फर्जी सालवेंसी से बने करोड़पति
विनय जी डेविड (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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लोक
निर्माण विभाग ठेकेदारों और कथित बिचौलियों के हाथों का खिलौना बन गया है।
एक और करोड़ों के ठेके फर्जी ठेकेदारों ने हथिया रखे हैं, वहीं अस्थाई
प्रभारी मुख्यय अभियंताओं को प्लांटेशन की मानिन्द इधर-उधर रोपा जा रहा है।
इस लचर व्यवस्था से हर अधिकारी जिम्मेदारी ओढऩे के बजाय गैर जिम्मेदाराना
रवैया अखित्यार करते नजर आ रहे हैं। विभाग में इंजिनीयरों की कमी और सरकार
के सौतेले व्यवहार को भांपकर बुजुर्ग अधिकारियों ने अपने चहेतों को विभिन्न
श्रेणियों में पंजिकृत कराकर स्वयं पार्टनर बन गये हैं। चेहरे पर
सलवटें चढऩे के बावजूद कांपते हाथों वाले अपना रूतबा बखूबी गांठते हुए
विभाग के बजट का एक मोटा हिस्सा बंदरबांट कर रहे हैं। यह सब देखने की फुरसत
सरकार के पास नहीं है।
लोक निर्माण विभाग की वेबसाईट खोलकर देखी जाए तो
मालूम पड़ेगा कि इस भारी भरकम विभाग में 1236 ठेकेदार विभिन्न श्रेणियों
में पंजीकृत हैं वर्ष 2009 की स्थिति में अ-5 श्रेणी के 404 ठेकेदार अ-4
श्रेणी के जनवरी 2007 की स्थिति में 385 ठेकेदार तथा अ-3 श्रेणी के जुलाई
2007 की स्थिति में 449 ठेकेदार पंजीकृत हैं। तकनीकी तथा वैधानिक दृष्टि से
देखा जाए तो इन सारे ठेकेदारों के पंजियन अवैध हो चुके है। क्योंकि 6 माह
के शोध पत्र के आधार पर विभाग ने इनका पंजीयन 5 वर्ष की अवधि के लिए कर
दिया है। पंजियन में जो शोधपत्र प्रयुक्त किए गए है, वह भी एक चौथाई
कूटरचित है जिनकी पुष्टि कराने की जरूरत तक नहीं समझी गई। हद तो तब हो गई
कि कुछ ठेकेदारों ने तो बैंकों के नाम से फर्जी एफडीआर बनवाकर पंजीयन में
लगाई और करोड़ों के काम हथिया लिए। भारी भरकम अमले की मौजूदगी के बाद भी
कोई फाइलों के पन्ने पलटने की जहमत नहीं उठाता कल पुर्जों से खेलने वाले इन
लोगों से और क्या उम्मीद की जा सकती है।
प्रदेश सरकार के भारी भरकम बजट
वाले इस विभाग के पास तीन श्रेणियों में 1236 पंजिकृत ठेकेदारों की फौज और
भरापूरा अधिकारियों का अमला मौजूद है। जिसमें दो चार को छोड़ शेष हराम की
तनखाह वसूल रहे है। सरकार के नीतिनिर्धारिकों में जातिगत जहर घोलकर
इंजीनियरों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी है। जिसमें आये दिन कोई न कोई अपना
सिर मारता नजर आता है। इस शीत शुद्ध का लाभ उन सेवानिवृत कमटी अधिकारियों
ने उठाया और किसी फर्म में भागीदार बनकर शासकीय खजाने में दीमक की तरह
प्रवेश कर गए। विभाग की वेबसाइट पर समाचार लिखे जाने तक जो जानकारी पाई गई
है वह या तो जनवरी 2007 की स्थिति की है या जुलाई 2009 की। शासकीय विभागों
की जानकारियां वेबसाइट पर अपलोड करने के पीछे शासन कीयह मंशा थी कि इससे
विभाग की कार्यशैली में निखार आएगा और जानकारी उपलब्ध हो सकेगी। और विभागों
की कार्यों तथा कार्यक्षमताव प्रगति का पता चल जाएगा, किन्तु लोक निर्माण
विभाग वे दो वर्ष पीछे चल रहा है। लोक निर्माण विभाग में अ-5 श्रेणी के 404
