TOC NEWS @ www.tocnews.org
नई दिल्ली (23 फरवरी): पुलवामा हमले के बाद सरकार बेहद गंभीर हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार और बीजेपी के अंदर इस बात को लेकर मंथन शुरू हो गया है कि क्यों ना संविधान के अनुच्छेद 35ए को खत्म कर दिया जाए। संविधान के अनुच्छेद 35ए के तहत ही कश्मीरियों को विशेष अधिकार मिले हुए हैं। ख़बर है कि हालात से निपटने के लिए घाटी में सुरक्षा बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियां भी तैनात कर दी गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट की कॉजलिस्ट में सोमवार को सुनवाई के लिए #JammuAndKashmir के विशेष राज्य का स्टेटस से जुड़े #Article35A का मामला लिस्ट नहीं हुआ है, लेकिन उसके नाम पर #कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजी जा रही है, गिरफ्तारियां हो रही हैं। पिछली सुनवाई में राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव के नाम पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टल गई थी। राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने सुनवाई टालने की मांग की थी।
- इस मामले में केंद्र सरकार ने अबतक कोई स्टैंड नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। केंद्र सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह मामला संवेदनशील है और संवैधानिक महत्व का है, इसलिए इस पर बड़ी बहस की जरूरत है। सरकार इस मामले में कोई हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने इस मामले को बड़ी बेंच यानि संविधानपीठ के पास भेजने की जरूरत बताई थी।
अनुच्छेद 370 का जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता अनुच्छेद 35ए के बहाने यह मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट इसकी समीक्षा करने वाला है। यह ऐसा मुद्दा है जो अपने अकेले दम पर देश की सियासत और भूगोल दोनों बदल सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 35ए, अनुच्छेद 370 का आधार है। यह वही अनुच्छेद 370 है जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। अनुच्छेद 35ए के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के अलावा अन्य भारतीय नागरिक राज्य में अचल संपत्ति खरीद नहीं सकते और ना ही मताधिकार हासिल कर सकते हैं।
केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आने के बाद 2014 में दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन 'वी द सिटिजन' ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अनुच्छेद-35ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है लेकिन यह प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है जो दूसरे राज्यों से आकर वहां बसे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति को आदेश के जरिए संविधान में फेरबदल करने का अधिकार नहीं है। 1954 में राष्ट्रपति का आदेश एक अस्थाई व्यवस्था के तौर पर किया गया था। दरअसल, 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के तहत संविधान में अनुच्छेद 35ए को जोड़ा गया गया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह मामला संवेदनशील है और संवैधानिक महत्व का है इसलिए इस पर बड़ी बहस की जरूरत है। सरकार इस मामले में कोई हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने इस मामले को बड़ी बेंच यानि संविधानपीठ के पास भेजने की जरूरत बताई थी। पिछले चार साल से यह मामला कोर्ट में लंबित है। जब भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की तारीख आती है राज्य में बंद और हिंसक प्रदर्शन होने लगता है। पिछले साल 31अगस्त को सुनवाई होनी थी लेकिन राज्य में होने जा रहे स्थानीय चुनाव में शांति व्यवस्था की दुहाई देकर राज्य सरकार और केंद्र ने मामले की सुनवाई जनवरी तक टालने की मांग की थी और सुनवाई टल गई थी। सुप्रीम कोर्ट अब कभी भी इस मुद्दे पर सुनवाई कर सकता है।
जम्मू - कश्मीर सरकार का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट की कॉजलिस्ट में सोमवार को सुनवाई के लिए #JammuAndKashmir के विशेष राज्य का स्टेटस से जुड़े #Article35A का मामला लिस्ट नहीं हुआ है, लेकिन उसके नाम पर #कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजी जा रही है, गिरफ्तारियां हो रही हैं। पिछली सुनवाई में राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव के नाम पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टल गई थी। राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने सुनवाई टालने की मांग की थी।
