बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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प्रभारी मंत्री तक नहीं हटा सके अतिक्रमण
बैतूल । उसने लगभग पूरी नौकरी कलैक्टर के स्टेनो के रूप में कर ली आज वह इतना रसूखदार है कि कलैक्टर एसडीएम उसके आगे पानी भरते है। जिले के वन मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री सरताज सिंह का ताज भी उसके आगे डगडगाने लगता है। ऐसे एक अदने से स्टेनो की दादागिरी देखिए कि उसकी पत्नि द्वारा गौठाना की सरकारी छोटे झाड़ की 8 एकड़ जमीन पर कभी - कभार होने वाले जुर्माने की राशी पटवारी - तहसीलदार स्वंय अपनी जेब से भरते चले आ रहे है लेकिन बीते 25 वर्षो से छोटे झाड़ के जंगल वाली सरकारी जमीन पर किया गया स्टेनो की बीबी का कब्जा आज भी बरकरार है। प्रदेश की सरकार के मुखिया से लेकर कलैक्टर तक को ऐसी स्थिति स्थिति में चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए लेकिन वे नहीं मर पाएगें क्योकि यहां पर भी उन्हे उस स्टेनो पर निर्भर रहना पड़ेगा जिसका नाम है अरूण सोहाने.......
बैतूल जिले में एक गरीब सरकारी झोपड़ा बना लेता है तो दिल्ली तक शोर मच जाता है लेकिन कलैक्टर का निज सहायक अपनी पत्नि श्रीमति माधुरी सोहाने के नाम पर गौठाना में खरीदी गई 8 एकड़ जमीन से लगी सरकारी छोटे झाड़ की 8 एकड़ जमीन पर पिछले 25 वर्षो से कब्जा करके रखा हुआ है। बार - बार अतिक्रमण करने वाले को 15 दिन का सिविल कारावास का प्रावधान है लेकिन उसे कारावास तो दूर उसका कभी -कभार शिकवा शिकायतों पर हो गया जुर्माना तक पटवारी या तहसीलदार की जेब से भरा जाता है। बीते सभी कलैक्टरो में जिसने भी उस अतिक्रमण के मामले में थोड़ी बहुंत भी कार्रवाई करने की कोशिस की तो वह स्टेनो उस कलैक्टर की जमीन खोद कर उसे दफन तक करने की हिम्मत रखता है।
गौठाना के मामले में एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने कार्रवाई की लेकिन जब सिविल जेल की बात आई तो वे भी ठंडे पड़ गए और आज भी सरकारी छोटे झाड़ के जंगलो की 8 एकड़ बेशकीमती जमीन पर बेजाकब्जा है। ऐसा नहीं कि जिले में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का यह कोई पहला मामला है। ऐसे कई उदाहरण बताएं जा सकते है जहां कलैक्टर से लेकर प्रभारी मंत्री तक भिगी बिल्ली बने रहते है। ऐसा ही एक मामला बटामा नहर का है। जहां प्रशासन एक महीने पहले अतिक्रमण हटाने तो पहुंचा था लेकिन बैरंग ही लौट आया था और बहाना यह था कि अतिक्रमण हटाने के लिए जेसीबी ही नहीं मिली। सापना जलाशय से निकलने वाली डी-1 नहर में बडोरा से बजरंग मंदिर तक माइनर बटामा नहर ही लापता हो गई है। तकरीबन तीन किमी लंबा और करीब सौ फीट चौड़ा नहर का पूरा एक बेल्ट अतिक्रमण की चपेट में है। नेशनल हाइवे से लगा यह बेल्ट बाजार मूल्य के हिसाब से करोड़ों रूपए का है। नहर लापता होने का मामला करीब दस साल पहले उजागर हुआ था और तब से लेकर आज तक मामले को दबाने के हर प्रयास किए गए। लापता नहर पर जो अतिक्रमण हंै वे प्रभावशाली लोगों के हैं। यही कारण है कि दस साल से यह मामला अधर में ही झूल रहा है। जैसे-तैसे इस मामले में उच्चस्तर पर हुई शिकायतों के बाद कार्रवाई की नंबर आया तो जेसीबी मशीन न मिलने जैसा बहाना करके मामले को टाल दिया गया और एक महीने से प्रशासन उस जेसीबी की व्यवस्था ही नहीं कर पाया है, जिससे यहां का अतिक्रमण तोड़ा जा सके।
