अवधेश पुरोहित @ Toc News
भोपाल। हालांकि अभी राज्य में विधानसभा के चुनाव होने में काफी समय बाकी है, लेकिन आदिवासी बाहुल्य झाबुआ के संसदीय क्षेत्र के इतिहास में पहली बार हुए उपचुनाव में प्रदेश भाजपा को जो करारी हार तो मिली ही है तो वहीं आदिवासियों ने भाजपा नेताओं को आइना दिखाने का काम भी किया था। उसी से सबक लेकर अब बात प्रदेश भाजपा के नेता राज्य की १०० विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये अभी से गोटियां बैठाना शुरू कर दी है राज्य की इन १०० सीटों पर जहां अनुसूचित जनजाति के मतदताओं के वोट निर्णायक स्थिति में होते हैं तो वहीं इसमें से ४७ विधानसभा क्षेत्र जो कि अजजा के लिये आरक्षित हैं हालांकि उसमें से भाजपा के पास ३२ विधानसभा सीटों पर कब्जा है तो वहीं कांग्रेस के पास १५ सीटों हैं, इनमें से एक सीट भाजपा के बागी कालङ्क्षसह भंवर के पास है हालांकि झाबुआ-रतलाम लोकसभा उपचुनाव में आदिवासी मतदताओं ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को जीत का सेहरा पहनाया था इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ३४ सीटों में से २७ सीटों पर भाजपा का कब्जा है, मात्र चार सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं और तीन सीटें बसपा के खाते में हैं। इसके अलावा १९-२० सीटें ऐसी हैं जहां पर अजजा के मतदाताओं की निर्णायक भूमिका रहती है। इन्हीं सब गुणाभाग में उलझी भाजपा, कांग्रेस और बसपा के नेता अभी से इन सीटों पर बनाए रखने की तैयारी में लगे हुए हैं। झाबुआ में मिली करारी हार के बाद भाजपा अब ऐसा क ोई मौका नहीं छोडऩा चाहती जिसकी वजह से उसे कुछ परेशानी हो। यूँ तो प्रदेश में जबसे शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभाली है तबसे लेकर आज तक कुछ ऐसे योग बने हैं कि चुनाव आयोग एक उपचुनाव करा पाता है कि उसके समाप्त होते ही दूसरे उपचुनाव की तैयारी का सिलसिला शुरू हो जाता है यानि कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान उपचुनाव कराने का सिलसिला हर दो-चार महीने के बाद चल निकला, यह कब थमेगा इस तरह का दावा कोई कर नहीं सकता।
भोपाल। हालांकि अभी राज्य में विधानसभा के चुनाव होने में काफी समय बाकी है, लेकिन आदिवासी बाहुल्य झाबुआ के संसदीय क्षेत्र के इतिहास में पहली बार हुए उपचुनाव में प्रदेश भाजपा को जो करारी हार तो मिली ही है तो वहीं आदिवासियों ने भाजपा नेताओं को आइना दिखाने का काम भी किया था। उसी से सबक लेकर अब बात प्रदेश भाजपा के नेता राज्य की १०० विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये अभी से गोटियां बैठाना शुरू कर दी है राज्य की इन १०० सीटों पर जहां अनुसूचित जनजाति के मतदताओं के वोट निर्णायक स्थिति में होते हैं तो वहीं इसमें से ४७ विधानसभा क्षेत्र जो कि अजजा के लिये आरक्षित हैं हालांकि उसमें से भाजपा के पास ३२ विधानसभा सीटों पर कब्जा है तो वहीं कांग्रेस के पास १५ सीटों हैं, इनमें से एक सीट भाजपा के बागी कालङ्क्षसह भंवर के पास है हालांकि झाबुआ-रतलाम लोकसभा उपचुनाव में आदिवासी मतदताओं ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को जीत का सेहरा पहनाया था इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ३४ सीटों में से २७ सीटों पर भाजपा का कब्जा है, मात्र चार सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं और तीन सीटें बसपा के खाते में हैं। इसके अलावा १९-२० सीटें ऐसी हैं जहां पर अजजा के मतदाताओं की निर्णायक भूमिका रहती है। इन्हीं सब गुणाभाग में उलझी भाजपा, कांग्रेस और बसपा के नेता अभी से इन सीटों पर बनाए रखने की तैयारी में लगे हुए हैं। झाबुआ में मिली करारी हार के बाद भाजपा अब ऐसा क ोई मौका नहीं छोडऩा चाहती जिसकी वजह से उसे कुछ परेशानी हो। यूँ तो प्रदेश में जबसे शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभाली है तबसे लेकर आज तक कुछ ऐसे योग बने हैं कि चुनाव आयोग एक उपचुनाव करा पाता है कि उसके समाप्त होते ही दूसरे उपचुनाव की तैयारी का सिलसिला शुरू हो जाता है यानि कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान उपचुनाव कराने का सिलसिला हर दो-चार महीने के बाद चल निकला, यह कब थमेगा इस तरह का दावा कोई कर नहीं सकता।
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