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पिछले
दिन रांची के सदर डीएसपी आनंद जोसेफ तिग्गा से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान जो
निष्कर्ष सामने आये, वे मेरे लिये न तो हैरान करने वाली रही और न ही परेशान करने
वाली। मुझे पहले से पता था कि बात जब उपर वाले की हो तो एक अदद डीएसपी की औकात ही
क्या रह जाती है।
हां,
इतना तो डीएसपी साहेब का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने सच्चाई के साथ मेरे खिलाफ
दर्ज फर्जी मामले को हर स्तर पर स्वीकार किया और अपने पद से इतर एक बतौर एक दोस्त
की सलाह इतना अवश्य कहा कि वह अपने सीनियर के खिलाफ कुछ नहीं लिख सकते। आप (मैं)
अपनी लड़ाई न्याय मिलने तक जारी रखिये। अपने साथ हुये पुलिसिया अन्याय की शिकायत
पुनः महामहिम राज्यपाल से करें और सारे मामले की जांच सीआईडी या सीबीआई से कराने
या केस को रिओपेन करने की मांग करें। यानि कि पुलिस की जो कार्रवाई होती है, वह
फिर बैताल डाल पर जैसी होती है।
इस
तरह के पूरे बातचीत के उपरांत मैंने स्पष्ट तौर पर कहा कि आज नहीं तो कल, किसी न
किसी पुलिस अधिकारी को ही मुझे और न्यायालय को यह लिख कर देना होगा कि पुलिस
द्वारा मेरे खिलाफ की गई सारी कार्रवाई फर्जी थी और किस षडयंत्र के तहत पुलिस के
किन रहनुमाओं ने कानून की परिभाषा ही बदल दी। तब तक मैं झारखंड पुलिस की उस अकर्मण्यता
और धनलोलुपता को नहीं भूल पाउंगा।
रांची
के बरियातु थाना के दरोगा फगुनी पासवान (कर्ता), ओरमांझी थाना के प्रभारी सरयु
आनंद (कर्ता), लालपुर थाना के इंस्पेक्टर हरिचन्द्र सिंह (अनुसंधानकर्ता) के साथ
खास कर डीएसपी राकेश मोहन सिन्हा (आदेशकर्ता) की गैर जिम्मेदाराना रवैयै को भला
कैसे भूल सकता हूं। ऐसे लोगों द्वारा की गई उस कार्रवाई को तो मैं पुलिस के नाम पर
एक कलंक मानता हूं। ऐसे कलंकियों को सबक तो मिलनी ही चाहिये।
दरअसल,
दो माह पूर्व मैंने झारखंड के महामहिम राज्यपाल सैयद अहमद को समूचे मामले की
सप्रमाण लिखित जानकारी सौंपी थी। जिस पर राजभवन ने गंभीरता बरतते हुये पुलिस
महीनिरीक्षक से मामले की रिपोर्ट मांगी। पुलिस महानिरीक्षक ने डीएसपी आनंद जोसेफ
तिग्गा को मामले की जांच कर रिपोर्ट मांगी है। जो करीब माह भर से जांच कर रहे हैं।
वे जांच रिपोर्ट में क्या देगें, राम जाने।
इसके
पूर्व मैंने जेल से जमानत मिलने के बाद तात्कालीन डीजीपी से अपने खिलाफ हुये फर्जी
पुलिस कार्रवाई और बनाई गई फर्जी चार्जशीट
को लेकर शिकायत की थी। तब डीजीपी (मानवाधिकार) ने एसएसपी साकेत कुमार सिंह से जांच
कर रिपोर्ट मांगी। एसएसपी ने उसी बरियातु के दारोगा फगुनी पासवान को जांच करने का
जिम्मा सौंप दिया, जिसने मेरे थाना में बंद रहने के दौरान एक न्यूज़ चैनल को बयान
दिया था कि वे कुछ नहीं जानते। डीएसपी राकेश मोहन सिंहा ने रात को गिरफ्तार करने
को कहा और वे गिरफ्तार कर ले आये। डीएसपी कहेगें छोड़ने तो छोड़ देगें और कहेगें
जेल भेजने तो जेल भेज देगें। उस रिकार्ड की सीडी की प्रतियां मैंने अपने वकील,
प्रेस कॉंसिल, महामहिम राज्यपाल को सौंपने के साथ यूट्यूब में भी डाल रखा है।
यहां
पर एक बात और बता दूं कि तथाकथित पायोनियर अखबार के स्थानीय बिल्डर फ्रेंचाईजी की
शिकायत पत्र मेरे सामने जेल भेजने के करीब एक घंटे पूर्व थाने में आई और आनन-फानन
में आधा घंटा पूर्व एफआईआर दर्ज किया गया। इसके पहले कई पुलिस वाले मुझे घर छोड़ने
की बात कह रहे थे। इस दौरान जब कुछ युवा पत्रकार मित्र एसएसपी साकेत कुमार सिंह से
मिल कर मामले की जानकारी दी तो उन्होंने यह कह कर अपने हाथ खड़े कर दिये कि मीडिया
का आपसी मामला है, वे कुछ नहीं कर सकते। एक भाजपा नेता-बिल्डर के दबाब के आगे एक
आईपीएस अधिकारी की वह दलील कम सालने वाली नहीं है।
कमाल
की बात है कि जिस दारोगा फगुनी पासवान ने गिरफ्तारी के समय डीएसपी के आदेश का रोना
रोया था, उसी दारोगा के रिपोर्ट के आधार पर एसएसपी साकेत कुमार सिंह ने अपनी
सिंहगिरी दिखाते हुये डीजीपी (मानवाधिकार) को एक फर्जी रिपोर्ट तैयार करवा कर भिजवा
दिया।
यह
सब खुले तौर पर लिखने का मेरा एकमात्र आशय है कि धन-बल-छल के अंधेरे में पुलिस ने जिस तरह की भूमिका
निभाई, वह लोकतांत्रिक व्यवस्था का चीर हरण है। और दुर्योधनों के आदेश पालक ऐसे
दुःशाशनों को दंड मिलनी चाहिये। ताकि एक आम आदमी का जीने का मौलिक अधिकार जिंदा रह
सके। न्याय होने तक मेरी जंग जारी रहेगी। आगे
महामहिम राज्यपाल महोदय से मांग है कि मेरे मामले की जांच सीआईडी या सीबीआई के
किसी कर्मठ-सक्षम अधिकारी से करवाने की कृपा की जाये।
जय
मां भारती
मुकेश
भारतीय
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