RSLP leader Upendra Kushwaha |
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पटना: लोकसभा चुनाव के निराशाजनक परिणामों के बाद रविवार को उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में दूसरा झटका लगा जब उनकी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के विधायक दल का विलय नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ हो गया। इसके साथ ही विधानसभा में रालोसपा का अस्तित्व भी खत्म हो गया। रालोसपा के दो विधायक ललन पासवान और सुधांशु शेखर ने नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाईटेड (जदयू) में शामिल हो कर दल का विलय कराया।
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राजनीति में पाला बदलने का काम भी शुरु हो गया है. इसकी शुरुआत हुई है बिहार से. बिहार की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के दो विधायकों ने सत्तारुढ़ दल जनता दल यूनाइटेड (JDU) पार्टी ज्वॉइन कर ली है. बिहार में आरएलएसपी पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा के लिए ये बुरी खबर है. यहां पर उनकी पार्टी के दो ही विधायक थे.
बिहार विधानसभा के स्पीकर ने दोनों विधायकों को जेडीयू में शामिल होने की इजाजत दे दी. इसी के साथ रालोसपा के विधायक दल का जेडीयू विधायक दल में विलय हो गया. बिहार विधानसभा अध्यक्ष ने इसी के साथ रालोसपा के दोनों विधायकों को जेडीयू के साथ बैठने की स्वीकृति दे दी.
बिहार विधानसभा में फिलहाल आरजेडी के 80, जेडीयू के 71, रालोसपा के 2 (अब जेडीयू में), कांग्रेस के 27, लोजपा के 2, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (1) और अन्य के खाते में 7 विधायक हैं. इस तरह रालोसपा के दो विधायकों के विलय के बाद जेडीयू की संख्या अब 73 हो गई है.
2019 लोकसभा चुनाव में रालोसपा आरजेडी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ी थी. सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए से उनकी अनबन हुई थी जिसके बाद उन्होंने एनडीए छोड़कर गठबंधन का दामन थाम लिया था लेकिन उपेंद्र कुशवाहा एक साथ दो सीटों पर खड़े हुए और दोनों जगह से उनको चुनावी हार मिली थी.
आरएलएसपी के दो विधायक और एक एमएलसी ने जनता दल यू में विलय के लिए विधानसभा अध्यक्ष को पत्र दिया था. ये विधायक हैं ललन पासवान और सुधांशु शेखर. इनके साथ पार्टी के एक मात्र एमएलसी ने भी जेडीयू विधायक दल में शामिल होने के लिए विधान परिषद के सभापति को पत्र दिया है. एक तरह से रालोसपा का अस्थित्व लगभग समाप्त हो गया है क्योंकि इस पार्टी का अब कोई सांसद नहीं है और न ही कोई विधायक रहा.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और अपनी तीनों सीट पर विजय पाई थी. तब उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में राज्य मंत्री बने थे लेकिन 2019 के चुनाव से ठीक पहले सीटों की संख्या को लेकर उनकी बात एनडीए से नहीं बनी और वे महागठबंधन का हिस्सा बन गए. महागठबंधन ने उन्हें पांच सीटें दीं लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. यहां तक कि उजियारपुर और काराकाट दो जगह से लड़े उपेंद्र कुशवाहा को दोनों जगह हार का मुंह देखना पड़ा.
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