ब्यूरो प्रमुख // संतोष प्रजापति (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल. जिले में फिल्मों का असर कहे या मानवीय अधिकारो के प्रति जागरूकता का प्रभाव भरी अदालत में एक गवाह ने अपने मानवीय अधिकारों की दुहाई देते हुए समक्ष न्यायालय को ही संकट में डाल दिया। अपनी गिरफ्तारी और उसे अपराधी की तरह न्यायालय में लाने पर सवाल उठाने वाले सरकारी गवाह ने न्यायालय से जब सवाल-जवाब करने शुरू किए तो न्यायालय भी पेशोपश की स्थिति में आ गया।
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पुलिस थाना सारणी के अंतर्गत पुलिस चौकी पाथाखेड़ा के अपराध क्रमांक 227/10 में फरियादी मीना पंवार निवासी अंबेडकर नगर पाथाखेड़ा ने 6 जुलाई 2010 को दहेज प्रताडऩा और क्रूरता का अपराध अपने पति रमेश, शिवशंकर, ससुर लल्लु, सास कमलाबाई के विरूद्ध दर्ज करवाया गया। पुलिस अधीक्षक को दिए गए आवेदन पत्र पर कार्यवाही करते हुए पुलिस चौकी ने अपराध धारा 498(क) तथा 3,4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम का अपराध पंजीबद्ध कर तहकीकात के बाद आरोप पत्र न्यायालय में आरोप पत्र पेश कर दिया गया था। न्यायालय न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी, आनंद जाम्भुलकर की अदालत के दाडिक प्रकरण क्रमांक 1589/10, शासन विरूद्ध रमेश व अन्य में आरोप पत्र के अनुसार कुल 9 गवाह हैं।
प्रमुख गवाहों का अदालत में परीक्षण किया जा चुका हैं। पुलिस चौकी पाथाखेड़ा से गिरफ्तारी वारंट के तहत पेश किए गए गवाह शंकर पिता पाण्डु डोंगरे ने न्यायिक अधिकारी से पुछा कि अदालत ने मुझे गवाही देने के लिए समनस, जमानती वारंट कब कब जारी किया हैं? पुलिस मुझे सीधे गिरफ्तारी वारंट से कैसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर सकती हैं? सवाल का जवाब पुलिस के पास तो मौजूद था। पुलिस चौकी के आरक्षक के पास न्यायालय से जारी किया गया गिरफ्तारी वारंट था। न्यायिक अधिकारी ने बड़ी ही शालीनता से गवाह के सवालों को सुना और खामोश ही रहे। गवाह को तलब किए जाने की प्रक्रिया पर न्यायिक अधिकारी ने कुछ प्रतिउत्तर नहीं दिया। न्यायिक अधिकारी के समक्ष सवाल उठाने वाला शंकर कोयला कंपनी में कोयला कामगार हैं और क्षत्रिय पवांर समाज, पाथाखेडा, का अध्यक्ष हैं। अगर मामला किसी विधायक, सांसद और मंत्री का होता तो भला क्या होता?
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