पलाश विश्वास
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हमारी नजर संसदीय कार्यवाही से ज्यादा कारपोरेट नीति निर्धारण पर रहती है और राजधानी नई दिल्ली और राज्यों के राजधानियों से कहीं ज्यादा देश के अछूत दुर्गम भूगोल पर लगी होती है, वहा जारी एकाधिकारवादी कारपोरेट हमलों पर हमारा फोकस रहता है। संसदीय नौटंकी की बजाय जमीन पर गिरती बिजलियों की खबर लेते हैं हम। तमाम घोटालों की खबरे जो आती रही हैं, उके रफा दफा होने में अब कोई कसर नहीं बाकी है। हमने पत्रकारिता की शुरुआत कोयलांचल से १९८० में की थी, तब से लेकर अब तक कुछ नहीं बदला। चासनाला की बंद खदान के भीतर इतना अंधेरा नहीं है जितना कोयला मंत्रालय से लेकर राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय तक में है। सीबीआई पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार से यह व्यवस्था बदल नहीं रही है।अब तो शानदार इंतजाम है कि ऐसे कारपोरेट मसीहा को राष्ट्रपति बना दिया गया है, जो हर घोटाले की जड़ में हैं, संवैधानिक रक्षाकवच के तहत किसी घोटाले में न जांच हो सकती है और न कहीं कोई मुकदमा दर्ज होगा। बलि के बकरे हमेशा खोज लिये जाते रहे हैं। अब भी वही सिलसिला जारी है। कोयला ब्लाकों के आवंटन पर संसद ठप करने की उदात्त घोषणा हुई और संसदीय राजनीति की आम सहमति से संसद की वित्तीय जिम्मेवारियां पूरी सहमति से पूरी करने के नैतिक दायित्व का निर्वाह भी हो गया। कहने की दरकार ही नहीं है कि ये जिम्मेवारियां आर्थिक सुधार और जनविरोधी जनसंहारी अश्वमेध अभियान से ताल्लुक रखती है, जनहित और जनता से नहीं।
जैसी कि परंपरा सी बन गयी है, हर घोटाले के तार आखिरकार राष्ट्रपति भवन तक पहुंचते हैं, उसी के तहत कोलकाता में चिटफंड सुनामी की लहरें भी अब देश के वित्तमंत्री के अलावा रायसीना हिल्स तक पहुंचने लगी है। शारदा समूह के गिरफ्तार कर्णधार सुदीप्त सेन को सीबीआई को लिखी चिट्ठी तो अब देश के सामने हैं। उनकी एक और चिट्ठी के खुलासे पर गौर कीजिये। सुदीप्त ने जो लिखा है , वह हूबहू इस प्रकार हैः
`२०१० को सेबी की चिट्ठी पाकर मै बुरी तरह घबड़ा गया। तब ईस्ट बंगाल क्लब के अन्यतम अधिकारी देव्रत सरकार (नीतू) हमसे मिले और उन्होंने बताया कि सेबी के वर्तमान प्रधान यूके सिन्हा और दूसरे अधिकारियों से उनका जबर्दस्त तालमेल है। नीतू ने मुझे बताया कि, उनके सहयोगी सज्जन अग्रवाल और उनके बेटे संदीप अग्रवाल के मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथबड़े अंतरंग संबंध हैं। नीतू ने मुझसे कहा कि अगर मैं उनकी मांग मुताबिक उन्हें पैसे दे दूं तो वे इन लोगों की मदद से मेरी समस्याओं का निराकरण की चेष्टा करेंगे। मेरी मदद के वायदे पर नीतू ने २०१० में मुझसे पांच करोड़ रुपये ले लिये। इसके बाद से उन्हें हर महीने अस्सी लाख देने पड़े। लेनदेन अक्सर कैश में हुआ। कभी कभी रेवलन कंपनी के नाम पर चेक जारी करने पड़े।इस लेन देन के सारे दस्तावेज मेरे लेखा विभाग में मौजूद हैं।यह लेन देन आर्महर्स्ट स्ट्रीट के एक मकान में और ईस्ट बंगाल फुटबाल क्लब में होती रहा। मैं अपने ट्राइवर रतन और रोबिन के हाथों नकद रुपये या चेक उन तक पहुंचाता रहा। सज्जन अग्रवाल संदीप अग्रवालऔर नीतू को मिला कर पिछले तीन साल में मैंने कुल चालीस करोड़ रुपये दिये हैं।उन पैसों सेमिस्टर यश (यहां सुदीप्त ने नाम गलत लिखा है, उस शख्स का नाम है हर्ष सिंह) नामक व्यक्ति ने मुंबई में कारोबार शुरु कर दिया...'
ईस्ट बंगाल क्लब के अन्यतम अधिकारी देव्रत सरकार (नीतू) की अपरंपार महिमा पर गौर करें। वे अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित माकपा कार्यालय में जितने अबाध हैं, उसी तरह मां माटी मानुष की सरकार और पार्टी की सुप्रीमो के घर में भी उनकी आवाजाही अबाधित है। कोलकाता के अघोषित ईश्वर तृणमूल सांसद सोमेन मित्र के वे दायां हाथ माने जाते हैं। जब बुद्धदेव मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब वे मुख्यमंत्री कार्यालय में भी उनका अबाध दाखिला था। ममता बंद्योपाध्याय के बड़े भाई उनके अंतरंग हैं। सबसे खास बात तो यह है कि उन्हीं की कोशिशों के फलस्वरुप भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी २०१० में ही ईस्टबंगाल क्लब के सदस्य बने। बंगाल के सभी राजनीतिक दलों में जैसे प्रणव दादा के अनुयायी हैं, उसी तरह हर दल में नीतू दा के खास लोग हैं। जाहिर है कि सेबी से जान छुड़ाने के लिए किसी गलत छिकाने पर निवेश करने वाले बंदा तो नहीं है चिटफंड साम्राज्य के सम्राट जो केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम की सुप्रीम कोर्ट में वकील पत्नी नलिनी जी के मुवक्विल बने बयालीस करोड़ का बुगतान करके। लेकिन जाहिर है कि इस मामले में राष्ट्रपति को मिले संवैधानिक रक्षाकवच की वजह से कोई जांच असंभव है। नीतूदा को कहीं से कोई खतरा नहीं है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में अत्यधिक लाभ का लोभ देने वाली योजनाओं में लाखों लोगों की पूंजी फंसी है और सेबी इनके हितों की रक्षा के लिए भरपूर प्रयास कर रहा है। सेबी के अध्यक्ष उमेश कुमार सिन्हा ने बुधवार को कहा कि छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कानूनी बाध्यताओं के कारण किसी कंपनी विशेष का नाम नहीं लिया जा सकता। सिन्हा एशिया पैसेफिक क्षेत्रीय समिति की बैठक को संबोधित कर रहे थे।उन्होंने कहा कि सरकार सामूहिक निवेश योजनाओं को कानूनी दायरे में लाने के लिए गंभीरता से विचार कर रही है। उन्होंने इसके लिए केवल एक नियामक की जरुरत पर बल दिया। पश्चिम बंगाल की निवेशक कंपनी शारदा समूह पर लाखों लोगों का धन हड़पने का आरोप है। इस कंपनी का कारोबार पूर्वोत्तर भारत मे फैला हुआ है। इस बीच सरकार ने कहा है कि अत्यधिक लाभ का लालच देकर निवेशकों के धोखाधड़ी करने वाली संदिग्ध वित्तीय कंपनियों की जांच सेबी से कराई जा रही है।