- इस मामले में केंद्र सरकार ने अबतक कोई स्टैंड नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। केंद्र सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह मामला संवेदनशील है और संवैधानिक महत्व का है, इसलिए इस पर बड़ी बहस की जरूरत है। सरकार इस मामले में कोई हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने इस मामले को बड़ी बेंच यानि संविधानपीठ के पास भेजने की जरूरत बताई थी।
अनुच्छेद 370 का जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता अनुच्छेद 35ए के बहाने यह मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट इसकी समीक्षा करने वाला है। यह ऐसा मुद्दा है जो अपने अकेले दम पर देश की सियासत और भूगोल दोनों बदल सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 35ए, अनुच्छेद 370 का आधार है। यह वही अनुच्छेद 370 है जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। अनुच्छेद 35ए के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के अलावा अन्य भारतीय नागरिक राज्य में अचल संपत्ति खरीद नहीं सकते और ना ही मताधिकार हासिल कर सकते हैं।
केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आने के बाद 2014 में दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन 'वी द सिटिजन' ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अनुच्छेद-35ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है लेकिन यह प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है जो दूसरे राज्यों से आकर वहां बसे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति को आदेश के जरिए संविधान में फेरबदल करने का अधिकार नहीं है। 1954 में राष्ट्रपति का आदेश एक अस्थाई व्यवस्था के तौर पर किया गया था। दरअसल, 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के तहत संविधान में अनुच्छेद 35ए को जोड़ा गया गया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह मामला संवेदनशील है और संवैधानिक महत्व का है इसलिए इस पर बड़ी बहस की जरूरत है। सरकार इस मामले में कोई हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने इस मामले को बड़ी बेंच यानि संविधानपीठ के पास भेजने की जरूरत बताई थी। पिछले चार साल से यह मामला कोर्ट में लंबित है। जब भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की तारीख आती है राज्य में बंद और हिंसक प्रदर्शन होने लगता है। पिछले साल 31अगस्त को सुनवाई होनी थी लेकिन राज्य में होने जा रहे स्थानीय चुनाव में शांति व्यवस्था की दुहाई देकर राज्य सरकार और केंद्र ने मामले की सुनवाई जनवरी तक टालने की मांग की थी और सुनवाई टल गई थी। सुप्रीम कोर्ट अब कभी भी इस मुद्दे पर सुनवाई कर सकता है।
जम्मू - कश्मीर सरकार का पक्ष
जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 35(A) के तहत राज्य के नागरिकों को विशेष अधिकार मिला हुआ है। इस प्रावधान को अब तक चुनौती नहीं दी गई है, यह संविधान का स्थाई लक्षण है। इसके तहत राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान की गई थी और राज्य सरकार को अपने राज्य के निवासियों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार मिला हुआ है। राज्य सरकार कह रही है कि ये व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है। राष्ट्रपति के इस आदेश को 60 सालों के बाद चुनौती दी गई है। ऐसे में इसे चुनौती देने का कोई मतलब नहीं है।
क्या है अनुच्छेद 35 (A)
बहुत से लोग हैं जो यह मानते हैं की धारा 370 को समाप्त कर देने कश्मीर की लगभग सारी समस्याएँ समाप्त हो जायेंगी। किन्तु यह अधूरा सत्य है व्यवहार में धारा 370 इतना घातक नहीं जितना की 35ए। धारा 370 के कारण हो रही अधिकतर विसंगतियों की जड़ अनुच्छेद 35ए ही बना। अनुच्छेद 370 को सशक्त करने के उद्देश्य से तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को बिना किसी संसदीय कार्यवाही के एक संवैधानिक आदेश निकाला, जिसमें उन्होने एक नये अनुच्छेद 35ए को भारत के संविधान में जोड़ दिया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को ये अधिकार देता है कि विधानसभा 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके और उनकी पहचान कर स्थायी नागरिक को विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके। यानि अनुच्छेद 35ए परदे के पीछे से जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर उन पर गैरकानूनी होने का ठप्पा लगा देने का अधिकार भी दे देता है।
खास बात ये है कि संविधान में कहीं भी आपको यह अनुच्छेद 35ए दिखायी नहीं देगा। आपको अनुच्छेद 35के अवश्य पढ़ने को मिलेगा लेकिन इसके के लिए आपको संविधान की एपेंडिक्स पर नजर डालनी होगी। इसी अनुच्छेद की वजह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 एवं 21 में भारतीय नागरिकों को समानता और कहीं भी बसने के जो अधिकार दिए, वह प्रतिबंधित कर दिए गए।
कौन चुका रहा है अनुच्छेद 35ए की कीमत ?