इस तरह पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस लापता नहर पर जो अतिक्रमण हैं उसमें गन्नाबाड़ी, मकान के साथ-साथ एक मैदा मिल, पेट्रोल पंप, वेयर हाउस, ढाबा आदि का भी क्षेत्र आता है। प्रशासन द्वारा जिस तरह से केवल कुछ हिस्सा ही अतिक्रमण में बताया जा रहा है उसको लेकर भी जल संसाधन और प्रशासन की रिपोर्ट पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर मामला देखा जाए तो पहले जांच और कागजी कार्रवाई ही इस तरह से की गई कि मामले को ज्यादा से ज्यादा उलझाने वाला बनाया जाए। फिर जैसे-तैसे उच्चस्तर पर हुई शिकायतों के बाद कार्रवाई की नौबत आई तो वास्तविक कार्रवाई की जगह सिर्फ औपचारिकता का प्रायोजन किया गया। बैतूल कलैक्टर बी चन्द्रशेखर स्वंय जब अपने अधिनस्थ स्टेनो की पत्नि श्रीमति माधुरी अरूण सोहाने द्वारा किया गया बेजा अतिक्रमण वह भी 8 एकड़ छोटे झाड़ के जंगलो का नहीं हटा पाए वे कहते है कि बटामा का अतिक्रमण जल्द ही हटाया दिया जाएगा। किसी भी तरह का कोई दबाव या बहाना नहीं चलेगा। जामठी के अतिक्रमण के मामले में जानकारी लेकर जल्दी ही नियमानुसार कार्रवाई के निर्देश दूंगा। ऐसे में अपने ऊपर किसी का दबाव न होने की बड़ी - बड़ी बाते करने वाले कलैक्टर बी चन्द्रशेखर को एक बार चिंतन जरूर कर लेना चाहिए कि जब वे राजस्व एक्ट के तहत प्रस्तावित अतिक्रमण कत्र्ता को 15 दिन की सिविल जेल की पेंडिग पड़ी कार्रवाई की फाइल एसडीएम कार्यालय से बुलवा कर उस पर अमल नहीं करवा पा रहे है ऐसी स्थिति में विवेक मालवीय जैसे दबंग लोगो की नाक में नकेल डालने की वे कैसे सोच सकते है।
जहां एक ओर श्रीमति माधुरी सोहाने उनके ही स्टेनो की श्रीमति है और बिना स्टेनो के प्रभाव के वे बरसो से छोटे झाड़ के जंगल की जमीन पर कब्जा करके बैठी है उसे नहीं बेदखल कर पा रहे है ऐसे में दुसरी ओर उनका बटामा नहर पर किया गया अतिक्रमण को हटाने की बात बेमानी लगता है। इधर बटामा और गौठाना के मामले में एसडीएम संजीव श्रीवास्तव की डबल पालिसी चल रही है वे कहते है कि बटामा नहर पर से अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी जल संसाधन विभाग की है। विभाग को कई बार जेसीबी और मजदूरों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए लेकिन व्यवस्था नहीं की है। लेकिन संजीव श्रीवास्तव, गौठाना के मामले में कहते है कि इस मामले की सभी को जानकारी है। प्रभारी मंत्री तक शिकवा - शिकायते हो चुकी है। मैने तो 15 दिन की सिविल जेल की तक कार्रवाई कर दी थी अब तहसीलदार ही बताएं। तहसीलदार से पुछने पर वह कहता है कि भैया मुझे क्यों बलि का बकरा बना