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भोपाल। प्रदेश के एक आईएएस अधिकारी प्रमोद अग्रवाल के तुगलकी फरमानों ने राज्य के लोक निर्माण विभाग को हलकान कर रखा है। प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाने का मुख्यमंत्री का सपना भी चूर-चूर हो रहा है। सड़कों के काम ठप हैं ठेकेदार घर बैठ गए हैं, तो इंजीनियरों ने काम से तौबा कर ली है। वजह यह है कि सड़कों की तबाही के लिए जिम्मेदारों को बचाया और काम करने वालों को सताया जा रहा है।
लोनिवि में फैले तुगलकी फरमानों के आतंक की ताजा भेंट राजधानी परियोजना में पदस्थ कार्यपालन यंत्री वीके आरख चढ़े हैं। उन्हें पांच साल पहले बनी भोपाल के हुजूर विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाके की एक सड़क टीलाखेड़ी-जाटखेड़ी सड़क के मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए निलंबित किया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि न तो सरकार ने आरख का पक्ष सुनना गवारा किया और न अधीक्षण यंत्रियों की दो-दो जांच रपटों के निष्कर्षों पर गौर किया गया जिन्में आरख को क्लीन चीट दी गई थी। चौकाने वाली बात यह भी है कि पिछले 5 सालों के दौरान जो दो कार्यपालन यंत्री (संजय खांडे और अनंत रघुवंशी)वहां पदस्थ हुए उन्हें बख्श दिया गया। जबकि इस सड़क की बर्बादी के लिए वही जिम्मेदार थे। आरख को सिर्फ इसलिए सूली पर चढ़ाया गया क्योंकि प्रमुख सचिव विभाग की अंदरूनी राजनीति के दुष्चक्र में उलझे हुए हैं।
यह है मामला------
1 टीलाखेड़ी-जाटखेड़ी-लसूडिय़ा घाट की 17 किमी लंबी सड़क 2007 से 2010 के बीच 5 करोड़ 70 लाख की लागत से बनाई गई। उस वक्त इस क्षेत्र के कार्यपालन यंत्री वीके आरख थे। 11जून 2010 से 10 जून 2013 तक यह सड़क 3 साल की परफार्मेंस गारंटी स्कीम के तहत बनी थी।
2 सड़क बनने के बाद यहां प्रभारी ईई संजय खांडे थे। खांडे ने 2 साल 11 महीने तक सड़क की मरम्मत के लिए ठेकेदार आरके गुप्ता को कोई पत्र नहीं लिखा। लेकिन 5 मई 2013 को उन्हें सड़क की बदहाली की याद आई। उन्होंने ठेकेदार को 3 दिन की मोहलत देते हुए मरम्मत कराने को कहा अन्यथा जमा रकम को राजसात करने की चेतावनी दी। 10 जून को फिर तीन दिन की मोहलत दी गई लेकिन तब तक गारंटी की अवधि खत्म हो गई और ठेकेदार को जमा रकम रिलीज हो गई।
3 जाहिर है कि इसके लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदारी संजय खांडे की है। लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। यदि संजय खांडे जिम्मेदार नहीं है तो फिर यह माना जाए कि सड़क तीन साल ठीकठाक थी। इसके बाद ही वह खराब होना शुरू हुई। तो फिर वीके आरख को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है?
4 जुलाई 2013 में भारी बारिश से यह सड़क खराब हुई। बड़े तालाब के कैचमेंट में स्थित होने से पानी का भराव होने से यह हालात बने। उस वक्त नियमानुसार आडिटर जनरल को इसकी सूचना टेलीग्राम से दी गई।
7 बारिश में तबाह होने वाली सड़कों की मरम्मत के लिए शासन द्वारा मरम्मत की मद में राशि दी जाती है। इस सड़क के रखरखाव के लिए 98.64 लाख का एफडीआर (बाढ़ से क्षति की मरम्मत) प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन इसके बाद न तो टेंडर निकाले गए और न सड़क की कोई मरम्मत हुई ।
5 इस अवधि में इलाके के कार्यपालन यंत्री अनंत रघुवंशी थे, जो अभी भी कार्यरत हैं। जाहिर है कि संजय खांडे के बाद यदि कोई ईई जिम्मेदार है तो वह अनंत रघुवंशी हैं। लेकिन यह दोनों कार्रवाई की गाज से महफूज हैं और आरख के साथ एसडीओ गौरी तथा सबइंजीनियर घनश्याम सक्सेना निलंबन से परेशान है। दिलचस्प यह भी है कि इस सड़क के लिए एक महीने में तीसरी बार कराई गई जांच में खुद रघुवंशी को शरीक किया गया।
6 इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि दो-दो अधीक्षण यंत्रियों से इसकी जांच कराई गई लेकिन जब दोनों की रपट में आरख को क्लीन चिट दी गई तो मुख्य अभियंता को चलित लैब के साथ पांच साल पुरानी सड़क की पड़ताल के लिए भेजा। उसकी जांच 30 और 31 जुलाई को हुई। लेकिन उसकी रपट आने के पहले ही 30 जुलाई को निलंबन आदेश जारी कर दिए।
7 लोनिवि में चल रहे भर्रे खाते का यह मामला तो एक मिसाल भर है। प्रदेश की अन्य कई सड़कें भी तबाह हो रही हैं और विभाग के मुखिया आरोपियों की बजाए बेकसूरों को सूली पर लटका रहे हैं।
