अवधेश पुरोहित @ toc news
भोपाल. झाबुआ में मिली करारी हार के बाद भाजपा सरकार के नेता आदिवासियों के प्रति किस तरह के सहानुभूति जाहिर करने में लगे हुए हैं और उन्हें अपनी पार्टी की ओर प्रभावित करने का ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी आदिवासियों के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं में कटौती और बजट में राशि देने के बाद उसको वापस दूसरे मद में खर्च करने का जो सिलसिला परदे के पीछे चल रहा है वह भी अपने आपमें अजब है, मजे की बात यह है कि आदिवासियों को लुभाने के लिए प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के विकास के लिए बजट में तो करोड़ों रुपये बता देती है लेकिन पर्दे के पीछे चुपके से वह राशि निकालकर राजधानी और अन्य शहरी इलाकों में पीछे नहीं रह रही है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में सम्पन्न विधानसभा सत्र के दौरान प्रभारी नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन ने उठाया था। सदन में अपने भाषण के दौरान बाला बच्चन ने सरकार के इस कारनामे की पोल खोलते हुए कहा कि मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा संख्या में अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं उनके साथ ऐसा पक्षवाद होता है मैं समझ सकता हूँ उन्होंने अपने भाषण के दौरान इस बात का भी ध्यान दिलाया कि प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अभी तक बिजली नहीं लगी, उनके क्षेत्र में जो विकास के काम होना चाहिए थे, वह भी नहीं हुए सड़कें, पुल, पुलिया का निर्माण होना चाहिए वह भी नहीं हुआ लेकिन इसके साथ ही बाला बच्चन ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप आवंटन राशि तो वापस दे देते हो फिर वापस ले लेतो हैं
यह ठीक नहीं उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि अनुसूचित जनजाति मांग संख्या मद क्रमांक एक में दस करोड़ रुपये निकाले, मद क्रमांक दो से ९० करोड़ रुपये निकाले और आदिवासियों के क्षेत्र के विकास पर यह १०० करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे लेकिन आपने चुपके से १०० करोड़ रुपये निकाल लिये और यह १०० करोड़ जो कि आदिवासी क्षेत्रों पर खर्च किए जाने वाले थे वह अब मेट्रोल रेल्वे पर खर्च कर रहे हो। इससे यह साफ जाहिर है कि आप आदिवासी वर्गों के साथ इतना बड़ा भेदभाव कर रहे हो। बाला बच्चन के द्वारा विधानसभा में अपने भाषण के दौरान किये गये खुलासे से यह साफ जाहिर है कि सरकार आदिवासियों के विकास के लये लम्बी चौड़ी राशि की घोषणा करके उक्त राशि को उनके विकास पर न लगाकर चुपके से मेट्रो और अन्य शहरी क्षेत्रों की योजनाओं में खर्च करने की जो नीति अपना रही है उससे तो केवल आदिवासियों के विकास का ढिंढोरा ही पीटने की बात सामने आती है
बाला बच्चन ने तो केवल दो ही राशि आवंटन का खुलासा किया पता नहीं आदिवासी क्षेत्रों के विकास के नाम पर जारी की गई ना जाने कितनी राशि को पिछले दरवाजे से निकालने का सिलसिला कबसे जारी है इस खुलासे से यह साफ जाहिर हो जाता है कि आदिवासी के विकास का सरकार भले ही ढिंढोरा पीटती ो लेकिन हकीकत में उनका यह ढिंढोरा केवल आदिवासियों को झुनझुना दिखाने जैसा है। इस खुलासे के बाद आदिवासी नेता जिनमें भाजपा के नेता भी शामिल हैँ वह लोग तो यह कहते भी नजर आ रहे हैं कि आदिवासियों को यह चुनाव के समय वोट के लिए उपयोग करते हैं और बाद में उनके साथ जो भेदभाव किया जाता है उसका जीता जागता उदाहरण बाला बच्चन द्वारा किये इस खुलासे से नजर आता है इस खुलासे के बाद यह चर्चा भी आम है कि पता नहीं आदिवासियों के नाम पर जारी की गई राशि में चुपके से कितनी राशि अभी तक यह सरकार निकालती आई है, शायद यही वजह है कि आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी आज भी तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं.
