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मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल से काबिज बीजेपी के सामने हार का संकट खड़ा हुआ है, तो उसकी वजह भी प्रदेश का नेतृत्व ही है. शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी जाने का इशारा तो एग्जिट पोल भी कर रहे थे, लेकिन अब चुनावी नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि ऐसा होता है तो उसकी वजह क्या है.
नतीजों के आंकड़ों में लगातार फेरबदल तो जारी है, लेकिन कांग्रेस के पाले में अधिक सीटें हैं. वहीं सपा-बसपा का समर्थन भी कांग्रेस को मिल सकता है. ऐसे में इस बार सरकार बनाने का दावा कांग्रेस का ज्यादा मजबूत है. एक के बाद एक लगातार 3 बार शिवराज सिंह चुनाव जीते और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. महिलाओं और बालिकाओं को बनाई योजनाओं की लोकप्रियता से उन्हें 'मामा' का तमगा भी मिला. लेकिन यह दुलार उन्हें अपने पहले ही कार्यकाल में मिल गया था.
पिछले कार्यकाल में शिवराज सिंह ने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया है, जिससे आम जनता के जीवन पर कोई बड़ा असर डाला हो. बल्कि शिवराज सिंह के कई फैसले अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाले साबित हुए. शिवराज सिंह भले ही 15 सालों तक मध्य प्रदेश की जनता के चहेते बने रहे, लेकिन उनकी इन 5 गलतियों की वजह से जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया.
1- कर्जमाफी को 'भीख' माना
शिवराज सिंह की सरकार ने मध्य प्रदेश के किसानों को ब्याज मुक्त कर्ज देने की योजना शुरू की. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने 2 लाख तक का कर्ज माफ करने की घोषणा कर के बाजी मार ली. मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रही थी, बल्कि शिवराज सिंह ने तो एक किसान सम्मेलन में ये भी कहा था कि कर्ज माफी भीख जैसी है. भाजपा की ओर से यह तर्क दिए गए कि भले ही कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद महज 10 दिनों में किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया हो, लेकिन ये सब झूठे वादे हैं. भाजपा के अनुसार अगर कांग्रेस ने कर्जमाफ किया तो इससे सरकार पर करीब 16 हजार करोड़ का भार पड़ेगा और राज्य में हो रहे विकास कार्यों को रोकना पड़ेगा. अब चुनावी नतीजे देखकर ये नहीं लग रहा है कि लोग भाजपा की बात सुनने के मूड में हैं, बल्कि उन्होंने 15 साल की सत्ता से भाजपा को बाहर करने का फैसला कर लिया है.
2- अपनों की नाराजगी पड़ी भारी
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले मालवा में भी भाजपा की हार होना ये दिखाता है कि पार्टी में अंदरखाने नाराजगी चल रही है. शिवराज सिंह का पार्टी नेताओं से कनेक्शन कट सा गया है, जिसका अब नुकसान भुगतना पड़ रहा है. कैलाश विजयवर्गीय ने भी इस ओर इशारा करते हुए कहा है कि पार्टी के बहुत से नेता नाराज होकर पार्टी छोड़कर चले गए, जिसकी वजह से भी वोटों का नुकसान हुआ है. मध्यप्रदेश में बीजेपी का टिकट न मिलने से नाराज 60 नेता बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में थे. देखा जाए तो कैलाश विजयवर्गीय का सीधा इशारा इस ओर था कि शिवराज सिंह पार्टी के नेताओं को रोके रखने का अपना काम सही से नहीं कर सके, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में भाजपा की ये हालत हुई है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि मध्य प्रदेश में भाजपा की हार के लिए पूरी तरह से शिवराज सिंह ही जिम्मेदार हैं. वहीं दूसरी ओर, कैलाश विजयवर्गीय ने शिवराज सिंह को भी साध लिया और पार्टी का बचाव करते हुए भी दिखे.
