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(फिरदौस अंसारी )
भोपाल - राजधानी मे बेशुमार अस्पताल हे. कई आलीशान निजी अस्पताल हे तो सरकारी अस्पताल भी आधुनिक संसाधनों से लेस हे. इसके बावजूद इलाज मे लापरवाही के चलते मौतों का आंकड़ा थम नहीं रहा. सरकारी अस्पतालों मे पहुँचने वाले मरीज अपने आप को लाचार मेहसूस कर रहे हे. और निजी अस्पतालों मे commiss ion की बंदर बाँट जारी हे. जिस पर लगाम लगाने मे जिला प्रशासन पूरी तरह लाचार साबित हो रहा हे. जिसका खमियाजा माँ अपने बेटे को, बहन अपने भाई को, बच्चे अपने बाप को और पत्नी अपने पति को खो कर भुगत रही हे.
हाल ही मे घटित हुए एक घटना ने अस्पतालों को सवालो के घेरे मे खड़ा कर दिया हे. जहाँ समय पर सही इलाज नहीं मिलने के का रण 32 साल के नौ जवान की तड़पते हुए जान चली गई. शहीद नगर मे रहने वाले नौशाद के दो बच्चे हे . वह बी आर टी एस की बस चलाने का काम करता था. 6 अक्टूबर की रात नौशाद के सर मे दर्द होना शुरू हुआ तो उसकी लाचार माँ पेदल ही उसे रात के 3 बजे किसी तरह कमला नेहरू अस्पताल लेकर पहुँची. जहाँ डाक्टर ने उसे इलाज देने के बजाय वापस लौटा दिया.
तर्क यह दिया की अस्पताल मे बिस्तर खाली नहीं हे. मजबूर और लाचार माँ उसे वापस घर ले गई. अपनी और से हर मुमकिन कोशिश कर रही थी की उसके बच्चे की तकलीफ कुछ कम हो जाय. लेकिन नौशाद असहनीय पीड़ा सेहते हुए बेहोश हो चुका था. पड़ोसियो ने नौशाद की गम्भीर हालत को देख उसे एम्बुलेंस से कमला नेहरू पहुँचाया लेकिन उसे यहाँ से बिना इलाज दिये हमीदिया अस्पताल पहुँचा दिया गया. i c u मेडिकल वार्ड मे नौशाद एक घंटे तक पड़ा रहा लेकिन अभी तक उसका इलाज शुरू नहीं हुआ था. उसके परिजन डॉक्टरों के सामने इलाज शुरू करने के लिये गिड़गिड़ा रहे थे.
लेकिन डॉक्टर उनकी बात सुनने के बजाय अभद्र व्यवहार कर रहे थे. उन्होने महिलाओ तक को नहीं बक्शा था. इलाके के पार्षद के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टर ने इलाज शुरू किया. सीटी स्केन्न कराने निजी पेथोलोजी मे भेजा. जहाँ से रिपोर्ट आई तो सब के होश उड़ गय. जिसमे बताया गया था की कुछ ही घंटों पेहले नौशाद के दिमाग की नस फट गई हे हो लगातर खून का रिसाव हो रहा हे. रिपोर्ट देखते ही हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर्स ने हाथ खड़े कर दिये.
निजी अस्पताल मे लेजाकर तुरन्त ऑपरेशन कराने की सलाह दे डाली. नौशाद को तुरन्त लालघाटी स्थित सर्वोत्तम अस्पताल ले जाया गया. जहाँ सीनियर डॉक्टर ने अस्पताल आना मुनासिब नहीं समझा और व्हाट्सऐप पर ही रिपोर्ट देखकर ट्रीटमेंट बता दिया. रात भर चले इलाज से नौशाद की हालत और बिगड़ने लगी. डॉक्टर की लापरवाही देखते हुए नौशाद के परिजनों ने उसे इंदौर लेजाना बेहतर समझा. डॉक्टर ने भी इसकी इजाजत दे दी.
नौशाद को एम्बुलेंस ले इंदौर ले जाया गया जहाँ डॉक्टर ने बताया केस पूरी तरह बिगड़ गया हे. कुछ समय पेहले लाते तो कुछ हो सकता था. अब नौशाद इस दुनिया मे नहीं हे. अब सवाल यही उठता हे की नौशाद को समय रेहते इलाज क्यों नहीं दिया गया. इस मौत का जिम्मेदार कौन हे. . ?
ऐसे कई नौशाद हे जो समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण अपनी जान गँवा चुके हे. सरकारी अस्पताल हो या निजी अस्पताल दोनो ही आधुनिक उपकरणों से लेस हे. फ़िर भी गरीब परिवार कमीशन की बंदर बाँट मे पिस रहा हे.
