सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा
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27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि जब सड़कें टूटी है तो उन पर टोल वसूली क्यों की जा रही है। कोर्ट ने यह भी माना कि ट्रकों के ओवरलोड होने की वजह से सड़कें टूटी हैं। ट्रकों के ओवर लोड का खामियाजा टोल चुकाने वाले वाहन मालिक क्यों भुगते। असल में सरकार की टोल नीति भ्रष्टाचार से भरी पड़ी है। देश का शायद ही कोई मार्ग होगा, जिस पर टोल न चुकाना पड़ता हो। माना तो यह जाता है कि टोल की राशि धीरे-धीरे कम होगी, लेकिन भ्रष्ट राजनेताओं, ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ की वजह से हर छह माह में टोल की राशि बढ़ जाती है। अजमेर और जयपुर के बीच जब टोल शुरू हुआ तो 33 रुपए निर्धारित था, लेकिन आज 95 रुपए वसूले जा रहे हैं। इस बीच अजमेर से किशनगढ़ के बीच भी 40 रुपए टोल के वसूले जा रहे हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसा कौन सा फार्मूला है, जिससे टोल की वृद्धि होती रहती है। सरकार जब रोड टैक्स वसूलती है तो फिर टोल टैक्स की वसूली क्यों की जाती है और फिर टूटी सड़कों पर टोल वसूली तो और भी बूरी बात है। असल में टोल वसूली के काम में राजनेताओं, ठेकेदारों और अधिकारियों का जो भ्रष्ट गठजोड़ बना हुआ है, उसकी वजह से आम लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है।
सरकार कांग्रेस की हो, भाजपा की हो या किसी क्षेत्रीय दल की। नेताओं के रिश्तेदार भी टोल वसूली के काम में सांझेदार हैं। एक बार सड़क निर्माण में पैसा लगाने के बाद जिन्दगी भर वसूली का काम होता रहता है। केन्द्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी सड़कों के विकास के बारे में बहुत बोलते हैं, लेकिन टोल वसूली पर गडकरी की जुबान पर ताला लग जाता है। समझ में नहीं आता कि सड़क निर्माण में गडकरी अपनी पीठ क्यों थपथपाते हैं। जब सड़क निर्माण का खर्च और मरम्मत की वसूली आम जनता से ही होनी है तो फिर जनता के वोट से चुनी सरकार का क्या महत्त्व है। क्या जनता इसाीलिए वोट देती है कि सड़क पर चलने का भी टैक्स दिया जाए? यदि देशभर के टोल सिस्टम की जांच की जाए तो पता चल जाएगा कि देश के राजनेताओं और बड़े अधिकारियों के रिश्तेदार भी संबंधित कंपनियों की लूट खसोट में भागीदार है। सुप्रीम कोर्ट को देशभर की टोल प्रणाली की भी समीक्षा करनी चाहिए। टोल वसूली को लेकर देशभर में आक्रोश है। नरेन्द्र मोदी को जो 282 पूर्णबहुमत वाली सीटें मिली है, उसके पीछे एक कारण कांग्रेस की टोल नीति भी रही है। यदि मोदी ने टोल नीति में बदलाव नहीं किया तो अगले चुनाव में भाजपा और मोदी को भी खामियाजा उठाना पड़ेगा।
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27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि जब सड़कें टूटी है तो उन पर टोल वसूली क्यों की जा रही है। कोर्ट ने यह भी माना कि ट्रकों के ओवरलोड होने की वजह से सड़कें टूटी हैं। ट्रकों के ओवर लोड का खामियाजा टोल चुकाने वाले वाहन मालिक क्यों भुगते। असल में सरकार की टोल नीति भ्रष्टाचार से भरी पड़ी है। देश का शायद ही कोई मार्ग होगा, जिस पर टोल न चुकाना पड़ता हो। माना तो यह जाता है कि टोल की राशि धीरे-धीरे कम होगी, लेकिन भ्रष्ट राजनेताओं, ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ की वजह से हर छह माह में टोल की राशि बढ़ जाती है। अजमेर और जयपुर के बीच जब टोल शुरू हुआ तो 33 रुपए निर्धारित था, लेकिन आज 95 रुपए वसूले जा रहे हैं। इस बीच अजमेर से किशनगढ़ के बीच भी 40 रुपए टोल के वसूले जा रहे हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसा कौन सा फार्मूला है, जिससे टोल की वृद्धि होती रहती है। सरकार जब रोड टैक्स वसूलती है तो फिर टोल टैक्स की वसूली क्यों की जाती है और फिर टूटी सड़कों पर टोल वसूली तो और भी बूरी बात है। असल में टोल वसूली के काम में राजनेताओं, ठेकेदारों और अधिकारियों का जो भ्रष्ट गठजोड़ बना हुआ है, उसकी वजह से आम लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है।
सरकार कांग्रेस की हो, भाजपा की हो या किसी क्षेत्रीय दल की। नेताओं के रिश्तेदार भी टोल वसूली के काम में सांझेदार हैं। एक बार सड़क निर्माण में पैसा लगाने के बाद जिन्दगी भर वसूली का काम होता रहता है। केन्द्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी सड़कों के विकास के बारे में बहुत बोलते हैं, लेकिन टोल वसूली पर गडकरी की जुबान पर ताला लग जाता है। समझ में नहीं आता कि सड़क निर्माण में गडकरी अपनी पीठ क्यों थपथपाते हैं। जब सड़क निर्माण का खर्च और मरम्मत की वसूली आम जनता से ही होनी है तो फिर जनता के वोट से चुनी सरकार का क्या महत्त्व है। क्या जनता इसाीलिए वोट देती है कि सड़क पर चलने का भी टैक्स दिया जाए? यदि देशभर के टोल सिस्टम की जांच की जाए तो पता चल जाएगा कि देश के राजनेताओं और बड़े अधिकारियों के रिश्तेदार भी संबंधित कंपनियों की लूट खसोट में भागीदार है। सुप्रीम कोर्ट को देशभर की टोल प्रणाली की भी समीक्षा करनी चाहिए। टोल वसूली को लेकर देशभर में आक्रोश है। नरेन्द्र मोदी को जो 282 पूर्णबहुमत वाली सीटें मिली है, उसके पीछे एक कारण कांग्रेस की टोल नीति भी रही है। यदि मोदी ने टोल नीति में बदलाव नहीं किया तो अगले चुनाव में भाजपा और मोदी को भी खामियाजा उठाना पड़ेगा।
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