न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ''तत्कालीन सीजेआई किसी बाहरी स्रोत के प्रभाव में काम कर रहे थे. वह किसी बाहरी स्रोत द्वारा रिमोट से नियंत्रित थे. (फाइल फोटो) |
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नई दिल्ली : जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सेवानिवृत्त होने के कुछ दिनों बाद सोमवार को एक सनसनीखेज दावे में कहा कि पूर्ववर्ती प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा किसी ''बाहरी स्रोत'' के प्रभाव में काम कर रहे थे. उन्होंने साथ ही कहा कि इससे न्याय का प्रशासन प्रभावित हुआ. जस्टिस जोसेफ सुप्रीम कोर्ट के उन चार न्यायाधीशों में शामिल थे,
जिन्होंने गत जनवरी में एक अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन किया था. 29 नवंबर को सेवानिवृत्त हो चुके न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ''तत्कालीन सीजेआई किसी बाहरी स्रोत के प्रभाव में काम कर रहे थे. वह किसी बाहरी स्रोत द्वारा रिमोट से नियंत्रित थे. किसी बाहरी स्रोत का कुछ प्रभाव था जो न्याय के प्रशासन को प्रभावित कर रहा था.''. यह पूछे जाने पर कि वह किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि यह उन न्यायाधीशों के बीच धारणा थी जो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उत्पन्न मुद्दों को लेकर सार्वजनिक रूप से सामने आए..
बोले- मुझे माफ करिए आगे नहीं बढ़ना चाहता.
जस्टिस जोसेफ ने इस बारे में विस्तार से बताने से इनकार कर दिया कि वह बाहरी स्रोत कौन था और वे मामले कौन से थे जहां पक्षपात हुआ और न्याय का प्रशासन प्रभावित हुआ. इस बारे में जोर देकर पूछे जाने पर कि क्या प्रभाव किसी राजनीतिक पार्टी या सरकार द्वारा किसी विशेष मामले में डाला गया, न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि न्यायाधीशों का विचार था कि संबंधित न्यायाधीश द्वारा कुछ पक्षपात था. उन्होंने कहा कि किसी विशेष मामले का उल्लेख करने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, '' मुझे माफ करिये. मैं इसे आगे नहीं बढ़ाना चाहता.''.
सीजेआई मिश्रा के खिलाफ की प्रेस कॉन्फेंस.
न्यायमूर्ति जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर (अब सेवानिवृत्त हो चुके), जस्टिस रंजन गोगोई (वर्तमान में प्रधान न्यायाधीश) और जस्टिस मदन लोकुर के साथ 12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके तत्कालीन सीजेआई मिश्रा का विरोध किया था. चारों न्यायाधीशों ने इस संवाददाता सम्मेलन में संवेदनशील मामलों के तरजीही आवंटन को लेकर अपनी चिंता जताई थी..
अब अदालत की गुणवत्ता और स्वतंत्रता की धारणा में सुधार.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने यद्यपि कहा कि दबाव का एक प्रभाव हुआ और न्यायमूर्ति मिश्रा के सीजेआई के तौर पर बाकी के कार्यकाल के दौरान चीजें अच्छे के लिए बदलनी शुरू हो गई और वह न्यायमूर्ति गोगोई के नेतृत्व में जारी है. न्यायमूर्ति मिश्रा दो अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गए. उन्होंने कहा कि अदालत के कामकाज की गुणवत्ता और संस्थान की स्वतंत्रता संबंधी धारणा में एक सुधार आया है..
जस्टिस मिश्रा से उनके ऊपर बाहरी स्रोतों के प्रभाव की बात की थी.
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि संवाददाता सम्मेलन से पहले चारों न्यायाधीशों ने न्यायमूर्ति मिश्रा से उनके ऊपर बाहरी स्रोतों के प्रभाव के बारे में बात की थी. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों ने इसके साथ ही कुछ मामलों में पक्षपात के साथ निर्णय किए जाने का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा, ''निश्चित तौर पर हमारे पास उस समय जो भी तथ्य थे, हमने उससे तत्कालीन सीजेआई को अवगत करा दिया था.''.
चैनल से कहा- पूर्व सीजेआई स्वतंत्र निर्णय नहीं कर रहे थे.
जस्टिस जोसेफ ने एक निजी टेलीविजन चैनल से कहा कि पूर्व सीजेआई स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं कर रहे थे. उन्होंने कहा, '' हम इसको लेकर आश्वस्त हैं कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश निर्णय स्वयं नहीं कर रहे थे.''.
न्यायमूर्ति मिश्रा को रिमोट से कौन नियंत्रित कर रहा था.
न्यायाधीश बी एच लोया मामले के बारे में पूछे जाने पर न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि वह अब उस पर टिप्पणी नहीं कर सकते, वह मामला अब बंद हो चुका है. यह पूछे जाने पर कि न्यायमूर्ति मिश्रा को कौन रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित कर रहा था, न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि वे ''किसी पर उंगली रखकर नहीं बता सकते कि इसके पीछे कौन था.'' उन्होंने कहा कि संवाददाता सम्मेलन के दौरान भी एक उदाहरण का उल्लेख किया गया, वह था उच्चतम न्यायालय में मामलों का आवंटन. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि न्यायाधीश लोया की मृत्यु की फिर से जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं का आवंटन संवाददाता सम्मेलन के आयोजन का एकमात्र कारण नहीं था, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है..
जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन मुठभेड़ केस की सुनवाई कर रहे थे.
बता दें कि न्यायमूर्ति लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे. एक दिसंबर 2014 को उनकी दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी, जब वह अपने एक सहयोगी की पुत्री के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए गए थे. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मामले के आरोपियों में शामिल थे जब वह गुजरात के गृह मंत्री थे. हालांकि बाद में एक निचली अदालत ने शाह को मामले में बरी कर दिया था..
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