गौरतलब है कि बाजार नियामक सेबी ने कोलकाता स्थित शारदा रीयल्टी इंडिया को तीन महीने में अपनी सभी योजनाएं बंद करने तथा निवेशकों का पैसा लौटाने का आदेश दिया। समूह के खिलाफ कथित धोखाधड़ी को लेकर जारी विरोध प्रदर्शन के बीच यह आदेश आया है। सेबी ने 12 पृष्ठ के अपने आदेश में शारदा रीयल्टी इंडिया तथा उसके प्रबंध निदेशक सुदिप्त सेन पर तब तक प्रतिभूति बाजार में लेन-देन करने से रोक लगा दी है जब तक कंपनी की सभी सामूहिक निवेशक योजनाएं (सीआईएस) बंद नहीं हो जाती और निवेशकों का पैसा लौटा नहीं दिया जाता। शारदा समूह द्वारा पश्चिम बंगाल में विभिन्न निवेश योजनाओं से जुड़े निवेशक तथा एजेंट पिछले कई दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच, सेन को जम्मू कश्मीर में आज गिरफ्तार कर लिया गया। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा कि अगर शारदा रीयल्टी सीआईएस योजनाओं को बंद करने तथा निवेशकों का पैसा लौटाने में नाकाम रहती है तो वह कंपनी तथा उसके निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा। इसके अलावा नियामक ने यह भी कहा है कि अगर तीन महीने में उसके आदेश का पालन नहीं होता है तो धोखाधड़ी, विश्वास भंग करना तथा सार्वजनिक कोष के गबन के लिए आपराधिक मुकदमा शुरू की जाएगी। साथ ही कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के माध्यम से पूरी कंपनी को बंद करने की कार्रवाई शुरू होगी। सूत्रों ने कहा कि सीआईएस नियमन के उल्लंघन को लेकर शारदा समूह की कुछ और कंपनियों के खिलाफ सेबी की जांच जारी है। अप्रैल 2010 में पश्चिम बंगाल सरकार के आर्थिक अपराध जांच प्रकोष्ठ के निदेशक के कहने पर सेबी ने करीब तीन साल पहले शारदा रीयल्टी के खिलाफ जांच शुरू की थी। सेबी ने पाया कि कंपनी लोगों से 10,000 से 100,000 रुपये 15 महीने से 120 महीने के लिए ले रही है और इस पर 12 से 24 प्रतिशत का रिर्टन देने का का वादा कर रही थी। निवेशकों को निवेश के बदले जमीन और फ्लैट की पेशकश की गई थी। कंपनी बार-बार किसी तरह की जाली योजना चलाने से इनकार करती रही है लेकिन सेबी ने अपनी जांच के बाद कंपनी को बिना मंजूरी के सामूहिक निवेश योजना चलाने का दोषी पाया। इसके अलावा उसे सीआईएस नियमों के उल्लंघन का भी दोषी पाया गया। जांच के दौरान सेबी ने कंपनी को कई कारण बताओ नोटिस जारी किए। लेकिन उसे कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला और उसने कार्रवाई का फैसला किया।
मजे की बात तो यह है कि बंगाल के टालीवूड में करीब छह सौ करोड़ का निवेश चिटफंड कंपनियों ने किया है। आधी से ज्यादा फिल्में चिटफंड के पैसे से बन रही हैं। इन फिल्मों में पुरस्कृत और बहुचर्चित फिल्में भी हैं, जैसे गोतम घोष, दवारा निर्देशित और चिटफंड कंपनी रोजवैली द्वारा निर्देशित `मनेर मानुष'! इन्हीं चिटफंड कंपनियों की मदद से जैसे उत्तरप्रेदेश में होता रहा है, बांग्ला फिल्मों के स्टार सांसद और विधायक बनने लगे हैं। जिससे मीडिया, पिलम उद्योग और खेल जगत के माध्यम से अकाट्य साख बन गयी चिट फंड कंपनियों की केल जगत पर चिटफंड कंपनियों का शिकंजा कैसे कसा है, उसका नमूना यह है कि आईपीएल में शाहरुक खान की टीम कोलकाता नाइट राइडर्स की स्पांसर रोजवैली है। किंग्स इलेविन पंजाब को स्पांसर करती है एनवीडी। जिस शागदा समूह के फर्जावाड़े से पूरे देश में हंगामा है और परिवर्तन राज का जनाधार खिसकने के साथ ही ममता बनर्जी की ईमानदार छवि भी ध्वस्त होने लगी है, वही शारदा समूह मोहन बागान क्लब का सहप्रायोजक रहा है। यहीं नहीं, कुच दिनों पहले तक ईस्ट बंगाल क्लब का प्रायोजक भी रहा है शारदा समूह। ईस्टबंगाल को अब रोजवैली स्पांसर कर रही है।अखिल भारतीय फुटबाल संस्था की जूनियर टीमऐरोज की स्वासर है पैलान समूह। अखिल भारतीय फुटबाल संस्था के रेपरियों का स्पांसर रही है एनवाडी। आईएफए के स्पांसरों में शामिल हैं सहारा,रोज वैली और पैलान। भारतीय क्रिकेट टीम और हाकी टीम के प्रायोजकों में भी चिटफंड कंपनियों का बोलबाला है।
पांच मंत्री , तीन सांसद सांसद, दो बुद्धिजीवी, सीएमओ के तीन कर्मचारियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सबसे जरुरी है, वरना सुनामी का मुकाबला करना मुश्किल!शारदा समूह के गोरखधंधे के सिलसिले में ये नाम सामने आये हैं बतौर अभियुक्त। सुदीप्त और देवयानी से जिरङ और बाद में बाकी कंपनियों की बहुप्रतीक्षित भंडापोड़ और केंद्रीय जांच एजंसियों की जांच के सिलसिले में और नाम भी जुड़ते चले जायेंगे। सरकार कार्रवाई नहीं करती तो जनता की अदालत में वे दागी बने ही रहेंगे। इसकी एवज में कोई भी आक्रमण या आत्मरक्षा की रणनीति कारगर नहीं होने वाली। इस मामले को लेकर राजनीति इतनी प्रबल है कि अनिवार्य काम हो नहीं रहे हैं। यह राजनीतिक मामला कतई नहीं है। विशुद्ध वित्तीय प्रबंधन और कानून व व्यवस्था का मामला है। राजनीतिक तरीके से इससे निपटने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है और जरुर होगी। १९७८ के कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी । नहीं हुई। लंबित विधेयक को कानून बनाकर प्रशासन के हाथ मजबूत करने चाहिए थे। लेकिन इसके बदले पुराने विधेयक को वापस लेकर विधानसभा के विशेष अधिवेशन में एकतरफा तरीके से बिल पास करा लिया गया और अब इसके कानून में बदलने के लिए लंबा इंतजार हैं।विपक्ष की एकदम सुनी नहीं गयी। विशेषज्ञों की चेतावनी नजरअंदाज कर दी गयी। पूरा मामला राजनीतिक बन गया है। जिससे प्रशासनिक तरीके से निपटने के बजाय राजनीतिक तरीके से निपटा जा रहा है। इसके राजनीतिक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
गौरतलब है कि बंगाल में पांच मंत्रियों के नाम शारदा समूह से जुड़ने के बाद राष्ट्रपति भवन तक मामला निकला है। इन पांच मंत्रियों, कम से कम तीन सांसदों, दो परिवर्तन पंथी बुद्धिजीवियों के अलावा सत्ता दल के असंख्य नेता इस गोरखधंधे में हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश में यह कारोबार इतना अबाध हो चुका है, कि जिन लोगों का जन्म कर्म से प्रदेश का कोई नाता नहीं, वे लोग चिटपंड कंपनियों की मेहरबानी से सत्तादल की ओर से सांसद बनते रहे हैं बंगाल में तो अब परिवर्तन राज में यह सिलसिला चल पड़ा है। सैय्यद मोदी हत्याकंड १९८८ में हुआ जो २००९ में बंद हो गया एक अभियुक्त की सजा के साथ। लेकिन चिटफंड कारोबार जो शुरु हुआ, उसका सिलसिला अबाध चल रहा है। मध्य नब्वे दशक मनोज प्रभाकर समेत तमाम आइकन निर्देशकों की साख के मुताबिक अपेस इंडिया में निवेश करके उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तरभारत के करोड़ों लोग लुट गये। तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उस अपेस इंडिया के एजंट बने थे मेरे भाई। तब निवेशकों का पैसा वापस देने किए हमें अपनी जमीन तक सबैचनी पड़ी। २००३ में बंगाल सरकार ने चिटफंड निरोधक विधेयक पास किया , जोकि २०१३ में भी कानून नहीं बन सका।इस दौरान प्रणव मुखर्जी वित्तमंत्री भी रहे और राष्ट्रपति भी हो गये। प्रणव दादा को संचयिनी के बाद से लेकर १९८० से से अबतक बंगाल में एक संचयनी के बजाय बड़ी सौ से ज्यादा और स्थानीय सैकड़ों चिटफंड कंपनियों के बारे में मालूम नहीं रहा होगा, जबकि वे अरसे तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे, सीमांतवर्ती जंगीपुर से वे सांसद रहे जो चिटफंड कंपनियों के शिकंजे में बुरी तरह फंसा हुआ है। फिर भी उन्होंने अपनी ओर से पहल करके इस विधेयक को पास कराने की जहमत नहीं उठाई, इस से संसदीय प्रणाली की सार्थकता पर ही सवाल उठते हैं। असम सरकार ने तो कानून भी बना लिया, लेकिन अमल नहीं किया। पूरे उत्तर पूर्व में चिटपंड कंपनियों का शिकंजा है। सारे माओवादी, उग्रवादी, जिहादी संगठनों और अल्फा से तार जुड़े हैं चिटफंड कंपनियों के फिर भी केंद्रीय गृहमंत्रालय सोया रहा। सोया रहा प्रतिरक्षा मंत्रालय भी, और माननीय राष्ट्रपति वित्तमंत्री बनने से पहले प्रतिरक्षा मंत्री भी थे। पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर बंगाल और उत्तरप्रदेश में सत्ता की राजनीति पर चिटपंड का वर्चस्व है, यह भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है और उससे भी शर्मनाक है, इस प्रकरण में भी राष्ट्रपति का नाम जुड़ जाना।