रहे है जो काम एसडीएम और कलैक्टर साहब नहीं कर रहे है उसे मैं और मेरा आर आई कैसे करेगा। पटवारी का कहना है कि 25 वर्षो से जिला प्रशासन को इस बात की पटवारी रिर्पोट में जानकारी दी जा रही है। कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है ऐसे में हमे मुर्गा बनाना कहां का न्याय है। इसी कड़ी में एक और प्रभावशाली व्यक्ति का अतिक्रमण चर्चा के घेरे में है। नेशनल हाइवे 69 पर ही जामठी क्षेत्र में एक प्रभावशाली परिवार द्वारा करीब पांच एकड़ आबादी की जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। इस आबादी की जमीन का वास्तविक उपयोग आवासहीन ग्रामीणों को दिए जाने के लिए किया जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया और कई साल से एक प्रभावशाली परिवार ने इस जमीन पर कब्जा कर रखा है। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक भी इस जमीन पर इस परिवार का अवैध कब्जा दर्शाया गया है।
बाजार मूल्य के अनुसार इस जमीन की वर्तमान कीमत करीब तीन करोड़ आंकी जा रही है। इस आबादी की जमीन पर भी कब्जा करने के साथ-साथ कुछ स्थाई निर्माण कार्य भी किए गए हैं। प्रशासन ने अलग-अलग समय पर इस जमीन पर अतिक्रमण तो दर्ज कर लिया लेकिन उसे हटाने की कार्रवाई कभी नहीं की। पूरे मामले पर वन मंत्री एवं जिले के प्रभारी सरताज सिंह से बातचीत की तो उनका जवाब भी कम चौकान्ने वाला नहीं था। वन मंत्री कहते है कि मेरे समक्ष जैसे ही पूरा मामला आया था मैंने तत्कालिन कलैक्टर विजय आंनद कुरील को आदेश कर दिया था उस समय एसडीएम भी मौजूद थे। अतिक्रमण हटाना या दोषी को दंडित करना मेरा काम नहीं है। यदि जिले के अधिकारी सब काम मुझसे पुछ करते है तो वे बताएं कि अभी तक कितने काम मुझसे पुछ कर किए है। सरकारी छोटे झाड़ के जंगल की 8 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण शर्मनाक बात है। उस जगह पर कोई भी सरकारी कार्य हो सकता था। कुछ नहीं तो एक अच्छी नर्सरी तैयार हो सकती थी। अधिकारी गोलमाज जवाब न देकर कार्य करे।
बैतूल जिले में एक गरीब सरकारी झोपड़ा बना लेता है तो दिल्ली तक शोर मच जाता है लेकिन कलैक्टर का निज सहायक अपनी पत्नि श्रीमति माधुरी सोहाने के नाम पर गौठाना में खरीदी गई 8 एकड़ जमीन से लगी सरकारी छोटे झाड़ की 8 एकड़ जमीन पर पिछले 25 वर्षो से कब्जा करके रखा हुआ है। बार - बार अतिक्रमण करने वाले को 15 दिन का सिविल कारावास का प्रावधान है लेकिन उसे कारावास तो दूर उसका कभी -कभार शिकवा शिकायतों पर हो गया जुर्माना तक पटवारी या तहसीलदार की जेब से भरा जाता है। बीते सभी कलैक्टरो में जिसने भी उस अतिक्रमण के मामले में थोड़ी बहुंत भी कार्रवाई करने की कोशिस की तो वह स्टेनो उस कलैक्टर की जमीन खोद कर उसे दफन तक करने की हिम्मत रखता है।
