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रवि गुप्ता
- चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाईयों के स्थान पर लिखी जातीं है ब्रांडेड दवाईयां
- जन औषधि केन्द्र बंद होने की कगार पर
भोपाल. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में मेडीसन माफिया का कब्जा आज भी बरकरार है। एम्स प्रबंधन इस बात को जानते हुए भी मेडीसन माफिया राज को समाप्त नहीं कर पा रहा है। बताया जाता है कि एम्स में आने वाले मरीजों को जेनेरिक दवाईयों की जगह ब्रांडेड दवाईयों लिखने के कारण प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र के स्टोर बंद होने की कगार पर आ गए हैं।
जबकि केन्द्र सरकार की हमेशा से ही यही सोच रही है कि एम्स जैसे संवेदनशील अनुसंधान केन्द्रों में आने वाले मरीजों की संख्या सर्वाधिक होती है और एम्स जैसे संस्थान में ब्रांडेड दवाईयों की जगह जेनेरिक दवाईयां प्रिंट दर से अधिकतम नब्बे प्रतिशत छूट के साथ दिलवाई जा सकें। परन्तु एम्स में मेडीसन माफिया से मिलकर प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र के स्टोर में उपलब्ध जेनेरिक दवाईयों को न लिखकर ब्रांडेड दवाईयां लिख रहे हैं।
हालांकि एम्स के निदेशक प्रो. डॉ. सरमन सिंह ने मीडिया से चर्चा के दौरान इशारे इशारे में मीडिया के सवाल पर कहा था कि कि एम्स भोपाल के अंदर संचालित जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द्र के स्टोर बहुत जल्दी बंद होने वाले हैं, क्योकि दवाईयां इन केन्द्रों के स्टोर पर हर प्रकार की दवाईयां उपलब्ध नहीं हो पा रही है। जो इस बात का सबूत है कि एम्स जैसे संस्थान में जेनेरिक दवाईयां को न लिखकर ब्रांडेड दवाईयों का लिखना कहीं न कही मेडीसन माफिया को फायदा पहुंचाने की बहुत बड़ी कबायद मानी जाएगी।
दलाल रहते हैं सक्रिय
एम्स में अधिकतर मरीजों को मेडीसन विभाग में उपलब्ध डॉक्टरों को दिखाने के लिए पर्चा बनने के उपरांत पहुंचाया जाता है। जब मरीज किसी बिशेष रोग से पीडि़त रहता है तो मेडीसन विभाग से संबंधित विशेष रोग विशेषज्ञ के पास रिफर करके पहुंचाया जाता है। जहां पर ब्रांडेड दवाईयों के साथ जांचे लिखकर दी जा रही हैं। जो कि एम्स के अंदर खुल जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द में दस प्रतिशत भी दवाईयां नहीं मिल पातीं हैं। हालांकि मेडीसन विभाग के अंदर काउंटर के पास मेडीसन माफिया के दलाल खड़े रहते हैं और मरीजों के परिजन को एम्स के गेट नम्बर तीन के बाहर खुल मेडीकल स्टोर पर पहुंचाने में सफल होते नजर आ रहे हैं। यही कहा जाता है कि जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द्र पर दवाईयां नहीं मिलेगी और एम्स की ही दुकान बाहर खुली है, वहां पर जाकर छब्बीस प्रतिशत कम दामों में ले सकते हो। जबकि जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द्र के स्टोर में यही दवाईयां दूसरे नाम पर अधिकतम नब्बे प्रतिशत कम दामों में दी जातीं हैं।
केन्द्र सरकार के उद्देश्य पर सवाल
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना और अमृत केन्द्र के स्टोर सरकारी अस्पतालों सहित एम्स जैसे अनुसंधान केन्द्रों में इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुलवाए थे, ताकि मरीजों को सस्सी और अच्छी दवाईयां दवाईयों पर प्रिंट दर से अधिक से अधिक नब्बे प्रतिशत छूट के साथ मिल सकें। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का मकसद यही था कि लोगों को सस्ती दवा उपलब्ध कराना, क्योंकि यह योजना केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है क्योंकि जेनरिक दवाईयां ब्रांडेड या फार्मा की दवाईयों के मुकाबले सस्ती होती है, जबकि प्रभावशाली उनके बराबर ही होती है। बताते हैं कि प्रधानमंत्री जन औषधि अभियान मूलत: जनता को जागरूक करने के लिए शुरू किया गया था, ताकि जनता समझ सके कि ब्रांडेड मेडिसिन की तुलना में जेनेरिक मेडिसिन कम मूल्य पर उपलब्ध कराई जा सकें।
इन्होने बताया
एम्स में संचालित जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द्र के स्टोर अभी बंद नहीं किए जा रहे हैं, एम्स में चिकित्सा सेवा दे रहे चिकित्सकों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं कि वे एम्स के नियमों के तहत ही निर्धारित दवाईयों को लिखें। मेडीसन माफिया के दलाल एम्स के अंदर तक न आ सकें, इसके लिए सीसीटीवी कैमरे पर नजर रखी जा रही है और एक मरीज के साथ एक सहयोगी का ही प्रवेश दिया जा रहा है, कोशिश यही है कि जन औषधि केन्द्र और अमृत केन्द्र में 797 प्रकार की दवाईयां उपलब्ध रहें और एम्स की आठ सौ से लेकर नौ सौ प्रकार तक की ही दवाईयां लिखी जाएं। ताकि बाहर से दवाईयों को मरीज खरीदने के लिए मजबूर न हो सके।
-मनीषा श्रीवास्तव, चिकित्सा अधीक्षक
एम्स भोपाल मप्र
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