चिटफंड फर्जीवाड़े का यह देशव्यापी कारोबार मुक्त बाजार और कालेधन की व्यवस्ता का ही परिणाम है। अल्पबचत योजनाओं को मार दिया गया। बीमा में प्रीमियम तक वापसी की गारंटी नहीं है। आधार कार्ड और बायोमैट्रिक नागरिकता से वंचित लोग, जिनके पास पैन कार्ड भी नहीं हैं, वे बैंकों में खाता भी नहीं खोल सकते। फिर बैंकों की योजनाओं का सूद इतना कम है, बाजार से बाहर हुए समुदायों और लोगों, वंचितों को, गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को अपने सपने पूरे करने के लिए चिटपंड के अलावा क्या विकल्प छोड़ा है मुक्त बाजार ने, जिसपर न्यूनतम नियंत्रण नहीं है सरकार का और कोई भी कानून बन जाये, उदारीकरण और आर्तिक सुधारों के जमाने में कारपोरेट और कालेधन की व्यवस्था के खिलाप आम जनता के हितों के पुख्ता इंतजाम तो होने से रहे। आम निवेशक रिटर्न की तुलना पोस्ट ऑफिस की सेविंग स्कीमों से करते हैं। ज्यादा रिटर्न देने वाली स्कीमों को नजरअंदाज करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। ऐड, जुबानी पब्लिसिटी, गली-मुहल्ले में कलेक्शन सेंटर, कलेक्शन एजेंट्स का मोटा कमिशन ऐसी कंपनियों के बिजनेस को बढ़ाता है। यह अलग तरह के प्रॉडक्ट्स हैं। यह डिपॉजिट, लोन, बॉन्ड या स्टॉक कुछ भी नहीं है। जो लोग इनमें इन्वेस्ट करते हैं उनको हो सकता है कि उस प्रॉपर्टी में एक हिस्सा मिले, जो कंपनी खरीदती है या खरीदने का वादा करती है। सुनने में अजीब लगता है कि 10 साल बाद सेल में करोड़ों रुपए की कीमत हासिल करने वाले टीक या चंदन के पौधों के नाम पर पैसे जमा किए जाते हैं।शारदा कलेक्शन एजेंट्स को कमिशन में मोटी रकम दिया करती थी। यह कमिशन 30 फीसदी तक चला जाता था। कंपनी जमीन जैसे इलिक्विड ऐसेट्स में इन्वेस्ट करती थी। कंपनी एजेंट्स को मोटा कमिशन देने के अलावा स्टाफ और ऐड पर 10-15 फीसदी तक खर्च करके ज्यादा रिटर्न नहीं कमा पा रही थी। जो इन्वेस्टमेंट 2008 में किया गया था, उसके रीपेमेंट की तारीख नजदीक आ रही थी। शारदा की हालत खराब होने की खबरों के चलते कंपनी नया फंड नहीं जुटा पा रही थी, जिससे कि वह रीपेमेंट कर सके।दक्षिण भारत में निधि या बेनेफिट कंपनियां हैं, लेकिन उनका साइज बहुत छोटा है। इनको लोग टोकन फीस देकर जॉइन कर सकते हैं। मेंबर इनमें डिपॉजिट भी कर सकते हैं और लोन भी ले सकते हैं। चिट फंड्स की तरह इनमें फंड की किसी तरह की कोई लिमिट नहीं है। सहारा ने ऑप्शनली फुली कन्ववर्टिबल डिबेंचर के जरिए करोड़ों इन्वेस्टर्स से पैसे जुटाए थे। लेकिन अब कोई ऐसा काम नहीं कर सकता। सेबी का कहना है कि जिस सिक्युरिटी के 50 से ज्यादा इन्वेस्टर्स होंगे, उनको लिस्ट कराना होगा, और इसके लिए रेग्युलेटरी अप्रूवल लेना जरूरी होगा।मुश्किल है, क्योंकि पब्लिक की याददाश्त कमजोर होती है। और जालसाज रूल बनाने वालों से काफी आगे होते हैं। इंडिया जैसे देश में चिट फंड्स को रोकना लगभग नामुमकिन है।
मुंबई में भाजपा नेता किरीट सोमैया ने आरोप लगाया है कि चिट फंड कंपनियों के अंडरवर्ल्ड से भी संबंध हैं। उन्होंने गृहविभाग के अधिकारियों से मुलाकात की और पांच कंपनियों की सूची सौंपी। सोमैया ने फौरन टास्कफोर्स का गठन कर कंपनियों की जांच शुरू करने की मांग की है। मंत्रालय में पत्रकारों से बातचीत के दौरान सौमैया ने बताया कि मंत्रियों व अधिकारियों की सांठगांठ में राज्य में 100 से अधिक चिट फंड कंपनियां कार्यरत हैं।मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा चिटफंड कंपनियों का अड्डा बन गई है। स्पीक एशिया कंपनी का 500 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आने के बाद पिछले एक साल में उन्होंने 31 चिट फंड कंपनियों की सूची गृहविभाग और आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी है। उन्होंने कहा कि अंडरवल्र्ड से चिटफंड कंपनियों के संबंध हैं। सोमैया के अनुसार उन्हें दीपावली के समय पाकिस्तान और दुबई से 18 फोन कॉल आए थे। उन्होंने बताया कि जिन 5 कंपनियों की सूची गृहविभाग को सौंपी गई है वे पंजीकृत नहीं हैं। उसमें से समृद्धि जीवन फूड कंपनी के एजेंट बाबा गायकवाड़ के कार्यालय का उद्घाटन पिंपरी-चिंचवड़ में आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपुते ने किया था। गायकवाड़ राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक अपराध शाखा ने कंपनियों की खोजबीन शुरू की थी फिर ले-देकर जांच रोक दी गई। उन्होंने कहा आर्थिक अपराध शाखा और गृहविभाग के संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में चिटफंड कंपनियों के एक लाख से अधिक एजेंट हैं। इसमें 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक घोटाले की संभावना है। इसमें 10 लाख से अधिक सामान्य जनता ने इन कंपनियों ने निवेश किया है। यह कैसे संभव है कि कंपनियां 17 से 20 प्रतिशत कमीशन देती हैं। सोमैया के मुताबिक रिजर्व बैंक, सेबी, आर्थिक अपराध शाखा और प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों की गोलमेज परिषद बुलाई जाए। इसमें चिटफंड कंपनियों के संबंध में ठोस निर्णय लिए जाएं। सभी कंपनियों के निदेशकों को फौरन नोटिस जारी की जाए। नागपुर, पुणे, पिंपरी-चिंचवड़, मुंबई, ठाणे और कोल्हापुर में टास्क फोर्स का गठन कर कंपनियों की जांच-पड़ताल शुरू की जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने ऐसा नहीं किया तो वे न्यायिक लड़ाई लड़ेंगे।
