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भोपाल। निजी दवा कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने शासन को एक करोड़ 20 लाख से ज्यादा की चपत लगा दी। मामला एंटीबायोटिक इंजेक्शन मेरोपेनम की 66 हजार 200 वाइल की खरीदारी का है। टेंडर में इसकी दर 211.90 रुपए प्रति वाइल थी, जबकि कंपनी को 385 रुपए की दर से भुगतान हुआ। ये खुलासा करने वाली कैग रिपोर्ट बताती है कि तय रेट पर खरीदी में एक करोड़ 47 लाख 29 हजार का भुगतान होना था, जबकि भुगतान हुआ दो करोड़ 67 लाख 61 हजार रुपए का। याद दिला दें कि मप्र में इससे पहले भी 3 बार दवा खरीदी घोटाला उजागर हो चुका है।
दो साल बाद पकड़ में आया
इंजेक्शन खरीदी में कंपनी को लाभ पहुंचाने का खेल 2012 में रचा गया, जबकि कैग ने जांच में इसे पकड़ा 2014 में। अनुबंध के अनुसार जैक्सन कंपनी के मेरोपेनेम इंजेक्शन 211.90 प्रति वाइल से खरीदी तय की गई, लेकिन जांच में पता चला कि डीजे लैब्स ने को क्रय समिति इंदौर (सीपीसी) की अनुमोदित दर 385 प्रति वाइल की आपूर्ति के आदेश जारी हुए और काबरा/डीजे नाम नाम की कंपनी ने आपूर्ति की, जो न तो सीपीसी से अनुमोदित थी और ना ही टेंडर में इसका नाम था।
अन्य जिलों में कम दर पर
जांच में सामने आया कि जिस इंजेक्शन को ग्वालियर में कंपनी ने 385 रुपए प्रति वाइल बेचा उसी ने इंदौर के एमवाय अस्पताल को 191 रुपए प्रति वाइल, हमीदिया अस्पताल भोपाल को 210.30 रुपए प्रति वाइल की दर से आपूर्ति की। कैग की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2013 से जून 2013 के दौरान खरीदे गए इंजेक्शन मेरोपेनेम के लिए 1.20 करोड़ से ज्यादा का भुगतान कर कंपनी को वित्तीय लाभ पहुंचाया गया। हालांकि कैग के सवाल पर टेंडर और खरीदी में हुए अंतर की राशि वसूल कर राजस्व में जमा कराने के निर्देश दिए गए। हालांकि इसमें भी कंपनी से 78.24 लाख ही वसूले गए और सरकार को चूना लगाने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं हुई।
भोपाल। निजी दवा कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने शासन को एक करोड़ 20 लाख से ज्यादा की चपत लगा दी। मामला एंटीबायोटिक इंजेक्शन मेरोपेनम की 66 हजार 200 वाइल की खरीदारी का है। टेंडर में इसकी दर 211.90 रुपए प्रति वाइल थी, जबकि कंपनी को 385 रुपए की दर से भुगतान हुआ। ये खुलासा करने वाली कैग रिपोर्ट बताती है कि तय रेट पर खरीदी में एक करोड़ 47 लाख 29 हजार का भुगतान होना था, जबकि भुगतान हुआ दो करोड़ 67 लाख 61 हजार रुपए का। याद दिला दें कि मप्र में इससे पहले भी 3 बार दवा खरीदी घोटाला उजागर हो चुका है।
दो साल बाद पकड़ में आया
इंजेक्शन खरीदी में कंपनी को लाभ पहुंचाने का खेल 2012 में रचा गया, जबकि कैग ने जांच में इसे पकड़ा 2014 में। अनुबंध के अनुसार जैक्सन कंपनी के मेरोपेनेम इंजेक्शन 211.90 प्रति वाइल से खरीदी तय की गई, लेकिन जांच में पता चला कि डीजे लैब्स ने को क्रय समिति इंदौर (सीपीसी) की अनुमोदित दर 385 प्रति वाइल की आपूर्ति के आदेश जारी हुए और काबरा/डीजे नाम नाम की कंपनी ने आपूर्ति की, जो न तो सीपीसी से अनुमोदित थी और ना ही टेंडर में इसका नाम था।
अन्य जिलों में कम दर पर
जांच में सामने आया कि जिस इंजेक्शन को ग्वालियर में कंपनी ने 385 रुपए प्रति वाइल बेचा उसी ने इंदौर के एमवाय अस्पताल को 191 रुपए प्रति वाइल, हमीदिया अस्पताल भोपाल को 210.30 रुपए प्रति वाइल की दर से आपूर्ति की। कैग की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2013 से जून 2013 के दौरान खरीदे गए इंजेक्शन मेरोपेनेम के लिए 1.20 करोड़ से ज्यादा का भुगतान कर कंपनी को वित्तीय लाभ पहुंचाया गया। हालांकि कैग के सवाल पर टेंडर और खरीदी में हुए अंतर की राशि वसूल कर राजस्व में जमा कराने के निर्देश दिए गए। हालांकि इसमें भी कंपनी से 78.24 लाख ही वसूले गए और सरकार को चूना लगाने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं हुई।
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