तहसील प्रमुख // मनोज सोनी (बेगमगंज // टाइम्स ऑफ क्राइम)
तहसील प्रमुख से संपर्क: 9893217906
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बेगमगंज । वनों का विनाश जारी, बेगमगंज, सुल्तानगंज, गढ़ी, सियरमऊ, सिलवानी के दुर्लभ जंगलों की रखबाली, सत्ता के दलालों के चलते खतरे में पड़ गई हैं। रक्षक ही भक्षक हो गए है तो जंगल की रखबाली कौन करेगा। जंगल की सुरक्षा को लेकर कितने ही प्रयास क्यो न किए जाए पर जब बागड़ ही खेत को खाने लगी है तो खेत की रखबाली कौन करें। बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन सहित जंगल की कटाई करना सत्ताधारी दलों के नेताओं का सियासी शौक समझा जाता है। पिछले सात वर्षो के अंदर जिले के प्रसिद्घ जंगलों में बेगमगंज, सियरमऊ, सिलवानी, गढ़ी, सुल्तानगंज इत्यादि क्षेत्र के जंगलों में अवैध उत्खनन वनों की कटाई का सिलसिला जारी है। वनों की अवैध कटाई तथा बहुमूल्य लकड़ी के तस्करों ने जंगलों का सफाया कर दिया है। सागौन के साथ-साथ महुंआ, साक शीशम आदि के वृक्षों को भी नही बख्सा है।
साथ ही साथ ग्राम पंचायतों में होने वाले सडक़ निर्माण कार्यो के ठेकेदारों द्वारा अवैध उत्खन्न कर पत्थर, मुरम का भी बिना अनुमति के उत्खनन वन विभाग से सांठ-गांठ कर कारोड़ों के बेशकीमती जंगलों एवं सरकारी सम्पत्ति को चूना लगाया जा रहा है और प्रशासन मूक दर्शक बना देख रहा है। इससे शासन एवं प्रशासन दोनों की कार्य प्रणाली प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। वन सुरक्षा से जुड़े सभी पहलुओं का अध्ययन कर उपयुक्त कदम उठाने होंगे इसके लिए सत्ता के दबाव को दरकिनार करते हुए जंगलों के प्रति अपने दायित्वों को देखना होगा। हमारा संदेश हरा भरा मध्य प्रदेश जैसे सुन्दर और नारे सडक़ों के किनारे बड़े-बड़े बोर्डों पर वन विभाग की ओर से लिखे दिये जाते हैं। जिन्हें देखकर नागरिकों में मानवीय कल्याण तथा देश भक्ति की भावना उत्पन्न होती है परंतु वन विभाग के ऐसे नारे तथा प्रचार साधन वास्तव में जिले में दिखावटी साबित हो रहे है। जबकि वास्तिविकता इसके एकदम विपरीत है।
सत्ताधारी पक्ष के कुछ छुटभैया नेताओं ने अपनी पहुँच पकड़ की दम पर जंगलों को काट-काटकर आरा मशीनों की भेंट चढ़ा दिया है और अपनी जेबें गर्म कर ली है। कीमती लकड़ी रातों-रात अन्य नगरों के लिए निकल जाती है जो सुबह तक आरामशीनों द्वारा पटियों में तब्दील होकर अन्य स्थान के लिये रवाना हो जाती है इस आधुनिक युग में सागौन ने सोने का रूप धारण कर लिया है इसका विक्रय भारी मुनाफे का व्यापार बन चुका है अनेक जंगल माफिया मात्र दो नंबर की लकड़ी का व्यापार कर करोड़ों की दौलत से तुल रहे है, इसमें जंगल विभाग के अधिकारियों का हाथ होने से इंकार नही किया जा सकता है, इन कथित स्वार्थी दानवों ने पर्यावरण की चिन्ता न करते हुए प्रकृति द्वारा प्रदत्त दुर्लभ वन संपदा को अपने निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर फँूक दिया है यहां तक कि यह भी ज्ञात हुआ है कि लकड़ी तस्कर भूसा के ट्रकों में नीचे सागौन की लकडिया भरते है।
