को लेकर आपके विरूद्ध पूछताछ शुरू हो सकती हैं। जिला न्यायालय के आर्थिक मामले आयकर विभाग के लिए कर चोरी की सूचनाओं का भण्डार हैं।
कहां हैं आयकर चोर
जिला न्यायालय को जिले भर के तमाम काला धन रखने वालो का विश्राम गृह कहा जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं हैं। जिला न्यायालय बैतूल में चल रहे परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 के मामलों में लाखो रूपयों का नगद लेन देन बतौर उधारी की वसूली के मामले चल रहे हैं जिसमें परिवादी का परिवाद पत्र एवं शपथ पत्र में लाखों का नगद लेन देन का ब्यौरा दिया गया हैं। यही परिवाद पत्र एवं शपथ पत्र अब आयकर विभाग के लिए पूछ ताछ का जरिया बन साबित हो सकता हैं। जिला अभिभाषक संघ के सचिव अनूप सोनी बताते हैं बैंक चैंक वसूली के ज्यादातर मामले नगद लेन देन के हैं लेकिन रकम लाखों में होती हैं। न्यायिक अधिकारी शशिकांत वर्मा की अदालत में विचाराधीन एक परिवाद में 10 लाख रूपए के नगद लेन देन का दावा परिवादी ने किया हैं। आयकर विभाग को स्वप्रेरणा से न्यायालय में विचाराधीन आर्थिक मामलों में सूचनाओं को एकत्र कर वैधानिक कार्यवाही करना चाहिए ताकी समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके।
वसूली का कानून
परक्राम्य लिखित अधिनियम 1881 अवैधानिक वसूली का कानून ज्यादा साबित हो रहा हैं। ब्याज पर उधारी बाटने वालो ने इस कानून को वसूली का जरिया बना कर रखा हुआ हैं। ब्याज का अवैधानिक कारोबार चला कर काला धन बटोरने वाले ऋण देते समय कोरे बैंक चैक पर हस्ताक्षर करवाकर पहले ही ऋण गृहिता से प्राप्त कर लेते हैं। बाद में ब्याज सहित रकम भरकर चैंक अनादरण करवाकर वसूली के लिए परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 का मुकदमा अदालत में डाल देते हैं और अदालत से गिरफ्तारी वारंट जारी हो जाता हैं तो आरोपी को जमानत करवाना ही पड़ता हैं। न्यायालय में पेश होने वाले ज्यादातर मामलों में लाखों के नगद लेन देन का हवाला होता हैं और जिला स्तर पर न्यायिक अधिकारियों को आयकर कानून का ज्ञान नहीं होने का अघोषित लाभ परिवादी को मिलता ही हैं। परक्राम्य लिखित कानून कुल मिलाकर परिवादी के पक्ष में बना हुआ हैं और खुद को निर्दोष साबित करने का ज्यादातर भार आरोपी पर देश के कानून निर्माताओं ने डालकर रखा हैं।
कर चोरी के मामले
न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में विचाराधीन मामलो को ही आधार बना लिया जाए तो हजारों की संख्या में हर आर्थिक मामला कही न कही आयकर चोरी का साबित हो सकता हैं। परिवादी अपने परिवाद पत्र और शपथ पत्र में नगद उधारी लेन देन की बात का ब्यौरा तो देता हैं लेकिन आयकर चोरी से बचने के लिए अपना लेखा पेश नहीं करता हैं। पेन कार्ड और आयकर रिर्टन को बतौर सबूत पेश किए बिना ही वह अदालत में अपना मामला चलाकर वसूली का मुकदमा जीत भी लेता हैं। दण्ड से बचने के लिए मजबूर आरोपी नगद लेन देन करके परिवादी से राजीनामा कर लेता हैं। परिवादी इस लाखों की रकम को अपनी वार्षिक आयकर विवरणी में दर्शाता ही नहीं हैं। इस तरह परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 तमाम सुधरों के बावजूद कानून आयकर चोरी करने वालों के लिए काले धन की उगाही का सुरक्षित जरिया साबित हो रहा हैं।
कानून का दोष
भारत में आयकर चोरी बड़े पैमाने पर होती हैं। आयकर विभाग की नजर बड़े व्यापारी तक सीमित रहती हैं। देश में काला धन अपराधियों के पास ज्यादा हैं और वो भय और आतंक के जारिए अपने अपने क्षेत्रों में ऋण बांटने का और ब्याज वसूलने का काला धंधा चलाते हैं जो नगद लेन देन पर चलता हैं। आयकर विभाग की नाकामी के चलते असामाजिक तत्व बड़े पैमाने पर पैसे वाले बनते चले जा रहे हैं और पूछने वाला तो कोई भी नहीं हैं। राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक संस्थान के नामदेव उबनारे बाताते हैं कि आयकर कानून के प्रावधानों की बात करें तो 20 हजार रूपए से ज्यादा की रकम का लेन देन नगद नहीं किया जा सकता हैं बल्कि बैंक चैक के जरिए ही किया जा सकता हैं। न्यायालय में विचाराधीन तमाम आर्थिक मामलों में 20 हजार रूपए से अधिक की राशि हैं और परिवादी खुद को बिना राजस्व दस्तावेज पेश किए ही कृषक बताता जबकि उसका लेन देन गैर कृषक से रहता हैं। परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 में कानून निर्माताओं ने अदालत में बैंक चैक वसूली का मुकदमा चलाने के लिए पेन कार्ड और आयकर विवरणी को आवश्यक नहीं बनाकर कालाधन इकठ्ठा करने का अघोषित अवसर देकर रखा हैं।
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