होली के दिन न जाने कितने पेड़ो की बलि चढ़ जाती है| इसे रोकने के लिए अबकी बार नगर में जलाई जाएगी कन्डो की होली। इसी माह पूर्व थाने में हुई शांति समिति की बैठक में पत्रकारों और शांति समिति के सदस्यों द्वारा लिया गया था यह निर्णय।
सुमित सिंह तोमर
TOC NEWS
जिला ब्यूरो चीफ आगर मालवा
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जिला ब्यूरो चीफ आगर मालवा
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आगर (मालवा ) TOC न्यूज़ सुसनेर से ✍ गिरिराज बंजारिया की रिपोर्ट (टीओसी)
मो.9617717441
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आगर (मालवा ) TOC न्यूज़ सुसनेर से ✍ गिरिराज बंजारिया की रिपोर्ट (टीओसी)
मो.9617717441
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सुसनेर (टीओसी) न्यूज़ - मान्यताओ के अनुसार होली खेलने के एक दिन पूर्व हम होली जलाते है| और उसमें लकड़ियों का प्रयोग करते है| इससे पर्यावरण तो दूषित होता ही है| साथ ही कई क्विंटल लकड़ी जलकर स्वाहा हो जाती है| और न जाने इस दिन कितने पेड़ो की बलि चढ़ जाती है| एक और आज हम ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयानक स्थिति से निपटने के प्रयास ढूढ़ रहे है| तो वही दूसरी और हम इसकी परवाह किए बगैर लगातार पेड़ो की कटाई करते हुए जंगल के जंगल तबाह कर रहे है| इसी वजह से नगर में हरियाली का आभाव हो रहा है| ऐसे में अगर हम होलिका दहन के लिए लकड़ी काटते है तो आने वाले समय में हम हरियाली देखने को तरस जाएगे| लोगो को इसके बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है| कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है की प्रतीकात्मक होली जलाए और साथ ही सुखी होली खेले| इससे आप पर्यावरण मित्र कहलाएगे| आज जिस प्रकार धीरे-धीरे जंगल खत्म हो रहे है| यह चिंता का विषय है| आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में गहन चिंतन करते हुए प्रतीकात्मक होली जलाकर देश प्रेम का परिचय देना चाहिए| होलिका दहन के लिए किसी भी कीमत पर लकड़ी का प्रयोग नहीं करना चाहिए| इसमें हर रीती रिवाज को पूरा करना एक मान्यता है| इसलिए होलिका का सिर्फ प्रतीकात्मक दहन करते हुए पुरानी डलिया, घास व कंडे का प्रयोग करे| संभव होतो बड़ी होली न जलाते हुए छोटी जलाए|
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