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गौतम बुद्ध नगर की निलंबित एसडीएम दुर्गा नागपाल का सस्पेंशन नाराज़ और उदास करता है। नाराज़गी इस कारण कि इस देश में जो कोई निष्पक्ष और ईमानदार तरीके से काम करता है और ताकतवर ठेकेदारों और थैलीशाहों से पंगा लेता है, उसे या तो पद से हटा दिया जाता है या मार दिया जाता है। और उदासी इस कारण कि इस मामले में न हम कुछ करने की स्थिति में हैं न दुर्गा जैसे अधिकारी। दुर्गा इस मामले में लकी हैं कि आज वह ज़िंदा हैं वरना उत्तर प्रदेश में किसी की जान लेना आज बहुत मुश्किल नहीं है।
दुर्गा के मामले में कहा जा रहा है कि वह रेत माफिया को रेत की चोरी से रोक रही थीं, इसलिए उनको हटाया गया। उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते हैं कि दुर्गा ने रमजान के महीने में मस्जिद की दीवार तोड़ी, इसलिए उनको निलंबित किया गया।
मामला चाहे रेत चोरी का हो या अवैध निर्माण का, दोनों ही स्थितियों में दुर्गा सही हैं और अखिलेश गलत। लेकिन दुर्गा जैसों के लिए रास्ता क्या है? बिल्डरों और बिज़नेस एंपायरों के मामले में सारे एक जैसे हैं। फर्क बस यह है कि मुकेश अंबानी कांग्रेस के ज्यादा करीब हैं तो अनिल अंबानी मुलायम के। इसी तरह टाटा और अडानी ग्रूप बीजेपी के खास हैं। यही मामला धर्म का भी है। कांग्रेस, एसपी और बीएसपी मुसलमान को नाराज़ नहीं चाहतीं तो बीजेपी-शिवसेना हिंदुओं को, भले ही उनके नाम पर कुछ भी सही-गलत हो। आज अखिलेश की जगह मायावती होतीं या कांग्रेस-बीजेपी की सरकारें होतीं तो भी क्या स्थिति बेहतर होती? सवाल ही नहीं है।
मैं यहां निजी और सच्चा अनुभव आपको बता रहा हूं। बात तब की है जब कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। उन दिनों हमारे अपार्टमेंट में रहनेवाले कुछ हिंदू भाइयों को सूझा कि यहां एक मंदिर बनाया जाए। मैंने व कुछ अन्य निवासियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। मंदिर मेरे फ्लैट के ठीक पिछवाड़े बनना था और मुझे डर था कि मंदिर बनते ही सुबह-शाम लाउडस्पीकर पर भजन बजेंगे और मेरी शांति खत्म हो जाएगी।
हमारे विरोध के बावजूद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। एक दिन रात 12 बजे मैं दफ्तर से घर लौटा तो देखा कि मंदिर की बुनियाद रखी जा रही है। मैंने पुलिस में शिकायत कर दी कि यहां अवैध निर्माण हो रहा है। मेरी कॉल पर पीसीआर वैन आई और पुलिस ने काम रुकवा दिया। मैं खुश हुआ।
लेकिन मेरी खुशी बस रात भर के लिए थी। अगले दिन अपार्टमेंट की महिलाएं नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों से मिलीं। शायद लखनऊ से भी फोन-टोन आए और अधिकारियों को बता दिया गया कि इस मामले में रुकावट न डालें। नतीजतन उस अवैध मंदिर पर हाथ के हाथ वैधता की मुहर लग गई। वह चार फुटिया मंदिर कुछ ही सालों में विशाल आकार ले चुका है। मेरे पास अब इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि अपना वह फ्लैट बेचूं और कहीं और ठिकाना ढूंढूं।
तो जिस तरह कल्याण सिंह के राज में कहीं भी और कभी भी मंदिर बनाने की छूट थी, वैसे ही अखिलेश और मायावती के राज में कहीं और कभी भी मस्जिद बनाने की छूट है। दुर्गा यह नहीं समझीं और उनको इसकी सज़ा मिली। लेकिन कल किसी और की सरकार आएगी और दुर्गा किसी अवैध मंदिर की दीवार तोड़ेंगी तब भी उनको इसकी सज़ा मिलेगी।
दुर्गा जैसों के लिए रास्ता क्या है? सिवाय इसके कि वे अपने राजनीतिक आकाओं के कहे मुताबिक काम करें, या फिर अशोक खेमका की तरह हर कुछ महीनों पर तबादलों के लिए तैयार रहें। या फिर परेशान होकर नौकरी या देश ही छोड़ दें क्योंकि इस देश में ईमानदारों के लिए कोई जगह नहीं है।
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