अवधेश पुरोहित @ toc news
भोपाल। जनसंघ के संस्थापक और भाजपा के नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात मानववाद को सूत्र मानकर अभी तक भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहा करते थे कि पं. दीनदयाल जी के सपनों के अनुसार हर सरकारी योजना का लाभ प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे, यह अलग बात है कि तमाम सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों और प्रचार तंत्र के माध्यम से खूब ढोल पीटा गया, लेकिन प्रदेश में चल रही किसी भी योजना का लाभ राज्य के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाया, जिसका जीता जागता उदाहरण है तमाम गरीबों के उत्थान के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं के बावजूद भी प्रदेश की ७५ प्रतिशत आबादी का गरीबी रेखा के नीचे होना।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल सात करोड़ ३३ लाख की आबादी में से पांच करोड़ ४४ लाख लोगों को सरकार एक रुपये प्रतिकिलो गेहूं, चावल और नमक उपलब्ध करा रही है, इन आंकड़ों से यह साफ जाहिर हो जाता है कि राज्य में चल रही तमाम योजनाओं का लाभ दीनदयाल जी के सपनों के अनुरूप अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने में यह सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है मजे की बात यह है कि सरकार की रुचि गरीबों के हितों में चलाई जा रही योजनाओं को अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने में नहीं बल्कि प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक शराब की खपत बढ़ाने में ज्यादा नजर आ रही है,
तभी तो राज्य सरकार की तमाम सरकारी नीति असफल होने के बावजूद भी ११वीं बार शराब दुकानों की नीलामी के लिए टेंडर बुलाए गए इसके बावजूद भी शराब विक्रेता प्रदेश में शराब दुकान लेने को तैयार न हीं है यदि यही स्थिति रही तो राज्य में अब सरकार स्वयं शराब की बिक्री करेगी, कुल मिलाकर शराब की बिक्री बढ़ाकर राजस्व प्राप्त करने की जिस तरह से राज्य सरकार की नीति चल रही है उससे तो यह साफ जाहिर है कि सरकार प्रदेश के लोगों को शराब का आदि बनाने पर तुली हुई है, यही नहीं इस नीति के चलते सरकार प्रदेश के अन्नदाताओं जिनकी दम पर उसे कई अवार्ड मिल चुके हैं। अब प्रदेश के उन अन्नदाताओं को बदनाम करने में पीछे नजर नहीं आ रही है तभी तो राज्य के वित्तमंत्री जयंत मलैया यह कहने में नहीं हिचक रहे हैं कि प्रदेश में पिछले तीन वर्षों से फसल खराब होने के कारण शराब की बिक्री में कमी आई है।
इस तरह के बयान से यह साफ जाहिर हो जाता है कि उनकी नजरों में प्रदेश का अन्नदाता अन्य वर्गों की तुलना में अधिक शराब का सेवन करता है। कुल मिलाकर प्रदेश के अन्नदाता को शराबी होने का प्रमाण पत्र देने में यह सरकार तुली हुई है। जहां तक कांग्रेस शासन की तुलना में भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान जहां तक शराब की बिक्री की यदि बात करें तो २००३ से लेकर आज तक इस प्रदेश में भाजपा शासनकाल के दौरान शराब की बिक्री कई गुना अधिक हो रही है, २००३ में देसी शराब की खपत इस प्रदेश में ७४० लाख लीटर थी अब यह खपत भाजपा के शासनकाल में बढ़कर २५४३ लाख लीटर हो गई है, लगभग यही स्थिति विदेशी शराब की खपत के मामले में है ११०३.६९ के स्थान पर विदेशी शराब की खपत १४३९.९९ लीटर तक पहुंच गई है,
शासन की नीतियों से तो यह साफ जाहिर है कि यह सरकार अपने राजस्व बढ़ाने की खातिर लोगों को शराबी बनाने पर तुली हुई है शराब कारोबार की राज्य में यह स्थिति है कि १३ प्रतिशत लोग रोजाना शराब पीते हैं, जबकि ३० प्रतिशत लोग पूरे देश में शराब पीते हैं, चार से १३ प्रतिशत लोग नियमित शराब पीते हैं, खपत के मामले में भारत तीसरा बड़ा देश है, जहां हर साल छ: से आठ प्रतिशत की रफ्तार से शराब पीने की लोगों में लत बढ़ रही है। शराब पीने के कारण २० प्रतिशत लोग मौत की गिरफ्त में आ रहे हैं, ०४ गुना खपत देसी शराब की और विदेशी शराब की पांच गुना जबकि बीयर की ११ प्रतिशत खपत पिछले सालों में बढ़ी है,