गौठाना के मामले में एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने कार्रवाई की लेकिन जब सिविल जेल की बात आई तो वे भी ठंडे पड़ गए और आज भी सरकारी छोटे झाड़ के जंगलो की 8 एकड़ बेशकीमती जमीन पर बेजाकब्जा है। ऐसा नहीं कि जिले में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का यह कोई पहला मामला है। ऐसे कई उदाहरण बताएं जा सकते है जहां कलैक्टर से लेकर प्रभारी मंत्री तक भिगी बिल्ली बने रहते है। ऐसा ही एक मामला बटामा नहर का है। जहां प्रशासन एक महीने पहले अतिक्रमण हटाने तो पहुंचा था लेकिन बैरंग ही लौट आया था और बहाना यह था कि अतिक्रमण हटाने के लिए जेसीबी ही नहीं मिली। सापना जलाशय से निकलने वाली डी-1 नहर में बडोरा से बजरंग मंदिर तक माइनर बटामा नहर ही लापता हो गई है। तकरीबन तीन किमी लंबा और करीब सौ फीट चौड़ा नहर का पूरा एक बेल्ट अतिक्रमण की चपेट में है। नेशनल हाइवे से लगा यह बेल्ट बाजार मूल्य के हिसाब से करोड़ों रूपए का है। नहर लापता होने का मामला करीब दस साल पहले उजागर हुआ था और तब से लेकर आज तक मामले को दबाने के हर प्रयास किए गए। लापता नहर पर जो अतिक्रमण हंै वे प्रभावशाली लोगों के हैं। यही कारण है कि दस साल से यह मामला अधर में ही झूल रहा है। जैसे-तैसे इस मामले में उच्चस्तर पर हुई शिकायतों के बाद कार्रवाई की नंबर आया तो जेसीबी मशीन न मिलने जैसा बहाना करके मामले को टाल दिया गया और एक महीने से प्रशासन उस जेसीबी की व्यवस्था ही नहीं कर पाया है, जिससे यहां का अतिक्रमण तोड़ा जा सके।
इस तरह पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस लापता नहर पर जो अतिक्रमण हैं उसमें गन्नाबाड़ी, मकान के साथ-साथ एक मैदा मिल, पेट्रोल पंप, वेयर हाउस, ढाबा आदि का भी क्षेत्र आता है। प्रशासन द्वारा जिस तरह से केवल कुछ हिस्सा ही अतिक्रमण में बताया जा रहा है उसको लेकर भी जल संसाधन और प्रशासन की रिपोर्ट पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर मामला देखा जाए तो पहले जांच और कागजी कार्रवाई ही इस तरह से की गई कि मामले को ज्यादा से ज्यादा उलझाने वाला बनाया जाए। फिर जैसे-तैसे उच्चस्तर पर हुई शिकायतों के बाद कार्रवाई की नौबत आई तो वास्तविक कार्रवाई की जगह सिर्फ औपचारिकता का प्रायोजन किया गया। बैतूल कलैक्टर बी चन्द्रशेखर स्वंय जब अपने अधिनस्थ स्टेनो की पत्नि श्रीमति माधुरी अरूण सोहाने द्वारा किया गया बेजा अतिक्रमण वह भी 8 एकड़ छोटे झाड़ के जंगलो का नहीं हटा पाए वे कहते है कि बटामा का अतिक्रमण जल्द ही हटाया दिया जाएगा। किसी भी तरह का कोई दबाव या बहाना नहीं चलेगा। जामठी के अतिक्रमण के मामले में जानकारी लेकर जल्दी ही नियमानुसार कार्रवाई के निर्देश दूंगा। ऐसे में अपने ऊपर किसी का दबाव न होने की बड़ी - बड़ी बाते करने वाले कलैक्टर बी चन्द्रशेखर को एक बार चिंतन जरूर कर लेना चाहिए कि जब वे राजस्व एक्ट के तहत प्रस्तावित अतिक्रमण कत्र्ता को 15 दिन की सिविल जेल की पेंडिग पड़ी कार्रवाई की फाइल एसडीएम कार्यालय से बुलवा कर उस पर अमल नहीं करवा पा रहे है ऐसी स्थिति में विवेक मालवीय जैसे दबंग लोगो की नाक में नकेल डालने की वे कैसे सोच सकते है।
