कांग्रेस में उपेक्षित होते युवा नेता, क्या 135 साल पुरानी पार्टी को खत्म करेगी सोनिया? |
- विजया पाठक
2024 का चुनाव लड़ेगी बूढ़ी कांग्रेस !
याद कीजिए 2004 और 2009 का वह दौर, जिसमें केंद्र की सत्तासीन कांग्रेस सरकार में युवाओं की भरमार थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल से लेकर कांग्रेस के संगठन में युवाओं को तवज्जो दी जाती थी। उस समय कांग्रेस की बांगडोर राहुल गांधी के हाथ में थी। वह हमेशा युवाओं के हिमायती रहे हैं।
देश के युवा भी खुश और कांग्रेस के युवा नेता भी, लेकिन बीते एक दशक में परत-दर-परत स्थितियां ऐसी बनी या बनाए गई कि कांग्रेस का मोह युवाओं से भरता गया और युवा नेता कांग्रेस से कटते गए। आज परिस्थितियां ऐसी हो गई कि पार्टी में युवा नेताओं को टोटा हो गया है।
प्रियंका चतुर्वेदी, जगनमोहन रेड्डी, दीपेंदर सिंह हुडा, रीता बहुगुणा जोशी, संजय निरूपम, मिलिंद देवड़ा, नवजोत सिंह सिद्धू, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट जैसे तमाम युवा बिग्रेड अब पार्टी में नहीं हैं। यह वह युवा नेता थे जो मोदी सरकार से अपने दम पर लोहा मनवाते थे। मतलब साफ है कि विपक्ष की भूमिका में वाकई सटीक बैठते थे। राज्यों में भी अपनी काबिलियत के पार्टी की पहचान बनाए रखने में कामयाब थे। इन युवाओं में अधिकांश ऐसे थे जिन्होंने अपने बलबूते राज्यों में सरकार बनवाई। सिंधिया, पायलट उनमें से ही थे।
आज ये कर्मठ योद्धा पार्टी से बाहर हैं। अब सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस 2024 का केंद्रीय चुनाव बगैर युवाओं के यानी बूढ़ी कांग्रेस के भरोसे लड़ेगी। क्योंकि हम देख रहे हैं कि धीरे-धीरे कर कांग्रेस के सभी प्रभावी युवा नेता किनारा करते जा रहे हैं। यही वह युवा नेता थे जो मोदी से भिड़ने का माद्दा रखते थे। अब मोदी से भिड़ने की ताकत कौन रखता है, फिलहाल कोई नहीं दिख रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कांग्रेस की वर्तमान में अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी के सत्यानाश पर तुली हुई हैं। क्या सोनिया 135 साल पुरानी पार्टी को खत्म करके मानेगी? जहां तक राहुल गांधी की बात की जाए तो वह युवाओं को आगे बढ़ाने के पक्ष में रहे हैं। राहुल गांधी मध्यलप्रदेश में सिंधिंया को और राजस्थामन में पायलट को ही सीएम बनाना चाहते थे। लेकिन उनके सामने ऐसी स्थितियां निर्मित की गई कि वह कुछ कर ही नहीं पाए।
आखिर में सोनिया गांधी की मंशा पर यकीन करना पड़ा। यही नहीं सोनिया के आसपास रहने वाले बुजुर्ग कांग्रेस नेता भी नहीं चाहते कि पार्टी में युवाओं को प्राथमिकता दी जाए। यही कारण है कि पार्टी से बगावत करने वाले और रूठने वालों को कभी भी मनाने का प्रयास नहीं किया जाता है। जबकि बीजेपी या अन्यव पार्टियों में ऐसा नहीं होता। पार्टी हाईकमान का पूरा हस्त क्षेप होता है और समय रहते स्थितियों को संभाल लिया जाता है। यही वह 70 पार कांग्रेस है जो नहीं चाहती कि युवा अपनी महत्वाकांक्षा रखें या आगे बढ़े। सोनिया गांधी भी इसी कांग्रेस में बंधी नजर आ रही हैं। वह एक रबड़ स्टैंप की तरह काम कर रही हैं और नतीजा ये हो रहा है कि दिनों दिन कांग्रेस बिखरती जा रही है, जिसमें अब शक्ति नाम मात्र बची है।
