चंदन मित्र पायनियर के संपादक हैं और भाजपा के कोटे से राज्यसभा सांसद भी। राजनीतिक कैरियर में वे जहां जहां जाते हैं बंटाढार करते हैं।
चंदन मित्रा की यह नाराजगी दूसरों को तो छोड़िये खुद भारतीय जनता पार्टी को भी नहीं भाई। पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कह दिया कि ये चंदन मित्रा के निजी विचार हैं, पार्टी के नहीं। चंदन मित्रा शायद भूल गये कि अमर्त्य सेन को नोबेल पुरस्कार उनकी ही सरकार ने 1999 में दिया था। भारत रत्न भी उन्हें तब घोषित किया गया जब अर्थशास्त्र के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल चुका था, 1998 में।
मित्रा के ट्वीट पर कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा है कि अमर्त्य सेन नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में नहीं देखना चाहते। वह नीतीश को मोदी की तुलना में बड़ा नेता मानते हैं। क्या इसके लिए उनसे भारत-रत्न छीन लेना चाहिए? क्या यह असहिष्णुता की हद नहीं है?
मित्रा के ट्वीट पर कांग्रेस के सीनियर नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा है कि भारत रत्न किसी व्यक्ति या पार्टी का नहीं है कि जब चाहे कोई उसे वापस ले ले। चतुर्वेदी ने सवाल किया कि यह संविधान में किस जगह लिखा है कि भारत रत्न या किसी अन्य सम्मान से सम्मानित व्यक्ति राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय नहीं रखेगा।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी कहा कि अमर्त्य सेन भारत ही नहीं, विश्व के सम्मानित अर्थशास्त्री हैं। वह नोबेल पुरस्कार विजेता हैं और देश के लिए गौरव हैं। उन पर ऐसी टिप्पणी चंदन मित्रा जैसे व्यक्ति को शोभा नहीं देती।
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