Sunday, March 5, 2017

राज्य में अवैध खनन के कारण नर्मदा सहित सूख रही नदियां]

अवधेश पुरोहित // TOC NEWS

भोपाल। राज्यभर में अंधाधुंध खुदाई और राज्य की जीवनदायिनी नर्मदा सहित कई नदियों को छलनी कर चल रहे राज्यभर में अवैध रेत खनन और रेत चोरी के कारण माफियाओं ने कई नदियों के बहाव की दिशा भी बदल डाली पूरे प्रदेश की यदि बात छोड़ें केवल राजधानी से सटे छ: जिलों की बात करें, जिन छ: जिलों में ३७ छोटी-बड़ी नदियाँ बह रही हैं इनमें से ३२ पूरी तरह से अवैध रेत खनन के चलते सूख चुकी हैं, इन ३२ नदियों में चल रहे अवैध रेत खनन के चलते मार्च माह में यह हालत है जबकि इस बार औसत से १०९ सेमी से ज्यादा १३९ सेमी बारिश हुई, यही नहीं जिन पांच नदियों में पानी है अब पूरा इलाका उन्हीं के भरोसे पर निर्भर है, लेकिन इसके बावजूद भी इन सूख रही नदियों से अवैध रेत खनन के कारोबार पर बंदिश लगाने की कोई पहल नहीं हो रही बात यदि रेत के अवैध खनन की करें तो सबसे ज्यादा रेत का अवैध उत्खनन और रेत चोरी के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबसे आगे है,


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जहाँ इस प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा से रोजाना दो हजार से अधिक डम्परों के माध्यम से अवैध रेत का कारोबार चल रहा है तो वहीं शिवराज सिंह के गृह जिले में बहने वाली पार्वती नदी दूसरी नदी है जहाँ से हर दिन २०० ट्रकों से ज्यादा काली रेत पार्वती नदी से निकाली जा रही है तो वहीं सीहोर में बहने वाली अन्य नदी सीप भब्बड़ पार्वती और सीवन नदियों से दिन-रात अवैध रेत खनन का कार्य जारी है तो वहीं रायसेन जिले से बहने वाली नदियां बारना, बेतवा और बीना नदी से भी अवैध रेत खनन का कारोबार जारी है लगभग यही स्थिति गुना जिले में बहने वाली पार्वती, सिंध, चोपेट, घोड़ापछाड़, भौंरा, बरसादी और अंधेरी नदियों की भी है, इन नदियों से भी अवैध रेत खनन का कारोबार जारी है।
लगभग यही स्थिति राजगढ़ जिले में बहने वाली नदियां पार्वती, काली सिंध, घोड़ा पछाड़, अजनार, गाडग़ंगा, छापी, दूधी और सुखट नदियों की है, जहां एक ओर शिवराज के गृह जिले सीहोर में बहने वाली नदियों की है तो वैसी ही स्थिति उनके पूर्व संसदीय क्षेत्र विदिशा जिले में बहने वाली नदियां कालीसिंध, बेतवा, नेवन, बेस नदी संगढ़, त्योटना और बीना की भी है। भोपाल के आसपास वाले छ: जिलों जिनमें अशोकनगर जिला भी है उस जिले में भी बेतवा ओर और सिंध नदी बहती है, उसकी भी लगभग यही स्थिति है।
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भतीजे प्रद्मुन सिंह चौहान के छ: डम्परों के पकड़े जाने के बाद उठे राजनीतिक बवाल के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के अधिकारियों को अवैध उत्खनन करने वाले माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही करने का जो निर्देश दिया था उसके बाद से कुछ दिनों तक माफियाओं पर कार्यवाही की गई लोगों को उस कार्यवाही के बाद यह लगने लगा था कि अवैध रेत के उत्खनन के कारोबार पर बंदिश तो नहीं लग पाएगी क्योंकि यह सब खेल सत्ताधीशों के परिवार और राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के चलते पूरे प्रदेश में बदस्तूर जारी है।
इसलिये इस पर बंदिश तो नहीं लग सकती लेकिन कुछ कम होने की उम्मीद जरूर जताई गई थी लेकिन अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री के आदेश के बाद एक सप्ताह का आयोजन कर इस तरह के कारोबारियों के खिलाफ पकड़ धकड़ तो की लेकिन बाद में अब उसमें विराम सा लग गया। जहां तक नदियों में रेत के मामले को लेकर नदियों को लेकर काम करने वाले मेग्सेसे अवार्ड विजेता राजेन्द्र सिंह का कहना है कि मशीन से रेत खनन के कारण नदियां सूख रही हैं दरअसल नदियों में मौजूद रेत अपने आकार का पानी दो कणों के बीच रखती है मशीन से रेत खदुाई के साथ-साथ पानी भी बाहर आ जाता है ऐसा होने की वजह से खनन का सीधा असर नदियों पर पड़ता है और उनका पानी खत्म हो जाता है,
हालांकि मुख्यमंत्री ने जब नमामि नर्मदे देवी यात्रा के आयोजन की रूपरेखा बनाई थी तो उस समय उन्होंने यह भी कहा था कि नदियों के संरक्षण के मामले में हम इतिहास बनायेंगे लेकिन पता नहीं अब उस इतिहास बनाने की कार्यप्रणाली का क्या हुआ, यह वही जानें लेकिन यह जरूर है कि राज्य में अवैध खनन के कारण नदियों की दिशा बदलने और उन्हें सुखाने का इतिहास बनाने मेें जरूर खनिज माफिया लगे हुए हैं और यही स्थिति रही तो प्रदेश में आने वाले समय में चाहे नर्मदा हो या बेतवा हो या सिंध या चंबल जैसी और छोटी-बड़ी नदियां इतिहास में समा जाएंगी तो वहीं दूसरी ओर राज्य की जनता को बूंद-बूंद पानी के लिये दर-दर भटकना पड़ेगा, जैसा कि पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के संगठन के मुखिया नंदकुमार सिंह चौहान ने पचमढ़ी में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए यह बताया था कि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल के दौरान केन्द्र से एक जानकारी आई थी जिसके अनुसार मालवा के रेगिस्तान में परिवर्तित होने की प्रबंध संभावनायें व्यक्त कीं यदि यही स्थिति रही तो मालवा ही क्या प्रदेश का अधिकांश हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील होता नजर आएगा।

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