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-नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रसित पाँचवी पास जोगा की पढ़ाई भी हुई बंद
-जिला मुख्यालय से लगे गाँव में समय पर नहीं मिल रहा प्राथमिक उपचार
एक बहन अपने भाई के ईलाज के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ चुकी है | यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है, यह सच्चाई है, दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर तोयलंका गाँव के देवा डोंगरी पारा की, जहाँ हिरमा अपने परिवार के साथ अभाव में भी खुशी से जीवन यापन कर रहा था | किन्तु दो माह पहले जैसे ही उसे पता चला कि उसके बेटे जोगा को सामान्य से अलग तरह की बिमारी हो गई है | उसके पैरों तले जमीन खिसक गई, मानो उस पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा हो | दो माह पहले गाँव में कोई अस्पताल नहीं होने के कारण उप स्वास्थ्य केंद्र गदापाल में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता को दिखाया था | जिसने दंतेवाड़ा जाकर ईलाज कराने को कहा किन्तु दंतेवाड़ा में ईलाज नहीं मिला और उसे वहाँ से जगदलपुर के मेडिकल कालेज अस्पताल ले जाने कहा गया | परिवार में उसकी पत्नी आयते के अलावा बड़ी बेटी ललीता सोड़ी रहती है | सोलह वर्षीय ललीता ने कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय से दसवीं की परीक्षा पास की है | तोयलंका गाँव में हिन्दी समझने और बोलने वाले बहुत कम लोग हैं | हिरमा की बेटी ललीता उनमें से एक हिन्दी भाषी लड़की है | जगदलपुर शहर में उसके माता पिता के लिए हिन्दी न जानना बहुत बड़ी समस्या थी | इसलिए गाँव के लोगों से आर्थिक मदद लेकर ललीता अपने पिता के साथ भाई जोगा का ईलाज कराने जगदलपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले गई | कुछ दिन अस्पताल में भर्ती कराने के बाद पैसे ख़त्म हो गए, किन्तु वहाँ भी भाई का ईलाज नहीं होने के कारण निराश लौट आई | गाँव आकर और रुपयों का बंदोबस्त कर ललीता अपने पिता के साथ भाई को एम.पी.एम अस्पताल जगदलपुर में भर्ती कराया | वहाँ से पैसे खत्म होने पर वो अपने भाई को लेकर तोयलंका लौट आई | शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के बाद भी ललीता अपने भाई जोगा सोड़ी के ईलाज कि चिंता में स्कूल नहीं जा रही है | और जाये भी तो कैसे उसके छोटे भाई कि जिन्दगी का सवाल है |
नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रसित है जोगा
टेस्ट रिपोर्ट के अनुसार जोगा को नेफ्रोटिक सिंड्रोम है | इस बिमारी में किडनी ठीक ढंग से काम करना बंद कर देता है | किडनी के ठीक से काम नहीं करने के कारण शरीर में प्रोटीन कि कमी होने लगता है | प्रोटीन कि कमी के कारण किडनी के रास्ते शरीर का पानी ज्यादा बाहर नहीं निकल पाता है | इसलिए पानी शरीर के अन्य हिस्सों में जमा होने लगता है | जोगा के शरीर में भी पानी चेहरे से लेकर पैर तक भर गया है | चिकित्सकों के मुताबिक इसका ईलाज संभव है किन्तु समय पर सही ईलाज नहीं मिलने से मरीज कि जान पर बन सकती है |
स्मार्ट कार्ड नहीं मिला जोगा को
परिवार में बीमार जोगा को छोड़कर सभी के स्मार्ट कार्ड बन गए किन्तु बीमार जोगा सोड़ी के नाम से स्मार्ट कार्ड आवेदन करने के बाद भी जारी नहीं हुए | जिसके कारण सरकार से मिलने वाली थोड़ी सी उपचार राशि स्वास्थ्य बीमे के रूप में नहीं मिल पा रही है | सरकारी अस्पताल में ईलाज नहीं मिलने और निजी अस्पताल में महँगे उपचार के कारण जोगा का परिवार कर्जों में डूब गया है | ग्राम के सरपंच लक्कू राम बारसा का कहना है कि गाँव की किसी भी समस्या का निराकरण सरकारी अधिकारीयों और नेताओं के पास जाने से नहीं होता है | नेता आश्वासन देते हैं और अधिकारी आवेदन लेकर रख लेते हैं |
गैर सरकारी संगठन एवं सरकारी विभागों को नहीं दिखते मरीज
बस्तर में काम करने वाले क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन, क्षेत्र के विकास के लिए काम करने का दावा तो करते हैं | किन्तु इनका दावा तब खोखला साबित होता है जब इन इलाकों में ऐसे कई पीड़ित मरीज मिलेंगे जो कुपोषण और अन्य तरह कि बीमारियों से दम तोड़ रहे हैं | सरकारी मशीनरी केवल जिला मुख्यालय तक सिमित है | गाँवों में साल में एक या दो बार कोई स्वास्थ्य शिविर जैसा कार्यक्रम लगता है तभी लोगों का ईलाज हो पाता है | उसका भी उद्देश्य केवल पब्लिसिटी और खानापूर्ति के लिए ही होता है |
-नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रसित पाँचवी पास जोगा की पढ़ाई भी हुई बंद
-जिला मुख्यालय से लगे गाँव में समय पर नहीं मिल रहा प्राथमिक उपचार
एक बहन अपने भाई के ईलाज के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ चुकी है | यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है, यह सच्चाई है, दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर तोयलंका गाँव के देवा डोंगरी पारा की, जहाँ हिरमा अपने परिवार के साथ अभाव में भी खुशी से जीवन यापन कर रहा था | किन्तु दो माह पहले जैसे ही उसे पता चला कि उसके बेटे जोगा को सामान्य से अलग तरह की बिमारी हो गई है | उसके पैरों तले जमीन खिसक गई, मानो उस पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा हो | दो माह पहले गाँव में कोई अस्पताल नहीं होने के कारण उप स्वास्थ्य केंद्र गदापाल में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता को दिखाया था | जिसने दंतेवाड़ा जाकर ईलाज कराने को कहा किन्तु दंतेवाड़ा में ईलाज नहीं मिला और उसे वहाँ से जगदलपुर के मेडिकल कालेज अस्पताल ले जाने कहा गया | परिवार में उसकी पत्नी आयते के अलावा बड़ी बेटी ललीता सोड़ी रहती है | सोलह वर्षीय ललीता ने कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय से दसवीं की परीक्षा पास की है | तोयलंका गाँव में हिन्दी समझने और बोलने वाले बहुत कम लोग हैं | हिरमा की बेटी ललीता उनमें से एक हिन्दी भाषी लड़की है | जगदलपुर शहर में उसके माता पिता के लिए हिन्दी न जानना बहुत बड़ी समस्या थी | इसलिए गाँव के लोगों से आर्थिक मदद लेकर ललीता अपने पिता के साथ भाई जोगा का ईलाज कराने जगदलपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले गई | कुछ दिन अस्पताल में भर्ती कराने के बाद पैसे ख़त्म हो गए, किन्तु वहाँ भी भाई का ईलाज नहीं होने के कारण निराश लौट आई | गाँव आकर और रुपयों का बंदोबस्त कर ललीता अपने पिता के साथ भाई को एम.पी.एम अस्पताल जगदलपुर में भर्ती कराया | वहाँ से पैसे खत्म होने पर वो अपने भाई को लेकर तोयलंका लौट आई | शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के बाद भी ललीता अपने भाई जोगा सोड़ी के ईलाज कि चिंता में स्कूल नहीं जा रही है | और जाये भी तो कैसे उसके छोटे भाई कि जिन्दगी का सवाल है |
नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रसित है जोगा
टेस्ट रिपोर्ट के अनुसार जोगा को नेफ्रोटिक सिंड्रोम है | इस बिमारी में किडनी ठीक ढंग से काम करना बंद कर देता है | किडनी के ठीक से काम नहीं करने के कारण शरीर में प्रोटीन कि कमी होने लगता है | प्रोटीन कि कमी के कारण किडनी के रास्ते शरीर का पानी ज्यादा बाहर नहीं निकल पाता है | इसलिए पानी शरीर के अन्य हिस्सों में जमा होने लगता है | जोगा के शरीर में भी पानी चेहरे से लेकर पैर तक भर गया है | चिकित्सकों के मुताबिक इसका ईलाज संभव है किन्तु समय पर सही ईलाज नहीं मिलने से मरीज कि जान पर बन सकती है |
स्मार्ट कार्ड नहीं मिला जोगा को
परिवार में बीमार जोगा को छोड़कर सभी के स्मार्ट कार्ड बन गए किन्तु बीमार जोगा सोड़ी के नाम से स्मार्ट कार्ड आवेदन करने के बाद भी जारी नहीं हुए | जिसके कारण सरकार से मिलने वाली थोड़ी सी उपचार राशि स्वास्थ्य बीमे के रूप में नहीं मिल पा रही है | सरकारी अस्पताल में ईलाज नहीं मिलने और निजी अस्पताल में महँगे उपचार के कारण जोगा का परिवार कर्जों में डूब गया है | ग्राम के सरपंच लक्कू राम बारसा का कहना है कि गाँव की किसी भी समस्या का निराकरण सरकारी अधिकारीयों और नेताओं के पास जाने से नहीं होता है | नेता आश्वासन देते हैं और अधिकारी आवेदन लेकर रख लेते हैं |
गैर सरकारी संगठन एवं सरकारी विभागों को नहीं दिखते मरीज
बस्तर में काम करने वाले क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन, क्षेत्र के विकास के लिए काम करने का दावा तो करते हैं | किन्तु इनका दावा तब खोखला साबित होता है जब इन इलाकों में ऐसे कई पीड़ित मरीज मिलेंगे जो कुपोषण और अन्य तरह कि बीमारियों से दम तोड़ रहे हैं | सरकारी मशीनरी केवल जिला मुख्यालय तक सिमित है | गाँवों में साल में एक या दो बार कोई स्वास्थ्य शिविर जैसा कार्यक्रम लगता है तभी लोगों का ईलाज हो पाता है | उसका भी उद्देश्य केवल पब्लिसिटी और खानापूर्ति के लिए ही होता है |
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