भोपाल। प्रदेश के एक आईएएस अधिकारी प्रमोद अग्रवाल के तुगलकी फरमानों ने राज्य के लोक निर्माण विभाग को हलकान कर रखा है। प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाने का मुख्यमंत्री का सपना भी चूर-चूर हो रहा है। सड़कों के काम ठप हैं ठेकेदार घर बैठ गए हैं, तो इंजीनियरों ने काम से तौबा कर ली है। वजह यह है कि सड़कों की तबाही के लिए जिम्मेदारों को बचाया और काम करने वालों को सताया जा रहा है।
लोनिवि में फैले तुगलकी फरमानों के आतंक की ताजा भेंट राजधानी परियोजना में पदस्थ कार्यपालन यंत्री वीके आरख चढ़े हैं। उन्हें पांच साल पहले बनी भोपाल के हुजूर विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाके की एक सड़क टीलाखेड़ी-जाटखेड़ी सड़क के मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए निलंबित किया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि न तो सरकार ने आरख का पक्ष सुनना गवारा किया और न अधीक्षण यंत्रियों की दो-दो जांच रपटों के निष्कर्षों पर गौर किया गया जिन्में आरख को क्लीन चीट दी गई थी। चौकाने वाली बात यह भी है कि पिछले 5 सालों के दौरान जो दो कार्यपालन यंत्री (संजय खांडे और अनंत रघुवंशी)वहां पदस्थ हुए उन्हें बख्श दिया गया। जबकि इस सड़क की बर्बादी के लिए वही जिम्मेदार थे। आरख को सिर्फ इसलिए सूली पर चढ़ाया गया क्योंकि प्रमुख सचिव विभाग की अंदरूनी राजनीति के दुष्चक्र में उलझे हुए हैं।
यह है मामला------
1 टीलाखेड़ी-जाटखेड़ी-लसूडिय़ा घाट की 17 किमी लंबी सड़क 2007 से 2010 के बीच 5 करोड़ 70 लाख की लागत से बनाई गई। उस वक्त इस क्षेत्र के कार्यपालन यंत्री वीके आरख थे। 11जून 2010 से 10 जून 2013 तक यह सड़क 3 साल की परफार्मेंस गारंटी स्कीम के तहत बनी थी।
2 सड़क बनने के बाद यहां प्रभारी ईई संजय खांडे थे। खांडे ने 2 साल 11 महीने तक सड़क की मरम्मत के लिए ठेकेदार आरके गुप्ता को कोई पत्र नहीं लिखा। लेकिन 5 मई 2013 को उन्हें सड़क की बदहाली की याद आई। उन्होंने ठेकेदार को 3 दिन की मोहलत देते हुए मरम्मत कराने को कहा अन्यथा जमा रकम को राजसात करने की चेतावनी दी। 10 जून को फिर तीन दिन की मोहलत दी गई लेकिन तब तक गारंटी की अवधि खत्म हो गई और ठेकेदार को जमा रकम रिलीज हो गई।
3 जाहिर है कि इसके लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदारी संजय खांडे की है। लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। यदि संजय खांडे जिम्मेदार नहीं है तो फिर यह माना जाए कि सड़क तीन साल ठीकठाक थी। इसके बाद ही वह खराब होना शुरू हुई। तो फिर वीके आरख को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है?
4 जुलाई 2013 में भारी बारिश से यह सड़क खराब हुई। बड़े तालाब के कैचमेंट में स्थित होने से पानी का भराव होने से यह हालात बने। उस वक्त नियमानुसार आडिटर जनरल को इसकी सूचना टेलीग्राम से दी गई।
7 बारिश में तबाह होने वाली सड़कों की मरम्मत के लिए शासन द्वारा मरम्मत की मद में राशि दी जाती है। इस सड़क के रखरखाव के लिए 98.64 लाख का एफडीआर (बाढ़ से क्षति की मरम्मत) प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन इसके बाद न तो टेंडर निकाले गए और न सड़क की कोई मरम्मत हुई ।
5 इस अवधि में इलाके के कार्यपालन यंत्री अनंत रघुवंशी थे, जो अभी भी कार्यरत हैं। जाहिर है कि संजय खांडे के बाद यदि कोई ईई जिम्मेदार है तो वह अनंत रघुवंशी हैं। लेकिन यह दोनों कार्रवाई की गाज से महफूज हैं और आरख के साथ एसडीओ गौरी तथा सबइंजीनियर घनश्याम सक्सेना निलंबन से परेशान है। दिलचस्प यह भी है कि इस सड़क के लिए एक महीने में तीसरी बार कराई गई जांच में खुद रघुवंशी को शरीक किया गया।
6 इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि दो-दो अधीक्षण यंत्रियों से इसकी जांच कराई गई लेकिन जब दोनों की रपट में आरख को क्लीन चिट दी गई तो मुख्य अभियंता को चलित लैब के साथ पांच साल पुरानी सड़क की पड़ताल के लिए भेजा। उसकी जांच 30 और 31 जुलाई को हुई। लेकिन उसकी रपट आने के पहले ही 30 जुलाई को निलंबन आदेश जारी कर दिए।
7 लोनिवि में चल रहे भर्रे खाते का यह मामला तो एक मिसाल भर है। प्रदेश की अन्य कई सड़कें भी तबाह हो रही हैं और विभाग के मुखिया आरोपियों की बजाए बेकसूरों को सूली पर लटका रहे हैं।
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