Present by - Radhesiyam Agrawal
विधायक के बंगले की डीपी जलने का खामियाजा राजधानी भोपाल के एक पत्रकार को उठाना पड़ा.... जी हॉ..दरअसल बीते एक दिन पहले नरेला विधायक विश्वास सांरग के बंगले के बाहर लगी डीपी जल गई थी...जिसकी खबर पत्रिका में प्रकाशित नही की गई..... प्रबंधन ने खबर नही लगाने का सारा ठीकरा क्राइम रिपोर्टर नीलेंद्र पटेल के सिर फोड़ते हुए ... नीलेंद्र को बर्खास्त करने का फरमान सुना दिया.... नीलेंद्र की बर्खास्तगी की खबर जैसे ही राजधानी के पत्रकारो को लगी...तो सभी की जुबान पर एक ही बात आने लगी..कि आखिर संस्थान को एक विधायक की खबरो से इतनी मोहब्बत क्यो...
जब पत्रकारो ने इस मामले में जानकारी निकलवायी तो सामने आया कि ... दरअसल नेताजी डीपी का लोड बढवाना चाह रहे थे..जो कि नियम विरूद्ध था... लेकिन जब आग लग ही चुकी हैं.. तो नेताजी ने अपने संबंधो का फायदा उठाने के साथ साथ ही खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने का मन भी बना लिया था...लेकिन जब सुबह सबेरे चाय के साथ नेताजी को खबर देखने को नही मिली थी..तो फिर .... सिलसिलेवार ढंग से हुई कार्रवाई का नुकसान बेवजह एक पत्रकार को भुगतना पड़ा.... इस पूरे मामले में एक बात जो निकलकर सामने आ रही हैं... कि क्या पत्रकारिता का नैतिक पतन इतना गिर चुका हैं...कि एक माना हुआ अखबार तथाकथित लोग के इशारो पर चलने लगा...... यदि इस तरह से पत्रकारो पर कार्रवाई होती रही तो.... फिर पत्रकार कैसे अपना धर्म निभायेगा... ये सवाल बेहद चिंतनीय हैं.........
विधायक के बंगले की डीपी जलने का खामियाजा राजधानी भोपाल के एक पत्रकार को उठाना पड़ा.... जी हॉ..दरअसल बीते एक दिन पहले नरेला विधायक विश्वास सांरग के बंगले के बाहर लगी डीपी जल गई थी...जिसकी खबर पत्रिका में प्रकाशित नही की गई..... प्रबंधन ने खबर नही लगाने का सारा ठीकरा क्राइम रिपोर्टर नीलेंद्र पटेल के सिर फोड़ते हुए ... नीलेंद्र को बर्खास्त करने का फरमान सुना दिया.... नीलेंद्र की बर्खास्तगी की खबर जैसे ही राजधानी के पत्रकारो को लगी...तो सभी की जुबान पर एक ही बात आने लगी..कि आखिर संस्थान को एक विधायक की खबरो से इतनी मोहब्बत क्यो...
जब पत्रकारो ने इस मामले में जानकारी निकलवायी तो सामने आया कि ... दरअसल नेताजी डीपी का लोड बढवाना चाह रहे थे..जो कि नियम विरूद्ध था... लेकिन जब आग लग ही चुकी हैं.. तो नेताजी ने अपने संबंधो का फायदा उठाने के साथ साथ ही खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने का मन भी बना लिया था...लेकिन जब सुबह सबेरे चाय के साथ नेताजी को खबर देखने को नही मिली थी..तो फिर .... सिलसिलेवार ढंग से हुई कार्रवाई का नुकसान बेवजह एक पत्रकार को भुगतना पड़ा.... इस पूरे मामले में एक बात जो निकलकर सामने आ रही हैं... कि क्या पत्रकारिता का नैतिक पतन इतना गिर चुका हैं...कि एक माना हुआ अखबार तथाकथित लोग के इशारो पर चलने लगा...... यदि इस तरह से पत्रकारो पर कार्रवाई होती रही तो.... फिर पत्रकार कैसे अपना धर्म निभायेगा... ये सवाल बेहद चिंतनीय हैं.........
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