3- 'भावांतर भुगतान योजना' का फायदा कम, नुकसान ज्यादा
शिवराज सिंह ने राज्य के किसानों को साधने के लिए अक्टूबर 2017 में एक 'भावांतर भुगतान योजना' शुरू की. इसके तहत किसानों को किसी फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार कीमत के बीच के अंतर की भरपाई करने की पेशकश की गई. यानी अगर बाजार में किसान की फसल कम दाम पर बिकेगी, तो निर्धारित मूल्य से उतने अंतर की राशि सरकार देगी. सरकार ने इसके लिए 2017-18 के बजट में 1000 करोड़ रुपए की राशि भी रखी. भाजपा का कहना था कि इस योजना से किसानों को उनकी फसल से नुकसान नहीं होगा. लेकिन इस स्कीम से किसानों को फायदे से अधिक नुकसान होता दिख रहा है. किसानों को पहले तो कीमतों में अंतर की रकम पाने के लिए तरह-तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ रही हैं. वहीं दूसरी ओर, इतना सब करने के बावजूद किसानों को उनके पैसे मिलने में बहुत अधिक देर लग रही है. कुल मिलाकर किसान खुश होने के बजाय परेशान नजर आ रहे हैं. किसानों को रही इसी परेशानी का फायदा कांग्रेस को मिला है, जबकि भाजपा को इस स्कीम के बावजूद नुकसान हो रहा है.
4- मंदसौर गोलीबारी ने दी निर्णायक गुस्से की वजह
यूं तो भाजपा ने मंदसौर में किसानों पर हुई गोलीबारी के मामले को रफा-दफा करने की पूरी कोशिश की. कांग्रेस पर उस मामले में कई आरोप भी लगाए, लेकिन उस घटना ने पूरे राज्य में किसानों के मन पर एक बुरा असर जरूर डाला. इससे किसानों के मन में ये बात भी घर कर गई कि भाजपा किसानों का हित नहीं चाहती है. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस ने मंदसौर में किसानों पर हुई गोलीबारी को भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. अब चुनावी नतीजे देखकर ये लग रहा है कि कांग्रेस अपनी कोशिश में कामयाब भी हो गई और मध्य प्रदेश के किसान भाजपा को राज्य से बाहर निकाल कर कांग्रेस को सत्ता सौंपने को तैयार हैं.
5- न दलित साथ आए, सवर्ण भी हुए दूर
अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण दिलाने के लिए भाजपा सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची. एक ओर एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिला और दूसरी ओर सवर्ण भी भाजपा से दूर होते चले गए. यानी एक को साधने के चक्कर में भाजपा को दो तरफ से नुकसान हुआ. खैर, भाजपा करती भी क्या? 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में एससी-एसटी के लोगों की आबादी करीब 25.2 फीसदी है. यानी यहां देश का हर चौथा आदमी भाजपा का टारगेट था, लेकिन फायदा होने के बजाय भाजपा को उल्टा नुकसान ही हुआ. भाजपा के पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने कहा था कि 'कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता', अगर वह ऐसी बात नहीं करते तो पार्टी को 10-15 अधिक सीटें बढ़ जातीं. अब देखा जाए तो चुनावी नतीजों में बस इन्हीं 10-15 सीटों की कमी लग रही है, जिनकी वजह से सत्ता हाथ से फिसलती जा रही है.
किसानों की दिक्कतें दूर करने की कोशिश में खुद शिवराज सिंह परेशानी में पड़ गए हैं. भारत में किसानों की संख्या करीब 32 फीसदी है. यानी एक तिहाई वोट तो सिर्फ किसानों के हैं. ऐसे में किसानों को साध लेने वाली पार्टी अपना एक तिहाई काम तो यूं ही पूरा कर लेती है जो इस बार कांग्रेस ने किया है. वहीं भाजपा की योजनाएं और सुविधाएं किसानों के हित में नहीं रहीं, जिसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है. बजट में भी सरकार ने एमएसपी लागत का डेढ़ गुना तय करने का वादा किया था, लेकिन धरातल पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है. हर बार जनता को 2022 का सपना दिखाया जा रहा है, लेकिन अब जनता और अधिक इंतजार करने के मूड में नहीं है. खैर, 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं और उससे ठीक पहले 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है. ऐसे में मोदी सरकार को जल्द ही कोई नया फॉर्मूला लाना होगा वरना कहीं ऐसा ना हो कि लोकसभा चुनाव में देश की सत्ता भी कांग्रेस के हाथ चली जाए.
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