भोपाल. झाबुआ में मिली करारी हार के बाद भाजपा सरकार के नेता आदिवासियों के प्रति किस तरह के सहानुभूति जाहिर करने में लगे हुए हैं और उन्हें अपनी पार्टी की ओर प्रभावित करने का ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी आदिवासियों के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं में कटौती और बजट में राशि देने के बाद उसको वापस दूसरे मद में खर्च करने का जो सिलसिला परदे के पीछे चल रहा है वह भी अपने आपमें अजब है, मजे की बात यह है कि आदिवासियों को लुभाने के लिए प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के विकास के लिए बजट में तो करोड़ों रुपये बता देती है लेकिन पर्दे के पीछे चुपके से वह राशि निकालकर राजधानी और अन्य शहरी इलाकों में पीछे नहीं रह रही है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में सम्पन्न विधानसभा सत्र के दौरान प्रभारी नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन ने उठाया था। सदन में अपने भाषण के दौरान बाला बच्चन ने सरकार के इस कारनामे की पोल खोलते हुए कहा कि मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा संख्या में अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं उनके साथ ऐसा पक्षवाद होता है मैं समझ सकता हूँ उन्होंने अपने भाषण के दौरान इस बात का भी ध्यान दिलाया कि प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अभी तक बिजली नहीं लगी, उनके क्षेत्र में जो विकास के काम होना चाहिए थे, वह भी नहीं हुए सड़कें, पुल, पुलिया का निर्माण होना चाहिए वह भी नहीं हुआ लेकिन इसके साथ ही बाला बच्चन ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप आवंटन राशि तो वापस दे देते हो फिर वापस ले लेतो हैं
यह ठीक नहीं उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि अनुसूचित जनजाति मांग संख्या मद क्रमांक एक में दस करोड़ रुपये निकाले, मद क्रमांक दो से ९० करोड़ रुपये निकाले और आदिवासियों के क्षेत्र के विकास पर यह १०० करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे लेकिन आपने चुपके से १०० करोड़ रुपये निकाल लिये और यह १०० करोड़ जो कि आदिवासी क्षेत्रों पर खर्च किए जाने वाले थे वह अब मेट्रोल रेल्वे पर खर्च कर रहे हो। इससे यह साफ जाहिर है कि आप आदिवासी वर्गों के साथ इतना बड़ा भेदभाव कर रहे हो। बाला बच्चन के द्वारा विधानसभा में अपने भाषण के दौरान किये गये खुलासे से यह साफ जाहिर है कि सरकार आदिवासियों के विकास के लये लम्बी चौड़ी राशि की घोषणा करके उक्त राशि को उनके विकास पर न लगाकर चुपके से मेट्रो और अन्य शहरी क्षेत्रों की योजनाओं में खर्च करने की जो नीति अपना रही है उससे तो केवल आदिवासियों के विकास का ढिंढोरा ही पीटने की बात सामने आती है
बाला बच्चन ने तो केवल दो ही राशि आवंटन का खुलासा किया पता नहीं आदिवासी क्षेत्रों के विकास के नाम पर जारी की गई ना जाने कितनी राशि को पिछले दरवाजे से निकालने का सिलसिला कबसे जारी है इस खुलासे से यह साफ जाहिर हो जाता है कि आदिवासी के विकास का सरकार भले ही ढिंढोरा पीटती ो लेकिन हकीकत में उनका यह ढिंढोरा केवल आदिवासियों को झुनझुना दिखाने जैसा है। इस खुलासे के बाद आदिवासी नेता जिनमें भाजपा के नेता भी शामिल हैँ वह लोग तो यह कहते भी नजर आ रहे हैं कि आदिवासियों को यह चुनाव के समय वोट के लिए उपयोग करते हैं और बाद में उनके साथ जो भेदभाव किया जाता है उसका जीता जागता उदाहरण बाला बच्चन द्वारा किये इस खुलासे से नजर आता है इस खुलासे के बाद यह चर्चा भी आम है कि पता नहीं आदिवासियों के नाम पर जारी की गई राशि में चुपके से कितनी राशि अभी तक यह सरकार निकालती आई है, शायद यही वजह है कि आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी आज भी तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं.
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