हिमाचल प्रदेश के चंबा में लोगों से उगाही के गोरखधंधे में लिप्त तीन चिटफंड कंपनियां पुलिस की नजर में चढ़ गई हैं। इन कंपनियों के सरगनाओं की गिरफ्तारी में पुलिस ने जाल बुनना शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि तीन कंपनियां जिला मुख्यालय से बाहरी इलाकों में चल रही हैं। अब तक इन कंपनियों ने लोगों से करोड़ों रुपये की उगाही कर ली है। कंपनी में पैसा लगाने वाले कई पूर्व सैनिक व सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं। इन लोगों ने अपनी जामपूंजी का बहुत बड़ा हिस्सा चिटफंड कंपनी में जमा कर रखा है और अब कंपनियां उनके धन को लौटाने के बारे में टालमटोल कर रही हैं। तीनों कंपनियों ने लोगों को अलग-अलग लालच देकर जाल में फांसा था। कंपनियों के फेर में फंसे लोगों की संख्या ढाई सौ से अधिक बताई जा रही है। निवेशकों ने कंपनी में जमावर्ती खातों के माध्यम से अपना निवेश किया है। निवेशकों को बैंकों से ज्यादा ब्याज का लालच दिया गया है। कम समय में ज्यादा मुनाफे के लालच में अब तक दूरदराज के ग्रामीण अपनी जमा पूंजी कंपनी में लगा चुके हैं और अब उन्हें यह डर सताने लगा है कि कहीं कंपनी उनकी जीवन भर की कमाई को लेकर रफूचक्कर न हो जाए। निवेशकों ने इसी दुविधा में चिटफंड कंपनियों की शिकायत पुलिस अधीक्षक कार्यालय में की है। शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने भी सक्रियता दिखते हुए कंपनी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस जिला में अंदर चल रही इन कंपनियों की सत्यता की जांच कर रही है, ताकि निवेशकों की शंका दूर हो सके। पुलिस अधीक्षक कार्यालय के माध्यम से संबंधित थाना क्षेत्रों के प्रभारियों को कंपनी प्रबंधकों और धन उगाही करने वाले एजेंटों पर नजर रखने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं। कंपनी की कार्यप्रणाली में गड़बड़ पाए जाने पर पुलिस जल्द कंपनियों के कर्ताधर्ता को गिरफ्तार कर सकती है। चिटफंड कंपनियों के शहर मुख्यालय को छोड़कर दूरदराज के इलाके में काम करना पुलिस की नजर में शक की सबसे बड़ी वजह है।
बिहार के कटिहार में मंगलवार को शहर सहित जिले के विभिन्न प्रखंडों में संचालित चिटफंड व नन बैंकिंग कंपनियों के खिलाफ जांच की प्रशासनिक कार्रवाई हुई। शहर में 15 कंपनियों के कार्यालयों में पहुंचकर अधिकारियों के दल ने कागजातों की जांच-पड़ताल की। इस दौरान कई कंपनियों के कार्यालय बंद तो कइयों के कर्मी नदारद मिले। एसडीओ विनोद कुमार के नेतृत्व में यह कार्रवाई की गई।शहर सहित विभिन्न प्रखंडों में विभिन्न 17 चिटफंड व नन बैंकिंग कंपनियों के दफ्तर की सघन जांच की गयी। इस दौरान संबंधित कंपनियों से वांछित कागजात मांगे गए। सदर एसडीओ ने कालीबाड़ी स्थित सन प्लांट एग्रो लिमिटेड के कार्यालय पहुंचकर कागजातों की जांच की। एसडीओ ने सेबी द्वारा इस कंपनी को भेजी गई नोटिस की प्रतिलिपी सहित अन्य कागजात को जांच के लिए जब्त किया। एसडीओ ने बताया, कागजातों की जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। वहीं अंचल निरीक्षक विद्यानंद झा ने पुलिस बल के साथ प्रयाग ग्रुप, रोज वैली, मिलन फूड इंडिया, विश्वामित्र इंडिया परिवार, जीटीएफएस, बजाज एलियांज, वर्जिन ग्रुप, सुराहा माइक्रो फाइनान्स, किसान परिवार गुप, एसबीएम मल्टी मार्केटिंग, सन साइन ग्लोबल एग्रो के कार्यालयों में कागजातों की जांच की। इस दौरान प्रयाग ग्रुप, विश्वामित्र इंडिया परिवार, वर्जिन ग्रुप, सुराहा माइक्रो तथा एसबीएम मल्टी मार्केटिंग के कार्यालय में ताला लटका मिला। प्रयाग ग्रुप कार्यालय के बाहर मई दिवस पर बंदी की सूचना दर्शायी गई थी। अंचल निरीक्षक ने बताया, जांच के लिए वे जब बारह बजे उक्त कार्यालय पहुंचे तो इस तरह का कोई नोटिस नहीं था। किसान परिवार ग्रुप का ऑफिस खुला पाया गया लेकिन वहां कोई कर्मचारी नहीं था।
कोढ़ा प्रखंड में भी दो कंपनियों के कार्यालय में जांच की गई। एसडीओ ने बताया, कटिहार में लगभग 30 कंपनियों की पहचान की गई है। जांच का काम आगे भी जारी रहेगा। नियम कानून को ताक पर रखकर कारोबार करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने बताया, सेबी, आरबीआई अथवा कंपनी एक्ट का उल्लंघन कर संचालित हो रही किसी भी कंपनी को बख्शा नहीं जाएगा। जिन कंपनियों के पास पर्याप्त व सही कागजात उपलब्ध नहीं होंगे उनके खिलाफ आर्थिक अपराध के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। फर्जी चिटफंड व नन बैंकिंग कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश उपमुख्यमंत्री स्तर से प्राप्त हुए थे। जिला प्रशासन की इस कार्रवाई से चिटफंड व नन-बैंकिंग कंपनियों में हड़कंप मचा है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी चिटफंड घोटाले के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास करते हुए दावा किया गया है कि केंद्र ने अल्प बचत योजनाओं में ब्याज दर को कम कर दिया जिस वजह से जमाकर्ताओं को धोखाधड़ी वाली योजनाओं का रूख करना पड़ा। एक साप्ताहिक में लिखे अपने एक लेख में ममता ने कहा कि केंद्र सरकार ने डाकघर की अल्प बचत योजनाओं का ब्याज दर घटा दिया जिस कारण गरीब लोगों और सेवानिवृत्त हो चुके लोग इन चिटफंड में अपनी पूंजी इस उम्मीद के साथ लगाते हैं कि उन्हें बेहतर ब्याज दर मिलेगी। उन्होंने कहा कि न सिर्फ केंद्र ने ब्याज दर कम कर दिया, बल्कि उसने डाकघर की बचत योतनाओं के एजेंट के लिए कमिशन को भी कम कर दिया है। ये सब बातें इस तरह के चिटफंड फलने-फूलने में मददगार हैं। अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को दिए दिशानिर्देश में ममता ने कहा कि जनता को यह बात समझानी होगी कि सारदा समूह का चिटफंड घोटाला कांग्रेस और माकपा की नरमी के कारण हुआ। ममता ने कहा कि मैं अपनी पार्टी के सभी सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों से कहना चाहती हूं कि लोगों को यह समझाने के लिए अभियान शुरू करना है कि माकपा और कांग्रेस के बढ़ावा देने से ही चिटफंड इकाइयां इतनी बड़ी संख्या में सामने आई हैं। इस संबंध में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।
इसके विपरीत पश्चिम बंगाल सरकार पर माकपा ने चिटफंड कंपनियों को राहत देने का आरोप लगाया है। पार्टी नेता सीताराम येचुरी ने कहा किनिवेशकों के हितों की रक्षा के लिए लंबित पुराने विधेयक के बजाय नया विधेयक लाकर राज्य सरकार उन्हें समय दे रही है जो चिटफंड घोटाले में शामिल थे।पश्चिम बंगाल सरकार ने मंगलवार को 2009 का वह विधेयक वापस ले लिया जिसे तत्कालीन सरकार ने विधानसभा से पारित कराने के बाद केंद्र को भेजा था। निवेशकों से जुड़ा वह विधेयक अब तक केंद्र सरकार के पास लंबित पड़ा था। अब जाकर कहीं शारदा समूह के फर्जीवाड़े के भंडाफोड़ के बाद केंद्रीय एजंसियों की नींद खुली है। कोयले की कालिख से जिनका चेहरा पुता है, उन प्रधानमंत्री की भी नींद खुली है।सेबी को ज्यादा अधिकार दिये जारहे हैं। कंपनी कानून बदल रहा है। बंगाल की दीदी ने भी बिना किसी राजनेता पर कार्रवाई किये विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर विपक्ष की सुने बिना एकतरफा तरीके से एक और विधेयक पास कर दिया।अब प्रधानमंत्री ने एक साथ पांच पाच मंत्रालयों को नोट भेजकर चिटपंड कारोबार पर अंकुश लगाने की शुरुात की है। बालू के बांद से क्या सुनामी को रोका जा सकता है?प्रधानमंत्री ने ऐसी कंपनियों के पंजीकरण के अलावा ऐसी कंपनियों से चलने वाले टीवी चैनल और अखबारों की खबर लेने की हिदायत दी है। तो बिल्डरों, प्रोमोटरों के कब्जे में जो मीडिया है, उसका क्या?
