डॉ. शशि तिवारी
जल, जंगल और ज़मीन आदि अनादि काल से ही मानव को आर्किर्षत करते आए हैं और करे भी क्यों न आखिर इनसे मानव का जीवन जो जुड़ा है, इतना ही नहीं प्रकृति की ये तीनों चीजें मानव स्वास्थ्य के लिये एक त्रिफला बन जीवन दायक भी है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान कहता है उचित मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्यवर्धक है वही अति नुकसानदायक, कहते भी है ‘‘अति सर्वत्र बर्जते।’’
प्रकृति ने हमारे प्रदेश को प्रकृति के त्रिफल से मालामाल किया है लेकिन, हमारे लालच एवं पैसों की हवस ने इन पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है, कहते भी है प्रकृति हमारी सभी आवश्यकताओं की तो पूति कर सकती है लेकिन लालचियों के लालच की नहीं? इतिहास गवाह है प्रकृति के इस त्रिफल को हमने देवता एवं माँ का दर्जा दिया है। जैसे एक शिशु माँ का दूध पी पलता-बढ़ता है यदि वह उसी के साथ अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर अत्याचार, प्रेम, वात्सल्य के दिल पर छेद करे, उसी का अवैध व्यापार करे ऐसे अधम, निर्लज्ज, पापी, दुष्ट, नीच दुराचारी संतान का न होना ही ठीक है।
आज प्रकृति के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है प्रदेश के कुछ कपूत धरती माँ के गर्भ की अमूल्य संपदा का अवैध खनन कर व्यापार में इस कदर अंधे हो गए हैं कि उनके सोचने-समझने की शक्ति ही जाती रही है? शायद अवैध का आकर्षण ही ऐसा है? फिर बात चाहे अवैध बीवी की हो, संतान की हो या संबंधों की हो ये दबंग ही होंगे, अवैध के चलते ही शुरू होता है हत्याओं का सिलसिला ! ये माफिया अवैध के धंधे में किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।
विगत दो माह में शासकीय अधिकारियों पर माफियाओं द्वारा हुए ताबड़तोड़ हमलों ने सरकार के माथे पर न केवल चिंता की लकीर खींच दी बल्कि पार्टी की भी भारी बदनामी परोक्ष रूप से जुड़े रहने के कारण हुई है। मुरैना जिले के जाबाज एस.पी. नरेन्द्र कुमार की हत्या से शुरू हुई कहानी आज तक जारी है, चूंकि नरेन्द्र का मामला वर्तमान में सी.बी.आई जांच में है तेा जांच के निष्कर्ष ही बतायेंगे कि यह हत्या थी या हादसा। टिकमगढ़ के लिघौरा थाना क्षेत्र में रेत खदान को कब्जे में ले दो गुटों के खूनी संघर्ष में एक बलि की वेदी चढ़ गया। इसी तरह शाजापुर के निछमा गांव में बन्ने सिंह राजपूत एवं उसके लड़के को खनिज माफिया ने मौत के घाट उतार दिया, हकीकत में देखे तो बन्ने सिंह ने पहले ही कलेक्टर को अवैध खनन की जानकारी दे दी थी, लेकिन लापरवाह प्रशासन ने इस पर कोई तवज्जों नहीं दी और यदि देता तो यह घटना होती ही नहीं?
श्योपुर में भी पत्थर माफिया ने वन विभाग के परिक्षेत्राधिकारी राजू गौड़ पर भी हमला बोला गया। इसी तरह कन्नोद के कुसमानिया में महिला तहसीलदार मीना पाल को खनन माफिया द्वारा जे.सी.बी. मशीन से कुचलने का असफल प्रयास किया गया वो तो महिला की किस्मत अच्छी थी कि वो नाले में कूंद गई और जान बच गई। इस प्रकरण में भाजपा जनपद अध्यक्ष धारा सिंह पटेल सहित करीब सात लोगों के विरूद्ध विभिन्न धाराओं के तहत् प्रकरण पंजीबद्ध किया गया। हालांकि इस मुद्दे पर राजनीतिक सियासत अब उबाल मारने लगी है, इन सभी उदाहराणों से ऐसा लगता है कि क्या वाकई में म.प्र. में जंगल राज आ गया है? क्या अधिकारियों एवं नेताओं के बीच का गठजोड़ और भी मजबूत हो गया है? वैसे भी देखे तो हम पाते हैं कि अवैध खदानों में सीध या परोक्ष संबंध भी ऐसी ही लोगों का है ऐसा शक होने लगता है कि कहीं प्रशासन एवं राजनीति की मिलीभगत ने माफियाओं को कहीं परोक्ष छूट तो नहीं दे रखी है।
अभी तक तो माफियाओं के निशाने पर पुरूष ही रहे लेकिन अब महिला अधिकारी भी इनका शिकार बनने लगी हैं यह न तो प्रदेश के लिये शुभ संकेत है और न ही भाजपा के लिये? इन खनिज माफियाओं की हिम्मत तो देखिये कि अधिकारी एंव पुलिस पर बेखोफ हो जान पर हमला करते हैं। बुन्देलखण्ड में रेत माफियाओं ने तो बकायदा अस्थाई पुल बना रेत खनन के कार्य को धड़ल्ले से अंजाम दिया। जब सरकारी अधिकारी इस अस्थाई पुल को तोड़ने पहुंचे तो माफियाओं की तरफ से गोलीबारी भी की गई कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रदेश में अधिकारी ही सुरक्षित नहीं है तो इन माफियाओं के विरूद्ध कार्यवाही कैसे होगी? यहां वर्तमान सरकार को बिना नफा-नुकसान के छवि बनाए रखने के लिये इन माफियाओं के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करना ही होगी फिर चाहे भले ही वह पार्टी का ही आदमी या चंदा देने वाला ही क्यों न हो?
ऐसा लगता है कि माफियाओं के दिमाग में एक बात घर कर गई है कि हम सरकार और पार्टी दोनों को पैसा दे चला रहे हैं। आए दिन इस तरह की घटना में बढ़ोत्री भाजपा के हैट्रिक के लिये शुभ संकेत नहीं है। यदि चुनाव में परिणाम उलट पड़ते हैं तो यह न समझे की कांगे्रस ने हराया बल्कि ये समझे कि जिस तरह टूटी सड़को, कर्मचारियों के गुस्से ने कांग्रेस को अपदस्थ किया कहीं वहीं इतिहास न दोहरा जाए।
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