दिलीप कुमार शर्मा
Present by - toc news
विजय माल्या के खिलाफ मुम्बई हाईकोर्ट ने गैर जमानती वारंट जरी कर दिए हैं। अब उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जरी होना तय है। यानि राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे या सार्वजनिक स्थान जहाँ कही भी माल्या देखे जायँगे उन्हें गिरफ्तात कर लिया जायगा। इसका मतलब ये हुआ की अभी विजय माल्या जहाँ कहीं भी हैं वे वहीं कैद हो कर रह जायेंगे।
विजय माल्या पर आरोप है की वे 17 भारतीय बैंको के 09 हज़ार करोड़ रुपये लोन ले कर फरार हो गए। तो क्या सिर्फ माल्या अकेले ही दोषी हैं, लोन देनेवाला बैंक अधिकारी नही ?
क्या देश में एक माल्या ही उधोगपती है। जिसने बैंको के कर्ज डुबोने का प्रयास किया है। भारत
सरकार ने पाँच सौ डिफॉल्टर कर्जधारि उधोग पतियों की लिस्ट निकाली है। जिनके ऊपर कम से कम पाँच सौ करोड़ या इससे ज्यादा के लोन हैं। और वे इसे सालों से पचा कर बैठ गए हैं। इन डिफॉल्टर उधोगपतियों पर सरकार ने अपने त्रिनेत्र खोल दिए हैं। अब इन कर्जधारि उधोगपतियों पर भी सरकार ने हन्टर चलाना सुरु कर दिया है। ये बताने की आवश्यकता नही की किसके सासन में इनहे लोन मिला। और बैंक अधिकारी से लेकर तत्कालीन सरकार तक क्यों चुप रही ?
इनसे कर्ज वसूलने के प्रयास क्यों नही किय गए
एक कार्यक्रम में भारतीय उधोगपति राहुल बजाज से पूछा गया की बैंको से कर्ज लेने कैलिय क्या सिर्फ ब्रांड होना ही काफी है। उनका उत्तर था की उधोग केलिय कर्ज तो दिए ही जाते हैं। बैंक अधिकारियों को यह परख लेना चाहिये था। पर वो पैसे तो डूबोने केलिये ही दिये गए थे। उन्हें तो मनमोहन सिंह की सिफारिस पर कर्ज दिये गए थे। यानि विजय माल्या को कर्ज यह जानते हुये दिए गए। की इस पैसे को डूबना ही है। अब सवाल उठता है। की वे अधिकारी दोषी क्यों नही ? जिन्होंने यह जानते बुझते विजय माल्या के लोन इसु किये। अभी प्रधानमन्त्री की मुद्रा लोन योजना देख लीजिये/ कितने पापड़ बेलने के बाद दस बिस पचास हज़ाए रुपये लोगो को लोन हासिल हो रहे हैं। जबसे माल्या प्रकरण आया है। बैंक अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक मानो हिटलर बन गए हैं। अपने सभी ग्राहकों को माल्या समझ हिटलर जैसा ब्यौहार करने लगे है।
आजादी के बाद से ही देश में एक ट्रेंड चला आ रहा है। की नेताओं व् बैंक अधिकारियों से साठ गांठ कर भारतीय उधोगपति अपने रसूख के बल पर लोन ले लेते हैं। उसे चुकाते नही, सारा पैसा डकार जाते हैं। इसमें बैंक अधिकारी व् सरकार में बैठे नेता सन्लिप्त होते हैं। पर यही बैंक अधिकारी अपने किसी गरीब अकौंट्स होल्डर से सही मुह बात भी नही करते। जबकि विजय माल्या की बिश्वनियता खुद स्नग्दिग्ध रही है। वे कर्ज लेते थे उधोग के नाम पर और उसे खर्च करते थे IPL और घोड़ों पर। उनके इर्द गिर्द मॉडल लड़कियों की लाइन लगी रहती थी। विजय माल्या एक नम्ब्बर के अय्यास किस्म के सख्स हैं। ये सर्व विदित है। यह सब कुछ जानते हुए की बैंको के पैसे सही स्थान पर नही खर्च किये जाते। वे अपने ऐय्यासि पर पैसे लूटा रहे हैं। बावजूद इसके बैंको ने उन्हें बेतहासा लोन इसु किये। कोई बाताये की इस घोटाले में वे बैंक अधिकारी दोषी है या नही जिन्होंने सब कुछ जानते समझते माल्या को लोन दिये। यदि हाँ तो सरकार सिर्फ माल्या के पीछे ही क्यों परी है। उन बैंक अधिकारिओ के पीछे क्यों नही ?