ऊपर से भूसा लादकर महानगरों में ऊँचे दामों पर दस्करी कर रहे है। ऐसा नही है कि मैदानी अमले को इस बात की जानकारी नही है जहां वन विभाग राज्य सरकार के अधीन ही न रहकर भारत सरकार के अधीन हो गया है फिर भी विभाग के अधिकारी कर्मचारियों में किसी प्रकार का भय नही है।
वन विभाग के नीचे से लेकर ऊपर तक पूरे अधिकारी इसमें दोषी है। जो कटे हुए वृक्षों को दुर्घटना, आगजनी बताकर अपनी कागजी कार्यवाही करते रहते है और अपना हिस्सा बसूलते रहते है। जबकि सरकार वनों के रखरखाव को लेकर काफी गंभीर है जिसके नियम और शर्तें कठोर तथा अवैध वनोपज कटाई आदि की रोकथाम से संबंधित है लेकिन प्रशासन के कुछ भ्रष्टï आला अधिकारी शासन की योजनाओं को चूना लगा रहे है। बेगमगंज तहसील में कुछ बर्षो पहले जहां घना जंगल हुआ करता था वह अब मैदान में बदल गया है दुर्लभ वन्यप्राणी प्रभावशाली लोगों की शिकार की भेंट चढ़ गए है। वन और वन्य प्राणी दोनों का अतापता नही है। चारों ओर धूल ही धूल उड़ती नजर आती है। जिसका खामयाजा हम ग्लोवल बार्मिग के रूप में देख रहे है। समय पर वर्षा न होना अनिश्चित वर्षा अनिश्चित गर्मी और मौसम में बेतुकापन अवैध वनों की कटाई और पर्यावरण से छेड़ाछाड़ का ही परीणाम है। अगर देखा जाए तो प्रद्यानमंत्री ग्राम सडक़ों योजना के अंतर्गत बनी हुई सडक़ों के किनारे पहले कई वर्षो पुराने बड़े-बड़े हरे भरे वृक्ष देखे जाते थे। जो बिना परमीशन के सडक़ निर्माण के समय जड़ से उखाडक़र बैंच दिए गए है।
इसी तरह ठेकेदारों ने अवैध उत्खन्न कर जंगल की वन संपदा को भी नष्टï कर दिया है। वृक्षारोपण के नाम पर लाखों का घोटाला अगर देखा जाए तो तहसील बेगमगंज में विगत पांच वर्षों से कराये जा रहे वृक्षारोपण के नाम पर प्रभारी अधिकारियों ने फर्जी मजदूरों के बिल-वाउचर लगाकर लाखों रूपए की राशि में हेराफेरी का मामला सामने आया है। जबकि देखा जाए तो वृक्षारोपण मात्र कागजी खानापूर्ति तक ही सीमित है। विगत वर्ष हिनौतिया, कोहनिया, खेरपुर, ढिमरोली, गोपालपुर सहित तहसील के ऐसे कई जंगलों में वृक्षारोपण किया गया है जो मात्र औपचारिकता तक ही सीमित रह गया है।
साथ ही साथ ग्राम पंचायतों में होने वाले सडक़ निर्माण कार्यो के ठेकेदारों द्वारा अवैध उत्खन्न कर पत्थर, मुरम का भी बिना अनुमति के उत्खनन वन विभाग से सांठ-गांठ कर कारोड़ों के बेशकीमती जंगलों एवं सरकारी सम्पत्ति को चूना लगाया जा रहा है और प्रशासन मूक दर्शक बना देख रहा है। इससे शासन एवं प्रशासन दोनों की कार्य प्रणाली प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। वन सुरक्षा से जुड़े सभी पहलुओं का अध्ययन कर उपयुक्त कदम उठाने होंगे इसके लिए सत्ता के दबाव को दरकिनार करते हुए जंगलों के प्रति अपने दायित्वों को देखना होगा। हमारा संदेश हरा भरा मध्य प्रदेश जैसे सुन्दर और नारे सडक़ों के किनारे बड़े-बड़े बोर्डों पर वन विभाग की ओर से लिखे दिये जाते हैं। जिन्हें देखकर नागरिकों में मानवीय कल्याण तथा देश भक्ति की भावना उत्पन्न होती है परंतु वन विभाग के ऐसे नारे तथा प्रचार साधन वास्तव में जिले में दिखावटी साबित हो रहे है। जबकि वास्तिविकता इसके एकदम विपरीत है।