राज्य सरकार की लोगों को शराबी बनाने की नीति के चलते राज्य में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर १.३ दुकान शराब की हैं, प्रदेश में कुल २७३७ देशी मदिरा की तो वहीं ९३७ विदेशी मदिरा की दुकानें हैं वहीं मध्यप्रदेश में इनकी औसतन संख्या पांच है। कुल मिलाकर राज्य सरकार इस बात पर तुली हुई है कि वह जैसे भी हो इस प्रदेश के नागरिकों को शराबी बना दिया जाये, इस नीति के चलते राज्य में भले ही दस बजे के बाद बच्चों को पिलाने के लिए दूध नहीं मिले लेकिन आधी रात तक शराब की दुकानों से लोगों को शराब उपलब्ध हो रही है, यही नहीं लोगों में बढ़ रही नशाखोरी की आदत के चलते लोगों के घरों में आयेदिन पत्नी और बच्चों के साथ शराबियों द्वारा मारपीट की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है
राज्य में शराब के आदि बूढ़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी हो रहे हैं ऐसी स्थिति में राज्य सरकार की शराब की बिक्री बढ़ाने की रुचि को देखकर यह साफ नजर आ रहा है कि यह सरकार प्रदेश में दूध की नदियां नहीं बल्कि शराब की बाढ़ लाने पर जुटी हुई है तो वहीं राज्य के वित्तमंत्री प्रदेश में इस वर्ष शराब की खपत कम होने की वजह राज्य के अन्नदाताओं की फसलों को नुकसान होना बताकर आखिर क्या सांदेश देना चाहते हैं, पहले ही आपदाओं के कारण किसानों द्वारा आत्महत्या करने का जो सिलसिला इस राज्य में जारी है उन किसानों की मौत का कारण भी राज्य सरकार ज्यादा शराब का सेवन तो बताने में भी नहीं हिचक रही है, देखना अब यह है कि सरकार शराब की बिक्री की नीति के चलते राज्य को किस ओर ले जाएगी।
भोपाल। जनसंघ के संस्थापक और भाजपा के नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात मानववाद को सूत्र मानकर अभी तक भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहा करते थे कि पं. दीनदयाल जी के सपनों के अनुसार हर सरकारी योजना का लाभ प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे, यह अलग बात है कि तमाम सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों और प्रचार तंत्र के माध्यम से खूब ढोल पीटा गया, लेकिन प्रदेश में चल रही किसी भी योजना का लाभ राज्य के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाया, जिसका जीता जागता उदाहरण है तमाम गरीबों के उत्थान के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं के बावजूद भी प्रदेश की ७५ प्रतिशत आबादी का गरीबी रेखा के नीचे होना।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल सात करोड़ ३३ लाख की आबादी में से पांच करोड़ ४४ लाख लोगों को सरकार एक रुपये प्रतिकिलो गेहूं, चावल और नमक उपलब्ध करा रही है, इन आंकड़ों से यह साफ जाहिर हो जाता है कि राज्य में चल रही तमाम योजनाओं का लाभ दीनदयाल जी के सपनों के अनुरूप अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने में यह सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है मजे की बात यह है कि सरकार की रुचि गरीबों के हितों में चलाई जा रही योजनाओं को अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने में नहीं बल्कि प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक शराब की खपत बढ़ाने में ज्यादा नजर आ रही है,
