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पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुए एक फैशन शो में लिसा ब्लू नामक फैशन डिज़ाईनर द्वारा खुल कर हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान का मामला सामने आया है। इस फैशन शो में डिजाइनर लीजा ब्लू ने जो कलेक्शन पेश किया उसमें हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों को अश्लील तरीके से इस्तेमाल किया गया। फैशन शो में एक मॉडल के अंत वस्त्रों पर और जूते चप्पलों पर हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरों का प्रदर्शन किया गया, और हमेशा की तरह धर्मनिरपेक्षता के चलते दुनिया के एक मात्र हिन्दू बहुसंख्यक देश भारत की नपुंसक सरकार ने इस मामले में रूचि लेना तो दूर की बात अंतरराष्ट्रीय समाज में इस कुकृत्य के लिए कोई विरोध दर्ज कराना भी उचित नहीं समझा।
ऐसी हास्यास्पद घटनाओं की जितनी निंदा की जाए, कम है। बार बार हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान हो रहा है। यह इस देश की विडंबना है अगर ऐसी घटना किसी अन्य समुदाय के साथ हो तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है। यह घृणात्मक कृत्य इस बात का द्योतक है कि पश्चिमी समाज कितना असभ्य, आशालीन और शैतानियत का नेतृत्व करने वाला समाज है। हिन्दुओ में जागरूकता, विवेक, हौंसले तथा संगठन की कमी है जिस कारण यदा-कदा कोई न कोई घटना देश या फिर विदेश में घटती ही रहती है। मुसलमानो का गुस्सा इस असभ्य समाज के प्रति कितना सही है वास्तव मे अब कुछ लोगों को समझ मे आ रहा होगा। डेनमार्क में एक कार्टून बनता है और पूरे विश्व का मुसलमान सड़कों पर उतर जाता है।
हालांकि, विदेशों में इस तरह की हरकत का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी सस्ती लोकप्रियता और विवादों में बने रहने के लिए और भी कई हस्तियों ने देवी-देवताओं के चित्रों को मोहरा बनाया। कभी जूते-चप्पल पर, तो कभी टॉयलेट शीट पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई जा चुकी हैं। पिछले साल ही एक नामी मल्टिनैशनल कंपनी ने भगवानों की तस्वीरों वाले जूते बाजार में उतारे थे। एक नामी फैशन डिजाइनर ने तो सारी हदें ही पार कर स्विमवेयर पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई थीं, उसका भी जमकर विरोध हुआ था और उसे अपनी ड्रेस वापस लेनी पड़ी थीं। ये मानसिक रुप से कितने दिवालिए हो सकते हैं, यह इन तस्वीरों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
धार्मिक मान बिंदु आस्था के प्रतीक होते हैं और हर समुदाय के अपने धार्मिक मान बिंदुओं के सम्मान की रक्षा का पूर्ण अधिकार है। बात-बात पर हिन्दुओं के विरुद्ध बोलने-लिखने वाले "सैकुलर" अब इन प्रश्नों का क्या जवाब देंगे। आज देश की राजनीति को अपने घर की बपौती समझने वाले, धर्मनिरपेक्ष शब्द का भी कहाँ पालन कर रहें हैं। यहाँ तो तुष्टिकरण का खेल चल रहा है, भारत के हित में सोंचने वालों को सांप्रदायिक करार दिया जाता है तथा संस्कृति का गला घोंटने वाले धर्मनिरपेक्ष कहलाते हैं। सेक्युलारिस्म की आड़ में आम इंसान को रौंदा जा रहा हैं। यह तुष्टीकरण की नीति एक बडी बीमारी है! इससे तथाकथित "अल्पसंख्यकों" के वोट खीचे जा सकते हैं लेकिन भारत का भला नहीं हो सकता। रही बात हिंदुत्व वाद की तो आज हिन्दुओ में दम ही नहीं है... उनके लिए एक जॉब, एक सुन्दर पत्नी और थोडा सा बैंक में मनी ही बहुत कुछ हैं। इसके विपरीत में गैर हिन्दूओं का स्लोगन हैं चाहे पंचर जोड़ेगे पर भारत को तोडे़गे। यह स्लोगन मैंने एक पत्रिका में पढ़े थे वाकई आज सही साबित हो रहा है।
आज तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों के द्वारा जिस तरह से हमारी शाश्वत संस्कृत को धूमिल और मिटने के कुत्सित षड्यंत्र रचे जा रहे हैं वह निंदनीय और भत्सर्नीय नहीं अपितु दण्डनीय है। इस तरह के दुष्प्रचारकों को कड़ा से कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि इन कुकृत्यों का मुंह तोड जवाब दिया जाना चाहिए ...और भारत सरकार को भी अब अपनी किन्नरी आदत को छोडकर बाहर आना चाहिए।
अवनीश सिंह
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