जहां एक ओर श्रीमति माधुरी सोहाने उनके ही स्टेनो की श्रीमति है और बिना स्टेनो के प्रभाव के वे बरसो से छोटे झाड़ के जंगल की जमीन पर कब्जा करके बैठी है उसे नहीं बेदखल कर पा रहे है ऐसे में दुसरी ओर उनका बटामा नहर पर किया गया अतिक्रमण को हटाने की बात बेमानी लगता है। इधर बटामा और गौठाना के मामले में एसडीएम संजीव श्रीवास्तव की डबल पालिसी चल रही है वे कहते है कि बटामा नहर पर से अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी जल संसाधन विभाग की है। विभाग को कई बार जेसीबी और मजदूरों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए लेकिन व्यवस्था नहीं की है। लेकिन संजीव श्रीवास्तव, गौठाना के मामले में कहते है कि इस मामले की सभी को जानकारी है। प्रभारी मंत्री तक शिकवा - शिकायते हो चुकी है। मैने तो 15 दिन की सिविल जेल की तक कार्रवाई कर दी थी अब तहसीलदार ही बताएं। तहसीलदार से पुछने पर वह कहता है कि भैया मुझे क्यों बलि का बकरा बना रहे है जो काम एसडीएम और कलैक्टर साहब नहीं कर रहे है उसे मैं और मेरा आर आई कैसे करेगा। पटवारी का कहना है कि 25 वर्षो से जिला प्रशासन को इस बात की पटवारी रिर्पोट में जानकारी दी जा रही है। कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है ऐसे में हमे मुर्गा बनाना कहां का न्याय है। इसी कड़ी में एक और प्रभावशाली व्यक्ति का अतिक्रमण चर्चा के घेरे में है। नेशनल हाइवे 69 पर ही जामठी क्षेत्र में एक प्रभावशाली परिवार द्वारा करीब पांच एकड़ आबादी की जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। इस आबादी की जमीन का वास्तविक उपयोग आवासहीन ग्रामीणों को दिए जाने के लिए किया जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया और कई साल से एक प्रभावशाली परिवार ने इस जमीन पर कब्जा कर रखा है। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक भी इस जमीन पर इस परिवार का अवैध कब्जा दर्शाया गया है।
बाजार मूल्य के अनुसार इस जमीन की वर्तमान कीमत करीब तीन करोड़ आंकी जा रही है। इस आबादी की जमीन पर भी कब्जा करने के साथ-साथ कुछ स्थाई निर्माण कार्य भी किए गए हैं। प्रशासन ने अलग-अलग समय पर इस जमीन पर अतिक्रमण तो दर्ज कर लिया लेकिन उसे हटाने की कार्रवाई कभी नहीं की। पूरे मामले पर वन मंत्री एवं जिले के प्रभारी सरताज सिंह से बातचीत की तो उनका जवाब भी कम चौकान्ने वाला नहीं था। वन मंत्री कहते है कि मेरे समक्ष जैसे ही पूरा मामला आया था मैंने तत्कालिन कलैक्टर विजय आंनद कुरील को आदेश कर दिया था उस समय एसडीएम भी मौजूद थे। अतिक्रमण हटाना या दोषी को दंडित करना मेरा काम नहीं है। यदि जिले के अधिकारी सब काम मुझसे पुछ करते है तो वे बताएं कि अभी तक कितने काम मुझसे पुछ कर किए है। सरकारी छोटे झाड़ के जंगल की 8 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण शर्मनाक बात है। उस जगह पर कोई भी सरकारी कार्य हो सकता था। कुछ नहीं तो एक अच्छी नर्सरी तैयार हो सकती थी। अधिकारी गोलमाज जवाब न देकर कार्य करे।
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