कोल'गेट' करप्शन में शिवराज भी शामिल
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कोयले की कालिमा बढ़ती जा रही है। पिछले तीन दिनों से सीएजी की रिपोर्ट पर संसद का काम काज ठप है। भाजपा जहां प्रधानमंत्री के बयान से आगे इस्तीफा मांग रही है वही सरकार के संसदीय कार्यमंत्री राजीव शुक्ला ने कहा है कि भाजपा संसद इसलिए नहीं चलने दे रही है क्योंकि अगर कोयले की कालिख साफ होनी शुरू होगी तो भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों के चेहरे भी बेनकाब हो जाएंगे. राजीव शुक्ला ने सीधे तौर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का नाम लिया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कुछ खास लोगों को कोयला ब्लाक आवंटित करने का आग्रह किया था। बात सही है। कोयले का दाग शिवराज के दामन पर भी हैं।
टू-जी स्पैक्ट्रम की तर्ज पर संसद में पेश सीएजी की रिपोर्ट तमाम निजी कंपनियों को कोल ब्लाकों का आवंटन किया गया, जिसके चलते सरकारी खजाने को 1 करोड़ 86 लाख करोड़ रुपए की चपत का अनुमान है, इस मुद्दे पर इलेक्ट्रानिक चैनलों ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया तो भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से इस्तीफा मांग लिया, क्योंकि जिस वक्त ये कौल ब्लाकों का आवंटन हुआ, तब मनमोहन सिंह के पास ही कोयला मंत्रालय का जिम्मा भी था। इस पूरे मामले में चौकाने वाले तथ्य यह है कि अगर कैग की इस रिपोर्ट को सही मान लिया जाए तो कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा को भी जवाब देना मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि तमाम राज्यों में जो कोल ब्लाक यानी खदानें हैं, उनका आवंटन राज्य सरकार की अनुशंसा के बाद ही केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है और कैग ने अपनी रिपोर्ट में रिलायंस पॉवर को 29 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा पहुंचाने का आरोप कौल ब्लाकों के आवंटन के जरिए लगाया है और इस मामले में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और खासकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के हाथ भी काले नजर आते हैं, क्योंकि रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट का एमओयू प्रदेश की भाजपा सरकार ने ही अनिल अंबानी के साथ किया, जिसके आधार पर प्रदेश में कोयला खदानें कंपनी को आवंटित की गई, ताकि पॉवर प्रोजेक्ट के लिए कोयला निकाला जा सके।
दरअसल कैग ने अपनी रिपोर्ट में रिलायंस पॉवर को कोयला खदानों के आवंटन के 29 हजार करोड़ रुपए का फायदा पहुंचाने का जो आरोप लगाया है, उसका एमओयू इंदौर की अक्टूबर 2007 में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में ही किया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के साथ अनिल अंबानी भी मौजूद थे और उन्होंने मध्यप्रदेश में लगने वाले रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट के लिए एमओयू कर 50 हजार करोड़ रुपए के निवेश का दावा किया गया।
इंदौर में अक्टूबर 2005 में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट में की मीट में साइन किए गए इस एमओयू के आधार पर ही प्रदेश सरकार और खासकर मुख्यमंत्री ने न सिर्फ सासन पॉवर प्रोजेक्ट के लिए 991 हेक्टेयर वन भूमि के आवंटन की प्रक्रिया शुरू की, बल्कि अतिरिक्त कौल ब्लाक आवंटन में भी मदद की गई।
दरअसल जब रिलायंस पॉवर के साथ प्रदेश सरकार ने एमओयू साइन किया, तब उसे अपने सासन अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट के लिए मोहेर के साथ मोहेर अमलोहरी को ब्लाक का आवंटन ही किया गया था, लेकिन बाद में रिलायंस पॉवर ने अनुमति मांगी कि उसे छत्रसाल ब्लाक से भी कोयला खनन की अनुमति दी जाए, जिसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर अतिरिक्त छत्रसाल ब्लाक आवंटित यानी कोयला खनन करने की इजाजत रिलायंस पॉवर के लिए मांगी और कैग ने अपनी इस रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया है। मुख्यमंत्री ने यह अनुमति नवंबर 2007 में प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के जरिए मांगी। अब अगर कैग की रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट में 29 हजार करोड़ रुपए का अवैध मुनाफा कोल ब्लाक आवंटन के जरिए कमाया तो इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की भी जवाबदेही बनेगी, क्योंकि एक तरफ उन्होंने न सिर्फ इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में अनिल अंबानी के साथ 50 हजार करोड़ रुपए का एमओयू साइन किया और सासन स्थित रिलायंस के अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए प्रदेश की कोयला खदानों का आवंटन किया, बल्कि रिलायंस के अनुरोध पर इससे अतिरिक्त कोल ब्लाक भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर दिलवाए। अब अगर भाजपा प्रधानमंत्री से इस कोयले के महाघोटाले पर इस्तीफा मांगती है तो उसे प्रदेश के मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी जवाब तो देना ही होंगे। इस महाघोटाले ने अगर तूल पकड़ा तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी जवाब देना न सिर्फ भारी पड़ेगा,बल्कि उनकी तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारियों पर भी असर पड़ेगा।
