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कर्मचारियों से जबरन इस्तीफा लिखवाना, कांट्रैक्ट रिन्यू न करना, कांट्रेक्टर से रिटेनर बना देना, तथाकथित सेफ एक्जिट प्लान के बहाने बाहर का रास्ता दिखाना, बडी संख्या में बीसों साल पुराने कर्मचारियों को दूध में पडी मक्खी की तरह निकाल देना, सेवानिवृत्त की आयु 60 से 65 करने के बाद भी 80 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी करने के बाद भी " बाबा-ए-रोजगार" से नवाजे जाने वाले और अपने आपको सहाराश्री कहलवाने वाले सुब्रतो राय जी नहीं जुडाया जो उसने 22 मीडिया कर्मियों को बर्खास्त कर दिया। मिली जानकारी के अनुसार अपने-आपको सबका अभिभावक कहने वाले सुब्रतो राय ने ताजा आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मोहित श्रीवास्तव व गीता रावत (और बाकी साथी क्षमा करेंगे सबका नाम भडास पर होने के बावजूद पता नहीं चल पाया कारण नामों की सूची डाउनलोड हुई नहीं) को बर्खास्त कर दिया।
अब सवाल उठता है कि इन्हें बर्खास्त क्यों किया गया? महीनों का बकाया वेतन मांगना अपराध है क्या ? श्रम कानून के तहत काम लेने के वेतन न देना संज्ञेय न सही अपराध तो है ही। मालिक काम करवाने के बाद वेतन न दे तो जुर्म नहीं कर्मचारी वेतन मांगे तो अपराध है, मालिक छंटनी कर दे, तालाबंदी कर दे तो यह अपराध नहीं उसका अधिकार है। कर्मचारी वेतन न मिलने पर हडताल करे तो औद्योगिक अशांति कहलाती है मालिक धारा 144 लगवाकर कर्मचारियों की पिटाई कराये तो सही है। मालिक करे तो सही कर्मचारी करे तो गलत , क्या यही है " श्रमेव जयते "???
बताते चलें कि जबसे सहारा प्रमुख सुब्रत राय जेल गए तबसे कर्मचारियों खासकर मीडिया कर्मियों को नियमित सैलरी (जून को छोडकर, जून में मान्यवर इस धरा पर अवतरित हुए है) नहीं मिल रही है। 2014 तक आधा वेतन दिया जाता रहा बाद में वो भी यदाकदा का रूप ले लिया। सूत्रों का कहना है कि सुब्रत मीडिया कर्मियों से खुन्नस खाये हुए हैं कि मीडिया उन्हें न तो उन्हें जेल जाने से बचा पाया और न ही जेल से बाहर निकलवाने में मदद की। उनका मानना है कि राइजिंग कर मीडिया ऐसा कर सकता था। वर्ना कोई और कारण समझ में नहीं आता कि मीडिया के साथ सौतेला व्यवहार किया जाए वो भी तब जब संस्थान की बेहतर स्थिति का दावा 7 जून 2016 को विभिन्न अखबारों में एक-एक पेज के दिये गए विज्ञापन में वो कर चुके हैं। क्या यह सही है कि मातृ संस्था सहारा इंडिया के पास अपनी देनदारी से तीन गुना अधिक की चल-अचल संपत्तियां/परसंपत्तियां है और और वो अपने छोटे से छोटे पद पर काम करने वाले, नौकरी छोडने वालों और नौकरी से निकाले जाने वालों को पीएफ और ग्रच्यूटी जाने दीजिए वेतन का बकाया ही नहीं दे रही है क्यों ? क्यों ?? क्यों ??? आखिर में सुब्रतो चाहते क्या हैं?
कर्मचारियों से जबरन इस्तीफा लिखवाना, कांट्रैक्ट रिन्यू न करना, कांट्रेक्टर से रिटेनर बना देना, तथाकथित सेफ एक्जिट प्लान के बहाने बाहर का रास्ता दिखाना, बडी संख्या में बीसों साल पुराने कर्मचारियों को दूध में पडी मक्खी की तरह निकाल देना, सेवानिवृत्त की आयु 60 से 65 करने के बाद भी 80 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी करने के बाद भी " बाबा-ए-रोजगार" से नवाजे जाने वाले और अपने आपको सहाराश्री कहलवाने वाले सुब्रतो राय जी नहीं जुडाया जो उसने 22 मीडिया कर्मियों को बर्खास्त कर दिया। मिली जानकारी के अनुसार अपने-आपको सबका अभिभावक कहने वाले सुब्रतो राय ने ताजा आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मोहित श्रीवास्तव व गीता रावत (और बाकी साथी क्षमा करेंगे सबका नाम भडास पर होने के बावजूद पता नहीं चल पाया कारण नामों की सूची डाउनलोड हुई नहीं) को बर्खास्त कर दिया।
अब सवाल उठता है कि इन्हें बर्खास्त क्यों किया गया? महीनों का बकाया वेतन मांगना अपराध है क्या ? श्रम कानून के तहत काम लेने के वेतन न देना संज्ञेय न सही अपराध तो है ही। मालिक काम करवाने के बाद वेतन न दे तो जुर्म नहीं कर्मचारी वेतन मांगे तो अपराध है, मालिक छंटनी कर दे, तालाबंदी कर दे तो यह अपराध नहीं उसका अधिकार है। कर्मचारी वेतन न मिलने पर हडताल करे तो औद्योगिक अशांति कहलाती है मालिक धारा 144 लगवाकर कर्मचारियों की पिटाई कराये तो सही है। मालिक करे तो सही कर्मचारी करे तो गलत , क्या यही है " श्रमेव जयते "???
बताते चलें कि जबसे सहारा प्रमुख सुब्रत राय जेल गए तबसे कर्मचारियों खासकर मीडिया कर्मियों को नियमित सैलरी (जून को छोडकर, जून में मान्यवर इस धरा पर अवतरित हुए है) नहीं मिल रही है। 2014 तक आधा वेतन दिया जाता रहा बाद में वो भी यदाकदा का रूप ले लिया। सूत्रों का कहना है कि सुब्रत मीडिया कर्मियों से खुन्नस खाये हुए हैं कि मीडिया उन्हें न तो उन्हें जेल जाने से बचा पाया और न ही जेल से बाहर निकलवाने में मदद की। उनका मानना है कि राइजिंग कर मीडिया ऐसा कर सकता था। वर्ना कोई और कारण समझ में नहीं आता कि मीडिया के साथ सौतेला व्यवहार किया जाए वो भी तब जब संस्थान की बेहतर स्थिति का दावा 7 जून 2016 को विभिन्न अखबारों में एक-एक पेज के दिये गए विज्ञापन में वो कर चुके हैं। क्या यह सही है कि मातृ संस्था सहारा इंडिया के पास अपनी देनदारी से तीन गुना अधिक की चल-अचल संपत्तियां/परसंपत्तियां है और और वो अपने छोटे से छोटे पद पर काम करने वाले, नौकरी छोडने वालों और नौकरी से निकाले जाने वालों को पीएफ और ग्रच्यूटी जाने दीजिए वेतन का बकाया ही नहीं दे रही है क्यों ? क्यों ?? क्यों ??? आखिर में सुब्रतो चाहते क्या हैं?
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