इसे अश्लीलता न समझा जाए
कोतमा. इस हैवानियत के नंगे नाच की वजह। वजह सिर्फ एक सवाल साहब को इस पत्रकार की जुर्रत रास नहीं आई। साहब अपने मातहतों के साथ मिलकर किसी भेडिय़ों के दल की तरह टूट पड़े। दरअसल, एक अखबार के स्थानीय संवाददाता अरुण त्रिपाठी एक महिला के साथ थाने गए हुए थे। इस महिला की बेटी की लाश एक लॉज में लटकी मिली थी। इस संबध में महिला को बुलाकर पूछताछ की जा रही थी। परिजनों का आरोप है कि यह मामला आत्महत्या का नही बल्कि हत्या का है। जिसे पुलिस जबरिया तरीके से आत्महत्या साबित करने पर तुली हुई थी। इसके लिए महिला को माँ बहन की गालियों से संबोधित किया जा रहा था जिस पर अरुण ने आपत्ति की।
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अरुण का कसूर सिर्फ इतना है कि उसने एक सवाल किया। एक सवाल के जवाब के निशान आप उसके शरीर पर साफ देख सकते हैं। शरीर का कोई अंग शायद ही साबुत बचा हो जिस पर जख्म न हों। जख्म शरीर पर जितने हैं उससे ज्यादा शायद दिल में और मन में हैं। अरुण का कसूर सिर्फ इतना है कि उसने अनूपपुर जिले के कोतमा के एसडीओपी के एल बंजारा से एक सवाल कर अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। पत्रकार की यह हिमाकत खाकी के गुरु को रास नहीं आई, और न सिर्फ पत्रकार की पंचिंग बैग की तरह जमकर धुनाई की गई बल्कि उसे विवश किया गया अभक्ष्य चीज खाने के लिए।
जी हाँ, पत्रकार को थूक चाटने को विवश किया गया। अब आपको बता देते हैं इस हैवानियत के नंगे नाच की वजह। वजह सिर्फ एक सवाल साहब को इस पत्रकार की जुर्रत रास नही आई। साहब अपने मातहतों के साथ मिलकर किसी भेडिय़ों के दल की तरह टूट पड़े। दरअसल, एक अखबार के स्थानीय संवाददाता अरुण त्रिपाठी एक महिला के साथ थाने गए हुए थे। इस महिला की बेटी की लाश एक लॉज में लटकी मिली थी। इस संबध में महिला को बुलाकर पूछताछ की जा रही थी। परिजनों का आरोप है कि यह मामला आत्महत्या का नही बल्कि हत्या का है। जिसे पुलिस जबरिया तरीके से आत्महत्या साबित करने पर तुली हुई थी।
इसके लिए महिला को माँ बहन की गालियों से संबोधित किया जा रहा था जिस पर अरुण ने आपत्ति की। बस इतनी सी खता पर बंजारा खाकी के गुरुर रौब के चलते पत्रकार पर पिल पड़े। पहले तो लात जूतों से खुद ने पिटाई की इसके बाद अपने सात आठ मातहतों के हवाले कर दिया। ताकि वे भी हाथ साफ कर सकें। लगातार चार घंटों तक बंद कमरे में गाली गलौज के साथ अरुण की रुई की तरह धुनाई की जाती रही। कहाँ थाने पहुँचे थे अरुण और कहाँ जा पहुँचे अस्पताल। इतनी बुरी तरह पिटाई के बाद भी साहब का गुस्सा कम नही हुआ। पुलिस ने धारा 353 और 332 के तहत मामला कायम कर लिया है और अभी भी अरुण पुलिस अभिरक्षा में है भूखे हैवानों के साए में।
मानवाधिकारों के लिए जागरुकता वाले इस युग में जब किसी शातिर अपराधी तक की इस बेरहमी से पिटाई नही की जाती। लेकिन खाकी के आगे सारे कायदे धरे रह जाते हैं। फिलहाल अधिकारी और पत्रकार मिलने पहुँच रहे हैं लोकतंत्र के इस पहरुए से जिसने झेला है खाकी के खौफ का दंश। बेखौफ खाकी ने पत्रकार पर गंभीर धाराएं लगा दी हैं। क्या यही है हमारे शिवराज के स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सच? क्या यही है दुनिया का वो हमारा सबसे बड़ा लोकतंत्र जिसका दम भरते हम नही थकते? कैसी है यह आजादी जहाँ सवाल पूछने की सजा इतनी सख्त है?
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