राजस्थान में मचे हाहाकार पर बात करें तो एक बात निकल कर सामने आती है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटें मिली थी वहीं 2014 के लोकसभा में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। ऐसी विषम परिस्थितियों में कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश के युवा और प्रतिभाशाली नेता सचिन पायलट को पार्टी का अध्यक्ष बनाया और पार्टी को जिंदा करने की जिम्मेदारी सौंपी।
कांग्रेस के इस कॉकस में 70 पार के वे नेता हैं जो अभी भी सत्ता का सुख छोड़ना नहीं चाहते। बैठे-बिठाए सत्ता की मलाई खाना चाहते हैं। 70 पार के इन नेताओं में अहमद पटेल, कपिल सिब्बल, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, कैप्टन अमरिंदर सिंह, पी. चिदंबरम, अशोक गहलोत जैसे तमाम सत्तासुख लोभी नेता हैं, जिनके कारण ही आज कांग्रेस की यह स्थिति हो रही है। क्योंकि यह वह नेता है जो पार्टी के हित के पहले स्वयं के हित साधने में लगे रहते हैं। इनके अपने अपने हित भी समाहित हैं। किसी को अपने बेटों को स्था पित करना है तो किसी को अपनी राजनीति को जिंदा रखना है। सबसे पहले इन नेताओं को उस बात पर गौर करना चाहिए कि जब पार्टी का वजूद ही नहीं रहेगा तो यह सत्ता का सुख कैसे होगा भोगेंगे।
राजस्थान में मचे हाहाकार पर बात करें तो एक बात निकल कर सामने आती है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटें मिली थी वहीं 2014 के लोकसभा में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। ऐसी विषम परिस्थितियों में कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश के युवा और प्रतिभाशाली नेता सचिन पायलट को पार्टी का अध्यक्ष बनाया और पार्टी को जिंदा करने की जिम्मेदारी सौंपी। सचिन पायलट भी मिली जिम्मेदारी में 5 साल लगे रहे। प्रदेश के कोने-कोने में दौर किए।
सचिन पायलट ही प्रदेश के सीएम होंगे, लेकिन यहां पर भी युवाओं की अनदेखी की गई और अशोक गहलोत को सीएम बना दिया। यहां सचिन ने जहर का घूंट पिया। सरकार बनने के बाद सचिन को समय-समय पर नीचा दिखाने की कोशिश हुई।
अपने प्रभाव से मृत कांग्रेस को जिंदा किया। नतीजा यह हुआ कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। सबको मालूम था कि सचिन पायलट ही प्रदेश के सीएम होंगे, लेकिन यहां पर भी युवाओं की अनदेखी की गई और अशोक गहलोत को सीएम बना दिया। यहां सचिन ने जहर का घूंट पिया। सरकार बनने के बाद सचिन को समय-समय पर नीचा दिखाने की कोशिश हुई। अंत में सचिन का सब्र जवाब दे गया और उन्हें बगावत का रास्ता अपनाना पड़ा।
सवाल या नहीं कि सचिन ने बगावत क्यो की। पार्टी को उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है आखिर युवा नेता बगावत क्यों कर रहे हैं? उनकी महत्वाकांक्षाओं को दबाने की कोशिशें क्यों हो रही हैं? उनकी काबिलियत की कमाई पर मलाई कोई और क्योंन खा रहा है? ऐसे तमाम सवाल देश के अंदर उठ रहे हैं। कांग्रेस को यदि फिर से उठना है। जिंदा होना है तो गहराई से चिंतन करना होगा। इतना ही नहीं कड़े फैसले लेने होंगे। ऐसा नहीं कि कांग्रेस फिर से खड़ी नहीं हो सकती। हो सकती है। आज भी देश भर में कांग्रेस का वजूद जिंदा है। बस उसे अपने गिरेबान में ईमानदारी से झांकना होगा।
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