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नई दिल्ली। स्वराज इंडिया की आगामी निगम चुनावों में कॉमन सिंबल की मांग को हाईकोर्ट से झटका लगने के बाद पार्टी ने इसका आरोप आम आदमी पार्टी सरकार पर लगाया है।
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने जानबूझकर कॉमन सिंबल की फाइल को करीब दो साल तक अपने पास रोके रखा जिसके चलते हमें निगम चुनावों में कॉमन सिंबल नहीं मिला।
उन्होंने कहा कि आप स्वयं इस नियम का फायदा उठाकर दिल्ली की सत्ता तक पहुंची लेकिन उसने दूसरी पार्टी को इस नियम का फायदा लेने से रोक दिया।
योगेन्द्र यादव ने कहा कि चुनाव आयोग ने 2013 में नियम बनाया था कि किसी चुनाव में कुल सीटों की दस प्रतिशत सीटों पर लड़कर कुल मतों का 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली रजिस्टर्ड अनरिकाग्नाइज्ड पार्टी को रिकॉगनाइज्ड मानकर कॉमन इलेक्शन सिंबल दिया जाएगा।
आप ने 2013 में इस नियम का फायदा उठाया। साथ ही आठ से दस राज्यों में ये नियम प्रचलन में है।
दिल्ली राज्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता ने 4 मार्च 2015 को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को चिट्ठी लिखकर एक न्यायसंगत नियम बनाने का प्रस्ताव भी दिया। लेकिन अफ़सोस कि दो साल बीत जाने के बाद भी आयोग की इस महत्वपूर्ण चिट्ठी का सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।
यादव ने कहा कि दिल्ली सरकार दो साल से आयोग के इस प्रस्ताव पर बैठी रही जिसके कारण वर्तमान में चल रहे नियमों का हवाला देकर चुनाव आयोग ने स्वराज इंडिया के कॉमन सिम्बल के निवेदन को ठुकरा दिया।
उन्होंने कहा कि जब हमने एमसीडी चुनाव अभियान की शुरुआत की थी तो हमें पता था कि हमारे पास पैसे नहीं हैं लेकिन आज हमें पता चल गया कि हमारे पास सिम्बल भी नहीं है।
वहीं स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग को एमसीडी चुनाव में कॉमन सिंबल देने का पूरा अधिकार था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
उसे दिल्ली सरकार द्वारा नियम बनाने का इंतजार नहीं करना चाहिए था। प्रशांत भूषण ने कहा हम बुधवार को आए हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे। इसके खिलाफ हाईकोर्ट की रिवीजन बेंच में अपील की जाएगी।
जानकारी हो कि चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड पहचान न रखने वाले (गैर मान्यताप्राप्त) राजनीतिक दल को कॉमन सिंबल पाने के लिए कुल क्षेत्र की सीटों में से 10 प्रतिशत पर चुनाव लड़ना होता है।
इतना ही नहीं राजनीतिक दल को कुल मतों का 6 प्रतिशत मत भी प्राप्त करना होता है तभी उसी दल को सभी विभिन्न सीटों पर लड़ने के लिए कॉमन सिंबल मिलेगा।
इस शर्त को पूरा न करने वाले दल को चुनाव लड़ने के लिए अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग चुनाव चिह्न दिये जाते हैं। जिससे उस दल के उम्मीदवार एवं उसके समर्थकों में अलग-अलग चुनाव चिह्नों को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाती है।
नई दिल्ली। स्वराज इंडिया की आगामी निगम चुनावों में कॉमन सिंबल की मांग को हाईकोर्ट से झटका लगने के बाद पार्टी ने इसका आरोप आम आदमी पार्टी सरकार पर लगाया है।
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने जानबूझकर कॉमन सिंबल की फाइल को करीब दो साल तक अपने पास रोके रखा जिसके चलते हमें निगम चुनावों में कॉमन सिंबल नहीं मिला।
उन्होंने कहा कि आप स्वयं इस नियम का फायदा उठाकर दिल्ली की सत्ता तक पहुंची लेकिन उसने दूसरी पार्टी को इस नियम का फायदा लेने से रोक दिया।
योगेन्द्र यादव ने कहा कि चुनाव आयोग ने 2013 में नियम बनाया था कि किसी चुनाव में कुल सीटों की दस प्रतिशत सीटों पर लड़कर कुल मतों का 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली रजिस्टर्ड अनरिकाग्नाइज्ड पार्टी को रिकॉगनाइज्ड मानकर कॉमन इलेक्शन सिंबल दिया जाएगा।
आप ने 2013 में इस नियम का फायदा उठाया। साथ ही आठ से दस राज्यों में ये नियम प्रचलन में है।
दिल्ली राज्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता ने 4 मार्च 2015 को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को चिट्ठी लिखकर एक न्यायसंगत नियम बनाने का प्रस्ताव भी दिया। लेकिन अफ़सोस कि दो साल बीत जाने के बाद भी आयोग की इस महत्वपूर्ण चिट्ठी का सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।
यादव ने कहा कि दिल्ली सरकार दो साल से आयोग के इस प्रस्ताव पर बैठी रही जिसके कारण वर्तमान में चल रहे नियमों का हवाला देकर चुनाव आयोग ने स्वराज इंडिया के कॉमन सिम्बल के निवेदन को ठुकरा दिया।
उन्होंने कहा कि जब हमने एमसीडी चुनाव अभियान की शुरुआत की थी तो हमें पता था कि हमारे पास पैसे नहीं हैं लेकिन आज हमें पता चल गया कि हमारे पास सिम्बल भी नहीं है।
वहीं स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग को एमसीडी चुनाव में कॉमन सिंबल देने का पूरा अधिकार था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
उसे दिल्ली सरकार द्वारा नियम बनाने का इंतजार नहीं करना चाहिए था। प्रशांत भूषण ने कहा हम बुधवार को आए हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे। इसके खिलाफ हाईकोर्ट की रिवीजन बेंच में अपील की जाएगी।
जानकारी हो कि चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड पहचान न रखने वाले (गैर मान्यताप्राप्त) राजनीतिक दल को कॉमन सिंबल पाने के लिए कुल क्षेत्र की सीटों में से 10 प्रतिशत पर चुनाव लड़ना होता है।
इतना ही नहीं राजनीतिक दल को कुल मतों का 6 प्रतिशत मत भी प्राप्त करना होता है तभी उसी दल को सभी विभिन्न सीटों पर लड़ने के लिए कॉमन सिंबल मिलेगा।
इस शर्त को पूरा न करने वाले दल को चुनाव लड़ने के लिए अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग चुनाव चिह्न दिये जाते हैं। जिससे उस दल के उम्मीदवार एवं उसके समर्थकों में अलग-अलग चुनाव चिह्नों को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाती है।
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