आयें, बंगाल की ही बात करें तो एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास ने एकदम सही लिखा है कि पांच मंत्री , तीन सांसद सांसद, दो बुद्धिजीवी, सीएमओ के तीन कर्मचारियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सबसे जरुरी है, वरना सुनामी का मुकाबला करना मुश्किल!शारदा समूह के गोरखधंधे के सिलसिले में ये नाम सामने आये हैं बतौर अभियुक्त।सुदीप्त और देवयानी से जिरङ और बाद में बाकी कंपनियों की बहुप्रतीक्षित भेंडापोड़ और केंद्राय जांच एजंसियों की जांच के सिलसिले में और नाम भी जुड़ते चले जायेंगे। सरकार कार्रवाई नहीं करती तो जनता की अदालत में वे दागी बने ही रहेंगे। इसकी एवज में कोई भी आक्रमण या आत्मरक्षा की रणनीति कारगर नहीं होनेवाली। इस मामले को लेकर राजनीति इतनी प्रबल है कि अनिवार्य काम हो नहीं रहे हैं। यह राजनीतिक मामला कतई नहीं है। विशुद्ध वित्तीय प्रबंधन और कानून व व्यवस्था का मामला है। राजनीतिक तरीके से इससे निपटने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है और जरुर होगी। १९७८ के कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी । नहीं हुई। लंबित विधेयक को कानून बनाकर प्रशासन के हाथ मजबूत करने चाहिए थे। लेकिन इसके बदले पुराने विधेयक को वापस लेकर विधानसभा के विशेष अधिवेशन में एकतरफा तरीके से बिल पास करा लिया गया और अब इसके कानून में बदलने के लिए लंबा इंतजार हैं।विपक्ष की एकदम सुनी नहीं गयी। विशेषज्ञों की चेतावनी नजरअंदाज कर दी गयी। पूरा मामला राजनीतिक बन गया है। जिससे प्रशासनिक तरीके से निपटने के बजाय राजनीतिक तरीके से निपटा जा रहा है। इसके राजनीतिक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
खास बात तो यह समझ लेनी चाहिए कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्य, देश और दुनिया में जो ईमानदार छवि है, उस पर आंच नहीं आये, इसके लिए पलटकर विपक्ष पर वार करेने के बजाये यह बेहद जरुरी है कि दोषियों और जिम्मेवार लोगों के खिलाफ समय रहते वे तुरंत कार्रवाई करें।उनका बचाव वे राजनीतिक तौर पर करती रहेंगी तो उनकी छवि बच पायेगी, इसकी संभावना कम है। आम जनता को न्याय की उम्मीद है। आम जनता चाहती है कि निवेशकों को पैसे वापस मिले और दोषियों के साथ सात इस प्रकरण में जिम्मेवार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें। राजनीतिक व्याकरण की बात करें कि नैतिकता का तकाजा है कि जो जनप्रतिनिधि इस मामले में सीधे तौर पर अभियुक्त हैं, वे सफाई देने से पहले अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री तक देदें, तो यह सत्तादल और मुख्यमंत्री के लिए सबसे अच्छा उपाय विरोधियों को जवाब देने और जनता में साख बनाये रखने का होगा।
वित्त मंत्रालय ने कहा है कि निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने पश्चिम बंगाल के कोलकाता की कंपनी शारदा समूह के खिलाफ आयकर विभाग ने भी जांच शुरू की है। प्रवर्तन निदेशालय ने भी कंपनी के प्रमुख सुदीप्तो सेन और अन्य लोगों के खिलाफ काले धन को सफेद करने का मामला दर्ज किया है। सेबी ने शारदा रियलटी इंडिया लिमिटेड के खिलाफ कार्रवाई शुरू करते हुए 23 अप्रैल को एक आदेश जारी किया है। आदेश में कहा गया है कि कंपनी अपना कारोबार और विभिन्न निवेश योजनाएं बंद करें और निवेशकों को उनका धन तीन महीने के भीतर वापस करे।सेबी ने कहा है कि आदेश का पालन करने में विफल रहने पर कार्रवाई की जाएगी। आयकर विभाग ने कंपनी के खिलाफ आयकर की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन के आरोप में जांच शुरू की है। गुवाहाटी में असम पुलिस ने सुदीप्तो सेन और अन्य लोगों के खिलाफ चार प्राथमिकी दर्ज की है। प्रवर्तन निदेशालय ने इनके खिलाफ 25 अप्रैल को मामला दर्ज किया और जांच शुरू कर दी है।पश्चिमी बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में वित्तीय धांधली करने वाली कंपनियों के खिलाफ उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा है कि पिछले कुछ समय से मीडिया में ऐसी खबरें आ रही थी कि ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में कुछ कंपनियां अत्यधिक लाभ का लालच देकर लोगों को ठग रही है। सरकार ने कहा है कि पूरे मामले को सेबी, आरबीआई और कंपनी मामलों का मंत्रालय देख रहे हैं। सेबी ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है जो सेबी के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है। पूर्वोत्तर भारत में इस आशय के 59 मामले दर्ज किए गए हैं। राज्यों को भी केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ तालमेल बढ़ाने को कहा गया है।
न्याय हो, यह जितना जरुरी है, यह दिखना उससे ज्यादा जरुरी है कि न्याय हुआ।सुदीप्त सेन और उसकी खासमखास से जिरह से लगातार मंत्रियों, सांसदों, सत्तादल के असरदार नेताओं से लेकर परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवियों के नाम चिटफंड फर्जीवाडे़ में शामिल होने के सिलसिले में उजागर हो रहे हैं। दूसरे राज्यों की ओर से भी जांच प्रक्रिया शुरू होने वाली है और पानी हिमालय की गोद में अरुणाचल और मेघालय तक पहुंचेगा। बंगाल सरकार चाहे या न चाहे , शारदा समूह और दूसरी जो कंपनियां बंगाल से बाहर काम करती हैं, उनकी सीबीआई जांच होगी। सेबी, रिजर्व बैंक, ईडी और आयकर विभोग जैसी केंद्रीय एजंसियों की जांच अलग से हो रही है। देवयानी समेत शारदा समूह के कई कर्मचारियों के सरकारी गवाह बन जाने की पूरी संभावना है। देवयानी और ऐसी ही लोगों की पित्जा खातिरदारी से और भी खुलासा होने की उम्मीद है।शारदा समूह के लेनदेन की तकनीक भी मालूम है और लेनदेन का रिकार्ड बरामद होने लगा है। सुदीप्त सीबीआई को ६ अप्रैल को पत्र लिखने से पहले कंपनी और कारोबार को ट्रस्ट के हवाले करने की जुगत में फेल हो चुके हैं ।पर उनकी कंपनी को दिवालिया घषित कराने की योजना अभी कामयाब हो सकती है। ऐसे हालात में अभियुक्तों को ठोस सबूत के बावजूद बचा पाना एकदम असंभव है।
पिछले 10 सालों में देश में चिट फंड में धोखाधड़ी के कई बड़े मामले उजागर हुए हैं, लेकिन किसी दोषी को कड़ी सजा मिली हो, यह देखने नहींमिला। विडंबना यह है कि गोरखधंधा करने वाले ये धोखेबाज मीडिया व्यवसाय और राजनीतिक दलों में अपना धन निवेश कर सुरक्षा का इंतजाम कर लेते हैं। ऐसे कारोबार में स्पष्ट कानून और नियामक एजेंसियों का अधिकार क्षेत्र निर्धारित न होने के कारण कार्रवाई करना कठिन होता है। चिट फंड चलाने वाली कंपनियां पंजीकृत भी नहींहोती, इससे भी कानूनी कार्रवाई में अड़चन आती है। ताजा मामले में राज्य सरकार केंद्र पर जिम्मेदारी थोप रही है, जबकि केंद्र का कहना है कि यह राज्य की जिम्मेदारी होती है। अब इस मामले में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी शुरु हो गए हैं। इधर ममता बनर्जी ने गरीब निवेशकों के लिए 5 सौ करोड़ रुपयों का सहायता कोष गठित करने का ऐलान किया है और इसके लिए सिगरेट पर 10 प्रतिशत कर वृध्दि कर दी है। इसकी घोषणा करते हुए सुश्री बनर्जी यह तक कह गईं कि थोड़ी ज्यादा सिगरेट पिएं, ताकि धनराशि जल्द से जल्द एकत्र की जा सके।