एक तरफ प्रदेश सरकार ने रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट के साथ इंदौर में 50 हजार करोड़ रुपए का एमओयू साइन किया। दूसरी तरफ रिलायंस के साथ-साथ एस्सार पॉवर के साथ महंगी बिजली खरीदने का करार अलग कर डाला, जिस पर वित्त विभाग ने भी आपत्ति जताई थी। दरअसल, एमपी पॉवर ट्रेडिंग कंपनी ने 2007 में अगले दो दशक के लिए 2,000 मेगावाट बिजली खरीद के टेंडर निकाले और इसमें रिलायंस पॉवर के साथ एस्सार पॉवर ने भी हिस्सा लिया। रिलायंस ने 1241 मेगावाट और एस्सार ने 450 मेगावाट बिजली देने का प्रस्ताव रखा। रिलायंस ने 2 रु. 70 पैसे और एस्सार ने 2 रुपए 95 पैसे प्रति यूनिट तय किया और बाद में दोनों ही कंपनियों ने 2 रुपए 45 पैसे प्रति यूनिट पर सहमति दे दी, तभी रिलायंस ने प्रदेश सरकार को बताया कि केंद्र ने सिंगरौली जिले के सासन अल्ट्रा पॉवर प्रोजेक्ट के लिए आवंटित कोल ब्लाक से रिलायंस के लिए चितरंगी प्रोजेक्ट के लिए भी कोयला देने की मंजूरी भेजी है, लिहाजा प्रदेश के अधिकारियों ने रिलायंस के साथ निगोशिएशन कर पॉवर के दाम कम करवाने के प्रयास किए और यह तर्क दिया कि चूंकि रिलायंस को प्रदेश की कोयला खदानों से ही कोयला मिल रहा है, लिहाजा उसे परिवहन सहित अन्य खर्च में बचत होगी। वित्त विभाग की तमाम आपत्तियों और तर्कों के बावजूद प्रदेश सरकार ने बिजली की दरों में कमी नहीं करवाई और अगले 30 सालों तक प्रदेश की जनता को महंगी बिजली खरीदने के लिए मजबूर किया।
इंदौर का एमओयू खजुराहो में भी कर डाला
एक तरफ रिलायंस पॉवर ने कोयला खदानों के माध्यम से 29 हजार करोड़ रुपए की चपत सरकारी खजाने को लगाई तो दूसरी तरफ एमओयू में भी कलाकारी दिखा डाली। अक्टूबर 2007 में इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में रिलायंस पॉवर के अनिल अंबानी ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मौजूदगी में 50 हजार करोड़ रुपए के निवेश का एमओयू साइन किया, जिसमें सासन पॉवर प्रोजेक्ट के अलावा सीमेंट प्लांट की स्थापना, सीधी जिले में एयरपोर्ट की स्थापना और टेक्निकल इंस्टीट्यूट की स्थापना के एमओयू किए गए। बाद में जब प्रदेश सरकार ने अक्टूबर 2010 में खजुराहो में इन्वेस्टर्स मीट आयोजित की, तब भी अनिल अंबानी को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया गया और होशियारी से इंदौर में साइन किया गया 50 हजार करोड़ रुपए का एमओयू पुन: खजुराहो में दोबारा साइन करवा डाला और इसमें राशि भी बढ़ाकर 75 हजार करोड़ रुपए कर दी।
जिस सासन पॉवर प्रोजेक्ट से रिलायंस पॉवर को कोल ब्लाक आवंटित किए गए, उसमें पहले तो भू-अर्जन के लिए ही काफी परेशानी आई, क्योंकि प्रदेश शासन ने डेढ़ हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया शुरू की और इसमें एक हजार एकड़ जमीन तो आसानी से प्राप्त हो गई, मगर शेष जमीन में वन भूमि भी शामिल थी। इतना ही नहीं कई परिवारों का व्यवस्थापन भी करना पड़ा और साथ ही 10 लाख हरे-भरे पेड़ों की बलि भी इस पॉवर प्रोजेक्ट के लिए चढ़ाने पर सहमति दी गई, हालांकि रिलायंस की ओर से पेड़ों की कटाई के एवज में साढ़े 12 करोड़ रुपए की राशि जमा कराने और 2400 हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण के लिए 70 करोड़ रुपए की राशि देने का प्रावधान भी किया गया।
इंदौर में अक्टूबर 2007 में जो ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट आयोजित की गई, उसमें किए गए करारों के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ था। रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट के लिए जो 50 हजार करोड़ रुपए का एमओयू प्रदेश सरकार ने किया। 12 पेज के इस एग्रिमेंट को 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर किया गया और 26 अक्टूबर 2007 को किए गए इस एग्रिमेंट में तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग तथा रोजगार विभाग के प्रमुख सचिव अवनि वैश्य जो कि बाद में प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव भी बने, ने हस्ताक्षर किए और रिलायंस पॉवर की ओर से उसके डायरेक्टर बिजनेस डवलपमेंट जे.पी. चालासानी ने इस करार पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सीधी के सासन और चितरंगी में पॉवर प्रोजेक्ट के अलावा सीमेंट फैक्ट्री और भोपाल में तकनीकी इंस्टीट्यूट खोलने का वादा किया गया था।
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