तभी तो राज्य सरकार की तमाम सरकारी नीति असफल होने के बावजूद भी ११वीं बार शराब दुकानों की नीलामी के लिए टेंडर बुलाए गए इसके बावजूद भी शराब विक्रेता प्रदेश में शराब दुकान लेने को तैयार न हीं है यदि यही स्थिति रही तो राज्य में अब सरकार स्वयं शराब की बिक्री करेगी, कुल मिलाकर शराब की बिक्री बढ़ाकर राजस्व प्राप्त करने की जिस तरह से राज्य सरकार की नीति चल रही है उससे तो यह साफ जाहिर है कि सरकार प्रदेश के लोगों को शराब का आदि बनाने पर तुली हुई है, यही नहीं इस नीति के चलते सरकार प्रदेश के अन्नदाताओं जिनकी दम पर उसे कई अवार्ड मिल चुके हैं। अब प्रदेश के उन अन्नदाताओं को बदनाम करने में पीछे नजर नहीं आ रही है तभी तो राज्य के वित्तमंत्री जयंत मलैया यह कहने में नहीं हिचक रहे हैं कि प्रदेश में पिछले तीन वर्षों से फसल खराब होने के कारण शराब की बिक्री में कमी आई है।
इस तरह के बयान से यह साफ जाहिर हो जाता है कि उनकी नजरों में प्रदेश का अन्नदाता अन्य वर्गों की तुलना में अधिक शराब का सेवन करता है। कुल मिलाकर प्रदेश के अन्नदाता को शराबी होने का प्रमाण पत्र देने में यह सरकार तुली हुई है। जहां तक कांग्रेस शासन की तुलना में भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान जहां तक शराब की बिक्री की यदि बात करें तो २००३ से लेकर आज तक इस प्रदेश में भाजपा शासनकाल के दौरान शराब की बिक्री कई गुना अधिक हो रही है, २००३ में देसी शराब की खपत इस प्रदेश में ७४० लाख लीटर थी अब यह खपत भाजपा के शासनकाल में बढ़कर २५४३ लाख लीटर हो गई है, लगभग यही स्थिति विदेशी शराब की खपत के मामले में है ११०३.६९ के स्थान पर विदेशी शराब की खपत १४३९.९९ लीटर तक पहुंच गई है,
शासन की नीतियों से तो यह साफ जाहिर है कि यह सरकार अपने राजस्व बढ़ाने की खातिर लोगों को शराबी बनाने पर तुली हुई है शराब कारोबार की राज्य में यह स्थिति है कि १३ प्रतिशत लोग रोजाना शराब पीते हैं, जबकि ३० प्रतिशत लोग पूरे देश में शराब पीते हैं, चार से १३ प्रतिशत लोग नियमित शराब पीते हैं, खपत के मामले में भारत तीसरा बड़ा देश है, जहां हर साल छ: से आठ प्रतिशत की रफ्तार से शराब पीने की लोगों में लत बढ़ रही है। शराब पीने के कारण २० प्रतिशत लोग मौत की गिरफ्त में आ रहे हैं, ०४ गुना खपत देसी शराब की और विदेशी शराब की पांच गुना जबकि बीयर की ११ प्रतिशत खपत पिछले सालों में बढ़ी है,
राज्य सरकार की लोगों को शराबी बनाने की नीति के चलते राज्य में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर १.३ दुकान शराब की हैं, प्रदेश में कुल २७३७ देशी मदिरा की तो वहीं ९३७ विदेशी मदिरा की दुकानें हैं वहीं मध्यप्रदेश में इनकी औसतन संख्या पांच है। कुल मिलाकर राज्य सरकार इस बात पर तुली हुई है कि वह जैसे भी हो इस प्रदेश के नागरिकों को शराबी बना दिया जाये, इस नीति के चलते राज्य में भले ही दस बजे के बाद बच्चों को पिलाने के लिए दूध नहीं मिले लेकिन आधी रात तक शराब की दुकानों से लोगों को शराब उपलब्ध हो रही है, यही नहीं लोगों में बढ़ रही नशाखोरी की आदत के चलते लोगों के घरों में आयेदिन पत्नी और बच्चों के साथ शराबियों द्वारा मारपीट की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है
राज्य में शराब के आदि बूढ़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी हो रहे हैं ऐसी स्थिति में राज्य सरकार की शराब की बिक्री बढ़ाने की रुचि को देखकर यह साफ नजर आ रहा है कि यह सरकार प्रदेश में दूध की नदियां नहीं बल्कि शराब की बाढ़ लाने पर जुटी हुई है तो वहीं राज्य के वित्तमंत्री प्रदेश में इस वर्ष शराब की खपत कम होने की वजह राज्य के अन्नदाताओं की फसलों को नुकसान होना बताकर आखिर क्या सांदेश देना चाहते हैं, पहले ही आपदाओं के कारण किसानों द्वारा आत्महत्या करने का जो सिलसिला इस राज्य में जारी है उन किसानों की मौत का कारण भी राज्य सरकार ज्यादा शराब का सेवन तो बताने में भी नहीं हिचक रही है, देखना अब यह है कि सरकार शराब की बिक्री की नीति के चलते राज्य को किस ओर ले जाएगी।
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