तृणमूल कांग्रेस सरकार का कहना है कि उसे ऐसी किसी कंपनी की जानकारी नहीं थी। सरकार के इस मासूम दावे की पोल तभी खुल गई, जब टीएमसी के बड़े नेताओं की इस कंपनी और इसके मालिक से नजदीकियां उजागर हो गईं। शारदा समूह किसी नामालूम सी गली-मोहल्ले में अपना गोरखधंधा नहींचला रहा था, बल्कि प.बंगाल में धूमकेतू की तरह उसका व्यवसाय चमका। जमीनों की खरीद-फरोख्त, निर्माण कार्य, मीडिया, पर्यटन उद्योग के अतिरिक्त चिट फंड का कारोबार इस समूह के द्वारा किया जाता था। राज्य के 19 जिलों में उसके एक लाख एजेंट काम कर रहे थे। इस कंपनी की 368 शाखाएं थीं। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष व सृंजय बोस हाल तक शारदा समूह के मीडिया हाउस से प्रत्यक्ष-परोक्ष जुड़े हुए थे। तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सांसद शताब्दी राय शारदा समूह की ब्रांड एम्बेसडर रह चुकी हैं। राज्य के यातायात व खेल मंत्री मदन मित्र पहले शारदा समूह के कर्मचारी संघ के नेता थे। पूर्व आईपीएस अधिकारी व राज्य सरकार में मंत्री रछपाल सिंह शारदा समूह के पर्यटन उद्योग के कार्यक्रमों में पहले अक्सर नजर आया करते थे।राज्य के तमाम आईपीएस अफसरान के नाम शारदा समूह से जुड़ चुके हैं, जिनमें देवेन विश्वास भी शामिल हैं। जबकि आईपीएस अफसर व साहित्यकार नजरुल इस्लाम ने सरकार को पहले ही इस फर्जीवाड़े की चेतावनी दी, तो उन्हें हाशिये पर पफेंक दिया गया। शारदा समूह के मालिक सुदीप्त सेन ने फरार होने के पहले लिखे गए 18 पन्नों के पत्र में साफ-साफ लिखा है कि किस तरह सत्ता के कई महत्वपूर्ण लोगों से उनके नजदीकी रिश्ते थे और कैसे उन्हें इन लोगों तक भारी-भरकम धनराशि पहुंचाना पड़ती थी। अब सुदीप्त सेन गिरफ्तार हैं और सेबी ने मामले की जांच शुरु कर दी है। सवाल यह है कि क्या निवेशकों को उनकी पूरी राशि मिल पाएगी, क्योंकि इस तरह धोखे से पैसा जुटाने वालों के खिलाफ कड़े और स्पष्ट कानून का सर्वथा अभाव है, दूसरी ओर राजनीतिक तंत्र की इसमें मिलीभगत दोषियों को बच निकलने का पूरा मौका देती है।
शारदा समूह ने अचानक अपने मीडिया संस्थानों को बंद करने की घोषणा कर दी जिससे तकरीबन 1,300 मीडियाकर्मियों को नौकरी चली गई। हालांकि इसके एक दिन के बाद राज्य सरकार ने मदद का हाथ बढ़ाते हुए इस मामले के समाधान के लिए बैठक बुलाने की पेशकश की है। राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, 'हम कोशिश कर रहे हैं कि स्थिति कैसे बेहतर हो। इस मामले के समाधान के लिए एक या दो बैठक बुलाई जाएगी।' हालांकि चटर्जी की बात से कर्मचारियों को कोई खास राहत मिलती नहीं दिख रही है। 15 अप्रैल को बंगाली चैनल तारा म्यूजिक में जो कुछ हुआ वह प्राइम टाइम पर प्रसारित होने वाले किसी धारावाहिक की तरह था, लेकिन इसकी पटकथा पहले से तैयार नहीं थी। चैनल के करीब 850 कर्मचारियों को अचानक पता चला कि उनकी नौकरी चली गई है। दरअसल चैनल के मालिक शारदा समूह ने न केवल तारा म्यूजिक बल्कि अपने अन्य मीडिया संस्थानों बंगाल पोस्ट, सकल बेला, आजाद हिंद, तारा न्यूज और तारा बांग्ला को अचानक बंद कर दिया है। इसे राज्य में इन मीडिया संस्थानों में काम करने वाले तकरीबन 1,300 लोगों की नौकरी चली गई है।
तूणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय ने कहा, 'किसी न किसी को यह देखना होगा कि मीडिया संस्थानों को पैसा कहां से आता है। इस मामले में मीडिया समूह के चिट फंड कारोबार से पैसा आता है। लेकिन चिट फंड मॉडल हमेशा अस्थिर होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि करीब 1,300 पत्रकार अब बेरोजगार हो गए हैं।' उन्होंने कहा कि जो कुछ भी हुआ वह बेहद दुखद है और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे इस तरह की घटना नहीं हो। केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी को संयुक्त रूप से इस मसले पर ध्यान देना चाहिए। इस मामले पर शारदा समूह के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुदीप्त सेन से प्रतिक्रिया के लिए उनसे संपर्क नहीं हो पाया। पहले से ही जमीन विवाद में उलझे परिवर्तन पंथी बुद्धिजीवी विश्व प्रसिद्ध चित्रकार शुभोप्रसन्न अपना बचाव यह कहकर करते हैं कि सुदीप्त के साथ उनकी तस्वीर डिजिटल जालसाजी है। फिर अपने नये चैनल को वे सुदीप्त को बेचने की बात भी मानते हैं। यह चैनल `एखोन समय' शुरु ही नहीं हुआ, इसके चार निदेशकों में शुभोप्रसन्न और उनकी पत्नी, सुदीप्त और देवयानी हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय के तीन कर्मचारी सामने आ गये हैं, जो मुख्यमंत्री के साथ काम करते हुए शारदा समूह के लिए काम करते रहे। इनमें एक दयालबाबू तो कहते हैं कि वे शारदा समूह से वेतन पाते रहे हैं और राज्य सरकार से उन्हें वेतन नहीं, भत्ता मिलता है। परिवर्तनपंथी नाट्यकर्मी अर्पिता घोष `एखोन समय' के मीडिया निदेशक बतौर शारदा समूह के लिए काम करती रही। अति राजनीतिसचेतन अर्पिता की दलील है कि उन्होंने सासंद कुणाल घोष के कहने पर यह नौकरी कबूल की और सुदीप्त से तो उनकी बाद में मुलाकात हुई। मदन मित्र कहते हैं कि किसी चिटफंड कंपनी को वे नहीं जानते। अपनी ओर से यह जोड़ना भी नहीं भूलते कि मुख्यमंत्री से सुदीप्त का परिचय उन्होंने नहीं कराया।फिर यह सफाई कि मुख्यमंत्री भी उन्हें नहीं जानतीं। अब तक शारदा को सर्टिफिकेट देने और इस समूह को प्रोत्साहन देने के बारे में, पियाली की रहस्यमय मौत और उसके संरक्षण, उन्हें शारदा समूह में चालीस हजार की नौकरी दिलवाने के संबंध में अपने विरुद्ध आरोपों के बारे में वे खामोशी अख्तियार किये हुए थे। अब वे बता रहे हैं कि उनकी तस्वीर भी जालसाजी से सुदीप्त के साथ नत्थी कर दी गयी। वे भी शुभेंदु की तरह अपने अनुयायियों से तत्काल चिटफंड कंपनियों से पैसा निकालने के लिए कह रहे हैं।
सुदीप्त दावा करते हैं कि सांसद शताब्दी राय शारदा समूह की ब्रांड एंबेसेडर हैं और एजंट व आम निवेशक तो लगातार यही कहते रहे हैं कि शताब्दी के कारण ही वे इस फर्जीवाड़े के शिकार बने। सुदीप्त के सहायक सोमनाथ दत्त शताब्दी के चुनाव प्रचार अभियान में उनकी गाड़ी में उनके साथ देखे गये, हालांकि शताब्दी ने कम से कम यह नहीं कहा कि उनकी तस्वीर के साथ जालसाजी हुई। सांसद तापस पाल किसी भी कंपनी के सात पेशेवर काम को वैध बताते हैं। यानी फिल्मस्टार विज्ञापन प्रोमोशन वगैरह का काम सांसद विधायक होने का बावजूद करते रह सकते हैं। पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय के सुपुत्र शुभ्रांशु राय ने`आजाद हिंद' उर्दू अखबार शारदा समूह से ले लिया। सुदीप्त की फरारी से पहले पत्रकारों की दुनिया में जोरों से चर्चा थी कि सुभ्रांशु नई टीमों के साथ अखबारों और चैनलों को लांच करेंगे। सांसद सृंजय बोस का नाम सीबीआई को लिखे पत्र में सांसद कुणाल घोष के साथ लिया है सुदीप्त ने। कुणाल से तो पूछताछ हुई पर एक फुटबाल क्लब और एक अखबार समूह के मालिक सृंजय से तो पूछताछ भी नहीं हुई। इसी तरह सत्ता दल के अनेक सांसद, विधायक और मंत्री तक के तार फिल्म उद्योग, मीडिया और खेल के मैदान से जुड़े हैं, जिनके नाम शारदा समूह के साथ जुड़े हुए हैं।संगठन के लोगों के नाम भी आ रहे हैं। जैसे कि तृणमूल छात्र परिषद के नेता शंकुदेव ।
इसी सिलसिले में विपक्ष की क्या कहें, सोमेन मित्र जैसे वरिष्ठ तृणमूल नेता सीबीआई जांच के जिरिये दोषियों को पकड़ने की मांग कर चुके हैं, जो गौरतलब है। मेदिनीपुर जिले में सांसद शुभेंदु अधिकारी ने ने निवेशकों से तुरंत पैसे निकालने की अपील कर दी और लोग ऐसा बहुत मुश्तैदी से कर रहे हैं। इससे बाकी बची कंपनियों का चेन ध्वस्त हो जाने की आशंका है। एक कंपनी शारदा समूह के फंस जाने से मौजूदा संकट हैं, जिसके साढ़े तीन लाख एजंट हैं । तो दूसरी बड़ी कंपनी के विज्ञापन से मालूम हुआ कि उसके बीस लाख फील्ड वर्कर है। ऐसी बड़ी कंपनियां सौ से ज्यादा है। अभी आसनसोल में छापे मारकर एक तृणमूल पार्षद की कंपनी का फंडाफोड़ किया गया जो स्थानीय स्तर पर काम करती है। ऐसी स्थानीय कंपनियों की संख्या भी सैकड़ों हैं।
एक एक करके इनके पाप का घड़ा फूटने पर राज्य में जो सुनामी आने वाली है , उससे अब सुंदरवन भी नही बचा पायेगा।सभाओं, भाषणों और रैलियों से इस सुनामी का मुकाबला करने की रणनीति सिर से गलत है और राज्य सरकार वक्त जाया करते हुए अपने पतन का रास्ता बनाने लगी है। मालूम हो कि इन्हीं शुभेंदु अधिकारी ने, जिनकी मेदिनीपुर और समूचे जंगलमहल में वाम किले ध्वस्त करने में सबसे बड़ी भूमिका रही है, ने मांग की है कि अविलंब दागी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाये। उद्योग मंत्री पार्थ चट्टोपाध्याय ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके घोषणा की कि कानून कानून के मुताबिक काम करेगा। पार्टी किसी को नहीं बचायेगी। लेकिन कानून कहां काम कर रहा है,जनता को तनिक यह भी तो बताइये!