ठेकेदार पंजीकृत है इनकी अह्र्ताओं में पंजियन हेतु दो लाख रूपए की किसी
बैंक द्वारा जारी एफडीआर तथा कलेक्टर द्वारा जारी बीस लाख का सशत्रपरित्रा
शोध क्षमता प्रमाण पत्र (सालवेंसी) या 20 लाख की एफडीआर या बैंक गांरटी
शामिल है। इसी प्रकार अ-4 श्रेणी में एक लाख रूपए को बैंक द्वारा जारी
एफडीआर तथा बैंक गारंटी या कलेक्टर द्वारा जारी संपत्ति शोध प्रमाण पत्र
एवं अ-3 श्रेणी में 60.000 हजार रूपए की एफडीआर तथा बैंक गारंटी और कलेक्टर
का संपत्ति शोध प्रमाण पत्र आवश्यक है। विभाग ने पंजीकृत ठेकेदार से
पंजीयन के समय उक्त अर्हताए तो पूरी कार्यवाही किन्तु ठेकेदारों आधिकारियों
एवं कर्मचारियों का घालमोल अरसे से इस प्रक्रिया में सेध लगा रहा है।
पंजियन पांच वर्ष के लिए किया जाता है तथा शोध प्रमाण पत्र छ: वर्ष का लिया
जाता है। इस नियम के पीछे शासन की मंशा यह रही होगी कि यदि ठेकेदार बीच
में काम छोड़ देता है अथवा भुगतान अधिक प्राप्त कर लेता है तो इस एफडीआर न
शोध प्रमाण पत्र के जरिये उस सशत्रपरित्रा के राजसात कर विभाग की भरपाई की
जा सके। किन्तु इस प्रक्रिया के अगले चरण में ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत
एफडीआर बैंक गारंटी व सशत्रपरित्रा शोध प्रमाण पत्र का सत्यापन विभाग
द्वारा जारी करने वाले अधिकारी से करवाया जाना अनिवार्य है। किन्तु बीच का
रास्ता निकलते हुए विभाग सत्यापन हेतु एक साधारण चि_ी बनाकर ठेकेदार को ही
पकड़ा देता है। और ठेकेदार हाथों हाथ पुष्टि पत्र लाकर विभाग को थमा देता
है। पिछले एक वर्ष में ही कलेक्टर भोपाल द्वारा श्री तेजन्दर सिंह सलूजा
अ-5 श्रेणी ठेकेदार राजेन्द्र सक्सेना ठेकेदार के विरूद्ध फर्जी संपत्ति
शोध प्रमाण पत्र बनाने व उसका कपटपूर्ण उपयोग करने की पुलिस में प्रथम
सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुरूषोत्तम राजानी विद्याराम राजानी अ-5
श्रेणी ठेके दार के विरूद्ध मामला जहांगिराबाद थाने अंतर्गत विवेचना में
है। इसी प्रकार कुलदीप अवस्थी अ-5 श्रेणी ठेकेदार के विरूद्ध दस लाख रूपए व
दो लाख रूपए की स्टेट बैंक आफ इंडिया दतिया शाखा के नाम पर फर्जी बनवाकर
पंजीयन में उपयोग करने का मामला जहांगीराबाद थाने में ही विवेचनाधीन है यह
मामले स्वयं ही विभाग की कार्यशैली की कहानी बयां करते हैं। कुलदीप अवस्थी
के मामले में विभाग में आदना कर्मचारी से लेकर विभाग के तत्कालीन प्रमुख
अभियंता आनंद कुमार सलेट तक ने भी बहती गंगा में हाथ धोने का लाभ उठाया है।
ठेकेदार ठेकेदार कुलदीप अवस्थी का मामला तो अत्यंत रोचक और दिलचस्प है
सस्पेन्स और साजिश से भरी किसी फिल्मी कथानक से कम नहीं है। उक्त ठेकेदार
विभाग में पूर्व से ही अ-4 श्रेणी में पंजीकृत था, वर्ष 2005 के अन्त में
उसने अ-4 से अ-5 श्रेणी मेंं पंजीयन हेतु विभाग में अपना आवेदन प्रस्तुत
किया जहां अ-5 श्रेणी हेतु 750 लाख के कुल कार्य तथा 150 लाख का एकल कार्य
अनिवार्य मापदण्ड है। वहीं विभागीय नोट सीश में इस टीप से साथ कि उक्त
अनिवार्यता के बावजूद ठेकेदार द्वारा 716161 लाख के कुल कार्य तथा 341, 40
