प्रतिनिधि // अमरदीप श्रीवास्तव (शहडोल //टाइम्स ऑफ क्राइम)
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शहडोल। नेताजी मंच से भले ही बहुजन समाज का नेतृत्व कर रहे हो लेकिन वास्तव में अवैध उत्खनन करने वालों के साथ नेताजी का गहरा नाता है। यह नाता किस स्तर पर है और इसमें कितनी हिस्सेदारी नेताजी ने निर्धारित की है यह तो जनता ने निर्धारित की है यह तो जनता के लिये सवाल बन चुका है।
क्या नेताजी अवैध उत्खनन के साथ ही अन्य अवैध कार्यो में भी सहभागिता दिखाते है यह जांच का विषय है। बहुजन समाज के एक नेता के लिये समाज का प्रतिनिधित्व करना महज मौखिक जमा खर्च का कार्य है। इसके लिये उनके द्वारा समाज व कानून की किन किन मर्यादाओं को तार-तार किया जा रहा है यह जानकर लोगों का आश्चर्य नहीं होगा। मरजाद घाट में जहां जनचर्चाओं में पुष्पेन्द्र सिंह का एक टे्रक्टर रेत उत्खनन कर परिवहन कर रहा था वहीं पर दूसरा वाहन नेताजी के भतीजे का था।
पुलिस ने दिया पूरा साथ
नेताजी के रसूख को नकार पाना बुढ़ार पुलिस के लिये भी आसान नहीं है। यही कारण है कि जब मरजाद घाट में अवैध उत्खनन व परिवहन करने वाले वाहनों की जानकारी दी गई तो वाहन मालिकों को पुलिस सूत्रों की जानकारी पहले मिली। सूचना के बाद जहां श्रमिक इधर उधर फ रार हो गये वहीं इशारों ही इशारों में भरा हुआ ट्रेक्टर खाली हो गया। जबकि नेताजी के करीबी रिश्तेदार का वाहन तकनीकी कमियों के कारण स्थल से नहीं हट सका।
नेताजी ने दिखाया रूतबा
बहुजन समाज का नेतृत्व कर पुलिस को धौंस दिखाने वाले नेताजी के कुर्ते में भी कई दाग नजर आये। नेताजी ने बहुजन समाज के नेतृत्व के नाम पर पुलिस पर अच्छा दबाब बना रखा है। यही कारण है कि उनके रूतबे को देखकर अवैध कृत्य के इस कार्य को पुलिस नहीं देख पाती। जानकारी तो पहले से ही है, लेकिन जब छूट दी गई है तो कार्यवाही कैसे होगी।
बजती रही मोबाइल की घंटियां
नेताजी का वाहन जैसे ही मरजाद घाट में होने की जानकारी पुलिस दल को हुई तो मोबाइल की घण्टियां लगातार सूत्रों के साथ टकराती रही। कहीं अपना मोबाइल टैं्रस न हो इसके लिये पड़ोसियों का सहारा लिया गया।
तो किसने किया अपराध
अवैध उत्खनन के कारोबार में आखिर अपराध किसने किया। यह भी अब विचारणीय प्रश्न है।
जहां एक ओर ठेका लेकर दूसरे स्थान पर अवैध उत्खनन हो रहा था या नेताजी के द्वारा कराया जा रहा बिना अनुमति के उत्खनन या पुलिस के द्वारा दी जाने वाली अपराधियों को सूचना अथवा बिना निर्धारण के अवैध उत्खनन पर प्रतिबंध न लगा पाना।
कौन सा अपराध है और इसमें कौन जिम्मेदार है यह तो तय करना पा न अधिकारियों के लिये संभव है और ना ही व्यवसाईयों के लिये फिर भी अपराध हो रहे है और नियंत्रित करने का दावा भी बदस्तूर जारी है।
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