क्राइम रिपोर्टर// मुकेश वर्मा (कटनी // टाइम्स ऑफ क्राइम)
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कटनी . कालोनाइजर से जमा कराये जाने वाला आश्रय शुल्क नगर निगम के पूर्व एवं वर्तमान आयुक्तों ने नहीं दे पाये लेखा जोखा कलेक्टर एम सेल्वेंद्रम के पूछें जाने पर नहीं दे पा रहे हीसाब 30 साल से आश्रय शुल्क नहीं जमा कराया गयाकहां गयी आश्रय शुल्क की राशि
कलेक्टर के 30 साल से आश्रय शुल्क फूटी कौडी भी जमा नहीं कराया जब कलेक्टर ने पत्र के माध्यम से जवाब में सूचना मांगी गई तो पदस्त आयुक्त ने केवल 2005 से 2010 के बीच की लगभग 35 लाख रुपय जमा होने की सूचना दी उन्होंने इस राशि के इतने साल के ब्याज और पिछले 25 साल में जमा हुये आश्रय शुल्क व ब्याज की कोई जानकारी उपलब्घ नहीं कराई सूत्रों की मानें तो 30 साल की बतौर आश्रय शुल्क एक करोड़ से अधिक एंव पचास लाख रुपय से अघिक ब्याज जमा हुआ है यह राशि कहॉ खर्च की गई इसका कोई हिसाब निगम आयुक्त पास नहीं है।मामले का सही प्रारुप यह है
शहर में कालोनियॉ विकसीत करने वाले कालोनाईजरों को निगम में निर्घारित राशि बतौर आश्रय शुल्क जमा कराना पडता है यह राशि जमा होने के बाद ही रजिस्ट्रेशन होता है। धारा के मुताबिक आश्रय शुल्क ीक जमा राशि को कलेक्टर एंव परियोजना शहरी विकास अभिकरण डूडा के संयुक्त खाते में जमा कराया जाता है ा जबकि इसके पूर्व में जो निगम आयुक्त स्थापित थे उन्होंने इस राशि को अपने पास रख कर मनमाने तरीके खार्च किया जैसा चाहा उस प्रकार दुरुपयोग किया। तथा जब कलेक्टर ने आश्रय के हिसाब की जानकारी मांगी निगम आयुक्त आश्रय राशि का सही तरीके से लेखा जोखा देने में असमर्थ नजर आये।
हो सकती है निगम आयुक्तों पर कारवाही
धारा के अनुसार आश्रय शुल्क का अलग खाता खोल जाना चाहिये तथा इस राशि को अलग नही रखा जाता इस राशि के ब्याज के लालच में निगम आयुक्तों इस राशि को अपने नियंत्रण में रखा और मूलधन को भी निगम के अन्य कार्यों खर्च करके लाखों रुपय कमाये गये।
निगम के उपर जिला प्रशासन ने किया नजरें टेडी
जिला प्रशासन भी वर्षों बाद नींद से जाग कर नगरनिगम के उपर अपनी नजरें टेडी करते हुये नगरनिगम से मांगा आश्रय राशि का लेखा जोखा।
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