सत्ताधारी पक्ष के कुछ छुटभैया नेताओं ने अपनी पहुँच पकड़ की दम पर जंगलों को काट-काटकर आरा मशीनों की भेंट चढ़ा दिया है और अपनी जेबें गर्म कर ली है। कीमती लकड़ी रातों-रात अन्य नगरों के लिए निकल जाती है जो सुबह तक आरामशीनों द्वारा पटियों में तब्दील होकर अन्य स्थान के लिये रवाना हो जाती है इस आधुनिक युग में सागौन ने सोने का रूप धारण कर लिया है इसका विक्रय भारी मुनाफे का व्यापार बन चुका है अनेक जंगल माफिया मात्र दो नंबर की लकड़ी का व्यापार कर करोड़ों की दौलत से तुल रहे है, इसमें जंगल विभाग के अधिकारियों का हाथ होने से इंकार नही किया जा सकता है, इन कथित स्वार्थी दानवों ने पर्यावरण की चिन्ता न करते हुए प्रकृति द्वारा प्रदत्त दुर्लभ वन संपदा को अपने निजी स्वार्थ की बलिवेदी पर फँूक दिया है यहां तक कि यह भी ज्ञात हुआ है कि लकड़ी तस्कर भूसा के ट्रकों में नीचे सागौन की लकडिया भरते है।
ऊपर से भूसा लादकर महानगरों में ऊँचे दामों पर दस्करी कर रहे है। ऐसा नही है कि मैदानी अमले को इस बात की जानकारी नही है जहां वन विभाग राज्य सरकार के अधीन ही न रहकर भारत सरकार के अधीन हो गया है फिर भी विभाग के अधिकारी कर्मचारियों में किसी प्रकार का भय नही है।
वन विभाग के नीचे से लेकर ऊपर तक पूरे अधिकारी इसमें दोषी है। जो कटे हुए वृक्षों को दुर्घटना, आगजनी बताकर अपनी कागजी कार्यवाही करते रहते है और अपना हिस्सा बसूलते रहते है। जबकि सरकार वनों के रखरखाव को लेकर काफी गंभीर है जिसके नियम और शर्तें कठोर तथा अवैध वनोपज कटाई आदि की रोकथाम से संबंधित है लेकिन प्रशासन के कुछ भ्रष्टï आला अधिकारी शासन की योजनाओं को चूना लगा रहे है। बेगमगंज तहसील में कुछ बर्षो पहले जहां घना जंगल हुआ करता था वह अब मैदान में बदल गया है दुर्लभ वन्यप्राणी प्रभावशाली लोगों की शिकार की भेंट चढ़ गए है। वन और वन्य प्राणी दोनों का अतापता नही है। चारों ओर धूल ही धूल उड़ती नजर आती है। जिसका खामयाजा हम ग्लोवल बार्मिग के रूप में देख रहे है। समय पर वर्षा न होना अनिश्चित वर्षा अनिश्चित गर्मी और मौसम में बेतुकापन अवैध वनों की कटाई और पर्यावरण से छेड़ाछाड़ का ही परीणाम है। अगर देखा जाए तो प्रद्यानमंत्री ग्राम सडक़ों योजना के अंतर्गत बनी हुई सडक़ों के किनारे पहले कई वर्षो पुराने बड़े-बड़े हरे भरे वृक्ष देखे जाते थे। जो बिना परमीशन के सडक़ निर्माण के समय जड़ से उखाडक़र बैंच दिए गए है।
इसी तरह ठेकेदारों ने अवैध उत्खन्न कर जंगल की वन संपदा को भी नष्टï कर दिया है। वृक्षारोपण के नाम पर लाखों का घोटाला अगर देखा जाए तो तहसील बेगमगंज में विगत पांच वर्षों से कराये जा रहे वृक्षारोपण के नाम पर प्रभारी अधिकारियों ने फर्जी मजदूरों के बिल-वाउचर लगाकर लाखों रूपए की राशि में हेराफेरी का मामला सामने आया है। जबकि देखा जाए तो वृक्षारोपण मात्र कागजी खानापूर्ति तक ही सीमित है। विगत वर्ष हिनौतिया, कोहनिया, खेरपुर, ढिमरोली, गोपालपुर सहित तहसील के ऐसे कई जंगलों में वृक्षारोपण किया गया है जो मात्र औपचारिकता तक ही सीमित रह गया है।
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