क्या राम सीता ने की थी आत्महत्या
लेखकः-राजेन्द्र कश्यप
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भोपाल। ‘‘जीवन का यथार्थ और भविष्यवाणियों का औचित्य’’ विषय पर आयोजितजनसंवेदना संस्था द्वारा संगोष्ठी मे रमेश शर्मा मुख्य वक्ता ने अपने
वक्तव्य में हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थ रामायण के मुख्य चरित्रभगवान
श्री रामचन्द्र जी, उनकी धर्मपत्नी सीताजी एवं आयोध्या के राजा दशरथ की
नयी व्याख्या में आत्महत्या करने वाला निरूपित किया है।
अपने पूर्व उद्बोधन में रामचरित्र मानस का शहरों में रामभक्तों द्वारा
कराये जाने 24 घन्टे का अखण्ड पाठ की कडी आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह
उचित नहीं है इससे पड़ोसियों को कष्ट पहंुचता है और वह रामायण का पाठ
करने वालों को गालियां देते हैं। यह उचित नहीं है। भारत में ग्रामीण जन
आपस में मिलने पर ‘जय राम जी ’ करते हैं। अपरिचित व्यक्ति से भी बात करते
समय जय रामजी करने में संकोच नहीं करते बल्कि मृत्योपरान्त भी राम नाम का
उच्चारण करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपने प्राण त्यागते
समय राम नाम का उच्चारण किया था। हिन्दू धर्म के मार्गदर्शक जगत गुरू
शंकराचार्य साधु संतजन भी रामन नाम का जोर से उच्चारण को जोर देते हैं।
अशिक्षित ग्रामीण जन स्वयं रामचरित्र का पाठ नहीं कर पाते हैं,इसलिये
गावों में लाउड स्पीकर की आवाज दूर खेत,खलिहान तक पहुंच जाती है।
‘‘राम नाम की महिमा अपरंपार है’’। राम नाम पर देश में एक बार सत्ता
परिवर्तन हो चूका है। ऐसे में मध्यप्रदेश में भाजपा पार्टी की सरकार है
जिस पार्टी ने रामजन्म भूमि में राम मन्दिर निर्माण हेतु कृत संकल्पित
है,उसी पार्टी के शासन काल में एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त श्री
रमेश शर्मा अपने वक्तव्य में कहते हैं कि महाराजा दशरथ असंतुलित होकर
स्ट्रम में जाकर चलते फिरते दो वचन दे डालेओर अपने दो पुत्रों को वन में
भटकना पड़ा। सीता को भी वनवास भुगतना पड़ा। वक्तव्य में कहा कि राम ने भी
सरयू नदी में प्राण त्याग दिये यह भी आत्महत्या है।
एक धोबी के कहने पर स्ट्रीम में आकर राम ने अपनी पत्नी को वनवास दे दिया
और उनके दो पुत्र (लव,कुश) को जीवन यापन के लिये शहरों में गाना गाकर
रहना पड़ा। कुशल वक्ता शब्दजाल के प्रवीण रचयिता है। परन्तु स्पष्टतः
अयोध्या राजा दशरथ एवं उनके पुत्र भगवान राम ने अत्महत्या की थी यह
व्याख्या धर्म प्रेमी स्वीकार नहीं कर पायेंगे। रमेश शर्मा ने स्पष्ट कहा
कि ये आत्महत्या हैं। हिन्दू धर्मानुसार आत्महत्या पाप होती है। राजा
दशरथ ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिये थे। सीता धरती पुत्री थीं और
वह स्वयं धरती में समा गई थीं। इसी तरह राम ने आत्महत्या नहीं की थी
बल्कि प्राणों को ब्रह्माण्ड में चढ़ाकर प्राण त्याग दिये थे। रामचंद्र जी
का जीवन संतुलित था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम थे। उन्होंने पूरा जीवन
मर्यादा में रहकर लोकतांत्रिक जनहितकारी क्रिया कलाप से युक्त जीवन
व्यतीत किया।
चिन्तक विचारक रमेश शर्मा ने रामायण ओर भगवान राम की नई व्याख्या की है
जो भारत के चिन्तकों की व्याख्या के बीच विरोधाभास लेकर एक आस्थाहीन
संदर्भ लेकर आई है, जो भगवानराम को एक मानव रूप में कायर व्यक्तिकी
भंांति प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
क्या अयोध्या के राजा दशरथ,उनके पुत्र भगवान रामचन्द्र जी ने आत्महत्या
की थी,और सीता जी भी ने भी आत्महत्या करके प्राण त्याग दिये थे। यह
प्रश्न हिन्दुओं आस्थओं को चोट पहुंचाता है।क्या ऐसी सरकार को मध्यप्रदेश
में शासन करने की अधिकारी है जिनका एक सहयोगी रामचन्द्र जी को आत्महत्या
करने वाला मानता है।और क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह
चौहान एवं शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मी कांत शर्मा जी रामायण
की इसी व्याख्या से सहमत हैं।
प्रदेश ही नहीं देश भ्र के रामभक्तों की आस्थ को ठेस पहंुचाने के प्रयास
आगे भी राजी रहेंगे। क्या मध्य प्रदेश सरकार श्री शिवराज सिंह चौहान का
समर्थन ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों को मिलता रहेगा।
राजेन्द्र सिंह कश्यप
मो0 नं0 9753041701
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