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कांग्रेस के सेक्युलर पोस्टर बॉय दिग्विजय सिंह ने अपने हिंदू होने के कई सबूत पेश किए हैं। ये सबूत इतने अश्लील हैं कि न तो इनसे दिग्गी के सेक्युलर इमेज मजबूत होती है और न ही एक आस्थावान हिंदू की। ये सबूत एक राजा की छवि को बड़ी आसानी से स्थापित करते हैं। हिन्दू होने के ये सबूत दिग्विजय सिंह के मन में जमी कुंठा के सबूत हैं। सिंह ने कहा कि मुझसे बड़ा कोई हिंदू हो ही नहीं सकता है। यदि कोई है तो मिलना चाहूंगा। उन्होंने खुद को न केवल हिंदू कहा बल्कि एक कदम आगे निकलर सनातन धर्मावलंबी कहा। जब हम हिंदू को सनातन धर्म के रूप में जानते थे तब वहां और कई तरह के भेदभाव थे। यह व्यवस्था तो पूरी तरह से ब्राह्मणवादी थी। आज की तारीख में बेचारे सेक्युलर दिग्विजय सिंह उस व्यवस्था से खुद को अलग-थलग पाकर परेशान हैं। इस परेशानी के लिए वह संघ और बीजेपी के जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मतलब संघ और बीजेपी उन्हें असली सनातनी का सार्टिफिकेट दे तो राघोगढ़ के राजा के बालभद्र सिंह (जो कि १९५१ में जनसंघ के समर्थन से राघोगढ़ विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए थे) के सपूत ठाकुर दिग्विजय सिंह को राहत मिलेगी।
दिग्विजय सिंह अपने हिंदू होने के प्रमाण देने में यहीं तक नहीं रुकते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे राघोगढ़ के आवास पर ९ मंदिर हैं। मैं वहां हर दिन ३० मिनट पूजा करता हूं। मैंने शंकराचार्य जी से दीक्षा ली है। अब कोई इस लोकतंत्र और सेक्युलरिजम के ठेकेदार ठाकुर साहेब से पूछेगा कि कब तक अंग्रेजों की मदद से रियासत के बचे अस्तित्व को साथ लेकर चलेंगे। आखिर किसी के घर में ९ मंदिर कैसे हो सकते हैं। सोचिए एक सेक्युलर नेता ने अपने घर को ही धाम बनाकर रखा है ताकि इस भेड़ियाधसान आबादी में अपने पाप को धोने के लिए किसी दूसरे तीर्थस्थलों पर जाने की जरूरत न पड़े। क्या दिग्विजय सिंह ने उन गरीब हिन्दुओं की औकात नहीं बताई है जिनके घर में मंदिर क्या घर ही नसीब नहीं हैं? दिग्विजय सिंह से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्या अपने घर में बने ९ मंदिरों में ३० मिनट पूजा करने वालों के लिए ही हिंदू धर्म है? इसका मतलब यह हुआ कि दिग्गी जिस हिंदू धर्म को भोग रहे हैं वह उनके पिता ठाकुर बालभद्र सिंह के जमाने का है। तब ठाकुर साहब की दहलीज पर कई दलित और आदिवासी याचक मोड में रहते थे।
दिग्विजय ने बिल्कुल सही कहा उनसे बड़ा हिंदू कोई हो ही नहीं सकता है। वे सारे गरीब जो दो जून की रोटी के लिए हाड तोड़ मेहनत के बावजूद राम के मर्यादित जीवन से प्रेरणा लेते हैं, दिग्विजय सिंह उनसे विशाल हिंदू हैं। क्योंकि उनके पास घर ही नहीं है, ९ मंदिर कहां से होंगे! क्योंकि उन्होंने शंकराचार्य से दीक्षा भी नहीं ली, बस गर्दन में एक धागे के सहारे हमुमान की तस्वीर लटकती रहती है। क्योंकि वे हर दिन ३० मिनट पूजा नहीं कर पाते हैं बल्कि ३० मिनट और ज्यादा पत्थर तोड़ते हैं। ठाकुर दिग्विजय सिंह की कुंठा इस हद तक गई कि संघ से सर्टिफिकेट पाने के लिए इन गरीबों की आस्था को स्याह कर दिया।
दिग्विजय सिंह ने हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री राघवजी द्वारा अपने नौकर के यौन शोषण पर एक ट्वीट किया था कि च्बच्चा-बच्चा राम का राघव जी के काम का।च् इस ट्वीट से भी दिग्विजय सिंह की ९ मंदिर और हर दिन ३० मिनट पूजा करने वाली मानसिकता जाहिर हो जाती है। हम यहां एक काल्पनिक सवाल ही खड़ा करते हैं। यदि राघवजी की जगह कोई मुस्लिम मंत्री और नौकर होता तो क्या दिग्विजय सिंह का इस तरह का ट्वीट करते। इसका कोई मुश्किल जवाब नहीं है। दरअसल, यहां सेक्युलरिजम परिस्थितिजन्य दर्शन है। आपके हक में है तो इसका इस्तेमाल कीजिए नहीं तो फिर खुद को विशुद्ध देसी सनातनी बता दीजिए।
ऐसा पहली बार हुआ है जब सेक्युलर दिग्विजय सिंह अपनी बनती हिंदू विरोधी छवि से परेशान हैं। दिग्विजय सिंह की इस परेशानी की तहकीकात करें तो कई चीजें खुलकर सामने आती हैं। यदि सच में सिंह सेक्युलर हैं और अल्पसंख्यकों के हक के लिए संघ या बीजेपी द्वारा हिंदू विरोधी होने की बदनामी झेल रहे हैं तो फिर परेशानी कैसी? उन्हें तो खुश रहना चाहिए कि सारी बदनामी झेलकर भी वह सेक्युलरिजम से टस-मस नहीं वाले हैं।
रजनीश
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