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विजय माल्या के खिलाफ मुम्बई हाईकोर्ट ने गैर जमानती वारंट जरी कर दिए हैं। अब उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जरी होना तय है। यानि राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे या सार्वजनिक स्थान जहाँ कही भी माल्या देखे जायँगे उन्हें गिरफ्तात कर लिया जायगा। इसका मतलब ये हुआ की अभी विजय माल्या जहाँ कहीं भी हैं वे वहीं कैद हो कर रह जायेंगे।
विजय माल्या पर आरोप है की वे 17 भारतीय बैंको के 09 हज़ार करोड़ रुपये लोन ले कर फरार हो गए। तो क्या सिर्फ माल्या अकेले ही दोषी हैं, लोन देनेवाला बैंक अधिकारी नही ?
क्या देश में एक माल्या ही उधोगपती है। जिसने बैंको के कर्ज डुबोने का प्रयास किया है। भारत
सरकार ने पाँच सौ डिफॉल्टर कर्जधारि उधोग पतियों की लिस्ट निकाली है। जिनके ऊपर कम से कम पाँच सौ करोड़ या इससे ज्यादा के लोन हैं। और वे इसे सालों से पचा कर बैठ गए हैं। इन डिफॉल्टर उधोगपतियों पर सरकार ने अपने त्रिनेत्र खोल दिए हैं। अब इन कर्जधारि उधोगपतियों पर भी सरकार ने हन्टर चलाना सुरु कर दिया है। ये बताने की आवश्यकता नही की किसके सासन में इनहे लोन मिला। और बैंक अधिकारी से लेकर तत्कालीन सरकार तक क्यों चुप रही ?
इनसे कर्ज वसूलने के प्रयास क्यों नही किय गए
एक कार्यक्रम में भारतीय उधोगपति राहुल बजाज से पूछा गया की बैंको से कर्ज लेने कैलिय क्या सिर्फ ब्रांड होना ही काफी है। उनका उत्तर था की उधोग केलिय कर्ज तो दिए ही जाते हैं। बैंक अधिकारियों को यह परख लेना चाहिये था। पर वो पैसे तो डूबोने केलिये ही दिये गए थे। उन्हें तो मनमोहन सिंह की सिफारिस पर कर्ज दिये गए थे। यानि विजय माल्या को कर्ज यह जानते हुये दिए गए। की इस पैसे को डूबना ही है। अब सवाल उठता है। की वे अधिकारी दोषी क्यों नही ? जिन्होंने यह जानते बुझते विजय माल्या के लोन इसु किये। अभी प्रधानमन्त्री की मुद्रा लोन योजना देख लीजिये/ कितने पापड़ बेलने के बाद दस बिस पचास हज़ाए रुपये लोगो को लोन हासिल हो रहे हैं। जबसे माल्या प्रकरण आया है। बैंक अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक मानो हिटलर बन गए हैं। अपने सभी ग्राहकों को माल्या समझ हिटलर जैसा ब्यौहार करने लगे है।
आजादी के बाद से ही देश में एक ट्रेंड चला आ रहा है। की नेताओं व् बैंक अधिकारियों से साठ गांठ कर भारतीय उधोगपति अपने रसूख के बल पर लोन ले लेते हैं। उसे चुकाते नही, सारा पैसा डकार जाते हैं। इसमें बैंक अधिकारी व् सरकार में बैठे नेता सन्लिप्त होते हैं। पर यही बैंक अधिकारी अपने किसी गरीब अकौंट्स होल्डर से सही मुह बात भी नही करते। जबकि विजय माल्या की बिश्वनियता खुद स्नग्दिग्ध रही है। वे कर्ज लेते थे उधोग के नाम पर और उसे खर्च करते थे IPL और घोड़ों पर। उनके इर्द गिर्द मॉडल लड़कियों की लाइन लगी रहती थी। विजय माल्या एक नम्ब्बर के अय्यास किस्म के सख्स हैं। ये सर्व विदित है। यह सब कुछ जानते हुए की बैंको के पैसे सही स्थान पर नही खर्च किये जाते। वे अपने ऐय्यासि पर पैसे लूटा रहे हैं। बावजूद इसके बैंको ने उन्हें बेतहासा लोन इसु किये। कोई बाताये की इस घोटाले में वे बैंक अधिकारी दोषी है या नही जिन्होंने सब कुछ जानते समझते माल्या को लोन दिये। यदि हाँ तो सरकार सिर्फ माल्या के पीछे ही क्यों परी है। उन बैंक अधिकारिओ के पीछे क्यों नही ?
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