अवधेश पुरोहित @ toc news
भोपाल। राज्य सरकार की नीतियों के चलते देर रात तक शराब दुकानें खोलने की वजह से भले ही राज्य के अधिकांश घरों में इन शराब की दुकानों से दारू पीकर जाने वाले पतियों के द्वारा भले ही देर रात तक उनकी पिटाई का दौर चल रहा हो, तो वहीं शराब के सेवन का चलन प्रदेश के अधिकांश बच्चों में दिनों दिन बढ़ रहा हो। तो भले ही शराब की खपत और कोई नई दुकान न खोलने पर भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कई रातों तक नींद नहीं आई हो और उन्होंने भले ही यह घोषणा कर दी हो कि राज्य में अब कोई शराब की दुकान नहीं खुलेगी लेकिन लगता है कि राज्य के वित्तमंत्री उन पीडि़त महिलाओं और शराब के आदि हो रहे बच्चों की पीढ़ा को दरकिनार करते हुए वित्तमंत्री अड़े हुए हैं कि भले ही इस प्रदेश के बच्चों को पिलाने के लिए रात के दस बजे के बाद दूध न मिले लेकिन रात १२ बजे तक इस प्रदेश में शराब की दुकानें चलती रहें और इसी नीति को अपनाते हुए प्रदेश सरकार ने नई शराब की दुकानें नहीं खोलने के अपने वायदे का ध्यान रखते हुए एक नई नीति अख्तियार की है जिसके अनुसार पिछले दरवाजे से अब प्रदेश में शराब की बाढ़ इस प्रदेश में लाने की तैयारी की जा रही है
जिस नीति के चलते शायद वित्तमंत्री की यह मंशा है कि प्रदेश की शत प्रतिशत आबादी शराब की आदि हो जाए और उसे शासन द्वारा थोपे जा रहे तमाम कर्जों की भान भी न हो और हर समय सरकार की हां में हां मिलाने के लिए तैयार हो, हालांकि यह नीति हिटलर ने अपने शासनकाल के दौर में अपने राज्य की जनता पर अपनाई थी लगता है कि इस मामले में हिटलर की नीतियों को शत प्रतिशत लागू करने में वित्तमंत्री लगे हुए हैं ऐसा अब कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा के लोग भी कहते नजर आ रहे हैं, इन नेताओं का कहना है कि शराब की यदि इस तरह से बाढ़ प्रदेश में आएगी तो इस राज्य में महिलाओं की स्थिति क्या होगी तो वहीं बच्चों में जिस तरह से इन दिनों शराब के सेवन का प्रचलन बढ़ रहा है वह इन बच्चों को कहां ले जाएगा। लेकिन लगता है कि राज्य के वित्तमंत्री को इसका कोई भान नहीं है।
हाँ यह जरूर है कि राज्य की भाजपा सरकार नई शराब की दुकानें न खोलने के वायदे पर अडिग है लेकिन उसने इससे होने वाले राजस्व की भरपाई के लिए सरकार ने परदे के पीछे दो प्रकार के बार लायसेंसों में छूट दी है उनमें से एक है एफएल-टू और एफएल-थ्री है, यह होटल-रेस्तरां में सुविधाओं के अनुरूप दिये जाते हैं एफएल-टू के लिए १५०० वर्गफिट का एसी हाल होना अनिवार्य है, किचिन और स्टोर अलग होना चाहिए जबकि एफएल-थ्री लायसेंस के लिये कम से कम दस एसी युक्त लग्जरी कमरे होना अनिवार्य है, कमरे में १२० वर्गफिट से कम जगह नहीं होनी चाहिए। बाथरूम अलग से बना हो जिसमें यह जगह शामिल नहीं है। कुल मिलाकर राज्य में बीयर बार के माध्यम से जो शराब की बाढ़ लाने और लोगों को अधिक से अधिक शराब पीने की आदत डालने की जो तैयारी की जा रही है उससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार की मंशा प्रदेश में शराब पर पाबंदी नहीं बल्कि उसकी बाढ़ लाने की तैयारी है।
सरकार की इस नीति को लेकर जहां राजनीतिक क्षेत्र में यह चर्चा आम है कि प्रदेश में पूरी तरह से नशाबंदी करने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा घोषणा की गई थी वहीं दूसरी ओर इस तरह की रणनीति अपनाकर प्रदेश में शराब की बाढ़ लाने की तैयारी की जा रही है इससे अब साफ जाहिर है कि सरकार की मंशा प्रदेश में नशाबंदी की दिशा में नहीं बल्कि लोगों को अधिक से अधिक शराब का आदी बनाने की रणनीति चल रही है, फिर भले ही इस शराब के कारण प्रदेश में महिलाओं से झगड़ा होता रहे और वह देर रात तक पिटती रहें, इन राजनीतिज्ञों का यह भी मानना है कि यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा को क्रियान्वयन करने में सरकार प्रतिबद्ध होती तो उसके लिये यह सब नहीं देखा जाता कि राज्य में इस तरह की शराब में पाबंदी लगने पर राज्य को आर्थिक हानि होगी।
इस तरह की आर्थिक हानि तो राज्य मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनते ही अवैध खनन और अवैध रेत उत्खनन आदि जैसे मुद्दों से जूझ रही है जिसके चलते राज्य में ऐसा कोई भी कस्बा या शहर नहीं है जहां इन अवैध कारोबारियों का कब्जा न हो और जिनके कारनामों की वजह से सरकार को लगातार राजस्व की हानि हो रही है लेकिन सरकार का ध्यान उस ओर नहीं जा रहा है हां यह जरूर है कि प्रदेश के लोगों और बच्चों में शराब की लत बढ़ाने की ओर सरकार पूरी तरह से सक्रिय है।
तो वहीं लोग यह कहते हुए भी नजर आ रहे हैं कि अपने मुख्यमंत्री यदि अपने प्रदेश में पूर्ण नशाबंदी करने के वायदे पर अडिग होते तो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की तरह राज्य में पूरी तरह से फिलहाल देशी शराब की बिक्री पर रोक लगा दी, ठीक इसी तरह की पाबंदी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के समय भी लागू की गई थी यह अलग बात है कि वह गलत नीतियों के चलते सफल नहीं हो सकी। मामला जो भी हो लेकिन फिलहाल प्रदेश में दूध की नहीं बल्कि शराब की बाढ़ लाने की तैयारी में प्रदेश सरकार लगी हुई है
पता नहीं इसके पीछे उसकी क्या मंशा है यह वह ही जाने यदि सरकार की इस मंशा के अनुरूप प्रदेश में बीयर बारों की बाढ़ आने के चलते राज्य में शराब पीने का प्रचलन इस तरह से बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य में आये दिन शराब को लेकर आये दिन कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती नजर आएगी अभी तो फिलहाल महिलाएं अपने शराब पतियों से मार खा ही रही हैं और यही स्थिति रही तो प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा कस्बा या नगर बचेगा जहां आयेदिन महिलाओं को अपने शराब पतियों से प्रताडि़त होने के मामले बढ़ेंगे। ऐसी स्थिति में जब सरकार की शराब की बिक्री बढ़ाने की नीति चल रही हो और इस नीति की चपेट में महिलाएं, बच्चे शराबी पतियों से पिट रहे हों ऐसी स्थिति में राज्य सरकार द्वारा हेप्पीनेस मंत्रालय खोलने का औचित्य भी समझ में नहीं आता है इस मंत्रालय का सही अर्थ तभी होगा जब राज्य के निवासी समस्याओं से मुक्त होंगे।
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