शारदा समूह के गोरखधंधे के खुलासे से जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनके मुताबिक सौ से ज्यादा इन कंपनियों ने समाज के सबसे गरीब तबके को निशाना बनाया हुआ है। बाकायदा एजंटों को इसी तबके से आसानी से पैसे निकालने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है जिनकी बचत बहुत कम है ौर जिन्हें अपनी आर्थिक हालत के मद्देनजर कोई भी सपना पूरा करने का कोई हक नहीं है।इनमें से ज्यादातर लोगो के पास कोई बैंक खाता भी नहीं है और न बैंकों और दूसरी आर्थिक संस्थाओं की शर्तों मुताबिक वे कहीं निवेस करने की हालत में होते हैं। उनकी रकम ही इतनी छोटी होती है कि निवेश के लायक होती नहीं है। रोजाना न्यूनतम राशि जमा करके चिटफंड कंपनियों की योजनाओं वे आसानी से शामिल हो जाते हैं और उन्हें इसमें कोई लफड़ा भी नजर नहीं आता।निवेश कासिलसिला जारी रहते हुए और नेटवर्क के विस्तार होते रहने की स्थिति में उन्हें शुरुआती तौर पर इसका कुछ लाभ भी मिलता है, जिसकी देखादेखी इस वर्ग के लोग बड़ी संख्या में ऐसी योजनाओं में कम से कम निवेश के जरिये ज्यादा से ज्यादा रिटर्न पाने की लालच में फंस जाते हैं।बड़ी संख्या में एजंट तो अपना धंधा जमाने की गरज से कुछ अपना, अपने परिजनों और रिश्तेदारों की जमा पूंजी इस दुश्चक्र में फंसा देते हैं। बेराजगारी के आलम में उनके पास रोजगार में होने के लिए इसके सिवाय कुछ चारा भी नहीं बचता। चूंकि गांव देहात और शहरी इलाकों के गरीब बस्तियों में ऐसी देखादेखी का ही सबसे ज्यादा असर होता है और बीमारी के वायरल की छूत पूरे तबके में लग जाती है।
मसलन कोलकाता के विश्वविख्यात निषिद्ध इलाकेके यौनकर्मियों का मामला है, जिनके पास अपनी देह और जवानी ही एकमात्र पूंजी है, संपत्ति भी। इन लोगों ने व्यापक पैमाने पर सहकारी समिति से पैसे निकालकर देखादेखी में शारदा समूह में निवेश कर दिये। इसी तरह हाट बाजार में छोटी पूंजी लगाकर कारोबार करने वालों मे यह छूत बैहद तेजी से फैलती है। कामगारों और श्रमिकों के समूहों जैसे रिक्शावालों, आटोवालों, बर्तन मांजने वाली मौसियों और घरेलू नौकरानियों में भी यह संक्रमण तेजी से होता है। खास बात यह है कि इन तबकों की सामाजिक आर्थिक कोई सुरक्षा होती हीं है।
यह धंधा नेटवर्किंग मार्केटिंग की तरह चेन बनाने का खेल है। सपना बेचने का धंधा। जो लोग अपने सपनो को हकीकत में बदलने की हैसियत में हैं, वे इस चक्र में मुश्किल से फंसते हैं। पर ज अपने बल बूते अपना सपना पूरा करने में असमर्थ है और देश की अर्थ व्यवस्था और सामजिक राजनीतिक मुख्यधारा से बाहर जो असहाय बेसहारे लोग हैं, उन्हें थोड़ी सी बचत के बदले सपने खरीदने में कोई ऐतराज नहीं है। एजंट भी चेन बनाने में जी जान लगा देते हैं, ताकि भारी कमीशन के जरिये उसका कायकल्प हो।ऐसे एजंटों के पास भी अमूमन कोई विकल्प नहीं होता।ज्यादातर मामलों में चिटफंड कंपनियां पहले एजंटों का चेन बनाती है और उन्हींके जरिये निवेसकों का चेन। ये एजंट स्थायी या अस्थायी कर्मचारी भी नही होते। पैसा जमा होकर कहां जा रहा है, कहां खप रहा है, ऐसा जानलेने का उनके पास कोई अवसर नहीं होता। अक्सर दूसरी कंपनियों से ज्यादा कमीशन और जल्दी तरक्की की लालच देकर ऐसे कमीशन एजंट तोड़े जाते हैं। अब शारदा समूह और दूसरी कंपनियों के फंस जाने के बाद बाकी कंपनियां इनके एजंटों को तोड़कर अपना नेटवर्क मजबूत करके पहले से बनी शृंखला को और तेजी से फैलाने की जुगत में है।
फिर इलाकाई मसीहाओं के जो अंधे भक्त हैं, उन्हें भी अपने आइकन के कहे की कोई काट नजर नहीं आती है। इस पर तुर्रा यह कि समाज में प्रभावशाली राजनीतिक, सामाजिक और फिल्मी व्यक्तित्व जब ऐसी योजनां के पक्ष में बानदे देते हैं और इन कंपनियों के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं, जिनका सीधा प्रसारण भी होता है, तो इस वायरल के महामारी में बदलने में कतई देरी नहीं लगती।चिटफंड कंपनियों के बारे में ऐसे लोगों को जोड़ना अनिवार्य है और बंगाल में ऐसा ही हुआ।परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवी, राइटर्स के वेतन भोगी, मंत्री, सांसद, विधायक, पत्रकार कौन नहीं हैं इस कतार में?धोखेबाजी करने वाली कंपनियों को टीवी चैनल से लेकर अखबार तक खोलने की बेरोक-टोक आजादी मिल जाती है। यही नहीं वो खुद को बड़े सियासी दल और नेताओं के साथी के तौर पर भी पेश करने में कामयाब हो जाती हैं।
बंगाल की आर्थिक बदहाली और सर्वव्यापी बदहाली में इन अति पिछड़े तबकों को लगता है कि उनकी तमाम तकलीफों से निजात मिल जायेगी, बीमार का इलाज हो जायेगा, बच्चों की शिक्षा का सपना पूरा हो जायेगा या फिर घर में बैठी बहन बेटी के हाथ पीले हो जायंगे , अगर उनकी थोड़ी सी बचत कई गुणा ज्यादा बनकर उनके हाथों में आ जाये। एक दो मामलों में ऐसा होता भी है और कंपनी की साक बन जाती है। क्योंकि कोई कानूनी अड़चन नहीं है, कहीं कोई कार्रवाई नहीं है, निगरानी नहीं है, तो लोगों को ऐसी कंपनियों में निवेश का जोखिम नहीं लगता। जिनके पास कुछ ज्यादा है, वे शायद ही ऐसा जोखिम उठाये, जिसमें पूरी जमा पूंजी डूबने का खतरा हो।
पश्चिम बंगाल में चिटफंड घोटाले का कोहराम मचा देने वाली शारदा समूह कोई अकेली कंपनी नहीं है। ऐसे मामलों के जानकार बताते हैं कि राज्य में कम से कम ऐसी 60 फर्जी सौ फर्जी कंपनियां सक्रिय हैं और अनुमान है कि इन फर्मों ने अनगिनत निवेशकों से करीब 10 लाख करोड़ रुपए जमा कराए हैं।इसके अलावा राज्य में आर्थिक हेराफेरी करने वाली छोटी और गैर पंजिकृत फर्मों की संख्या अनगिनत है। ऐसी फर्जी कंपनियां सबसे पिछड़े जिलों और संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में ज्यादा प्रभावशाली हैं जैसे उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना, मालदा हावड़ा, नदिया और बीरभूम जिलों में।ग्रामीण और छोटे शहरों के अधिकांशतः गरीब लोगों ने 25 से 30 प्रतिशत ब्याज की लालच में फंस कर अपनी गाढ़ी कमाई कंपनी में जमा कराई थी।आयकर विभाग के आकलन के मुताबिक अकेले शारदा समूह ने करीब सत्तर हजार करोड़ रुपये की उगाही कर ली।लोगों की गाढ़ी कमाई ले उड़ने वाले शारदा समूह का जाल पश्चिम बंगाल, असम समेत पूर्वोत्तर भारत और उड़ीसा तक फैला है।अगर कश्मीर में पकड़े नहीं जाते तो शंकर सेन से सुदीप्त सेन बने इस दक्ष खिलाड़ी के नये परिचय के साथ पश्चिम भारत में नयी कंपनी खोलने की योजना थी।
