भोपाल // अवधेश पुरोहित
Present by - toc new
भारी बहुमत से भले ही प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चल रही हो तो वहीं दूसरी ओर सत्ता और संगठन में सबकुछ सामान्य सा दिखाई दे रहा हो और शिवराज सरकार की लोकप्रियता के चर्चे मध्यप्रदेेश में ही नहीं पूरे देश में हो रहे हों, यहीं नहीं भाजपा के लोग उनकी तारीफों में कसीदे पढ़ते नजर आ रहे हों, लेकिन यह सब केवल दिखावटी ही नजर आ रहा है, शिवराज सरकार की गलत नीतियों से परेशान होकर भाजपा के कई नेता और राज्य के अधिकारियों के मन में कहीं न कहीं असंतोष पनप रहा है। शायद यही वजह है कि अब शिवराज को चाहे भाजपा के नेता हों या अधिकारी किसी न किसी तरह से परेशान करने में लगे हुए हैं, मुख्यमंत्री के ससुराल पक्ष से जुड़ा परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा का मामले को लेकर भले ही शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेसी नेता के खिलाफ न्यायालय में मामला दायर कर रखा हो लेकिन सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों और कानून के जानकारों मेें चल रही चर्चाओं से जो खबरें छन-छनकर आ रही हैं उसमें यह दावे किये जा रहे हैं कि यह मामला शिवराज और शिवराज के परिवार के लिये बहुत ही परेशानी भरा होगा और आज भले ही इस मामले को लेकर शिवराज और उनके सिपहसालार तरह-तरह के बयान देकर लोगों को संतुष्ट करने में लगे हुए हों लेकिन कानून के जानकारों की निगाह में इस मामले को लेकर जो दावे किये जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि समय कितना भी लगे लेकिन शिवराज और उनके परिवार पर कभी भी गाज गिर सकती है। यह उल्लेखनीय है कि शिवराज सिंह के प्रदेश की सत्ता पर काबिज होते ही भारतीय जनशक्ति के महामंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा जिस तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदी का मामला उजागर किया था उस मामले में कहीं किसी अधिकारी या भाजपा के नेता का कोई सहयोग नहीं था, यह अलग बात है कि प्रहलाद पटेल द्वारा दिये गये लोकायुक्त को आवेदन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और उसे अन्य कार्यवाहियों के साथ जोड़ दिया गया हो और लोकायुक्त ने इस मामले में क्लीनचिट दे दी गई हो और यह मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन परिवहन आरक्षक भर्ती का मामले को लेकर कभी भी शिवराज और उनके परिवार पर कभी भी गाज गिर सकती है जहां तक इस मामले को कांग्रेसियों तक पहुंचाने का सवाल है तो इसमें जहां भाजपा नेताओं की अहम भूमिका रही तो वहीं वित्त विभाग के एक अधिकारी ने इस मामले केे इस संबंध में जानकारी देने में अहम भूमिका एक आरटीआई कार्यकर्ता के साथ निभाई वह भी चर्चा में है तो वहीं भाजपा के नेताओं ने भी डम्पर मामले के बाद इस प्रमाणित परिवहन आरक्षण भर्ती मामले को भी विरोधियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह आज भी निभा रहे हैं, देखना अब यह है यह मामला आगे क्या रंग लाएगा लेकिन यह जरूर है कि कानून के जानकारों के दावे पर यदि भरोसा करें तो यह मामला भी जिस तरह से शिवराज सरकार के दौरान व्यापमं का महाघोटाला हुआ वैसा ही यह मामला इस प्रदेश की राजनीति के लिये एक एतिहासिक निर्णय होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। आगे न्याय और भगवान महाकाल पर निर्भर है कि वह इस मामले को कहां किस तरह अंजाम तक पहुंचाएंगे।
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भारी बहुमत से भले ही प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चल रही हो तो वहीं दूसरी ओर सत्ता और संगठन में सबकुछ सामान्य सा दिखाई दे रहा हो और शिवराज सरकार की लोकप्रियता के चर्चे मध्यप्रदेेश में ही नहीं पूरे देश में हो रहे हों, यहीं नहीं भाजपा के लोग उनकी तारीफों में कसीदे पढ़ते नजर आ रहे हों, लेकिन यह सब केवल दिखावटी ही नजर आ रहा है, शिवराज सरकार की गलत नीतियों से परेशान होकर भाजपा के कई नेता और राज्य के अधिकारियों के मन में कहीं न कहीं असंतोष पनप रहा है। शायद यही वजह है कि अब शिवराज को चाहे भाजपा के नेता हों या अधिकारी किसी न किसी तरह से परेशान करने में लगे हुए हैं, मुख्यमंत्री के ससुराल पक्ष से जुड़ा परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा का मामले को लेकर भले ही शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेसी नेता के खिलाफ न्यायालय में मामला दायर कर रखा हो लेकिन सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों और कानून के जानकारों मेें चल रही चर्चाओं से जो खबरें छन-छनकर आ रही हैं उसमें यह दावे किये जा रहे हैं कि यह मामला शिवराज और शिवराज के परिवार के लिये बहुत ही परेशानी भरा होगा और आज भले ही इस मामले को लेकर शिवराज और उनके सिपहसालार तरह-तरह के बयान देकर लोगों को संतुष्ट करने में लगे हुए हों लेकिन कानून के जानकारों की निगाह में इस मामले को लेकर जो दावे किये जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि समय कितना भी लगे लेकिन शिवराज और उनके परिवार पर कभी भी गाज गिर सकती है। यह उल्लेखनीय है कि शिवराज सिंह के प्रदेश की सत्ता पर काबिज होते ही भारतीय जनशक्ति के महामंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा जिस तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदी का मामला उजागर किया था उस मामले में कहीं किसी अधिकारी या भाजपा के नेता का कोई सहयोग नहीं था, यह अलग बात है कि प्रहलाद पटेल द्वारा दिये गये लोकायुक्त को आवेदन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और उसे अन्य कार्यवाहियों के साथ जोड़ दिया गया हो और लोकायुक्त ने इस मामले में क्लीनचिट दे दी गई हो और यह मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन परिवहन आरक्षक भर्ती का मामले को लेकर कभी भी शिवराज और उनके परिवार पर कभी भी गाज गिर सकती है जहां तक इस मामले को कांग्रेसियों तक पहुंचाने का सवाल है तो इसमें जहां भाजपा नेताओं की अहम भूमिका रही तो वहीं वित्त विभाग के एक अधिकारी ने इस मामले केे इस संबंध में जानकारी देने में अहम भूमिका एक आरटीआई कार्यकर्ता के साथ निभाई वह भी चर्चा में है तो वहीं भाजपा के नेताओं ने भी डम्पर मामले के बाद इस प्रमाणित परिवहन आरक्षण भर्ती मामले को भी विरोधियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह आज भी निभा रहे हैं, देखना अब यह है यह मामला आगे क्या रंग लाएगा लेकिन यह जरूर है कि कानून के जानकारों के दावे पर यदि भरोसा करें तो यह मामला भी जिस तरह से शिवराज सरकार के दौरान व्यापमं का महाघोटाला हुआ वैसा ही यह मामला इस प्रदेश की राजनीति के लिये एक एतिहासिक निर्णय होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। आगे न्याय और भगवान महाकाल पर निर्भर है कि वह इस मामले को कहां किस तरह अंजाम तक पहुंचाएंगे।