फिल्म 'जन्नत-2' अवैध हथियार बेचने वाले सोनू और उसे
डराकर अपना मुखबिर बनाने वाले पुलिस ऑफिसर प्रताप की कहानी है। प्रताप
चाहता है कि सोनू हथियार डीलरों के बीच रहकर उनके सुराग पुलिस को दे, जबकि
सोनू क्राइम वर्ल्ड छोड़कर अपनी प्रेमिका डॉक्टर जाह्ववी के साथ अच्छी
जिंदगी गुजारना चाहता है। लेकिन क्या यह किस्मत को मंजूर है...
यह एक और ऐसी कमजोर फिल्म है, जिसे देखकर लगता है कि भट्ट कैंप की सुनहरी फिल्मों का दौर चला गया। शायद अब थोड़ी भी इंटेलिजेंट ऑडियेंस के लिए फिल्म नहीं बनाई जा रही। हालांकि फिल्म में सबसे प्रभावी रोल एसीपी प्रताप यानी रणदीप हुड्डा का है, फिर भी मैं हैरान हूं कि किस तरह एक पुलिस ऑफिसर रोज बार-बार अपनी मरी हुई बीवी की आवाज आनसरिंग मशीन पर सुनने के लिए सिक्के वाले फोन से कॉल करता है।
क्या सोचकर एक पढ़ी-लिखी डॉक्टर, एक आवारा सड़क छाप लड़के से इंप्रेस्ड हो जाती है और उसके साथ शादी करने के लिए भी राजी हो जाती है। यह कौन सा हॉस्पिटल है, जिसे बचाने के लिए लेडी डॉक्टर फंड इकट्ठा कर रही है। बेहतरीन हथियार बनाने वाले कारीगर को उसका मालिक इनाम नहीं देता, बल्कि उसके हाथ पर गोली चला देता है।
'जन्नत-2' में न तो हथियारों की डीलिंग को लेकर कोई सीरियसनेस दिखती है और न ही लव स्टोरी में। बात-बात पर गालियों का इस्तेमाल किया गया है, जो कभी-कभार तो जरूरी भी नहीं लगती। इमरान और ईशा गुप्ता के बीच केमिस्ट्री नाम की कोई चीज ही नहीं है। आखिरी आधे घंटे में जरूर डायरेक्टर कुणाल देशमुख ने फिल्म संभाली है, जब पुलिस, आर्म्स डीलर और मुखबिर आमने-सामने आ जाते हैं। तकनीक के मामले में फिल्म बेहतर है।
फिल्म में एक दिलचस्प सीन है...हथियारों का डीलर अपनी गैंग की तरफ इशारा करके कहता है कि यह सलमान है, वह शाहरुख है और मैं अमिताभ हूं। पुलिस ऑफिसर जवाब देता है, फिर तो पिक्चर बनेगी। सबसे बेहतरीन रोल रणदीप हुड्डा का है, जबकि लीड कैरेक्टर इमरान हाशमी सबसे कमजोर।
बोल्ड सीन्स के बावजूद नई एक्ट्रेस ईशा गुप्ता कोई सनसनी नहीं पैदा कर पाईं। 'जन्नत-2' तभी देखें, जब आप इमरान हाशमी के बहुत बड़े फैन हों। वैसे यह कोई मजाक नहीं है। इस फिल्म के लिए रेटिंग है
यह एक और ऐसी कमजोर फिल्म है, जिसे देखकर लगता है कि भट्ट कैंप की सुनहरी फिल्मों का दौर चला गया। शायद अब थोड़ी भी इंटेलिजेंट ऑडियेंस के लिए फिल्म नहीं बनाई जा रही। हालांकि फिल्म में सबसे प्रभावी रोल एसीपी प्रताप यानी रणदीप हुड्डा का है, फिर भी मैं हैरान हूं कि किस तरह एक पुलिस ऑफिसर रोज बार-बार अपनी मरी हुई बीवी की आवाज आनसरिंग मशीन पर सुनने के लिए सिक्के वाले फोन से कॉल करता है।
क्या सोचकर एक पढ़ी-लिखी डॉक्टर, एक आवारा सड़क छाप लड़के से इंप्रेस्ड हो जाती है और उसके साथ शादी करने के लिए भी राजी हो जाती है। यह कौन सा हॉस्पिटल है, जिसे बचाने के लिए लेडी डॉक्टर फंड इकट्ठा कर रही है। बेहतरीन हथियार बनाने वाले कारीगर को उसका मालिक इनाम नहीं देता, बल्कि उसके हाथ पर गोली चला देता है।
'जन्नत-2' में न तो हथियारों की डीलिंग को लेकर कोई सीरियसनेस दिखती है और न ही लव स्टोरी में। बात-बात पर गालियों का इस्तेमाल किया गया है, जो कभी-कभार तो जरूरी भी नहीं लगती। इमरान और ईशा गुप्ता के बीच केमिस्ट्री नाम की कोई चीज ही नहीं है। आखिरी आधे घंटे में जरूर डायरेक्टर कुणाल देशमुख ने फिल्म संभाली है, जब पुलिस, आर्म्स डीलर और मुखबिर आमने-सामने आ जाते हैं। तकनीक के मामले में फिल्म बेहतर है।
फिल्म में एक दिलचस्प सीन है...हथियारों का डीलर अपनी गैंग की तरफ इशारा करके कहता है कि यह सलमान है, वह शाहरुख है और मैं अमिताभ हूं। पुलिस ऑफिसर जवाब देता है, फिर तो पिक्चर बनेगी। सबसे बेहतरीन रोल रणदीप हुड्डा का है, जबकि लीड कैरेक्टर इमरान हाशमी सबसे कमजोर।
बोल्ड सीन्स के बावजूद नई एक्ट्रेस ईशा गुप्ता कोई सनसनी नहीं पैदा कर पाईं। 'जन्नत-2' तभी देखें, जब आप इमरान हाशमी के बहुत बड़े फैन हों। वैसे यह कोई मजाक नहीं है। इस फिल्म के लिए रेटिंग है
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