(फिरदौस अंसारी )
भोपाल - राजधानी मे बेशुमार अस्पताल हे. कई आलीशान निजी अस्पताल हे तो सरकारी अस्पताल भी आधुनिक संसाधनों से लेस हे. इसके बावजूद इलाज मे लापरवाही के चलते मौतों का आंकड़ा थम नहीं रहा. सरकारी अस्पतालों मे पहुँचने वाले मरीज अपने आप को लाचार मेहसूस कर रहे हे. और निजी अस्पतालों मे commiss ion की बंदर बाँट जारी हे. जिस पर लगाम लगाने मे जिला प्रशासन पूरी तरह लाचार साबित हो रहा हे. जिसका खमियाजा माँ अपने बेटे को, बहन अपने भाई को, बच्चे अपने बाप को और पत्नी अपने पति को खो कर भुगत रही हे.
हाल ही मे घटित हुए एक घटना ने अस्पतालों को सवालो के घेरे मे खड़ा कर दिया हे. जहाँ समय पर सही इलाज नहीं मिलने के का रण 32 साल के नौ जवान की तड़पते हुए जान चली गई. शहीद नगर मे रहने वाले नौशाद के दो बच्चे हे . वह बी आर टी एस की बस चलाने का काम करता था. 6 अक्टूबर की रात नौशाद के सर मे दर्द होना शुरू हुआ तो उसकी लाचार माँ पेदल ही उसे रात के 3 बजे किसी तरह कमला नेहरू अस्पताल लेकर पहुँची. जहाँ डाक्टर ने उसे इलाज देने के बजाय वापस लौटा दिया.
तर्क यह दिया की अस्पताल मे बिस्तर खाली नहीं हे. मजबूर और लाचार माँ उसे वापस घर ले गई. अपनी और से हर मुमकिन कोशिश कर रही थी की उसके बच्चे की तकलीफ कुछ कम हो जाय. लेकिन नौशाद असहनीय पीड़ा सेहते हुए बेहोश हो चुका था. पड़ोसियो ने नौशाद की गम्भीर हालत को देख उसे एम्बुलेंस से कमला नेहरू पहुँचाया लेकिन उसे यहाँ से बिना इलाज दिये हमीदिया अस्पताल पहुँचा दिया गया. i c u मेडिकल वार्ड मे नौशाद एक घंटे तक पड़ा रहा लेकिन अभी तक उसका इलाज शुरू नहीं हुआ था. उसके परिजन डॉक्टरों के सामने इलाज शुरू करने के लिये गिड़गिड़ा रहे थे.
लेकिन डॉक्टर उनकी बात सुनने के बजाय अभद्र व्यवहार कर रहे थे. उन्होने महिलाओ तक को नहीं बक्शा था. इलाके के पार्षद के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टर ने इलाज शुरू किया. सीटी स्केन्न कराने निजी पेथोलोजी मे भेजा. जहाँ से रिपोर्ट आई तो सब के होश उड़ गय. जिसमे बताया गया था की कुछ ही घंटों पेहले नौशाद के दिमाग की नस फट गई हे हो लगातर खून का रिसाव हो रहा हे. रिपोर्ट देखते ही हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर्स ने हाथ खड़े कर दिये.
निजी अस्पताल मे लेजाकर तुरन्त ऑपरेशन कराने की सलाह दे डाली. नौशाद को तुरन्त लालघाटी स्थित सर्वोत्तम अस्पताल ले जाया गया. जहाँ सीनियर डॉक्टर ने अस्पताल आना मुनासिब नहीं समझा और व्हाट्सऐप पर ही रिपोर्ट देखकर ट्रीटमेंट बता दिया. रात भर चले इलाज से नौशाद की हालत और बिगड़ने लगी. डॉक्टर की लापरवाही देखते हुए नौशाद के परिजनों ने उसे इंदौर लेजाना बेहतर समझा. डॉक्टर ने भी इसकी इजाजत दे दी.
नौशाद को एम्बुलेंस ले इंदौर ले जाया गया जहाँ डॉक्टर ने बताया केस पूरी तरह बिगड़ गया हे. कुछ समय पेहले लाते तो कुछ हो सकता था. अब नौशाद इस दुनिया मे नहीं हे. अब सवाल यही उठता हे की नौशाद को समय रेहते इलाज क्यों नहीं दिया गया. इस मौत का जिम्मेदार कौन हे. . ?
ऐसे कई नौशाद हे जो समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण अपनी जान गँवा चुके हे. सरकारी अस्पताल हो या निजी अस्पताल दोनो ही आधुनिक उपकरणों से लेस हे. फ़िर भी गरीब परिवार कमीशन की बंदर बाँट मे पिस रहा हे.
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