सीएम साहब! आपके हुकुमरानों का ये कैसा फरमान
Present by : toc news
अमन पठान, एटा
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के मीरापुर थाने में चस्पा सहायक पुलिस अधीक्षक के फरमान से यही जाहिर हो रहा है कि हम 67 बरस पीछे लौट आये हैं। उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र का नही बल्कि ब्रिटिश हुकूमत का राज हो? जब इंसाफ के मंदिर कहे जाने वाले थानों में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारों और न्याय के रक्षक अधिवक्ताओं के प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गई हो तो हम ये कैसे यकीन कर लें कि खाली हाथ थाने गए पीड़ित को इंसाफ मिल जायेगा?
सीएम साहब आपके इशारे के बिना आपके हुकुमरान इतना बड़ा फैसला अपने विवेक से नही कर सकते हैं। जरूर कहीं न कहीं आपकी मंशा भी शामिल होगी जो ये तुगलकी फरमान जारी हुआ है। इस फरमान से साफ जाहिर है कि कोई भी पत्रकारों एवं वकीलों की हड्डियों का सुरमा बना सकता है। क्योंकि वह किसी भी कार्य से थाना कार्यालय में प्रवेश नही कर सकते हैं। सिर्फ बाहर से ही इंसाफ की गुहार लगा सकते हैं। सीएम साहब अगर आपके हुकुमरानों को उन पर रहम आ गया तो उनकी सुनवाई हो सकती है। नही तो वह थाने की चौखट पर इंसाफ की भीख ही मांगते रहेंगे। जरूरी नही है कि भिखारी को भीख मिले?
जब थाने में पत्रकारों और वकीलों के प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गई है तो सीएम साहब मेरा आपसे एक मशवरा है कि आप थानों में इंसाफ की एक रेट सूची भी चस्पा करवा दें। इससे पीड़ितों को आसानी हो जायेगी कि किस मामले में पुलिस को कितने रूपयों का चढ़ावा चढ़ाना है। जिसे इंसाफ खरीदना होगा वो अपनी औकात में रहकर इंसाफ की नीलामी समारोह में शामिल तो हो सकेगा। इस तरह सरकारी दस्तावेजों में उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ तो कम से कम न्यूनतम हो जायेगा?
मुझे ब्रिटिश हुकूमत का वो दौर याद आ रहा है। जब पत्रकार चोरी छुपे समाचार संकलन करते थे और तहखानों में अख़बार छापते थे। अगर किसी ब्रिटिश हुकूमत के हुकुमरान को ये प्रमाण मिल जाता था कि यह व्यक्ति पत्रकार है तो वो हुकुमरान उस पत्रकार को छटी का दूध याद दिला देते थे। वैसा ही कुछ सपा सरकार में पत्रकारों के साथ हो रहा है। कहीं मंत्री के इशारे पर हुकुमरान पत्रकार को जिन्दा जला रहे हैं तो कहीं पत्रकारों पर पुलिस लाठियां भांज रही है। पत्रकारों के खिलाफ झूठे मुकद्दमें दर्ज किये जा रहे हैं। पत्रकारों के साथ अभद्रता और मारपीट की घटनाएं तो आम हो गई हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी हुकूमत उत्तर प्रदेश और भारत में कभी न आये जो पत्रकारों का जीना और ज्यादा मुहाल हो जाये।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कलम के सिपाही अनजाने भय के डर से कलम उठाने से डर रहे हैं। ये कैसा लोकतंत्र है? ये कैसी हुकूमत है? जिसने कलमकारों के कलम की स्याही सुखा दी है? न्याय पालिका भी तमाशबीन है?
(लेखक "इंडिया 24 न्यूज़" वेब पोर्टल के संपादक हैं)
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अमन पठान, एटा
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के मीरापुर थाने में चस्पा सहायक पुलिस अधीक्षक के फरमान से यही जाहिर हो रहा है कि हम 67 बरस पीछे लौट आये हैं। उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र का नही बल्कि ब्रिटिश हुकूमत का राज हो? जब इंसाफ के मंदिर कहे जाने वाले थानों में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारों और न्याय के रक्षक अधिवक्ताओं के प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गई हो तो हम ये कैसे यकीन कर लें कि खाली हाथ थाने गए पीड़ित को इंसाफ मिल जायेगा?
सीएम साहब आपके इशारे के बिना आपके हुकुमरान इतना बड़ा फैसला अपने विवेक से नही कर सकते हैं। जरूर कहीं न कहीं आपकी मंशा भी शामिल होगी जो ये तुगलकी फरमान जारी हुआ है। इस फरमान से साफ जाहिर है कि कोई भी पत्रकारों एवं वकीलों की हड्डियों का सुरमा बना सकता है। क्योंकि वह किसी भी कार्य से थाना कार्यालय में प्रवेश नही कर सकते हैं। सिर्फ बाहर से ही इंसाफ की गुहार लगा सकते हैं। सीएम साहब अगर आपके हुकुमरानों को उन पर रहम आ गया तो उनकी सुनवाई हो सकती है। नही तो वह थाने की चौखट पर इंसाफ की भीख ही मांगते रहेंगे। जरूरी नही है कि भिखारी को भीख मिले?
जब थाने में पत्रकारों और वकीलों के प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गई है तो सीएम साहब मेरा आपसे एक मशवरा है कि आप थानों में इंसाफ की एक रेट सूची भी चस्पा करवा दें। इससे पीड़ितों को आसानी हो जायेगी कि किस मामले में पुलिस को कितने रूपयों का चढ़ावा चढ़ाना है। जिसे इंसाफ खरीदना होगा वो अपनी औकात में रहकर इंसाफ की नीलामी समारोह में शामिल तो हो सकेगा। इस तरह सरकारी दस्तावेजों में उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ तो कम से कम न्यूनतम हो जायेगा?
मुझे ब्रिटिश हुकूमत का वो दौर याद आ रहा है। जब पत्रकार चोरी छुपे समाचार संकलन करते थे और तहखानों में अख़बार छापते थे। अगर किसी ब्रिटिश हुकूमत के हुकुमरान को ये प्रमाण मिल जाता था कि यह व्यक्ति पत्रकार है तो वो हुकुमरान उस पत्रकार को छटी का दूध याद दिला देते थे। वैसा ही कुछ सपा सरकार में पत्रकारों के साथ हो रहा है। कहीं मंत्री के इशारे पर हुकुमरान पत्रकार को जिन्दा जला रहे हैं तो कहीं पत्रकारों पर पुलिस लाठियां भांज रही है। पत्रकारों के खिलाफ झूठे मुकद्दमें दर्ज किये जा रहे हैं। पत्रकारों के साथ अभद्रता और मारपीट की घटनाएं तो आम हो गई हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी हुकूमत उत्तर प्रदेश और भारत में कभी न आये जो पत्रकारों का जीना और ज्यादा मुहाल हो जाये।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कलम के सिपाही अनजाने भय के डर से कलम उठाने से डर रहे हैं। ये कैसा लोकतंत्र है? ये कैसी हुकूमत है? जिसने कलमकारों के कलम की स्याही सुखा दी है? न्याय पालिका भी तमाशबीन है?
(लेखक "इंडिया 24 न्यूज़" वेब पोर्टल के संपादक हैं)
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