खास बात ये है कि संविधान में कहीं भी आपको यह अनुच्छेद 35ए दिखायी नहीं देगा। आपको अनुच्छेद 35के अवश्य पढ़ने को मिलेगा लेकिन इसके के लिए आपको संविधान की एपेंडिक्स पर नजर डालनी होगी। इसी अनुच्छेद की वजह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 एवं 21 में भारतीय नागरिकों को समानता और कहीं भी बसने के जो अधिकार दिए, वह प्रतिबंधित कर दिए गए।
कौन चुका रहा है अनुच्छेद 35ए की कीमत ?
1947 में बंटवारे के वक्त हज़ारों हिन्दू परिवार पकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे। इन हिंदू परिवारों में लगभग 85 फीसदी दलित हैं। इस अनुच्छेद 35ए की वजह से इन्हें न तो यहां होने वाले चुनावों में वोट देने का अधिकार है, न ही सरकारी नौकरी पाने का और न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिले का।ये अपने देश में ही शरणार्थी की तरह जीने को मजबूर हैं। इससे भी बुरे हालात बाल्मीकि समुदाय के उन लोगों के हैं जो पचास के दशक में यहां आकर बस गए थे। इन्हें सरकार ने अपने फायदे के लिए सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए पंजाब से बुलाया था। क्योंकि उस वक्त जम्मू में सफाई कर्मचारी नहीं मिलते थे। लेकिन इन्हें बदले में क्या मिला? बीते छ: दशकों से ये लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं, लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता और इसकी एक ही वजह है अनुच्छेद 35ए।
अनुच्छेद 35ए को लेकर विवाद क्या है !
अनुच्छेद 35ए को लेकर विवाद क्या है !
14 मई 1954 को राष्ट्रपति ने बिना किसी संसदीय कार्यवाही के एक संवैधानिक आदेश निकाला, जिसमें उन्होंने एक नये अनुच्छेद 35ए को भारत के संविधान में जोड़ दिया जबकि अनुच्छेद 368 के मुताबिक संविधान में संसोधन के लिए संसद के मंजूरी की जरूरत होती है। अनुच्छेद 368 में संविधान के संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इसमें संशोधन की तीन विधियां हैं : साधारण विधि द्वारा संशोधन, संसद के विशेष बहुमत द्वारा और संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन। और इन तीनों में संसद की स्वीकृति हर हाल में अनिवार्य है। अनुच्छेद 35ए को लेकर यही विवाद है कि इसके लिए संसद की स्वीकृति नहीं ली गयी। इसी आधार पर कोर्ट से यह मांग की गयी है कि अनुच्छेद 35ए को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
अगर सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 35ए को असंवैधानिक करार देता है तो जम्मू कश्मीर में बाहर के लोगों के लिए ज़मीन खरीदने, बसने का अधिकार मिल जायेगा। जिससे न केवल राज्य का भूगोल बदलेगा बल्कि कश्मीर समस्या के समाधान का रास्ता भी आसान हो जायेगा।
अगर सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 35ए को असंवैधानिक करार देता है तो जम्मू कश्मीर में बाहर के लोगों के लिए ज़मीन खरीदने, बसने का अधिकार मिल जायेगा। जिससे न केवल राज्य का भूगोल बदलेगा बल्कि कश्मीर समस्या के समाधान का रास्ता भी आसान हो जायेगा।
No comments:
Post a Comment