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बालाघाट, आखीरकार लांजी में समरिते की वापसी हो गई है। टक्कर कांटे की तो थी, मगर भाजपा के दिग्गजों को इस टक्कर ने मुकाबला विहिन बना दिया। अराजक, भगोड़ा और नक्सल के ठप्पे ने बदनसीब का साथ दिया और लांजी नगरपंचायत भाजपा कांग्रेस मुक्त बन गई। लांजी की जनता के मूड ने भाजपा को जबरदस्त तरीके से चेताया है कि उसकी अपनी राह और आवाज है। यह भी कि नगरपंचायत की सीट किसी को भी पैसों और शराब के भरोसे परोसी हुई थाली के रूप में नहीं मिलती है।
सत्ता के लिए जमीन पर हाड़ तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। केवल किसी की छवि को ध्वस्त करने से वह नहीं मिलती। इसके लिए बातें नहीं विजन साफ होना चाहिये। यह सही है कि भाजपा के पास हर चुनाव मंें विजन और मेनोफेस्टो भी होता है लेकिन मेनोेफेस्टो के अनुसार कभी कोई काम नहीं हुआ है। वैसे भी लांजी क्षेत्र की जनता का भरोसा भाजपा से पहले ही उठ चुका था। जिसका नतीजा विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी को 32 हजार वोटों की लीड से पता चल जाता है।
लांजी में भाजपा प्रत्याशी की हार पूर्व कार्यकाल में स्टाम्प शुल्क घोटाल और अहंकार का अटटाहस भी है। लोकतंत्र के खिलाफ जाकर चुनाव में पैसा और शराब से चुनावी नैया पार लगाने से जीत के करीब जरूर पहुंचा जा सकता है लेकिन जीत जाना इतना आसान नहीं होता। किसी भी पार्टी को यह याद रखना चाहिये की चुनाव जीतने से अधिक जहमत उसे बनाये रखने मंे होती है।
नई सुबह आती है तो रात जाने की खुशी होती है पर अंधेरे के लौटने का अंदेशा भी खत्म नहीं होता। चुनाव जीतने की चुनौती से पार पाने वालो से सत्ता और सरकार कितना शीर्षासन कराती है, यह जल्द ही अहसास हो जाएगा। फिलहाल लांजीनगर की फीजा मंे बसपा के जीत की खुमारी बहुजनों के लिए समरिते की खुमारी है और हारने वालो के लिए यह संदेश भी है कि जनता किसी लहर में नहीं बहती। जरूरत पड़ने पर वह खुद सुनामी बन सकती है।
बालाघाट, आखीरकार लांजी में समरिते की वापसी हो गई है। टक्कर कांटे की तो थी, मगर भाजपा के दिग्गजों को इस टक्कर ने मुकाबला विहिन बना दिया। अराजक, भगोड़ा और नक्सल के ठप्पे ने बदनसीब का साथ दिया और लांजी नगरपंचायत भाजपा कांग्रेस मुक्त बन गई। लांजी की जनता के मूड ने भाजपा को जबरदस्त तरीके से चेताया है कि उसकी अपनी राह और आवाज है। यह भी कि नगरपंचायत की सीट किसी को भी पैसों और शराब के भरोसे परोसी हुई थाली के रूप में नहीं मिलती है।
सत्ता के लिए जमीन पर हाड़ तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। केवल किसी की छवि को ध्वस्त करने से वह नहीं मिलती। इसके लिए बातें नहीं विजन साफ होना चाहिये। यह सही है कि भाजपा के पास हर चुनाव मंें विजन और मेनोफेस्टो भी होता है लेकिन मेनोेफेस्टो के अनुसार कभी कोई काम नहीं हुआ है। वैसे भी लांजी क्षेत्र की जनता का भरोसा भाजपा से पहले ही उठ चुका था। जिसका नतीजा विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी को 32 हजार वोटों की लीड से पता चल जाता है।
लांजी में भाजपा प्रत्याशी की हार पूर्व कार्यकाल में स्टाम्प शुल्क घोटाल और अहंकार का अटटाहस भी है। लोकतंत्र के खिलाफ जाकर चुनाव में पैसा और शराब से चुनावी नैया पार लगाने से जीत के करीब जरूर पहुंचा जा सकता है लेकिन जीत जाना इतना आसान नहीं होता। किसी भी पार्टी को यह याद रखना चाहिये की चुनाव जीतने से अधिक जहमत उसे बनाये रखने मंे होती है।
नई सुबह आती है तो रात जाने की खुशी होती है पर अंधेरे के लौटने का अंदेशा भी खत्म नहीं होता। चुनाव जीतने की चुनौती से पार पाने वालो से सत्ता और सरकार कितना शीर्षासन कराती है, यह जल्द ही अहसास हो जाएगा। फिलहाल लांजीनगर की फीजा मंे बसपा के जीत की खुमारी बहुजनों के लिए समरिते की खुमारी है और हारने वालो के लिए यह संदेश भी है कि जनता किसी लहर में नहीं बहती। जरूरत पड़ने पर वह खुद सुनामी बन सकती है।
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