इसी के मध्य भारतीय उद्योग जगत ने संसद में बने गतिरोध पर चिंता जताते हुए कहा कि वित्त विधेयक जैसे महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा के पारित किए जा रहे हैं। भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य मंडल एसौचेम ने बिना किसी राजनीतिक दल का नाम लिए मंगलवार को एक बयान में कहा है कि न्यूनतम आर्थिक सुधारों पर सभी राजनीतिक दलों को सहमति बना लेनी चाहिए। देश एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है जिसमें वित्त विधेयक जैसे महत्वपूर्ण विधेयक बिना किसी बहस के पारित किए जा रहे हैं।बयान में कहा गया है कि बजट में अनेक मुद्दे ऐसे हैं जो उद्योग या कारोबार से ही नहीं संबद्ध हैं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करते हैं। इन पर व्यापक और खुली बहस होनी चाहिए। किसी परिस्थितियों की वजह से 16.50 लाख करोड़ रुपये के मामले बिना किसी सवाल के पारित कर दिए गए। ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिनपर सरकार से जबाव मांगा जाना चाहिए। आगे कहा गया है कि बजट सत्र के दूसरे पक्ष में माना जा रहा था कि सरकार भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों पर राजनीतिक सहमति बना लेगी और यह बिना किसी कठिनाई के पारित हो जाएगा। लेकिन संसद में बने गतिरोध के कारण इसके पारित होने में देरी होने की संभावना है।उद्योग संगठन का कहना है कि अनिर्णय की स्थिति से निवेश प्रभावित हो रहा है। ऐसे समय में जब विदेशों में माहौल अनुकूल नहीं हैं। देश में आर्थिक सुधारों पर तेजी से निर्णय लेने की जरूरत है। इससे आर्थिक दशा में सुधार होगा और कारोबारी माहौल सकारात्मक बनेगा। रिपोर्ट के अनुसार भूमि अधिग्रहण के अलावा पुनर्वास एवं विस्थापन विधेयक, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, बीमा और कंपनी सुधार से संबंधित विधेयक जैसे मामले हैं जिन पर विचार विमर्श करने की जरुरत है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम दुनिया भर में कह रहे हैं कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत कर दी जाएगी लेकिन मौजूदा माहौल में यह संभव नहीं है।
इसी के मध्य दूरसंचार क्षेत्र की दुनिया की प्रमुख कंपनियों ने बंगाल की खाड़ी में समुद्री केबल प्रणाली के विस्तार के लिए एक करार किया है। भारतीय कंपनी रिलायंस जियो इंफोकॉम, मलेशियाई कंपनी टेलीकॉम मलेशिया, ब्रिटेन के वोडाफोन समूह, ओमान की ओमानटेल, संयुक्त अरब अमीरात की इतिसलात और श्रीलंका के डायलॉग एक्सियाटा ने क्वालालंपुर में मंगलवार को इस समझौते पर दस्तखत किए।इसके तहत कंपनियां समुद्री केबल का निर्माण, रख-रखाव और आपूर्ति संबंधी हरेक काम करेगी। इस करार पर इन सभी कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने दस्तखत किए। यह समुद्री केबल आठ हजार किलोमीटर क्षेत्र में बिछाया जा रहा है। यह मलेशिया और सिंगापुर को पश्चिम एशिया से जोड़ेगा। यह केबल भारत के मुंबई, चेन्नई और श्रीलंका से भी गुजरेगा।
दूसरी तरफ,चिटफंड कंपनियों ने पश्चिम बंगाल की विवादास्पद कंपनी शारदा ग्रुप को चिटफंड कारोबार से जोड़ने पर नाराजगी जताई है। उनका दावा है कि कंपनी चिटफंड के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं थी और उसका कई सेक्टर्स में बड़ा कारोबार रहा है। दिल्ली के चिटफंड कारोबारियों का कहना है कि जब से इसे चिटफंड घोटाले के तौर पर पेश किया गया है, उनका कारोबार ठप हो गया है और निवेशकों में घबराहट है। ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ चिट फंड्स के जनरल सेक्रेटरी टी. एस. शिवरामकृष्णन ने कहा, 'हमने कोलकाता के चिटफंड रजिस्ट्रार के ऑफिस से पुष्टि की है कि शारदा वहां रजिस्टर्ड नहीं थी। शारदा ग्रुप का कई सेक्टर्स में कारोबार है, लेकिन उसकी चिटफंड के रूप में कोई कंपनी नहीं है।' उन्होंने दावा किया कि निवेशकों की ओर से बढ़ रहे दबाव में कई सरकारों ने ईमानदार चिटफंड कंपनियों को भी 'बलि का बकरा' बनाना शुरू कर दिया है।
शिवरामकृष्णन ने कहा, 'चिट फंड कंपनियों को डिपॉजिट लेने की इजाजत नहीं होती और न ही वे बिना रजिस्ट्रार की अनुमति के दूसरा कोई कारोबार कर सकती हैं। शारदा ने दोनों तरह के काम किए।' असोसिएशन के मुताबिक, पूरे देश में करीब 10,000 चिटफंड कंपनियां हैं, जिनका कुल टर्नओवर करीब 30,000 करोड़ रुपए है। उन्होंने कहा कि चिट फंड पूरी तरह वैध कारोबार है और यह चिट फंड एक्ट 1982 के तहत रेगुलेट होता है। एसोसिएशन ने कहा कि अब तक राजधानी या देश के किसी भी हिस्से में हुए वित्तीय घोटालों और निवेशकों को लूटने में दूसरी तरह की वित्तीय कंपनियां रही हैं। चिटफंड रजिस्ट्रार के यहां रजिस्टर्ड कंपनियों के लिए किसी का पैसा लेकर निकल पाना नामुमकिन होता है। पटेल नगर की कंपनी ऐक्टिव चिटफंड के प्रमोटर एच. सी. खंडेलवाल ने कहा, 'मामला काफी गंभीर है और देश में जिस तरह की अफरातफरी मची है उससे आम निवेशक मुश्किल में पड़ सकते हैं। खबरों के चलते कई कंपनियां दफ्तर में ताले लगा चुकी हैं, जबकि कई स्थानीय प्रशासन के शोषण का शिकार हो रही है।'
उन्होंने बताया कि दिल्ली जैसे शहर में निवेशकों को चूना लगाना अब बीते दिनों की बात है। ग्राहकों की जागरूकता और कड़ी मॉनिटरिंग के चलते फर्मों का एक-एक हिसाब रिकॉर्ड में दर्ज होता है और उसे कोई भी देख सकता है। सरकार को चाहिए कि वह घोटाले की आड़ में ईमानदार और बेहतर काम कर रही चिटफंड कंपनियों को मुश्किल में घिरने से बचाए। दिल्ली के चिट फंड रजिस्ट्रार एस. के. सिंह ने बताया, 'किसी कंपनी के रजिस्ट्रेशन के लिए जिन दस्तावेजों की जरूरत होती है। उनमें रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज का सर्टिफिकेट, फंड फोरमैन का हलफनामा, डायरेक्टर के नाम, पते का सर्टिफिकेट, जीएआर की रसीद, बैंक अकाउंट का प्रूफ, दफ्तर का रेंट अग्रीमेंट, लैंड लॉर्ड का एनओसी, पैन कार्ड, आईडी प्रूफ, ऑपरेशन में शामिल लोगों का पहचान पत्र, बैलैंसशीट की कॉपी, नेटवर्थ का सर्टिफिकेट सहित 20 से ज्यादा दस्तावेज देने पड़ते हैं।'
उन्होंने बताया कि सरकार के पास 5 फीसदी श्योरिटी के अलावा अन्य तरह के डिपॉजिट भी होते हैं, जिन्हें छोड़कर कोई कंपनी नहीं जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार जल्द ही निवेशकों की जागरूकता के लिए भी कदम उठाएगी, जिससे वे असली चिटफंड कंपनी और जाली कंपनियों के बीच फर्क कर पाएंगे और अपना पैसा गलत जगह लगाने से बचेंगे।
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