लाख के एकल कार्य सम्मिलित है जो पिछले तीन वर्षों में किए गए है।
प्रकरण
दिनांक 19.12.05 को प्रमुख अभियंता एके ऐलट को प्रस्तुत किया इस टीप के साथ
कि ठेकेदार द्वारा रेवेन्प्यु सालवेन्सी के स्थान पर एफडीआर देने का
उल्लेख भी आवेदन में किया गया है। जो दिनांक 30.08.05 को भरतीय स्टेट बैंक
दतिया शाखा द्वारा जारी एवं एक वर्ष के लिए वैद्य बताकर सीढ़ी पर सीढ़ी
प्रस्तुत की गई। साथ ही विभागीय कार्यवाही न होने का शपथ पत्र भी लिया गया,
समस्त औपचारिकता के बाद पंजीयन समिति द्वारा दिनांक 9 जनवरी को पंजीयन को
स्वीकृत प्रदान कर 19 जनवरी को प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। दिनांक 19
जनवरी 2005 को ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दतिया शाखा को बारह लाख की दो
एफडीआर एवं 25 लाख की बैंक गारंटी की पुष्टि (सत्यापन) हेतु पत्र जारी कर
दिया गया। यह पत्र 23 जनवरी को हस्तांतरिक होकर दतिया भेजा गया जो बैंक के
उस्त्रार में फर्जी पाई गई। इसी बीच साजिश कर ठेकेदार द्वारा अ-4 श्रेणी के
वर्ष 2003 में पंजीयन के समय केन्द्रीय सहकारी बैंक दतिया द्वारा जारी की
गई क्रमश: 40 एवं 60 हजार की एफडीआर हथिया ली। दिनांक 14.12.06 को बिना
पुष्टि कराये ठेकेदार को वापस कर दी गई। इसी बीच दतिया का एक एफडीआर फर्जी
होने का पत्र विभाग को प्राप्त हो चुका था जिसे दबा दिया गया। साजिश के इस
अनोखे पहलू पर नजर डाली जाए तो देखेंगे कि ठेकेदार द्वारा किए गए
फर्जीवाड़े से बनवाई गई एफडीआर फर्जी होने के बावजूद आज तक एफआईआर दर्ज
नहीं कराई गई और ठेकेदार शान से ठेके लेता रहा। लगभग ग्यारह माह बाद
ठेकेदार को पुलिस का भय दिखाकर जुलाई 2006 में विभाग के प्रमुख अभियंता को
ठेकेदार का पंजीयन निरस्त कर अपने कर्तव्य से छुटकारा पा लिया और बिना
एफआईआर कराये फाइल बंद कर दी। इसी बीच एक नाटकीय घटना कृम के तहत उक्त
ठेकेदार के पुत्र तथा पत्नि जो निरस्त फर्म के भागीदार थे के नाम से नया
पंजीयन कर दिया गया जबकि मापदण्डों के अनुसार आवश्यक अर्हताओं में ठेकेदार
के कार्यों को ही दर्शाया गया था यानि पूर्ण तह योजनाबद्ध रूप से मुख्य
अभियंता ने उक्त ठेकेदार का साथ दिया जग जाहिर है बिना मीठे के कोई जूठा
नहीं खाता। इस बीच मार्च 2009 में प्रमुख्य अभियंता सेलट विभाग से मुक्त
होकर सीटीई बना दिए गए। ठेकेदार अवस्थी के दो वर्ष तक शांत रहने के बाद
जिन्न की तरह प्रकट हुआ और एफडीआर जो फर्जी थी वापस करने आवेदन कर दिया और
फाईल पुन: पुर्नजीवित हो गई। शिकायत होने पर दिनांक 20 मई 2009 को एफडीआर
वापस नहीं की जा सकती आदेश के साथ फाईल बन्द कर दी गई।
जबकि विभाग के
ठेकेदार के विरूद्ध पुलिस को जनना चाहिए था। लोनिवि की इस लचर व्यवस्था का
नाजायज लाभ फर्जी दस्तावेज से करोड़ों के ठेके आज भी बदस्तूर जारी है। एक
शिकायत पर पुलिस अधिक्षक भोपाल ने थाना जहांगीराबाद को मामला विवेचना में
दे दिया है। बताया जा रहा है कि विभाग के पास नस्ती नहीं।
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